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Wednesday, July 16, 2014

अतीत



 वर्षों पहले जीवन में हुए हादसे ने सुनंदा के बसे-बसाए घर को तहस-नहस कर दिया था| हादसों की चोट ने हँसती-मुस्कुराती सुनंदा के चेहरे पर ना मिटनेवाली उदासी भर दी थी|  एक सड़क हादसे में उसके पति रोहन की मृत्यु हो गई थी| उस सड़क हादसे में सुनंदा और उसकी तीन साल की बेटी सीमा बाल-बाल बच गए, लेकिन रोहन की मृत्यु घटना स्थल पर ही हो गई|  रोहन और सुनंदा ने अपने घरवालों की मर्जी के खिलाफ घर से भागकर शादी की थी| दोनों के घरवाले उनकी इस हरकत से नाराज़ थे| उसकी मौत की खबर पाकर भी कोई उसकी अर्थी को काँधा देने नहीं आया| रोहन के दो-चार मित्रों को छोड़कर न परिवार का कोई सदस्य आया और ना ही कोई रिश्तेदार| एक ओर सड़क हादसे में पति की मौत दूसरी ओर घर –परिवारिश्तेदारों की बेरुखी ने उसे पूरी तरह तोड़कर रख दिया| क्या करे ...? किससे सहायत मांगे, इस अनजान शहर में दो –चार लोगों को छोड़कर कोई भी तो अपना नहीं है| इस मुसीबत की घड़ी में सुनंदा की सहेली सुमन ने उसे सँभाला| सुमन उसके साथ उसके साये की तरह थी| अगर सुमन उस मुसीबत की घड़ी में उसके साथ न होती तो न जाने क्या होता ...?

जानेवाला चला गया पीछे रह गई पत्नी और दो साल की मासूम बेटी सीमा| बेटी  जिसने अभी बाप के प्यार को सिर्फ महसूस ही किया था| रोहन एक कम्पनी में उच्च पद पर कार्यरत था| रोहन की आकस्मिक मृत्यु के कारण धीरे-धीरे घर की जमा पूंजी समाप्त होने लगी| परिवार के समक्ष आर्थिक संकट बढ़ रहा था....| सीमा अभी छोटी थी, उसकी पढ़ाई-लिखाई और उसके भविष्य के लिए उन लोगों ने जो सपने  देखे थे सब टूटते नजर आ रहे थे| सुनंदा ने इस संकट की घड़ी में धैर्य का साथ नहीं छोड़ा| वह पढ़ी-लिखी थी| घर के खर्च को चलाने के लिए उसने नौकरी करने का फैसला किया| रोहन के दोस्तों की सहायता से उसे एक कम्पनी में नौकरी मिल भी गई| कम्पनी में नौकरी तो मिल गई लेकिन सामने एक और समस्या मुँह उठाए खड़ी थी वह थी सीमा की देख-रेख| ऑफिस जाते समय वह सीमा को डे केयर बेबी सेंटर में छोड़ जाती| उसका सारा दिन ऑफिस में ही बीतता| वह सीमा को अधिक समय नहीं दे पाती थी| एक साल बाद सुनंदा ने सीमा का एडमिशन एक नामी स्कूल में करवा दिया था| उसका एक ही लक्ष्य था कि बेटी को सफल और आत्म निर्भर बनाना| घर पर वह उसे अधिक समय नहीं दे पाती थी| नौकरी करना उसकी मजबूरी थी| अगर वह नौकरी नहीं करेगी तो सीमा के भविष्य का क्या होगा?

बेटी का स्कूल में दाखिला तो करवा दिया लेकिन उसकी समस्याएं खत्म नहीं हुई थीं| अब  एक समस्या और थी कि स्कूल के बाद सीमा की देखभाल कौन करेगा? कौन उसे स्कूल की बस से लाएगा? कौन उसके खाने-पीने का प्रबंध करेगा? इस विषय के बारे में जब उसने सुमन से बात की तब सुमन ने सीमा के स्कूल के बाद की जिम्मेदारी ले ली| अब सुमन ही सीमा को स्कूल की बस से लेकर आती उसे उसका होमवर्क करवाती| उसकी देखभाल की सारी ज़िम्मेदारी वही निभा रही थी| जब से सुमन ने सीमा की स्कूल के बाद की ज़िम्मेदारी ली थी तब जाकर सुनंदा की चिंता खत्म हुई|
 समय अपनी तीव्र गति से चलता चला गया और मासूम सी दिखनेवाली नन्ही सीमा अब अपने जीवन के छब्बीस वर्षों को पूरा करने जा रही थी| इन छब्बीस वर्षों में सीमा ने अपनी कॉलेज की पढ़ाई खत्म कर ली थी| जवान होती बेटी को देखकर सुनंदा को उसके विवाह की चिंता भी सताने लगी| कैसे बेटी के हाथ पीले होंगे......? बेटी जब अपनी ससुराल चली जायेगी उसका क्या होगा? जीवन के अंतिम पड़ाव पर पहुँच चुकी सुनंदा अकसर इन्हीं ख़यालों में खोई रहती| इधर अपनी पढ़ाई खत्म कर चुकी सीमा नौकरी की तलाश में लगी हुई थी| कुछ समय बाद उसे एक आई. टी. कम्पनी में नौकरी मिल गई| बेटी की नौकरी की खबर सुनकर वह फूली नहीं  समा रही थी| खुशखबरी सुनकर उसकी आँखें छलक आईं|    
वृद्धा हो चुकी सुनंदा दो महीनों में कम्पनी से रिटायर्ड होने वाली थी| देखते-देखते वह दिन भी आ गया| जिस दिन कंपनी में उसका आखिरी दिन था| उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि आज उसका कम्पनी में आख़री दिन है| इन बीते तीस वर्षों में सब कुछ बदल चुका था| आज वह भी उस कम्पनी का अतीत बनने जा रही थी| शाम को सुनंदा के सहकर्मियों ने उसकी विदाई का कार्यक्रम रखा था| कार्यक्रम के बाद वह भारी मन से घर लौटी| एक तरफ बेटी की नौकरी की खुशी थी वहीं दूसरी तरफ अपने रिटायर्ड होने का दुःख| बार-बार यही सोचती कि घर में खाली बैठे-बैठे उसका समय कैसे कटेगा ...? साथ ही उसे इस बात की तसल्ली भी है कि उसकी इस मेहनत से उसकी बेटी अपने पैरों पर खड़ी हो सकी है| उसने अपने जीवन में जो संकल्प किया था वह काफी हद तक पूरा हो चुका था|

आई.टी. कम्पनी में नौकरी ज्वाइन करने के पश्चात से सीमा के रहन सहन के तरीकों में धीरे धीरे बदलाव आता जा रहा था| इस बदलाव को सुनंदा भी महसूस कर रही थी| पिछले दो वर्षों सदा जीवन उच्च विचार रखने वाली भोली-भाली सीमा आधुनिक सुख सुविधाओं की चकाचौंध में धीरे-धीरे गायब होती जा रही थी|     
आज हमारे समाज की नौजवान पीढ़ी जिस प्रकार आधुनिक सुख- सुविधाओं की ओर लालायित हो रही है| आज की पीढ़ी आधुनिक भोग विलासिता की चीजों में ही अपना सुख खोजने लगी है| उसे अपनी खुशी और अपने सुख में घर-परिवार के लोगों का सीमित स्थान मात्र रह गया है|   खैर यह सब छोड़ो हम बात कर रहे थे सीमा  की तो हाँ आज की इन भोग विलासिता की चीजों से भला सीमा कैसे दूर रह पाती| सीमा ने भी अपने सहकर्मियों के साथ डिस्कों पार्टियों में जाना  
सिगरेट पीना, शराब पीना शुरू कर दिया था| समय रहते उसे अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने अपने आप को इस प्रकार की चीजों से धीरे-धीरे दूर करने लगी| ऐसे बहुत कम लोग होते हैं जो समय रहते संभल पाते हैं|    
  
उसकी मुलाकात कंपनी में काम करने वाले अजीत से हुई| अजीत भी उसी टीम में काम करता था| अजीत की चुटकुले सी हँसोड़ बातें, उसके बात करने का तरीका  उसे भाने लगा। अजीत का व्यक्तित्व उसे बहुत आकर्षक लगा। ऊपर से वह बातूना और मज़ाकिया लगता पर अंदर से जैसे कोई बहुत बड़ा दार्शनिक,विद्वान हो। देखने में भी सुन्दर, गठीले बदन का नौजवान था|  कुछ महीने  उसके साथ काम करने के बाद उसने पाया कि धीरे-धीरे अजीत उसके दिलो दिमाग पर छाता जा रहा है| ऐसा नहीं था की केवल सीमा ही अजीत के प्रति यह लगाव महसूस कर रही थी| अजीत का भी यही हाल था| सीमा के मन में अपने होनेवाले पति के विषय में जो  कल्पना थी उसे अजीत में वह सब खूबियाँ दिखाई देती थीं| आखिर एक दिन दोनों ने अपने प्रेम का इज़हार एक दूसरे से कर ही दिया| अब हाल ये हो गया कि जब-तक दोनों मिलकर घंटों बातें नहीं कर लेते तब तक उन्हें चैन ही नहीं पड़ता। उन्हें ऐसा लगता कि दोनों एक-दूसरे को  जन्म-जन्मांतर से जानते हों। दोनों एक दूसरे के बिना एक पल भी नहीं रह सकते थे| दोनों एक दूसरे के इतने करीब आ चुके थे कि उन्होंने शादी करने का फैसला कर लिया|

सीमा ने कई बार अजीत से उसके माता-पिता, घर-परिवार के बारे में बात करनी चाही लेकिन वह हर बार इस बात को टाल जाता| सीमा ने अपने इस प्रेम-प्रसंग के विषय में अपनी माँ को कई बार बताने की कोशिश की पर एक अनजान डर के कारण कह न सकी| अगर माँ ने इस शादी के लिए अनुमति नहीं दी तो.......? इधर इन सब बातों से अंजान सुनंदा बेटी के सुनहरे भविष्य और एक योग्य वर की चिंता में रहती| जान-पहचान के लोगों से बेटी के लिए एक अच्छे लड़के की तलाश की बात करती| कुछ लोगों ने एक-दो लड़के बताए भी थे, उनमें से एक लड़का उसे सीमा के लिए पसंद भी आया| उनकी दहेज की मांग  इतनी थी जिसे वह पूरा नहीं कर सकती थी|

सीमा चाहती थी कि वे दोनों जल्दी ही कहीं डेट पर जाएं। पर इतनी अधीरता के बावजूद भी अजीत का दिल डेट के लिए तैयार नहीं था। सीमा को यह बात अजीब लगती। वह अजीत को बार-बार समझाती कि वे दोनों शादी करनेवाले हैं फिर डेट पर जाने से उसे इनकार क्यों है? अजीत उसे समझाता कि ‘वह अपनी माँ की अकेली संतान है उसे पहले अपनी माँ की सहमती लेनी चाहिए| उसकी शादी के लिए माँ को बहुत चाव होगा|’ अजीत की बातों के आगे सीमा को हार माननी पड़ती, ‘ठीक है बाबा, अब तुम जैसा कहोगे, मैं वैसा ही करुँगी। पर डर लगता है कि कहीं माँ ने हमारी शादी के लिए मना कर दिया तो...?

एक दिन सीमा ने हिम्मत करके अपने और अजीत के विषय में अपनी माँ से बात की और बताया की वह उसके शादी करना चाहती है| सीमा की बात सुनकर माँ को बुरा लगा पर फिर बेटी के खुशी के लिए उसने अपनी अनुमति दे दी| दूसरे दिन अजीत सीमा के घर उसकी माँ से मिलने पहुँच गया| घर पर सीमा की माँ ने खुल कर अजीत का साक्षात्कार लिया। वह अजीत की बौद्धिक प्रतिभा और अपनेपन से बहुत प्रभावित हुई। उन्हें अजीत होशियार, दूरदर्शी, आधुनिक मान्यताओं के साथ परिवार को अहमियत देने वाला सर्वगुण सम्पन्न युवक लगा। जब बात उसके माता-पिता के विषय में आई तो वह चुप हो गया| इस बात को वह टालना चाहता था लेकिन टाल न सका| बार-बार पूछे जाने पर उसने बताया कि ‘उसके माँ-बाप नहीं है| वह एक अनाथ है और उसकी परवरिश एक अनाथाश्रम में हुई है| उसने बताया कि जब से उसने होश संभाला है उसने अपने आप को अनाथाश्रम में पाया कहते-कहते उसकी आँखों से आंसू बह निकले|’ इतना कहकर वह वहाँ से चला गया| अजीत के अनाथ होने की बात सुनकर सुनंदा के दिल को एक धक्का लगा| अजीत और अनाथ ......

सीमा ने अजीत को रुकने के लिए आवाज़ दी लेकिन वह उसे अनसुना करके घर से बाहर निकल गया| यह सब देखकर सीमा की साँसे मानो रुक गई, उसके बदन का रेशा-रेशा थर्रा उठा। उसकी आँखें नम और गला घुटने लगा। खुद को संभालते हुए सीमा ने माँ से उनकी राय जाननी चाही| उसने माँ को बताया कि अजीत अनाथ अवश्य है पर वह एक खुद्दार और सच्चा इंसान है|   वह......वह उससे बहुत....बहुत प्यार करती है। अगर वह उसे नहीं मिला तो......कहकर वह अपने कमरे में चली गई| सुनंदा की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि वह उसे क्या उत्तर दे| एक अनाथ को अपनी बेटी कैसे सौंप दे…. ना उसके माँ-बाप का पता ना खानदान का.....| काफी समय अपने मन में उठे द्वंद्व पर मंथन करते हुए खुद को संतुलित करते हुए एक गहरी साँस खींचते हुए उठी| सीमा के पास उसके कमरे में जाकर अजीत से साथ विवाह करने की अनुमति दे दी| वह नहीं चाहती कि उसकी बेटी भी वही कदम उठाए जो वर्षों पहले उसने उठाया था| माँ से अनुमति मिलने से वह फूली न समा रही थी| ऐसा लग रहा था कि अभी उड़कर अजीत के पास जाए और उसे यह खुशखबरी सुनाए|

दूसरे दिन जब अजीत को पता चला कि माँ ने दोनों के विवाह की अनुमति दे दी है| यह सुनकर उसकी आँखें छलक आई|  शाम को दोनों ने बाहर किसी पार्क में मिलने का प्रोग्राम  बनाया| शाम को दोनों पार्क में मिले सीमा सम्मोहित सी, समर्पित भाव से डूबते सूरज की रोशनी में उसे देखते हुए, उसके हर स्पर्श को, हर पल को, हर शब्द को अपने अंदर की गहराइयों में संजोती जा रही थी क्या सचमुच यह, वही अजीत है जिसे वह पिछले कई महीनो से देख रही थी... आज वह अपने असीम प्रेम और लगाव को किस कुशलता और खूबसूरती से अभिव्यक्त कर रहा है। आज अजीत को सीमा का,  उसके प्यार में मदहोश हो जाना अच्छा लग रहा था। यही तो वह चाहता था। सही मायनों में आज से सीमा उसकी है| वह सीमा की हर एक साँस में समा चुका है। सीमा के प्यार में डूब जाना ही आज उसका मुख्य लक्ष्य है। ढलते सूरज के साथ-साथ अँधेरा बढ़ता जा रहा था तभी अजीत ने कहा ‘अब हमें घर चलना चाहिए, कल ऑफिस भी जाना है!सीमा ने अपनी घड़ी देखी फिर मन ही मन  सोचने लगी। यह तो हमारी पहली डेट है। अभी-अभी तो हम लोग आए हैं जल्दी क्या है....? कुछ समय बाद दोनों वहां से घर को निकले|
घर आकर नींद से बोझिल आँखों में अजीत  के सपने लिए सीमा बिस्तर पर ढह गई। सुबह जब आँख खुली तो नौ बज चुके थे।


कुछ महीनों बाद सुनंदा ने शुभ मुहुर्त दिखवाकर दोनों की शादी करवा दी| बेटी अपने घर चली गई| बेटी ने उसे अपने साथ अपने नए फ्लैट में साथ रहें के लिए कहा लेकिन वह उसके साथ गई नहीं| जिस घर में वह रह रही है उस घर से उसके अतीत की खट्टी मीठी यादें जुडी हैं| यह घर उसके पति की आख़िरी निशानी है| अपने जीते जी वह इस घर को नहीं छोड़ना चाहती| उसकी इच्छा है कि उसकी अंतिम सांस इसी घर में हो ...... 

Thursday, January 9, 2014

संघर्ष


चौबीस साल की सोनल की आँखें आज भी उन चार दीवारों के बीच कुछ खोजती, उनसे बातें करती रहती| उसके मन में एक सवाल था, एक कशमकश थी जिसका  जवाब उसे आज तक नहीं मिल सका था| सोनल को इस मानसिक रोगी अस्पताल में आए हुए करीब एक साल बीत चुका था| इस एक साल में उसने मुश्किल से किसी से बात की होगी| दिन-रात अकेले बैठी कमरे की दीवारों में ही खोई रहतीपांच साल की उम्र में अपने माता-पिता और दो छोटी बहनों के साथ डगनिया नामक गाँव से दिल्ली आई थी| माता-पिता देहाती मजदूर थे| वह परिवार में सबसे बड़ी थी|  सोनल के माता-पिता के मन में एक टीस थी कि ईश्वर ने उन्हें बेटा क्यों नहीं दिया? अगर बेटा होता तो कम से कम उनके बुढ़ापे का सहारा होता| बेटियाँ जब बड़ी हो जाएँगी अपनी-अपनी ससुराल चली जाएँगी| ऐसा नहीं था कि सोनल के माता-पिता अपनी बेटियों से प्यार नहीं करते थे| वे अपनी तीनों बेटियों से बहुत प्यार करते थे| दिन में जब माता-पिता काम पर चले जाते तब छोटी बहनों को संभालने की जिम्मेदारी सोनल की रहती| वह घर पर ही रहकर अपनी बहनों की देख रेख करती उनके साथ खेलती-कूदती| उनकी बस्ती के पास एक पार्क था| अकसर वह अपनी बहनों के साथ इसी पार्क में खेलती थी| यहाँ वह स्कूल जाते बच्चों को देखती, कंधों पर बैग, उसमें पानी की रंग-बिरंगी बोतल| बच्चों को स्कूल जाते देखकर उसका भी मन करता कि वह भी स्कूल जाए और पढ़-लिखकर डॉक्टर बने| उसने कई बार अपने माता-पिता से उसे स्कूल भेजने की बात कही| माता-पिता ने उसकी कही बातों पर कोई  ध्यान नहीं दिया| सोनल ने इसे ही अपनी नियति मानकर जीवन से समझौता कर लिया था| लेकिन उसका मन था कि यह स्वीकारने को तैयार नहीं था कि वह इस तरह से अपने जीवन से समझौता करे| आखिर पढ़ने-लिखने का उसका भी अधिकार है पर पढ़े-लिखे कैसे? यह सबसे बड़ा प्रश्न था|   

एक दिन की बात है वह अपनी छोटी बहनों के साथ पार्क से घर लौट रही थी| रास्ते में एक झोपड़ी के पास कॉलेज के बच्चों की हलचल  देखकर वह उस झोपड़ी के पास चली गई| वहाँ पर कॉलेज के बच्चे गरीब बच्चों को पढ़ा रहे थे| सोनल और उसकी बहनों को झोपड़ी के बाहर खड़ा देखकर पूर्णिमा नाम की छात्रा ने उन्हें अंदर बुला लिया| उसने उनका नाम पूछा सोनल ने अपना और अपनी दोनों बहनों के नाम बताए| जब उसे पता चला कि पूर्णिमा और उसके दोस्त इस बस्ती में गरीब बच्चों को पढ़ाने के लिए रोज आते हैं तब उसने भी अपने पढ़ने की इच्छा पूर्णिमा को बताई| उसके पढ़ने की इच्छा को जानकर पूर्णिमा ने उसे और उसकी दोनों बहनों को एक-एक नोटबुक और पेंसिल देते हुए कहा कि वे लोग कल से रोज पढ़ने के लिए यहाँ आया करें| पढ़ने की बात सुनकर एक पल के लिए सोनल को लगा जैसे ईश्वर ने उसकी मन्नत पूरी कर दी हो|  दिन में जब उसके माता-पिता काम के लिए चले जाते वह अपनी दोनों बहनों को लेकर पढ़ने के लिए चली जाती|

समय के साथ- साथ सोनल और उसकी बहने बड़ी हो रही थीं| कुछ वर्षों तक पूर्णिमा और उनके दोस्तों ने उन गरीब बच्चों को पढ़ाया| बच्चे भी बड़ी लगन से पढ़ रहे थे| कुछ सालों के बाद पूर्णिमा और उसके दोस्तों का उस बस्ती में आना बंद हो गया| सोनल का पढ़ने का सपना टूट गया| इन दिनों में वह थोड़ा बहुत पढ़ना-लिखना सीख चुकी थी| वह आगे भी पढ़ना चाहती थी लेकिन ऐसा हो न सका| एक दिन सोनल के पिता एक दुर्घटना के शिकार होकर इस संसार से चल बसे| पिता की दुर्घटना का माँ के दिल दिमाग पर गहरा असर पड़ा| इस आघात से वह अपने होशहवास खो चुकी थी| पति के गम में उसका मानसिक संतुलन खराब हो गया| माँ के पागल हो जाने के कारण उसे शहर के सरकारी मानसिक रोगी अस्पताल में भर्ती करवा दिया था| घर  में कमाने वाला कोई नहीं था| मात्र पंद्रह साल की  छोटी उम्र में घर-परिवार की जिम्मेदारी का बोझ उसके कंधों पर आ गया|

 घर का खर्च चलाने के लिए उसने नौकरी की तलाश शुरू कर दी| अधिक पढ़ी-लिखी न होने के कारण वह जहाँ भी जाती निराशा ही हाथ लगती| वह भी हार माने वाली कहाँ थी लगातार कोशिश करती रही| आखिर उसे एक कम्पनी में चपरासी (आया) की नौकरी मिल ही गई| नौकरी तो मिल गई लेकिन अधिक पढ़ी-लिखी न होने के कारण उसे तरह-तरह की बातें सुननी पड़ती| वह दिन-रात मेहनत से काम करती| इतनी मेहनत से काम करने के बाद भी उसका सुपरवाईजर उसके कामों में कोई न कोई कमी निकाल ही देता| इस तरह एक साल निकल गया| एक दिन उसे ऑफिस में काम खत्म करने में देरी हो गई, उसके अन्य साथी जल्दी काम खत्म करके जा चुके थे| जब वह अपना काम खत्म करके घर जाने लगी तभी उसके सुपरवाईजर ने उसे अपने कैबिन में बुलाया और बैठने के लिए कहा| वह जाना चाहती थी लेकिन कुछ जरूरी काम होने की बात कहकर उसे वहीं रोके रखा| वह बेचारी डरी सहमी सी सोफे पर जाकर बैठ गई| कुछ देर बातें करने के बाद जैसे ही वह जाने लगी वैसे ही सुपरवाईजर ने उसका हाथ पकड़कर सोफे पर धकेल दिया| उसने अपनी आत्मरक्षा में हाथपैर चलाए, चीखी-चिल्लाई लेकिन उसकी चीख़ों को सुनने वाल वहाँ कोई नहीं था| सुपरवाईजर ने देर रात तक उसका बलात्कार किया| बलात्कार के बाद उसे धमकी दी गई कि अगर उसने यह बात किसी से कही तो उसे नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा|  

इस घटना ने उसे झकझोर कर रख दिया था| नौकरी को बचाने के लिए उसने उस घटना के बारे में किसी से कुछ नहीं कहा पर हँसती-मुस्कुराती सोनल एक मुरझाए फूल की तरह रह गई| घर में जवान होती दोनों बहनों की जिम्मेदारी उसके कंधों पर थी| अगर नौकरी चली गई तो उनका क्या होगा? यही सोचकर रह गई| दिन बीते, महीने बीते धीरे-धीरे वह इस सदमे से बाहर आने की कोशिश कर ही रही थी कि फिर एक बार उसे सुपरवाईजर ही हवस का शिकार होना पड़ा| उसने उस लाचार लड़की का कई बार बलात्कार किया| वह बेचारी इसी डर से कि अगर कहीं दूसरी जगह नौकरी नहीं मिली तो उसकी बहनों का क्या होगा? उस कड़वे घूँट को पीकर रह जाती| लेकिन हद तो तब हो गई जब एक दिन उस सुपरवाईजर ने उसे अपने कुछ दोस्तों के साथ भी.......यह सुनकर वह चौक गई| उस दिन वह कुछ बहाना बनाकर ऑफिस बाहर निकलने में कामयाब हुई| दूसरे दिन से वह उस ऑफिस में नहीं गई| इसी बीच उसे एक और दुखद घटना का सामना करना पड़ा| उसकी माँ जो सरकारी मानसिक रोगी अस्पताल में भर्ती थी| दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई थी| अस्पताल वालों ने माँ के मृत शरीर को उसके घर भेज दिया| उसके पास जो कुछ पैसे थे माँ के अंतिम क्रियाकर्म में खर्च हो गए| इधर ऑफिस से सुपरवाईजर ने उसे कई बार बुलाया लेकिन वह नहीं गई| उस पर हुए इस अत्याचार को किससे कहे? कौन उस गरीब बेसहारा को इन्साफ दिलाएगा? कोई उसकी कही बातों का विश्वास नहीं करेगा| यही सोचकर वह अपने दुःख को अंदर ही दबाकर रह गई| उसने और कई कंपनियों में नौकरी के लिए आवेदन किया| लेकिन उसके मन में एक डर बैठ गया था कि अगर इस कम्पनी में भी......? उसने कम्पनी में नौकरी करने का विचार ही छोड़ दिया|

 अगर वह काम नहीं करेगी तो खाने को कहाँ से मिलेगा| घर का खर्चा बहनों की पढ़ाई का खर्चा सब कहाँ से होगा? उसने ऑफिस में नौकरी करने की जगह आस-पड़ोस के घरों में बर्तन माँजना, कपड़े धोने का काम शुरू कर दिया| जिन घरों में वह काम करती थी उन्हीं में से एक घर था कान्ता प्रसाद का| कान्ता प्रसाद बड़े ही नेक इन्सान थे| उनका एक बेटा था संतोष जितने पिता नेक इन्सान थे उतना ही बेटा नालायक था| कान्ता प्रसाद हमेशा उसकी शिकायतों से परेशान रहते थे| इकलौता बेटा था घर में किसी चीज की कमी नहीं थी| शायद बेटे को अपने माता-पिता की कमजोरी पता थी| इसी लिए  उसके जी में जो आता करता

एक दिन कान्ता प्रसाद अपनी पत्नी के साथ कुछ दिनों के लिए बाहर गए हुए थे| घर में संतोष अकेला था|  घर में कान्ता प्रसाद और उनकी पत्नी को न पाकर सोनल सहम गई| उसने संतोष से उसके माता-पिता के बारे में पूछा| उसने बताया कि मम्मी पापा कुछ काम से दो दिनों के लिए बाहर गए हैं| यह सुनकर वह और डर गई| उस दिन वह जल्दी-जल्दी काम करके चली गई| इसी तरह दूसरे दिन वह काम करके जाने लगी तभी  संतोष में उसे रात का खाना बनाकर रखने के लिए कहा| उसने संतोष  खाने के लिए रोटी और सब्जी बना दी| घर का सारा काम खत्म करके वह जाने लगी तभी संतोष उसके पास आया और उसे पकड़कर जबर्दस्ती अपने कमरे में ले गया| वहां उसने  सोनल के साथ कई घंटों तक रेप किया, उसे मारा-पीटा यहाँ तक की उसकी अश्लील फिल्म भी बना ली| उसने सोनल को धमकी दी कि अगर उसने यह बात किसी को बताई तो वह उसकी इस फिल्म को अपने सभी दोस्तों के सेल फोन में भेज देगा  और हो सकता है उसके दोस्त अपने और दोस्तों को उसकी फिल्म भेज दें इससे वही बदनाम होगी| अगर उसने ज्यादा होशियारी दिखाई तो हो सकता है जो उसके साथ हुआ उसकी बहनों के साथ भी वैसा ही कुछ हो..........| लड़खड़ाते हुए जख्मी हालत में वह घर पहुंची| घर पहुँचकर उसने अपनी छोटी बहनों को अपनी इस स्थिति का तनिक भी आभास नहीं होने दिया| 

 कुछ दिनों तक वह खामोश रही| एक बार तो उसके मन में आया कि वह पुलिस स्टेशन जाकर उसकी शिकायत दर्ज करवा दे| संतोष को उसके किये का दण्ड मिलना चाहिए यही सोचकर एक दिन वह घर से निकली कुछ दूर पहुँचने पर उसे संतोष की वह धमकी जिसमें उसने कहा था कि अगर उसने इस बारे में किसी को कुछ भी बताया तो वह उसकी बहनों के साथ भी.....? उसके कदम अपने आप रुक गए| वह हताश सी चुपचाप घर लौट आई| बहनों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए वह खामोश रह गई| उसे नहीं पता था कि उसकी खामोशी संतोष की ताकत बन जाएगी| जब कभी भी वह मौका पाता सोनल को डरा धमका कर उसका बलात्कार करता| सोनल ना चाहकर भी...........| संतोष की इन हरकतों ने उस असहाय लड़की की अंतरात्मा तक को झकझोर कर रख दिया| संतोष ने खुद तो उसका बलात्कार किया| जब उसका दिल भर गया तब उसने सोनल पर दबाव डाला कि वह सब कुछ जो उसने उसके साथ किया है वह उसके दोस्तों के साथ भी करे| उसके इन्कार करने पर उसे ब्लेकमेल करता| अगर वह उसके कहे अनुसार नहीं करेगी तो वह उसे मोहल्ले में बदनाम कर देगा| उसकी बनाई अश्लील फिल्म को.....| ना चाहते हुए भी वह उन लोगों की दरिंदगी का शिकार होती| उसके दोस्तों ने भी उसका जी भरकर बलात्कार किया| 

इस तरह  सोनल ने मात्र 18 साल की उम्र में सब कुछ खो दिया था, लेकिन उस मुश्किल घड़ी में भी उसने अपना धैर्य नहीं छोड़ा| दिन-प्रतिदिन बात आगे बढ़ती जा रही थी| एक शाम संतोष ने सोनल को अपने दोस्त की पार्टी में काम करने के लिए बुलाया| यहाँ भी संतोष ने उसे अपने एक दोस्त के सामने एक लजीज पकवान की तरह परोस दिया| उसके इन्कार करने पर उसके दोस्त ने उसे पैसों का लालच दिया| उसने बताया कि यहाँ उसे वैसे भी यह सब करना पड़ रहा है चाहे उसकी मर्जी हो या ना हो| अगर वह उसका कहा मानती है तो उसे इस काम के लिए पैसे खूब मिलेंगे| उसे लोगों के घरों में बर्तन मांजने की जरुरत नहीं पड़ेगी|  उसकी बहनों की पढ़ाई-लिखाई भी हो पाएगी| अपनी बहनों के सुनहरे भविष्य के लिए उसने उसकी बात माँ ली|     इसी तरह धीरे-धीरे वह इस कीचड़ में धँसती चली गई| संतोष की हवस ने उसे वैश्यावृत्ति के दलदल में ऐसा ढकेला कि उसके लिए समाज के सभी दरवाजे बंद हो चुके थे

दिन रात उसे अपनी बहनों की चिंता सताती रहरहकर संतोष की वह धमकी याद आती जो उसने वर्षों पहले उसे दी थी| समय के साथ-साथ उसकी बहने भी बड़ी हो रही थीं| उसकी बहने अब कॉलेज जाने लायक हो चुकी थीं| उसने दोनों बहनों का दाखिला एक कॉलेज में करवा दिया था| दोनों बहने पढ़ने में होशियार थीं| उसने बहनों को कभी भी माँ-बाप की कमी महसूस नहीं होने दी| उनकी ज़रूरतों को पूरा करने की हर संभव कोशिश करती| उन्हें वह सब खुशी देने की कोशिश करती जो उसे नहीं मिल सकीं थीं|    

एक दिन दोनों बहने अपने दोस्तों के साथ पिकनिक मनाने के लिए गई थी| लौटते हुए उन्हें देर रात हो गई थी| उन्होंने रास्ते में कुछ ऐसा देखा जिसे देखकर उन दोनों बहनों के होश उड़ गए| असल में उन्होंने सोनल को उस जगह देखा जहाँ शरीफ घर की स्त्रियों को खड़ा रहना शोभा नहीं देता| देर रात को सोनल के आते ही दोनों बहनों ने सवालों की बौछार शुरू कर दी| सोनल ने भी उन दोनों से कुछ न छिपाते हुए जो कुछ था सब सच कह दिया| सोनल की बातें सुनकर दोनों बहनों के पैरों तले की ज़मीन खिसक गई उनकी बहन एक...... सोचकर ही उन्हें घिन आने लगी| जिस बहन को वे दोनों अपना आदर्श मानती थीं| एक पल में उसे ज़मीन पर गिरा दिया| यह सब जानकर दोनों बहनों ने सोनल से अलग रहने का फैसला किया| सोनल ने उन्हें बहुत समझाया उनके आगे रोई गिडगिडाई उन्हें जाने से रोकने के लिए उसने हर संभव कोशिश की लेकिन उन दोनों बहनों ने उसकी एक न सुनी| बहनों के अलग होने की बात एवं  बहनों द्वारा कही कटु बातों ने उसे झकझोर कर रख दिया था| इस सदमे को वह बरदाश्त न कर सकी| इसी सदमे के कारण उसका मानसिक संतुलन बिगड़ गया|  इसके बाद उसे सरकारी मानसिक रोगी अस्पताल में भर्ती करवा दिया गया| कुछ महीनों बाद वह कुछ ठीक भी हुई लेकिन अपने जीवन से आस छोड़ चुकी सोनल ने अंत में अपने जीवन को समाप्त करने का फैसला कर लिया और..........अंत समय में उसके हाथों में एक खत था जिसे उसने टूटी-फूटी भाषा में  अपनी बहनों के नाम लिखा था| उसमें लिखा था
मेरी,
प्यारी बहनों,
  मैं जानती हूँ कि तुम दोनों यह जाकर मुझसे नफरत करने लगी हो कि मैं एक वेश्या हूँ| मेरे जाने के बाद तुम लोगों को यह जानना बहुत जरूरी है  कि तुम्हारी बहन इस धंधे में आई कैसे| मैं नहीं चाहती कि मेरी वजह से तुम लोगों को शर्मिंदा होना पड़े| कोई भी औरत इस धंधे में खुशी से नहीं आती| जब तुम दोनों छोटी थीं तभी पिताजी चल बसे| पिता के मर जाने के गम में माँ भी पागल हो गई|  तुम दोनों की जिम्मेदारी मेरे कंधों पर आई| मुझसे जितना बन  सका अपनी जिम्मेदारी को निभाने की पूरी कोशिश की पर शायद .....तुम लोगों को मुझ से सदा यही शिकायत थी कि मैंने अच्छी खासी कम्पनी की नौकरी छोड़कर लोगों के घरों में क्यों काम करना शुरू कर दिया| यह वही कम्पनी है जहाँ मेरे साथ पहली बार बलात्कार हुआ| इसीलिए मैंने वह नौकरी छोड़ी और लोगों के घरों में काम किया|
मैंने यह सोचकर घरों में काम करना शुरू किया था कि यहाँ ऐसा कुछ नहीं होगा| लेकिन यहाँ भी मेरे साथ वही हुआ जो कम्पनी में हुआ था| मुझे मारा गया धमकाया गया कि अगर मैंने यह बात किसी से कही तो वे लोग तुम लोगों के साथ भी यह सब कर देंगे| तुम लोगों की खातिर मैं चुपचाप सब कुछ सहती रही|  मेरे भी कुछ सपने थे कि मेरा भी अपना घर-परिवार हो| लेकिन मुझे सिर्फ और सिर्फ धोखा मिला| बार-बार मेरी इज्जत के साथ खेला गया| मैं उस कड़वे घूँट को पीकर भी जीती रही कि कहीं उसकी कड़वाहट तुम लोगों की जिन्दगी पर न आ जाए|  
अब शायद मेरा काम इस दुनिया में पूरा हो चुका है| तुम दोनों से ही मेरी दुनिया थी| जब तुम दोनों ही मेरे साथ नहीं रहोगी तो मैं इस दुनिया में जी कर क्या करूँगी| भगवान  तुम दोनों को सदा सुखी रखे| सदा खुश रहना ..................
तुम्हारी अभागी बहन
सोनल| 
चिट्ठी पढ़कर दोनों बहनों की नज़रें शर्म से झुक गईं| वे दोनों अपने किए पर बहुत शर्मिंदा थीं| पर अब बहुत देर हो चुकी थी| पंछी पिंजरा छोड़कर जा चुका था|