गाँव की सुंदरता हर किसी के मन को अपनी ओर आकर्षित करती है। गाँव की मिट्टी की भीनी -भीनी खुशबू का मजा ही कुछ और है। वहाँ नल का पानी पीकर थकान दूर हो जाती है । शहरों की भीड़-भाड़ भरी ज़िन्दगी ,वहाँ की वयस्तता से परे गाँव का वातावरण बिल्कुल अलग चारो ओर शांति ही शांति। गाँव के लोगों में जो अपनेपन की भावना होती है वह शहरी सभ्याता में बहुत कम देखने को मिलती है। शहरों में लोग पैसा तो खूब कमाते हैं पर अपनापन का भाव न जाने कहाँ छूट जाता है। गाँव के भोले-भाले किसान सादा जीवन उच्च विचार, मधुर व्यवहार ,बड़ा अच्छा लगता है गाँव के वातावरण में।
एक दिन की बात है मैं गाँव के पीछे खेतों की सैर करने के लिए निकला, बाहर आकर बहुत अच्छा लगा चारों तरफ सरसों के पीले-पीले फूल खिले हए दिखाई दे रहे थे। कितना सुंदर नज़ारा था ? ऐसा लग रहा था मानो धरती ने पीले रंग के वस्त्र धारण कर रखे हो। प्रकृति के इस नजारे को निहारते हुए मैं अपनी धुन में चला जा रहा था कि कि अचानक मेरी नज़र एक स्त्री पर पड़ी पुरानी सी,गंदी सी साड़ी पहने सड़क के किनारे बैठी ज़मीन में कुछ खोज रही थी । दूर से देखने पर लग रहा था कि वह मिट्टी में से कुछ खोज रही है किन्तु पास जाकर देखा तो एक पचास-पचपन साल की वृद्ध स्त्री अरहर की तूड़ी से एक -एक अरहर का दाना चुन-चुन कर एक तरफ इकट्ठा कर रही थी । अपने कार्य में वह इस प्रकार मग्न थी कि मेरे द्वारा यह पूछे जाने पर कि आप यह क्या कर रही हो ? उसने कोई जवाब नहीं दिया । मैंने भी एक -दो बार से ज्यादा उससे नहीं पूछा और मैं अपने कार्य के लिए आगे निकल गया । जैसे -जैसे मैं आगे बढ़ रहा था वैसे-वैसे दिन ढल रहा था प्रकृति की सुंदरता में और निखार आ रहा था । मैं अपनी सैर पर आगे तो जा रहा था किन्तु मेरा मन बार -बार यही देखना चाह रहा था कि जिस स्त्री को अभी-अभी पीछे छोड़कर आया हूँ आखिर वह वहाँ है या नही ? इसी लिए बार-बार पीछे मुड़कर देख लेता था वह स्त्री किसी मूर्ती के समान बैठी अपने कार्य में मग्न थी । मैं कुछ और दूर तक गया फिर वापस घर की तरफ हो लिया । रास्ते में फिर वही स्त्री सिर नीचा किए तूड़ी से अरहर के दाने चुनने में लगी हुई थी । इस बार मैंने उससे कुछ नही पूछा सीधा घर आ गया ।
मेरा मन बार-बार यही सोच रहा था कि आखिर वह स्त्री है कौन ? जो इस प्रकार डूड़ी से अरहर के एक -एक दाने चुन रही है। मुझे कुछ सोचता हुआ देखकर मेरी दादी ने मुझसे पूछ ही लिया कि “क्या बात है ? क्या सोच रहा है ?”
मैने कहा कि “पीछे खेतों के पास सड़क पर एक औरत अरहर की तूड़ी से एक-एक अरहर के दाने इकट्ठे कर रही है , मैंने उससे पूछा भी कि वह क्या कर रही है ? लेकिन उसने मेरी तरफ देखा और बिना कोई जवाब दिए वह फिर अपने काम में लग गई कौन है वह ? क्या वह पागल है? या फिर भिखारिन, जो एक-एक दाना चुनकर इकट्ठा कर रही है ।
“बेटा न तो वह पागल है न ही भिखारिन । वह औरत बेचारी अपनी किस्मत की मारी और दुनिया की सताई हुई है। इसी गाँव की लड़की है, उसका नाम जाबो है। अपने पड़ौस में ही तो रहती है ,शायद तुझे याद नही । बेटा जब किसी का बुरा वक्त आता है तो ऐसा ही होता है बेचारी...............।” दादी ने कहा
“क्या हुआ उसे ?” --मैंने दादी से पूछा
अब क्या बताऊँ बेटा उसके बारे में उस बेचारी का एकाद दुख तकलीफ हो तो बताऊँ । बड़ी अभागिन है जब से जन्म लिया है और अब तक बेचारी दुख ही दुख झेलती आ रही है। सुख के चार दिन नसीब होते नही कि फिर से दुखों का पहाड़ बेचारी पर आ पड़ता है। भगवान ने भी तो इसकी तरफ से आँखे फेर रखी हैं । उसे भी तो इस बेचारी पर दया नहीं आती , कितनी ही बार यह मौत के मुँह से बच-बचकर आ गई किन्तु इसे मौत नहीं आई। एक बार जब यह बहुत छोटी थी कुएँ में गिर गई , कम्बख्त कुएँ में गिरी तो थी लेकिन डूबी नही । संजोग से एक आदमी उस कुएँ से पानी भरने के लिए गया तो उसने देखा और शोर मचाया कि एक बच्चा कुएँ में गिरा पड़ा है । उस समय हम लोग अपने खेतों पर ही काम कर रहे थे हम सब लोग उस कुएँ की तरफ भागे वहाँ जाकर देखा तो यही लड़की जिसे तूने अभी सड़क पर अरहर बीनते हुए देखा था, सीधे पड़ी पानी में तैर रही थी। खेत के आस-पास काम करनेवाले किसानों ने इसे कुंएँ से बाहर निकाला। उस समय सही सलामत बाहर निकल आई। एक बार यही लड़की नहर में जा गिरी उसमें डूबकर भी यह नहीं मरी नहर में तो कम्बख्त दो दिन तक रेत में दबी रही थी जब गाँव वालों ने नहर का पानी रोका तो देखा कि पुल के ठीक सामने रेत में दबी हुई पड़ी थी फिर भी नहीं मरी । ईश्वर की लीला ईश्वर ही जाने । बता कोई दो दिन तक रेती में दबा रहे और फिर भी जीवित बच जाए? ईश्वर की माया वो ही जाने । ईश्वर अगर इसे तभी उठा लेता तो बेचारी को ये दिन तो न देखने पड़ते । पता नही क्या लिखाकर लाई है कम्बख्त अपने भाग में ….....?
जब शादी के लायक हो गई तो माँ-बाप ने इसकी शादी कर दी । शादी के बाद लगा कि चलो अब तो बेचारी का घर बस गया अपने घर में सुखी रहेगी किन्तु ऐसा हुआ नहीं । शादी के कुछ साल बाद से ही इस बेचारी पर फिर से मुसीबतों का कहर शुरु हो गया । इसके दो बच्चे हैं एक लड़का और एक लड़की । असल में इसे दौरे पड़ते है । जब इसे दौरे पड़ते है उस समय इसकी हालत बिल्कुल पागलों की सी हो जाती है , बाद में फिर से सामान्य हो जाती है। कुछ दिनों तक इसके ससुरालवालो ने इसे घर में रखा किन्तु बाद में वे लोग इसे यहाँ इसके माँ-बाप के पास छोड़ गए। तब से यह बेचारी यही रह रही है। पहले तो इसका पति और बच्चे कभी-कभी इससे मिलने आ जाते थे किन्तु अब तो बच्चों ने और पति ने इसकी तरफ से मुँह मोड़ लिया है। सुना है इसके पति ने दूसरी शादी कर ली है अब वह अपनी नई दुनिया में खुश है । बस दुख तो भगवान ने इस बेचारी के नसीब में ही लिख दिए हैं। बच्चे … हे ! भगवान बच्चों ने भी अपनी माँ से मुँह फेर लिया । एक तो इसके दौरे पड़ने की बीमरी दूसरा अपने पति -बच्चों की इस बेरुखी ने इसे सचमुच पागल जैसा बना दिया है । अकसर यहाँ घर पर आ जाती है खूब ठीक-ठाक बात चीत करती है सबका हालचाल पूछती है । उसे भी अपने बच्चों से मिलने का मन करता है पर क्या करें .......... । जब यहाँ आई थी तब इसके बच्चे छोटे - छोटे थे तभी एक दो बार इसका पति बच्चों को इससे मिलाने लाया था। उसके बाद कभी नही आया । तबसे बेचारी इसी तरह जी रही है ।
जब तक इसके माँ-बाप जीवित थे तब तक तो सब ठीक था किन्तु माँ-बाप के गुजर जाने के बाद तो इसकी हालत और खराब हो गई । एक दिन इसके पिता जी साइकिल से जंगल जा रहे थे एक ट्रकवाले ने उन्हें पीछे से टक्कर मारी बेचारे की मौके पर ही मौत हो गई , इसकी माँ की मौत भी बड़ी दर्दनाक हुई थी । शर्दियों के दिन थे सभी लोग अपने -अपने घरों में थे जाबो और उसकी माँ जिस घर में रहती थीं उसकी छत घास -फूंस के बनी थी , घर के अंदर शरदी से बचने के लिए इन लोगों ने अलाप जला रखा था अलाप में से एक चिंगारी उस छप्पर में जा लगी , छप्पर था सूखी घास फूंस का जल्दी ही आग पकड़ गया । आग लगने से कुछ समय पहले ही जाबो पानी लेने के लिए नल के पास गई थी जैसे ही वह पानी लेकर वापस आने लगी तो उसने घर में आग को देखा और चिल्लाई बेचारी..........। घर के अंदर केवल उसकी बूढ़ी माँ थी । जब तक गाँव वालों ने उन्हें बाहर निकाला तब तक वे काफी जल चुकी थी । उनका इलाज भी करवाया किन्तु वे बेचारी ज्यादा दिन तक न जी सकी और जाबो को इस संसार में अकेले जीने के लिए छोड़ गई। वैसेे तो चार-पाँच भाई हैं इसके लेकिन ............ कोई इसे अपने पास रखना ही नहीं चाहता अब यह बेचारी कहाँ जाए इसी लिए बेशर्मों की तरह कभी किसी के घर तो कभी किसी के घर में जा रहती है । पहले तो यह जिसके घर में रहती थी उन लोगों का काम भी खूब करती थी , घर का हो या जंगल का सब के साथ बराबर काम करवाती थी तो इसके भाई भी इसका ख्याल रखते थे किन्तु आज -कल यह ठीक तरह से नहीं रहती घर में कलेश मचाती है। एक दूसरे से तू -तू मैं -मैं मचाती है किसी काम की कहो तो नहीं करती । अब बेटा बिना काम करे तो कोई भी घर में खाली बिठाकर खिलाएगा नहीं? अपने इसी रवैये के कारण यह किसी भी एक भाई के घर में नहीं टिकती । अब तो स्थिति यह है कि कभी एक के घर में रहती है तो कभी दूसरे के घर । जो कुछ मिल जाता है खा लेती है । जिस के घर रहती है उसी का थोड़ा बहुत काम कर देती है । अगर इसका मन है तो वरना यों ही बाहर भटकती रहेगी। जब इसे दौरे आते है तब तो इस की हालत बिलकुल पागलों की सी हो जाती है ,वैसी ही हरकते करने लगती है।
हम लोग जाबो की बातें ही कर रहे थे कि मेरी नजर दरवाजे पर गई तो देखा कि जाबो घर के मुख्य द्वार पर आती हुई दिखाई दी । उसे घर में आता देखकर मेरे मन में उससे बात करने की लालसा जगी वैसे वह रिश्ते में वह मेरी बुआ लगती हैं। जैसे ही वह हमारे पास आई दादी ने उसे बैठने के लिए स्थान दे दिया और वह वहाँ पर बैठ गई । दादी ने पूछा कि कहाँ से आ रही हो? तो उसने बताया कि वह अभी बाहर घूमने गई थी सो वहीं से आ रही है । उसने मेरी तरफ देखते हुए दादी से धीरे से पूछा कि “ गि कौन हैं ?” दादी ने उसे बताया कि तुम्हारे बड़े भाई का बड़ा लड़का । यह सुनकर उसने मेरी तरफ देखते हुए कहा कि “अरी ! भाभी मेरी तो पेहचान में ही ना आयो” .........यह कहकर उसने मेरा हाल चाल पूछा । मैने भी उन्हें सभी सवालों का जवाब दे दिया । तभी मेरी नज़र उनके पैर पर पड़ी , उनका एक पैर बहुत जला हुआ था । मैने पूछा कि “आपका पैर कैसे जल गया ?
“अरे! भइया एक दिन गरम -गरम चाय पैर पर गिर गई उसी से जल गया था ।” उस घाव को देखने से लग रहा था कि वह बहुत पुराना है। घाव पर मक्खियाँ भी भिनक रही थी । देखने से ही लग रहा था कि उस घाव का उपचार नहीं किया गया है और न ही किसी भी प्रकार की दवाई ली गई है । पूछने पर पता चला कि उसके पास पैसे न होने के कारण वह डॉ. के पास नहीं जा सकी और न ही कोई दवा ली है । केवल घरेलू उपचार की कर रही है , इसी घाव के कारण वह लंड़ाकर चलती है पर करे क्या ................? वाह ! रे ज़िन्दगी ?
वह घर पर बैठी अपनी आप बीती बता रही थी , उसकी आप बीती सुनकर मेरी भी आँखों में आँसू भर आए । वह बता रही थी कि यह जमाना कितना बेरहम है , यहाँ न तो कोई किसी का भाई है ,न ही कोई किसी का बेटा सब के सब मतलब के रिश्ते नाते हैं । जब तक तुम ठीक हो तब तक ही सभी रिश्ते नाते होते है यदि तुम्हें किसी की सहायता चाहिए तो इस जमानें में वह आसानी से नहीं मिलती । उसका भी कभी कोई अपना परिवार हुआ करता था , सभी तो थे उस परिवार में पति -पत्नी , दो बच्चे , सास - ससुर आदि किन्तु आज सभी लोगों के होते हुए भी वह कितनी अकेली है। जिन बच्चों को जन्म दिया उन्होंने भी उसकी तरफ से मुँह फेर लिया, जिस पति ने अग्नि के सामने सात फेरे लेते समय सात जन्मों तक साथ निभाने का वादा किया था वह भी अपने वादों से इसी जन्म में ही मुकर गया। अपनी नई दुनिया बसाकर खुशी से जी रहा है। अपने बच्चों की याद में यह कितनी ही रातों को जागकर रोती है , रोती है अपनी बेबसी पर , कोसती है अपनी किस्मत को हाय ! भगवान तूने क्यों मुझे ऐसी ज़िन्दगी दी? ऐसी ज़िन्दी से तो तू मुझे मुक्ति क्यों नहीं दे देता । इन लोगों को भी मुझ जैसे बोझ से मुक्ति मिल जाएगी। मुझे मुक्ति मिलते ही इन सभी लोगों को चैन की नींद आएगी । हर औरत का सपना होता है कि वह अपने परिवार में रहे , परिवार की मालकिन बनकर उसका अपना हँसता खेलता परिवार हो लेकिन मैं अभागन परिवार और बच्चों के बारे में भी नहीं सोच सकती । बस दिल के एक कोने में छोटी सी आस जगाए बैठी है कि एक न एक दिन तो इसके बच्चे इससे मिलने ज़रुर आएंगे । वहा ! रे माँ की ममता , जिन बच्चों को माँ की फिकर नही उनके लिए भी यह माँ दिन- रात इन्तज़ार करती है। राह पर आने वाले राहगीरों में से अपने बच्चों को खोजती है । एक -एक दिन इसी इंतज़ार में कटता है कि आज न सही एक न एक दिन तो वो लोग मुझसे मिलने आएंगे । किसी ने सही कहा है कि “जो सम्मान अपने घर में होता है वह बाहर नहीं मिल सकता।” यह दुनिया बड़ी मतलबी है।
वह एक माँ होते हुए भी अपने बच्चों को देख नहीं सकती ,एक सुहागन है फिर भी अपने पति से मिल नहीं सकती । यह कैसी ज़िदगी है……हे! भगवान अपनो के होते हुए दूसरों का सहारा ढूंढना पड़ रहा है । एक रोटी के लिए सौ बार अपमान सहना पड़ रहा है। फिर भी ज़िदा है ........? जीवन की एक आस है। चेहरे पर दिखावे की खुशी ज्यादा देर तक नहीं रहती । शायद वर्षों बीत जाने के बाद भी उसे अपनों के आने का इंतजार है। उसे इंतजार है उनका जिन्होंने उसे मुशीबतों में अकेले दर-दर भटकने, मरने के लिए छोड़ दिया था । आज भी उसकी ममता इंतजार करती है अपने लाल के दीदार का , आखिर है तो वह भी एक माँ न ........ वाह माँ ! वाह । अपनों के इंतजार में न जाने कितनी ही बार वह छिप-छिपकर रोइ होगी? किस तरह उसने अपने आप को संभाला होगा ? यह तो वो ही जाने पर उसकी सूनी आँखों मे अपनों के आने का इंतजार आज भी साफ-साफ देखा जा सकता है।
जाबो की कहानी सुनते -सुनते शाम हो चुकी थी । ऐसा लग रहा था मानो सूरज भी उस दुखिया के दुख से दुखी होकर आसमान के किसी कोने में छिप जाना चाह रहा हो। पक्षी अपने- अपने घरों को लौट रहे थे । जैसे -जैसे शाम हो रही थी जाबो के मन में एक द्वंद्व चल रहा था कि आज किसके घर जाकर खाना खाए....। सूरज पूरी तरह आसमान की गोद में समा चुका था । अंधेरे होते ही जाबो एक ठंडी सांस लेते हुए उठी और चल दी । ऐसा लग रहा था मानो वह खुश है यह सोचकर कि चलो और एक दिन ज़िन्दगी का कट गया । रात का अंधेरा धीरे-धीरे बढ़ता गया जैसे- जैसे अंधेरा बढ़ रहा था वैसे-वैसे गाँव में सन्नाटा भी बढ़ रहा था । जाबो जा चुकी थी लेकिन उसकी बातें और कभी न खत्म होने वाला इंतजार जारी है................... वहा ! रे ज़िदगी ।
एक दिन की बात है मैं गाँव के पीछे खेतों की सैर करने के लिए निकला, बाहर आकर बहुत अच्छा लगा चारों तरफ सरसों के पीले-पीले फूल खिले हए दिखाई दे रहे थे। कितना सुंदर नज़ारा था ? ऐसा लग रहा था मानो धरती ने पीले रंग के वस्त्र धारण कर रखे हो। प्रकृति के इस नजारे को निहारते हुए मैं अपनी धुन में चला जा रहा था कि कि अचानक मेरी नज़र एक स्त्री पर पड़ी पुरानी सी,गंदी सी साड़ी पहने सड़क के किनारे बैठी ज़मीन में कुछ खोज रही थी । दूर से देखने पर लग रहा था कि वह मिट्टी में से कुछ खोज रही है किन्तु पास जाकर देखा तो एक पचास-पचपन साल की वृद्ध स्त्री अरहर की तूड़ी से एक -एक अरहर का दाना चुन-चुन कर एक तरफ इकट्ठा कर रही थी । अपने कार्य में वह इस प्रकार मग्न थी कि मेरे द्वारा यह पूछे जाने पर कि आप यह क्या कर रही हो ? उसने कोई जवाब नहीं दिया । मैंने भी एक -दो बार से ज्यादा उससे नहीं पूछा और मैं अपने कार्य के लिए आगे निकल गया । जैसे -जैसे मैं आगे बढ़ रहा था वैसे-वैसे दिन ढल रहा था प्रकृति की सुंदरता में और निखार आ रहा था । मैं अपनी सैर पर आगे तो जा रहा था किन्तु मेरा मन बार -बार यही देखना चाह रहा था कि जिस स्त्री को अभी-अभी पीछे छोड़कर आया हूँ आखिर वह वहाँ है या नही ? इसी लिए बार-बार पीछे मुड़कर देख लेता था वह स्त्री किसी मूर्ती के समान बैठी अपने कार्य में मग्न थी । मैं कुछ और दूर तक गया फिर वापस घर की तरफ हो लिया । रास्ते में फिर वही स्त्री सिर नीचा किए तूड़ी से अरहर के दाने चुनने में लगी हुई थी । इस बार मैंने उससे कुछ नही पूछा सीधा घर आ गया ।
मेरा मन बार-बार यही सोच रहा था कि आखिर वह स्त्री है कौन ? जो इस प्रकार डूड़ी से अरहर के एक -एक दाने चुन रही है। मुझे कुछ सोचता हुआ देखकर मेरी दादी ने मुझसे पूछ ही लिया कि “क्या बात है ? क्या सोच रहा है ?”
मैने कहा कि “पीछे खेतों के पास सड़क पर एक औरत अरहर की तूड़ी से एक-एक अरहर के दाने इकट्ठे कर रही है , मैंने उससे पूछा भी कि वह क्या कर रही है ? लेकिन उसने मेरी तरफ देखा और बिना कोई जवाब दिए वह फिर अपने काम में लग गई कौन है वह ? क्या वह पागल है? या फिर भिखारिन, जो एक-एक दाना चुनकर इकट्ठा कर रही है ।
“बेटा न तो वह पागल है न ही भिखारिन । वह औरत बेचारी अपनी किस्मत की मारी और दुनिया की सताई हुई है। इसी गाँव की लड़की है, उसका नाम जाबो है। अपने पड़ौस में ही तो रहती है ,शायद तुझे याद नही । बेटा जब किसी का बुरा वक्त आता है तो ऐसा ही होता है बेचारी...............।” दादी ने कहा
“क्या हुआ उसे ?” --मैंने दादी से पूछा
अब क्या बताऊँ बेटा उसके बारे में उस बेचारी का एकाद दुख तकलीफ हो तो बताऊँ । बड़ी अभागिन है जब से जन्म लिया है और अब तक बेचारी दुख ही दुख झेलती आ रही है। सुख के चार दिन नसीब होते नही कि फिर से दुखों का पहाड़ बेचारी पर आ पड़ता है। भगवान ने भी तो इसकी तरफ से आँखे फेर रखी हैं । उसे भी तो इस बेचारी पर दया नहीं आती , कितनी ही बार यह मौत के मुँह से बच-बचकर आ गई किन्तु इसे मौत नहीं आई। एक बार जब यह बहुत छोटी थी कुएँ में गिर गई , कम्बख्त कुएँ में गिरी तो थी लेकिन डूबी नही । संजोग से एक आदमी उस कुएँ से पानी भरने के लिए गया तो उसने देखा और शोर मचाया कि एक बच्चा कुएँ में गिरा पड़ा है । उस समय हम लोग अपने खेतों पर ही काम कर रहे थे हम सब लोग उस कुएँ की तरफ भागे वहाँ जाकर देखा तो यही लड़की जिसे तूने अभी सड़क पर अरहर बीनते हुए देखा था, सीधे पड़ी पानी में तैर रही थी। खेत के आस-पास काम करनेवाले किसानों ने इसे कुंएँ से बाहर निकाला। उस समय सही सलामत बाहर निकल आई। एक बार यही लड़की नहर में जा गिरी उसमें डूबकर भी यह नहीं मरी नहर में तो कम्बख्त दो दिन तक रेत में दबी रही थी जब गाँव वालों ने नहर का पानी रोका तो देखा कि पुल के ठीक सामने रेत में दबी हुई पड़ी थी फिर भी नहीं मरी । ईश्वर की लीला ईश्वर ही जाने । बता कोई दो दिन तक रेती में दबा रहे और फिर भी जीवित बच जाए? ईश्वर की माया वो ही जाने । ईश्वर अगर इसे तभी उठा लेता तो बेचारी को ये दिन तो न देखने पड़ते । पता नही क्या लिखाकर लाई है कम्बख्त अपने भाग में ….....?
जब शादी के लायक हो गई तो माँ-बाप ने इसकी शादी कर दी । शादी के बाद लगा कि चलो अब तो बेचारी का घर बस गया अपने घर में सुखी रहेगी किन्तु ऐसा हुआ नहीं । शादी के कुछ साल बाद से ही इस बेचारी पर फिर से मुसीबतों का कहर शुरु हो गया । इसके दो बच्चे हैं एक लड़का और एक लड़की । असल में इसे दौरे पड़ते है । जब इसे दौरे पड़ते है उस समय इसकी हालत बिल्कुल पागलों की सी हो जाती है , बाद में फिर से सामान्य हो जाती है। कुछ दिनों तक इसके ससुरालवालो ने इसे घर में रखा किन्तु बाद में वे लोग इसे यहाँ इसके माँ-बाप के पास छोड़ गए। तब से यह बेचारी यही रह रही है। पहले तो इसका पति और बच्चे कभी-कभी इससे मिलने आ जाते थे किन्तु अब तो बच्चों ने और पति ने इसकी तरफ से मुँह मोड़ लिया है। सुना है इसके पति ने दूसरी शादी कर ली है अब वह अपनी नई दुनिया में खुश है । बस दुख तो भगवान ने इस बेचारी के नसीब में ही लिख दिए हैं। बच्चे … हे ! भगवान बच्चों ने भी अपनी माँ से मुँह फेर लिया । एक तो इसके दौरे पड़ने की बीमरी दूसरा अपने पति -बच्चों की इस बेरुखी ने इसे सचमुच पागल जैसा बना दिया है । अकसर यहाँ घर पर आ जाती है खूब ठीक-ठाक बात चीत करती है सबका हालचाल पूछती है । उसे भी अपने बच्चों से मिलने का मन करता है पर क्या करें .......... । जब यहाँ आई थी तब इसके बच्चे छोटे - छोटे थे तभी एक दो बार इसका पति बच्चों को इससे मिलाने लाया था। उसके बाद कभी नही आया । तबसे बेचारी इसी तरह जी रही है ।
जब तक इसके माँ-बाप जीवित थे तब तक तो सब ठीक था किन्तु माँ-बाप के गुजर जाने के बाद तो इसकी हालत और खराब हो गई । एक दिन इसके पिता जी साइकिल से जंगल जा रहे थे एक ट्रकवाले ने उन्हें पीछे से टक्कर मारी बेचारे की मौके पर ही मौत हो गई , इसकी माँ की मौत भी बड़ी दर्दनाक हुई थी । शर्दियों के दिन थे सभी लोग अपने -अपने घरों में थे जाबो और उसकी माँ जिस घर में रहती थीं उसकी छत घास -फूंस के बनी थी , घर के अंदर शरदी से बचने के लिए इन लोगों ने अलाप जला रखा था अलाप में से एक चिंगारी उस छप्पर में जा लगी , छप्पर था सूखी घास फूंस का जल्दी ही आग पकड़ गया । आग लगने से कुछ समय पहले ही जाबो पानी लेने के लिए नल के पास गई थी जैसे ही वह पानी लेकर वापस आने लगी तो उसने घर में आग को देखा और चिल्लाई बेचारी..........। घर के अंदर केवल उसकी बूढ़ी माँ थी । जब तक गाँव वालों ने उन्हें बाहर निकाला तब तक वे काफी जल चुकी थी । उनका इलाज भी करवाया किन्तु वे बेचारी ज्यादा दिन तक न जी सकी और जाबो को इस संसार में अकेले जीने के लिए छोड़ गई। वैसेे तो चार-पाँच भाई हैं इसके लेकिन ............ कोई इसे अपने पास रखना ही नहीं चाहता अब यह बेचारी कहाँ जाए इसी लिए बेशर्मों की तरह कभी किसी के घर तो कभी किसी के घर में जा रहती है । पहले तो यह जिसके घर में रहती थी उन लोगों का काम भी खूब करती थी , घर का हो या जंगल का सब के साथ बराबर काम करवाती थी तो इसके भाई भी इसका ख्याल रखते थे किन्तु आज -कल यह ठीक तरह से नहीं रहती घर में कलेश मचाती है। एक दूसरे से तू -तू मैं -मैं मचाती है किसी काम की कहो तो नहीं करती । अब बेटा बिना काम करे तो कोई भी घर में खाली बिठाकर खिलाएगा नहीं? अपने इसी रवैये के कारण यह किसी भी एक भाई के घर में नहीं टिकती । अब तो स्थिति यह है कि कभी एक के घर में रहती है तो कभी दूसरे के घर । जो कुछ मिल जाता है खा लेती है । जिस के घर रहती है उसी का थोड़ा बहुत काम कर देती है । अगर इसका मन है तो वरना यों ही बाहर भटकती रहेगी। जब इसे दौरे आते है तब तो इस की हालत बिलकुल पागलों की सी हो जाती है ,वैसी ही हरकते करने लगती है।
हम लोग जाबो की बातें ही कर रहे थे कि मेरी नजर दरवाजे पर गई तो देखा कि जाबो घर के मुख्य द्वार पर आती हुई दिखाई दी । उसे घर में आता देखकर मेरे मन में उससे बात करने की लालसा जगी वैसे वह रिश्ते में वह मेरी बुआ लगती हैं। जैसे ही वह हमारे पास आई दादी ने उसे बैठने के लिए स्थान दे दिया और वह वहाँ पर बैठ गई । दादी ने पूछा कि कहाँ से आ रही हो? तो उसने बताया कि वह अभी बाहर घूमने गई थी सो वहीं से आ रही है । उसने मेरी तरफ देखते हुए दादी से धीरे से पूछा कि “ गि कौन हैं ?” दादी ने उसे बताया कि तुम्हारे बड़े भाई का बड़ा लड़का । यह सुनकर उसने मेरी तरफ देखते हुए कहा कि “अरी ! भाभी मेरी तो पेहचान में ही ना आयो” .........यह कहकर उसने मेरा हाल चाल पूछा । मैने भी उन्हें सभी सवालों का जवाब दे दिया । तभी मेरी नज़र उनके पैर पर पड़ी , उनका एक पैर बहुत जला हुआ था । मैने पूछा कि “आपका पैर कैसे जल गया ?
“अरे! भइया एक दिन गरम -गरम चाय पैर पर गिर गई उसी से जल गया था ।” उस घाव को देखने से लग रहा था कि वह बहुत पुराना है। घाव पर मक्खियाँ भी भिनक रही थी । देखने से ही लग रहा था कि उस घाव का उपचार नहीं किया गया है और न ही किसी भी प्रकार की दवाई ली गई है । पूछने पर पता चला कि उसके पास पैसे न होने के कारण वह डॉ. के पास नहीं जा सकी और न ही कोई दवा ली है । केवल घरेलू उपचार की कर रही है , इसी घाव के कारण वह लंड़ाकर चलती है पर करे क्या ................? वाह ! रे ज़िन्दगी ?
वह घर पर बैठी अपनी आप बीती बता रही थी , उसकी आप बीती सुनकर मेरी भी आँखों में आँसू भर आए । वह बता रही थी कि यह जमाना कितना बेरहम है , यहाँ न तो कोई किसी का भाई है ,न ही कोई किसी का बेटा सब के सब मतलब के रिश्ते नाते हैं । जब तक तुम ठीक हो तब तक ही सभी रिश्ते नाते होते है यदि तुम्हें किसी की सहायता चाहिए तो इस जमानें में वह आसानी से नहीं मिलती । उसका भी कभी कोई अपना परिवार हुआ करता था , सभी तो थे उस परिवार में पति -पत्नी , दो बच्चे , सास - ससुर आदि किन्तु आज सभी लोगों के होते हुए भी वह कितनी अकेली है। जिन बच्चों को जन्म दिया उन्होंने भी उसकी तरफ से मुँह फेर लिया, जिस पति ने अग्नि के सामने सात फेरे लेते समय सात जन्मों तक साथ निभाने का वादा किया था वह भी अपने वादों से इसी जन्म में ही मुकर गया। अपनी नई दुनिया बसाकर खुशी से जी रहा है। अपने बच्चों की याद में यह कितनी ही रातों को जागकर रोती है , रोती है अपनी बेबसी पर , कोसती है अपनी किस्मत को हाय ! भगवान तूने क्यों मुझे ऐसी ज़िन्दगी दी? ऐसी ज़िन्दी से तो तू मुझे मुक्ति क्यों नहीं दे देता । इन लोगों को भी मुझ जैसे बोझ से मुक्ति मिल जाएगी। मुझे मुक्ति मिलते ही इन सभी लोगों को चैन की नींद आएगी । हर औरत का सपना होता है कि वह अपने परिवार में रहे , परिवार की मालकिन बनकर उसका अपना हँसता खेलता परिवार हो लेकिन मैं अभागन परिवार और बच्चों के बारे में भी नहीं सोच सकती । बस दिल के एक कोने में छोटी सी आस जगाए बैठी है कि एक न एक दिन तो इसके बच्चे इससे मिलने ज़रुर आएंगे । वहा ! रे माँ की ममता , जिन बच्चों को माँ की फिकर नही उनके लिए भी यह माँ दिन- रात इन्तज़ार करती है। राह पर आने वाले राहगीरों में से अपने बच्चों को खोजती है । एक -एक दिन इसी इंतज़ार में कटता है कि आज न सही एक न एक दिन तो वो लोग मुझसे मिलने आएंगे । किसी ने सही कहा है कि “जो सम्मान अपने घर में होता है वह बाहर नहीं मिल सकता।” यह दुनिया बड़ी मतलबी है।
वह एक माँ होते हुए भी अपने बच्चों को देख नहीं सकती ,एक सुहागन है फिर भी अपने पति से मिल नहीं सकती । यह कैसी ज़िदगी है……हे! भगवान अपनो के होते हुए दूसरों का सहारा ढूंढना पड़ रहा है । एक रोटी के लिए सौ बार अपमान सहना पड़ रहा है। फिर भी ज़िदा है ........? जीवन की एक आस है। चेहरे पर दिखावे की खुशी ज्यादा देर तक नहीं रहती । शायद वर्षों बीत जाने के बाद भी उसे अपनों के आने का इंतजार है। उसे इंतजार है उनका जिन्होंने उसे मुशीबतों में अकेले दर-दर भटकने, मरने के लिए छोड़ दिया था । आज भी उसकी ममता इंतजार करती है अपने लाल के दीदार का , आखिर है तो वह भी एक माँ न ........ वाह माँ ! वाह । अपनों के इंतजार में न जाने कितनी ही बार वह छिप-छिपकर रोइ होगी? किस तरह उसने अपने आप को संभाला होगा ? यह तो वो ही जाने पर उसकी सूनी आँखों मे अपनों के आने का इंतजार आज भी साफ-साफ देखा जा सकता है।
जाबो की कहानी सुनते -सुनते शाम हो चुकी थी । ऐसा लग रहा था मानो सूरज भी उस दुखिया के दुख से दुखी होकर आसमान के किसी कोने में छिप जाना चाह रहा हो। पक्षी अपने- अपने घरों को लौट रहे थे । जैसे -जैसे शाम हो रही थी जाबो के मन में एक द्वंद्व चल रहा था कि आज किसके घर जाकर खाना खाए....। सूरज पूरी तरह आसमान की गोद में समा चुका था । अंधेरे होते ही जाबो एक ठंडी सांस लेते हुए उठी और चल दी । ऐसा लग रहा था मानो वह खुश है यह सोचकर कि चलो और एक दिन ज़िन्दगी का कट गया । रात का अंधेरा धीरे-धीरे बढ़ता गया जैसे- जैसे अंधेरा बढ़ रहा था वैसे-वैसे गाँव में सन्नाटा भी बढ़ रहा था । जाबो जा चुकी थी लेकिन उसकी बातें और कभी न खत्म होने वाला इंतजार जारी है................... वहा ! रे ज़िदगी ।
apke paas kahaaneekaar kee drishti hai.
ReplyDeletebadhaaee!!
मार्मिक और रोचक कहानी। बधाई॥
ReplyDeletesir really superb!! while reading each para i was interested 2 read more and more. what a comparision that is, listening to the emotional story even suraj aakash ke kone me jakar ast ho raha hai. wha re wha. hats off shiva sir!!!
ReplyDeleteravali