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Monday, October 19, 2009

तुम निर्बल हो नहीं

लाज का पर्दा छोड़ दो शर्म का घुंघट छोड़ दो
अपने भाग्य को कर्म पथ पर मोड़ दो
दिखा दो समाज को कि तुम किसी से कम नहीं।
रानी लक्ष्मीबाई की तरह तुम भी अपनी उन्नती की जंग का ऐलान कर दो
समाज में अपना मुकाम अभी भी तुम्हें है पाना ।

लाज शर्म को छोड़ दो चार दिवारी के बंधन को तोड़ दो,
दिखा दो कि तुम निर्बल हो नहीं ।
नारी तेरी महानता इस जग ने है जानी
तुझमें ही है दुर्गा है तुझ में ही काली
तेरे आंचल की छांव में है पलती दुनिया सारी।

1 comment:

  1. priyawar,
    vichaar uttam hain.
    abhyaas chalta rahe, to nikhar aayega zaroor ek din.

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