लाज का पर्दा छोड़ दो शर्म का घुंघट छोड़ दो
अपने भाग्य को कर्म पथ पर मोड़ दो
दिखा दो समाज को कि तुम किसी से कम नहीं।
रानी लक्ष्मीबाई की तरह तुम भी अपनी उन्नती की जंग का ऐलान कर दो
समाज में अपना मुकाम अभी भी तुम्हें है पाना ।
लाज शर्म को छोड़ दो चार दिवारी के बंधन को तोड़ दो,
दिखा दो कि तुम निर्बल हो नहीं ।
नारी तेरी महानता इस जग ने है जानी
तुझमें ही है दुर्गा है तुझ में ही काली
तेरे आंचल की छांव में है पलती दुनिया सारी।
priyawar,
ReplyDeletevichaar uttam hain.
abhyaas chalta rahe, to nikhar aayega zaroor ek din.