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Thursday, December 16, 2010

ऑटोग्राफ

अमित  ओ अमित ......।
कहाँ चला जाता है यह लड़का ? पल में गायब हो जाता है , अमित ओ अमित ......।
देखों तो कमरे को कितना गंदा कर रखा है,सारी किताबें फैली पड़ी हैं। कब सुधरेगा
यह लड़का ?
जैसे ही अमित ने माँ की आवाज सुनी  दौड़ा हुआ घर आया।
हाँफते हुए बोला – ‘माँ मुझे बुलाया?’
हाँ कहाँ चला जाता है तू पल में यहाँ पल में वहाँ तेरा कही एक जगह तलवा टिकता है कि.... नहीं ।
‘यहीं तो था , बाहर दोस्तों के साथ क्रिकेट खेल रहा था .... क्या बात है? क्यों बुला रही थीं ….?’
‘ज़रा देख तो कमरे की क्या हालत बना रखी है तूने सारा सामान इधर -उधर बिखरा पड़ा है । दो दिन के बाद दिवाली है । सब लोग अपने -अपने घरों की सफाई में लगे हैं एक तू है कि तुझे तो सफाई का कोई शौक ही नहीं है।’
ठीक है  मैं कर दुँगा।
पर कब करेगा ? देख तेरी दीदी ने अपना कमरा कितना सुंदर सजाया है।
कहा ना ……मैं कर दुँगा........।    
‘मुझे पता है तू कब करेगा जब तक मैं तेरे साथ नहीं लगुँगी तब तक तो तू करने वाला है नहीं। अच्छा सबसे पहले तू अपने बिखरे हुए सामान को इकट्ठा कर उसे उनकी अपनी -अपनी जगह पर रख।’
‘माँ मैंने कहा ना कर दुँगा फिर क्यों आप मेरे पीछे पड़ी हैं ........।’
‘नहीं तू अभी शुरु कर मेंरे सामने…. फिर मैं भी तो तेरे साथ काम कर रही हूँ ना..........।’
माँ आप भी ना ....... कहते हुए अमित अपने कमरे की सफाई करने में लग गया । सारे कमरे में किताबें इधर से उधक बिखरी पड़ी थी अमित एक-एक कर किताबों को उठाकर अलमारी में रखने लगा उधर माँ बाकी कमरे की सफाई में लग गई। अमित ने कमरे में बिखरे पड़े सभी सामान को उठाकर अपनी-अपनी जगह पर रख दिया ।
माँ ने कमरे में बिखरे पड़ें कपड़ें,जूते ,मोजों को इकट्ठा कर धोने के लिए ले गई । जाते जाते अमित को उसके कमरे में रखी अन्य चीजों को साफ करने की कहते हुए बोलीं –‘अब देख तेरे कमरे को अब भी तो कमरा जैसा लग रहा है ना।’
‘तो क्या पहले कमरा नही लग रहा था क्या ?’ अमित ने कहा
‘हाँ हाँ पहले भी यह था तो कमरा ही पर इन्सानों का कमरा कम और जानवरों का ज्यादा लग रहा था।’  माँ ने कहा
‘अच्छा सुन देख तेरी अलमारी में जो -जो किताबें काम की नहीं है उन्हें निकाल कर रद्दी में डाल दे घर से कुछ कचरा कम कर । एक बार सारी किताबों को झाड़ कर साफ कर ले और जो तेरे काम की नहीं हैं उन्हें बाहर निकाल कर बाहर रख दे।’
अमित – ‘माँ सभी किताबें मेरे काम की हैं।’
माँ- अरे अब तुझे स्कूल की किताबों की क्या ज़रूरत अब तू नौकरी करेगा कि इन स्कूलों की किताबों को पढ़ेगा।’
अमित ने माँ को समझाते हुए कहा कि किताबें चाहे स्कूल की हो या कॉलेज की किताबें कभी न कभी  काम आ ही जाती है।
माँ – ‘अच्छा ठीक है एक बार तू देख ले अगर कोई किताब तेरे काम की ना  हो तो उसे बाहर निकाल कर रख देना ।’
अमित - ठीक है माँ अब तुम जाओ मैं देख लुँगा अगर मुझे लगेगा कि किताब मेरे काम की नहीं है तो मैं बाहर निकालकर रख दुँगा । ठीक हैं....
माँ- ‘पता नही तू क्या करेगा ? कभी इन किताबों को पढ़ते हुए तो देखा नहीं कितने ही सालों से सजा कर रखी हुई हैं .......।’
अमित – ‘मैने कहा ना मैं देखकर बिना काम की किताबों को बाहर निकाल दुँगा ...........अब तुम जाओ।’
माँ- ‘अच्छा ठीक है,’ कहते हुए कमरे से बाहर चली गई ।
माँ के कमरे से बाहर जाते ही अमित ने अपनी सारी किताबें अलमारी से बाहर निकालकर ज़मीन पर रख दी और एक - एक किताब को साफ कर अलमारी में फिर से सजाने लगा। किताबों को साफ कर रखते -रखते उसे करीब आधा घंटा हो चुका था । वह किताबों को साफ करते हुए सजा रहा था कि अचानक उसकी नज़र किताबों के नीचे दबी एक पतली किताब पर गई उसने वह किताब कुछ किताबें हटाकर बाहर निकाली । वह किताब उसके स्कूल के समय की ऑटोग्राफ बुक(किताब) थी । अपनी स्कूल की ऑटोग्राफ बुक को देखकर बहुत खुश हो गया । उसने उसे साफ कर एक तरफ रख दिया और बाकी पड़ी हुई किताबों को साफ कर अलमारी में रखने लगा थोड़ी देर में सारी किताबें साफ कर  अलमारी में सजा दी थी और कुछ किताबें जो उसे बेकाम की लगी बाहर निकाल कर रख दी थीं। अब उसने अपनी ऑटोग्राफ बुक उठाई और एक -एक कर किताब के पन्ने पलटने लगा। किताब के पन्ने पलटते-पलटते वह अपने स्कूल के आखरी दिन को याद करने लगा.....................।

अमित के चार खास दोस्त थे राहुल , मनीश कमल और रमेश । रमेश इन चारों में सबसे होशियार छात्र था । वैसे चारो दोस्त एक दूसरे का खूब साथ निभाते थे चाहे वह खेल का मैदान हो या फिर पढ़ाई लिखाई या फिर परीक्षा  हॉल । मनीश थोड़ा सा कमजोर छात्र था । ये तीनों मित्र उसे पढ़ाई में बराबर साथ देते थे जो कुछ उसे समझ में नहीं आता था ये तीनों दोस्त किसी न किसी तरह उसे समझाने में कामयाब हो जाते। इसी लिए पूरे स्कूल में इन चारों की जोड़ी बड़ी मशहूर थी । 
 आज स्कूल में बारहवी कक्षा के छात्रों का विदाई समारोह है। अमित के दोस्त स्कूल में एक एक कक्षा में जा जाकर  अपनी यादों को ताजा करते हुए एक दूसरे से कहते...
अमित - अरे यार जब मैं इस स्कूल में आया था तब सबसे पहले मैं इसी कमरे मैं बैठा था। उस दिन मुझे बड़ा डर लग रहा था कोई भी लड़का पहचान का नहीं था मैं एक दम नया था इस माहौल के लिए ...तभी अमित की बात को बीच में ही काटते हुए कमल बोल उठा
कमल -‘हाँ  यार मुझे भी याद है….. जब तू स्कूल में पहली बार  आया था ,सबसे पहले हमारी  दोस्ती इसी कमरे में हुई थी है ना .........।’
अमित – ‘हाँ यार , बाद में मनीश, रमेंश से हमारी दोस्ती हुई थी तुझे याद है एक दिन जब रमेश को कक्षा में दो-तीन लड़के मार रहे थे तब मैने ही इसे बच बचाव करके बचाया था।’
रमेश - हाँ यार उस दिन को कैसे भूल सकता हूँ । वो तीन मुस्टंडे से लड़के बिना बात ही मुझ से झगड़ पड़े थे । अगर उस दिन अमित ना होता तो वे तो मेरी चटनी ही बना देते थे.........।
चटनी बना देने की बात सुनकर चारो दोस्त ठहाकामारकर हँस दिए।
चारो दोस्त धीरे-धीरे पूरे स्कूल का दौरा करके वापस हॉल में आ गए । हॉल सभी विद्यार्थियों से खचाखच भरा हुआ था । कक्षा ग्यारह के विद्यार्थियों ने कक्षा बारह के विद्यार्थियों को एक -एक गुलाब का पुष्प भेंट किया । कक्षा बारह के विद्यार्थियों ने स्कूल की  कुछ खट्टी-मीठी यादों को अपने जूनियरों के साथ बाँटा.....। इसी तरह विदाई कार्यक्रम समाप्त हुआ। कक्षा बारह के विद्यार्थियों के चेहरे पर अपने स्कूल को छोड़ने का दुख देखा जा सकता था साथ ही भविष्य में उन्नति की आशा भी साफ देखी जा सकती थी । अब कुछ पाने के लिए कुछ तो खोना ही पड़ता है........। सभी विद्यार्थी अपने दोस्तों का ऑटोग्राफ लेने में लगे थे। वहीं अमित एक पेड़ की छाँव में बैठा कुछ सोच रहा था । अमित के दोस्त उसे हॉल में ना पाकर इधर-उधर खोजने लगे उन्होंने देखा कि वह एक पेड़ के नीचे सिर झुकाए हुए बैठा है। सभी लोग उसके पास गए तो उन्होंने देखा कि अमित रो रहा था। गम्भीर से गम्भीर विषय को भी जो कभी गम्भीरता से नहीं लेता था। जो सदैव दूसरों को हँसाने का भरपूर प्रयास करता था आज वह रो रहा है । यह देखकर उसके सभी दोस्त चकित रह गए । पहले तो वह दिखाना चाहता था कि वह रो नहीं रहा किन्तु पता नहीं आज वह अपने आप को रोने से रोक न सका शायद उसे स्कूल छोड़ने का दुख था या.......? हॉल विद्यार्थियों से खचाखच भरा था वहाँ पर उपस्थित सभी विद्यार्थियों की आँखें नम थी सभी को अपने दोस्तों से स्कूले से अपने पसंदीदा अध्यापकों से बिछड़ने का दुख था ।
यहाँ जब अमित के दोस्तों ने देखा कि वह पेड़ के नीचे बैठा रो रहा है..। 
‘क्या बात है अमित तुम्हारी आँखों में आँसू ........?’ मित्रों ने पूछा
अमित ने कुछ नही कहा वह ......................बैठा रहा।
आखिर बात क्या है ?
अमित ने अपने तीनों दोस्तों की तरफ देखा और ...........।
अमित के दोस्तों ने कहा कि - अरे यार इसमें रोने की क्या बात है हम सब हैं तो एक ही शहर में जब जी चाहे मिल सकते हैं , भले ही हम एक कॉलेज में पढ़े या ना पढ़े पर मिलते तो रहेंगे।
अमित को आज ही पता चला था कि उसके पिताजी का तबादला दिल्ली हो गया है । उसके माता -पिता ने उसे यह खबर इसीलिए नहीं बताई थी क्योंकि यह खबर सुनकर वह  अपनी पढाई में ध्यान नहीं दे पाएगा । उसे कल ही अपने पिताजी के साथ दिल्ली जाना है। 

अमित ने दोस्तों को जब यह बताया कि पता नहीं अब वह उन लोगों से कब मिल पाएगा , मिल पाएगा भी या नहीं। क्योकि उसके पिता जी का दिल्ली ट्रांसफर हो गया है और कल ही उसे अपने परिवार के साथ  जाना है और फिर वह वहीं रहेगा उसके पिताजी ने उसका कॉलेज में एडमीशन भी करवा दिया है । जब उसके दोस्तों ने यह सुना तो पहले तो उन्हें लगा कि अमित मजाक कर रहा है। जब अमित ने कहा कि मैं मजाक नहीं कर रहा यह सच है तो वहाँ उसके तीनों दोस्तों की आँखें नम हो गई ।
धीरे - धीरे समय बीत रहा था । सभी लोग एक दूसरे से मिल रहे थे और भविष्य में मिलनते रहने और कभी न भूलने की बातें कर रहे थे। इधर अमित और उसके दोस्त ................। पेड़ के नीचे शांत बैठे एक दूसरे का चेहरा देख रहे थे ।कोई किसी से कुछ कह ही नहीं रहा था बस शांत बैठे हुए थे। तभी अमित उठा और बोला- अरे यारो मेरी वजह से तुम लोगों का भी मूड खराब हो गया । कोई बात नहीं हम लोग एक दूसरे से रोज नहीं मिल सकते तो क्या हुआ फोन तो है ना , फोन पर ही बात कर लिया करेंगे । पर यारो तुम लोग मुझे भूल न जाना भले ही............ अमित की 'कभी भूल न जाना' की बात सुनकर चारों दोस्त एक दूसरे के गले मिल कर .....................।

तभी अमित ने अपनी ऑटोग्राफ बुक निकालते हुए अपने दोस्तों  से कहा कि कम से कम वे लोग उसे अपना-अपना ऑटोग्राफ दें ।
रमेश ने लिखा – ‘जीवन की राह पर तुम हमें भूल न जाना ,
                जब भी याद हमारी आए आँखें बंद कर हमें पुकार लेना
                हम तेरी साँसे बनकर सदा तेरे साथ होंगो ए यार मेरे।।’
मनीश ने किशोरकुमार के गाने की पंक्तियाँ – ‘चलते - चलते मेरे ये गीत याद रखना कभी अलविदा ना कहना................।’
इसी तरह एक -एक कर सभी ने उसकी ऑटोग्राफ बुक में लिखा। यहाँ से चलकर अमित और उसके दोस्त हॉल में पहुँचे जहाँ सभी विद्यार्थी बैठे हुए थे । अमित ने अपने सभी दोस्तों को यह बात किसी को न बताने के लिए कि अमित कल शहर छोड़कर दिल्ली जा रहा  कह दिया था । यहाँ आकर वह अपने अन्य सभी दोस्तों और अध्यापकों से मिला । अपने अध्यापकों का ऑटोग्राफ लिया ………..।
तभी दरवाजा खुलने की आवाज हुई , देखा तो माँ सामने खड़ी है , अरे क्या हुआ ? क्या सोच रहा था?
अमित -  ‘कुछ नही माँ।’

क्रमश ....
आगे की कहानी नए साल में…

Tuesday, December 7, 2010

सखा

  सुन्दर एक अमेरिकन कॉल सेन्टर कम्पनी में काम करता है। पुणे शहर में आए हुए तीन साल ही हुए हैं। अमेरिकन कॉल सेन्टर में पिछले दो साल से काम कर रहा है। अमेरिकन कॉल सेन्टर  कम्पनी होने के कारण उसकी ड्यूटी रात(नाइट शिफ्ट ) की रहती है। एक दिन की बात है जब वह अपनी ड्यूटी खत्म करके कम्पनी के बाहर अपनी कैब(कार) का इन्तज़ार कर रहा था । सुन्दर अपने अन्य सहकर्मियों के साथ बाहर खड़ा कुछ ऑफिसियल काम की बातें कर रहा था । दिन के करीब 10:30 बजें होंगे सभी लोग बड़ी बेसब्री से अपनी- अपनी कैब का इंतजार कर रहे थे । खड़े -खड़े कैब का इंतजार करते -करते उसके पैर दुखने लगे थे इसीलिए वह इधर -उधर टहलने लगा । टहलते हुए उसकी नज़र कम्पनी के बाहर खड़े एक नवयुवक पर गई जो  बाहर खड़े हुए कम्पनी की इमारत को निहार रहा था । उसे देखने से लग रहा था जैसे वह कम्पनी में इन्टरव्यू देने के लिए आया हो। कुछ समय तक उस नवयुवक को देखने के पश्चात सुन्दर अपने अन्य साथियों की तरफ जाने लगा उसने देखा कि उसकी कैब आ चुकी है। वह अपनी कैब की तरफ जा ही रहा था कि उसे किसी ने पीछे से आवाज दी- एक्सक्यूजमी सर......... , सुन्दर ने पीछे पलटकर देखा तो वही नवयुवक जिसे कुछ देर पहले उसने कम्पनी के बाहर देखा था । सुन्दर को लगा शायद किसी  मार्किटिंग कम्पनी का आदमी होगा, किसी सामान की मार्किटिंग कर रहा होगा। सुन्दर के पास आकर पहले तो उसने गुडमोर्निग कहते हुए अपना परिचय देते हुए अपना नाम शंकर बताया। सुन्दर ने भी उसे गुडमोर्निग कहते हुए  यस  ......। शंकर ने उससे उस कम्पनी के विषय में पूछा कि कम्पनी में नौकरी करने के लिए किस प्रकार की शैक्षणिक योग्यता की आवश्यकता है। सुन्दर ने उसे बताया कि किसी भी कॉल सेन्टर  कम्पनी में काम करने के लिए कम से कम आप के पास ग्रेजुएशन तक की डिग्री होनी चाहिए। साथ ही साथ अंग्रेजी भाषा का भी अच्छा खासा ज्ञान होना चाहिए। और सबसे अहम बात कि आपका कम्युनिकेशन स्किल बहुत अच्छा होना चाहिए तभी आपको किसी कॉल सेन्टर में नौकरी मिल सकती है।

शंकर ने पूछा कि क्या कम्पनी किसी प्रकार की ट्रेनिंग कराती है या सीधे काम पर बिठा देती है। सुन्दर ने उसे बताया कि कम्पनी में जो भी नया स्टाफ आता है कम्पनी पहले उसे तीस दिन की ट्रेनिंग पर भेजती है । ट्रेनिका का सारा खर्चा कम्पनी ही देती है । जब नया स्टाफ तीस दिन की ट्रेनिंग करके लौटता है तब उसे काम दिया जाता है। क्या तुम भी यहाँ इन्टरव्यू के लिए आए हो ? उसने  हाँ कहते हुए अपना सिर हिला दिया । सुन्दर ने उसे बताया कि आज शनिवार है और शनिवार को ऑफिर बंद रहता है शनिवार को किसी का इन्टरव्यू नहीं होता । यह सुनकर शंकर के चेहरे पर एक निराशा की छाया झलकने लगी । सुन्दर ने शंकर को गौर से देखा उसके पहनावे से लग रहा था जैसे वह किसी गरीब परिवार से है । एक दम साधारण कपड़े पहनकर वह इन्टरव्यू के लिए आया है इससे पता चलता है कि यह ज़रुर किसी गरीब परिवार से है। शंकर शायद पहली  बार किसी इन्टरव्यू के लिए आया था । सुन्दर की कैब उसका इन्तज़ार कर रही थी उसका ड्राइवर उसे आवाज लगा रहा था। सुन्दर ने शंकर को अपना फोन नम्बर देते हुए कहा –“ शाम को इस नम्बर पर तुम मुझे कॉल करना हो सकता है मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूँ” कहते हुए उसने शंकर से हाथ मिलाया और अपनी कैब में जा बैठा। सुन्दर और उसके साथी कम्पनी से बाहर जा चुके थे लेकिन शंकर अभी भी उस कम्पनी के प्रांगण में खड़ा कम्पनी की इमारत को निहारे जा रहा था । कुछ समय पश्चात वह वहाँ से निराश मन से वापस लौट गया ।
शाम का समय था सुन्दर अपने मित्रों के साथ सैर के लिए निकला था । सुन्दर ने शंकर को शाम फोन करने के लिए कहा था इसीलिए उसने सुन्दर को फोन किया था।  शाम के करीब पाँच बजे होंगे सुन्दर के सेलफोन की घंटी बजी उसने देखा कि सिर्फ नम्बर ही है किसी अंजाने आदमी का फोन है। पहले तो वह फोन उठाना ही नहीं चाहता था, ना चाहते हुए भी उसने फोन आखिरकार उठा ही लिया।
सुन्दर – ‘हैलो।’
शंकर- ‘गुडईवनिंग सर।’
सुन्दर – ‘गुडईवनिंग ... मै आई नो हू इस ओन दा लाइन?’
शंकर – ‘सर मैं शंकर।’
सुन्दर – ‘शंकर  कौन शंकर ......?’
शंकर – ‘सर  मैं आज सुबह आपको मिला था , आपके ऑफिस के बाहर आपने अपना फोन नंबर देते हुए मुझे शाम को कॉल करने के लिए कहा था।’
सुन्दर –‘ओह.. .ओह तुम  .. सौरी यार मैं पहचान नहीं सका।’
शंकर – ‘कोई बात नहीं सर ।’
सुन्दर – ‘पर यार मैं तुमसे अभी नहीं मिल पाऊँगा , असल में मैं अपने दोस्तों के साथ बाहर आया हुआ हूँ मुझे घर पहुँचते-पहुँचते देर हो जाएगी । क्या तुम कल सुबह  मेरे घर पर आ सकते हो ।’
शंकर- ‘जी सर  पर………. कहाँ।’
सुन्दर – ‘मेरे घर का पता लिख लो। कल सुबह दस - ग्यारह बजे तक आ जाना।’
 सुन्दर ने घर का पता शंकर को बता दिया था । उस रात सुन्दर अपने दोस्तों के साथ घर देर से पहुँचा दोस्तों के साथ खेल कूद में बहुत थक गया , घर पहुँचते ही वह सीधा अपने कमरे में गया और सो गया । सुन्दर के साथ उसके दो सहकर्मी रमेश ओर मिलिन्द  भी रहते हैं । अधिक थक जाने के कारण बिस्तर पर लेटते ही सुन्दर अपने सपनों की दुनिया में खो गया । अगला दिन रविवार है यह सोचकर वह अधिक देर तक सोता रहा। रविवार की सुबह दस बजे का समय हुआ होगा तभी रमेश ने आकर उसेे जगाते हुए बताया कि उससे मिलने कोई शंकर नाम का व्यक्ति आया हुआ है। शंकर का नाम सुनते ही वह तुरंत उठकर बैठा हो गया। अपने कमरे से बाहर आकर देखा तो शंकर अपने हाथों में कुछ कागज़ लिए हुए सहमा सा बैठा है। जैसे ही शंकर ने सुन्दर को देखा वह अपनी जगह से खड़े होकर ‘गुड़मोरनिग सर कहते हुए खड़ा हो गया । सुन्दर ने उसे सर नाम से संबोधित न करने के लिए कहते हुए कहा कि उसका नाम सुन्दर है अगर वह उसे सुन्दर नाम से पुकारेगा तो उसे ज्यादा खुशी होगी कहकर उसके साथ बैठ गया । घर में सारा सामान इधर उधर बिखरा पड़ा था इसलिए उसने शंकर से  खेद प्रकट करते हुए बताया कि उसके आने पर ही वह जगा है कुछ समय बाद वह कमरे की सफाई करेगा । शंकर ने भी उसे सकारात्मक तरीके के कहा कि नहीं सर जी यह तो बहुत अच्छा है ।
थोड़ी देर उसके साथ बातें करके वह शंकर को अख्बार देकर नहाने चला गया । शंकर कमरे में सहमा सा बैठा था। जब सुन्दर के सहकर्मियों ने देखा कि वह कुछ डरा हुआ बैठा है तो उन्हें लगा  शायद पहली बार वह उनके घर आया है इसीलिए डरा हुआ बैठा है, दोनों मित्र रमेश और मिलिन्द उसके पास जा बैठे । तीनों आपस में इधर - उधर की बातें करने लगे । कुछ समय बाद सुन्दर भी नहाकर बाहर आ गया था । सुन्दर ने शंकर के पूछा कि वह नाश्ता करके आया है या नहीं। शंकर ने बताया कि वह घर से एक कप चाय पीकर आया है। ‘अरे यार तुमने नाश्ता किया की नहीं।’सुन्दर ने कहा। शंकरने अपना सिर हिलाते हुए ना कह दिया। ‘अच्छा ठीक है वैसे भी हमारा तो नाश्ते का ही समय है चलो सब लोग नाश्ता करते हैं’ कहकर वह एक पैकेट ब्रेड और एक जाम की बोतल रसोई से निकालकर बाहर ले आया जहाँ पर सभी लोग बैठे थे। नाश्ता करते समय सुन्दर ने उसके विषय में पूछा कि वह महाराष्ट्र का तो नहीं लगता। शंकर ने  बताया कि वह कर्नाटक के गुलबर्गा शहर का निवासी है और यहाँ पर नौकरी की तलाश में आया हुआ है। नौकरी की बात सुनकर मिलिन्द ने पूछा कि उसकी क्वालिफिकेशन क्या है? शंकर ने बताया कि उसने एम.एस.सी की है, और उसकी इंग्लिश थोड़ी कमजोर है। इंग्लिश कमजोर होने के कारण ही उसे किसी अच्छी कम्पनी में नौकरी नहीं मिल पाई है। इंग्लिश कमजोर होने की बात सुनकर रमेश बोल उठा कि तुम स्पोकन इंग्लिश क्लासेस क्यों नहीं ज्वाइन कर लेते, वे लोग तुम्हें कम्युनीकेशन स्किल्स भी सिखाएंगे। जब तक तुम्हारी इंग्लिश और कम्युनीकेशन स्किल अच्छी नहीं होगी तब तक तुम्हें किसी अच्छी कम्पनी में नौकरी पाना मुश्किल होगा। स्पोकन इंग्लिश की क्लासेस ज्वाइन करने की बात सुनकर शंकर शांत बैठ गया । सुन्दर ने शंकर को गौर से देखा तो लगा कि ज़रूर कोई बात है। सब लोगों ने मिलकर नाश्ता किया रमेश और मिलिन्द को किसी आवश्यक काम से बाहर जाना था तो वे लोग शंकर को फिर मिलने की कहकर चले गए ।
सुन्दर ने शंकर से उसका सी.वी दिखाने के लिए कहा। शंकर ने अपना सी.वी दे दिया । सी.वी को देखते हुए सुन्दर ने शंकर को बताया कि ‘जो सी.वी वह लाया है वह पुराने समय का (आउट डेटेड) है। उसने बताया कि सबसे पहले तो उसे अपने इस सी.वी को बदलना होगा, केवल सी.वी से ही कुछ नहीं होनेवाला उससे पहले तुम्हें अपना कम्युनीकेशन स्किल को भी सुधारना होगा जिसके लिए तुम्हें इंग्लिश का अच्छा ज्ञान होना बहुत ज़रुरी है।  तुम एक काम क्यों नहीं करते स्पोकन इंग्लिश की क्लासेस क्यों नहीं ज्वाइन कर लेते ।’ यह बात सुनकर शंकर एक बार फिर से खामोश हो गया । वह कुछ सोच में पड़ गया .......। सुन्दर ने उससे उसकी चिंता का कारण जानना चाहा किन्तु शंकर कुछ नहीं है कहकर रुक गया । शंकर के दो- तीन बार पूछने पर उसने अपनी पारिवारिक स्थिति के बारे में बताया कि ‘वह एक गरीब परिवार से है, किस प्रकार की कठिनाइयों का सामना करते हुए अपनी पढ़ाई पूरी की है यह तो वही जानता है……..। उसके पिताजी एक मिल में काम करते हैं,माँ   गृहणी हैं, घर में एक छोटी बहन और भाई है। छोटी बहन डिग्री रही है और भाई बारहवी में । घर में पिताजी एक कमानेवाले हैं और हम सब ..............। पिताजी की भी अब उम्र हो चुकी है वे भी कितना कमा कमा कर खिलाएंगे। अब जब मैं कमाने लायक हो गया हूँ तो कोई नौकरी ही नहीं मिल रही ऐसी स्थिति में मैं कैसे……… ?’ 
जब सुन्दर ने शंकर की कहानी सुनी तो उसे लगा कि इस बन्दे की किसी न किसी प्रकार से सहायता करनी चाहिए पर कैसे.......... अगर मैं इसे पढ़ने के लिए पैसे दुँगा तो हो सकता है कि इस वह सोचे कि मैं उसकी गरीबी का मज़ाक उड़ा रहा हूँ। हो सकता है ऐसा करने से उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुँचे ...। पर मैं क्या करु..., तभी शंकर ने पूछ लिया
शंकर –‘क्या हुआ सुन्दर सर ? आप क्या सोचने लगे ?’
सुन्दर – ‘कुछ नहीं यार .....।’
शंकर – ‘आप तो मेरी आर्थिक स्थिति सुनकर चुप हो गए ।’
सुन्दर – ‘कुछ नही यार ......। अच्छा…. एक काम करोगे।’
शंकर -  ‘जी कहिए।’
सुन्दर – ‘तुम स्पोकन इंग्लिश की क्लासेस नहीं जा सकते मैं समझ गया लेकिन हम एक काम कर सकते हैं अगर तुम सचमुच अपनी इंग्लिश और अपना कम्युनीकेशन स्किल सुधारना चाहते हो तो......?’
शंकर – ‘वह क्या सर?’
सुन्दर – ‘तुम सन्डे के सन्डे मेरे पास आ सकते हो।’
शंकर – ‘हर सन्डे?’
सुन्दर – ‘हाँ।’
शंकर – ‘पर……. क्यों सर?’
सुन्दर – ‘मैंने सोचा अगर तुम बाहर पढ़ने नहीं जा सकते तो मेरे पास ही आ जाया करों मैं तुम्हें इंग्लिश सिखाऊँगा ।’
शंकर- ‘पर….. सर आप...........।’
सुन्दर – ‘कुछ नहीं .... तुम्हें इंग्लिश सिखाने की ज़िम्मेदारी अब मेरी अगर तुम सीखना चाहो तो......।’
शंकर – ‘जी सर मैं मेहनत करके ज़रूर सीखुँगा।’ 
शंकर हर रविवार को सुन्दर के घर आता शंकर उसे इंग्लिश सिखाता रविवार का सारा दिन पढ़ने और पढ़ाने में ही बीतता । शंकर भी खूब मेहनत से इंग्लिश सीख रहा था । ऐसे ही कई महीन बीत गए । शंकर और सुन्दर घनिश्ठ मित्र बन चुके थे।

एक दिन की बात है सुन्दर अपने ऑफिस से  ड्यूटी खत्म करके निकला ही था कि उसे पता चला  आज तो कम्पनी की तरफ से फुटबॉल का मैच खेलना है। वह अपने साथियों के साथ सीधे मैदान में फुटबॉल खेलने के लिए चला गया । उस दिन मौसम साफ न होने के कारण बीच मैंच में ही बरसात होने लगी। सभी लोग बरसात में भीगते हुए ही मैंच खेलते रहे। वे लोग मैंच तो नहीं जीत सके पर  बरसात में खेलने का जो आनंद मिला ....। सारा दिन बरसात में मैच खेलने के कारण सुन्दर की तबियत कुछ नाजुक सी हो रही थी । फुटबॉल खेलने के कारण उसके पैरों में दर्द होने लगा था । उसने घर पहुँचकर खाना खाया और आराम करने लगा शाम तक उसे बहुत तेज बुखार हो गया था। बाहर बारिश होने के कारण  बाहर डॉक्टर के पास भी नहीं जा सका। सुन्दर के साथ उसके दो मित्र भी रहते हैं लेकिन उस दिन वे दोनो अपने- अपने घर चले गए थे । सारी रात सारा बदन तेज बुखार से तपता रहा । सुन्दर ने एक क्रोसिन की गोली ले ली थी लेकिन उससे कुछ आराम नहीं हुआ। जैसे-तैसे करके उसने रात काटी । अगली सुबह उसका बुखार कुछ कम तो हो गया लेकिन पूरी तरह नहीं । बाहर तेज बरसात हो रही थी । सुबह से ही वह शंकर का इंतज़ार करने लगा तीन-चार घंटे इन्तजार करने के बाद उसने शंकर को फोन किया । फोन करने के पश्चात पता चला कि उसे भी कल रात से तेज़ बुखार है। जैसे ही सुन्दर ने सुना कि शंकर को तेज़ बुखार है वह उससे मिलने के लिए तड़प उठा । अब क्या करे? क्या ना करे ?उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था बाहर तेज बरसात हो रही है और उसे अपने मित्र से मिलने जाना है। शंकर के बीमार होने की खबर सुनकर वह अपनी बीमारी भूल गया उसे यह भी याद नहीं कि वह भी तो बीमार है। कुछ घंटों बरसात के कम होने का इंतजार करने के बाद जैसे ही बरसात थोड़ी कम हुई जैसे-तैसे करके वह घर से बाहर आया उसके घर के सामने ही फलवाले की दुकान थी उसने कुछ फल खरीदे और मेडिकल स्टोर से कुछ दवाइयाँ खरीदकर ऑटो बुलाया और सीधा शंकर के पास जिस इलाके में शंकर रहता था वहाँ जा पहुँचा।  वह एक दम गरीब लोगों का इलाका (स्लम एरिया )था। चारो तरफ गंदगी फैली हुई थी। छोटी-छोटी गलियाँ जैसे-तैसे पता करते कराते वह शंकर के घर तक पहुँच ही गया । उसने घर का दरवाजा खटखटाया घर के अंदर से किसी भी प्रकार की कोई आहट न सुनकर वह घबरा गया।  उसने फिर जोर से दरवाजा खटखटाया इस बार उसे  घर के अंदर से कुछ आहट सुनाई दी  शंकर ने ही दरवाजा खोला । सुन्दर को अपने घर और अपने सामने देखकर वह चैक गया। सुन्दर को देखकर शंकर को खुशी तो बहुत हुई साथ ही साथ शर्मिंदगी भी हुई कि वह .....ऐसे इलाके में आया है .........। शंकर , सुन्दर को  घर के अंदर ले आया किन्तु उसे बहुत ही शर्मिंदगी महसूस हो रही था । सुन्दर उसके मन की बात तो ताड़ गया और कहा –‘अरे याह घर में जगह हो ना हो मगर दिल में जगह है तो बहुत है।’ यह सुनकर शंकर की आँखों में आँसू भर आए। शंकर को खाट पर बिठाते हुए सुन्दर ने उसे एक सेब काटकर देते हुए कहा –‘चल जल्दी से सेब खा ले फिर दवा भी खानी है।’ शंकर ने सेब खाया और दवा लेकर लेट गया। आज वह अपने आप को धन्य समझ रहा था कि उसे जीवन में एक सच्चा दोस्त मिल गया है। थोड़ी देर शंकर के पास ठहरने के बाद सुन्दर घर वापस आ गया । आज उसे एक अजीब सी सुकून मिल रहा था । घर आकर उसने भी बुखार की दवाई खाई और थोड़ा बहुत खाकर सो गया । अगले दिन भी वह शंकर को देखने उसके घर गया।  आज उसकी  तबियत में काफी सुधार था । सुन्दर, शंकर के पास बैठा था तभी किसी के आने की आहट हुई देखा तो पता चला कि शंकर के साथ जो लड़का रहता है वह आया है। शंकर ने अपने मित्र का परिचय सुन्दर से कराया । शंकर का मित्र (रुम मेट ) चाय बनाकर ले आया । चाय पीते-पीते सुन्दर की नज़र वहाँ पर रखी एक किताब पर पड़ी उसने वह किताब उठाई और पढ़ने लगा वह गुलबर्गा की एक मासिक पत्रिका थी । पत्रिका पढ़ते -पढ़ते उसका ध्यान एक कविता की ओर आकर्षित हुआ उसने वह कविता पूरी पढ़ी , जब उसने कविता के नीचे लिखा नाम देखा तो वह आश्चर्यचकित रह गया वह कविता शंकर ने लिखी थी । शंकर इतनी सुन्दर कविता भी लिखता है। जब सुन्दर ने उससे पूछा कि – ‘यार तुम तो बड़ी अच्छी कविता लिख लेते हो।’
शंकर- ‘हाँ यार कभी कभार मन करता है तो लिख लेता हूँ।’
सुन्दर –‘तुम्हारी कविता तो बहुत अच्छी है। यार,ऐसा लगता है जैसे यथार्थ को सामने रख दिया  हो...।’
शंकर – ‘मैं…. उतना भी अच्छा नहीं लिखता जितनी तुम मेरी तारीफ कर रहे हो।’
सुन्दर-  ‘नहीं यार सचमुच तुम्हारी कविता बहुत अच्छी है। तुम और कविता, कहानी क्यों नहीं लिखते।’
शंकर – ‘नहीं यार ।’
सुन्दर – ‘पर क्यों ….?तुम तो अच्छा लिखते हो अपनी इस कला को यूँ छिपाकर मत रखो यार।’
शंकर – ‘दोस्त कविता, कहानियों से पेट नहीं भरता, तन पर वस्त्र नहीं आ जाते ।  जब पेट में भूख लगी हो ना तब कोई कहानी और कविता याद नहीं आती ।  बस जब कभी मेरा मन करता है लिखने बैठ जाता हूँ जो कुछ उल्टा सीधा आता है लिख लेता हूँ। यह सब तो मैं बस अपना टाइम पास करने के लिए लिख लेता हूँ। यूँ समझ लो कि यह मेरा शौक है .....।’

सुन्दर ने शंकर को और कहानी , कविता लिखने के लिए काफी प्रोत्साहित किया उसे समझाया कि अगर वह अपने इस हुनर को दुनिया से छिपाकर रखेगा तो उसे कोई लाभ नहीं होगा किन्तु हाँ अगर वह अपने इस हुनर को समाज के सामने रखेगा तो हो सकता है कि उसे इस का कभी न कभी कुछ लाभ मिल जाए ,हो सकता है तुम्हारी लिखी कहानियाँ, कविताएँ किसी और को जीने की प्रेरणा दें ........। शंकर की बात मानकर सुन्दर ने फिर से लिखना शुरु कर दिया एक -एक कर उसने कई कविताएँ और कहानियाँ लिख डाली प्रत्येक कहानी को सुन्दर अपने पास सुरक्षित रखता गया और जब दस -पंद्रह कहानियाँ हो गई तो उसने उन कहानियों का एक संग्रह छपवा डाला । शंकर इस बात से बिल्कुल अन्जान था । एक दिन सुन्दर ने उस किताब के विमोचन का कार्यक्रम आयोजित किया उसने अपने सभी परिचितों ,दोस्तों और अपने सभी सहकर्मियों को बुलाया था । शंकर भी इस कार्यक्रम में पहुँचा , उसे अब तक पता नहीं था कि आखिर कार्यक्रम किस का है । जब सभी लोग एकत्रित हो गए तब शंकर मंच पर उस कार्य क्रम के विषय में बताया तो शंकर यह सुनकर भौचक्का रह गया । उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि जिन कहानियों को वह लिख रहा है वे सब इतनी जल्दी एक संग्रह का रुप लेकर उसके सामने आ जाएंगी।उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि वह जो कुछ देख रहा है सच है या कोई सपना...। आज के ज़माने में बिना मतलब के कोई किसी को एक गिलास पानी तक नहीं पिलाता किन्तु उसके दोस्त ने बिना किसी स्वार्थ के उसके लिए यह सब किया .......।  उसकी आँखों से खुशी के आँसू  टपक गए । शंकर की किताब के लिए सुन्दर ने दिन रात मेहनत कर उसका प्रचार- प्रसार किया था । किताबों की बिक्री से शंकर को कुछ पैसे मिले थे जो उसने अपने घर भेज दिए थे ।

सुन्दर की मेहनत धीरे-धीरे रंग ला रही थी । अब शंकर में काफी बदलाव देखे जा सकते थे । उसकी इंग्लिश काफी सुधर चुकी थी । पहले वह लोगों से खुलकर बात करने में हिचकिचाता था लेकिन अब वैसा नहीं है। सुन्दर उसकी आर्थिक स्थिति को जानता था उसके पास एक भी जोड़ी कपड़े और जूते  ऐसे नहीं थे जिन्हें पहनकर वह किसी कम्पनी में इंटरव्यू देने जा सके । सुन्दर को पता था कि कुछ ही दिनों में शंकर का जन्मदिन आनेवाला है। उसने शंकर को उपहार में यही सब देने का निर्णय लिया और वह दिन आ ही गया जिस दिन शंकर का जन्मदिन था ।उस दिन सुन्दर अपनी ड्यूटी खत्म करके सीधा शंकर के पास ही गया और उसे एक जोड़ी कपड़े और जूते उपहार स्वरुप में दिए। शंकर को ऐसा ना लगे कि सुन्दर उसकी गरीबी का मज़ाक उड़ा रहा है इसीलिए उसने भी अपने लिए वैसे ही कपड़े और जूते खरीदे । सुन्दर ने शंकर को बताया कि वह अपने लिए कपड़े खरीदने गया था तो सोचा तुम्हारे लिए भी खरीद लूँ वैसे भी तुम्हारा जन्मदिन आनेवाला था................। 

धीरे - धीरे शंकर और सुन्दर की दोस्ती गहरी होती गई। देखते ही देखते दोनो की दोस्ती को एक -डेढ़ साल बीत गए। उन दोनों को देखकर ऐसा लगता ही नहीं था कि इनकी दोस्ती दो-तीन साल पुरानी है । एक दिन की बात है जब सुन्दर, शंकर के घर गया था । सुन्दर कुछ उदास बैठा था सुन्दर ने उसे उसकी उदासी का कारण पूछा तो वह इधर -उधर की बातें करके उस बात को टाल गया । शंकर बैठा तो था सुन्दर के साथ था किन्तु उसका मन किसी  दुविधा में था आज उसकी बातों में वह चपलता नहीं थी जो नित्य दिखाई देती थी। सुन्दर को लगा शायद वह घर बैठे-बैठे ऊब चुका है इसीलिए उसे घर से बाहर लेकर आया दोनों दोस्त के पास ही एक पार्क में घूमने के लिए चले गए । किन्तु शंकर के चेहरे पर प्रतिदिनवाली मुस्कान नहीं थी । वह सुन्दर के साथ तो था लेकिन न होने के बराबर..........। सुन्दर बहुत देर से शंकर के हाव-भाव देख रहा था उसे यह समझने में देरी नहीं लगी कि हो न हो ज़रुर कोई बात है? जो वह उसे नहीं बता रहा है। वह शंकर को ले जाकर एक बैंच पर बैठ गया और उससे उसकी उदासी का कारण पूछा । पहले तो शंकर टाल मटोल करने लगा किन्तु सुन्दर के जोर देने पर उसने बताया कि अगले महीने उसकी छोटी बहन की शादी है और वह..........................। सुन्दर ने उसे समझते हुए कहा कि ‘उसे इतना उदास होने की ज़रुरत नहीं है, तेरी बहन भी तो मेरी बहन हुई ना तो क्या मेरा कुछ फर्ज नहीं बनता ? अपनी बहन की शादी में .........। अच्छा एक काम करता हूँ बहन की शादी में उसके लिए जितने भी कपड़े चाहिए वे सब मेरी तरफ से होंगे ।’ सुन्दर की बातें सुनकर शंकर ने उसे मना किया कि वह कुछ न कुछ इन्तज़ाम करेगा लेकिन सुन्दर ने उसे कहीं और से किसी से पैसे न माँगने की कसम दे दी...........। शंकर यह सब देखकर बहुत भावुक हो उठा और उसकी आँखों से आँसुओं की धार बहने लगी। एक दिन वह भी आया जिस दिन शंकर की बहन की शादी थी । सुन्दर ने शादी के सभी कार्यों मे एक परिवार के सदस्य के समान हाथ बटाया  बहन की शादी सही सलामत हो गई । बहन अपने ससुराल चली गई सुन्दर एक-दो दिन वहाँ रुकर वापस आ गया । सुन्दर पुणे आकर अपने ऑफिस के कामों में थोड़ा व्यस्त हो गया । दो-तीन दिन के बाद शंकर भी वापस आ गया अब उसके सामने नौकरी पाने की एक सबसे बड़ी चुनौती थी। सुन्दर ने उसका एक सही सी.वी तैयार करवाया और अपने ही ऑफिस में उसे नौकरी पर लगवा दिया । शंकर को घर या ऑफिस में किसी भी प्रकार की समस्या होती तो वह तुरंत सुन्दर से उसका समाधान पूछ लेता , सुन्दर ने भी कभी उसे किसी भी काम के लिए मना नहीं किया ।

धीरे धीरे शंकर का समय बदलने लगा । शंकर ने दो साल तक उसी कम्पनी में काम किया जिसमें सुन्दर काम करता था । दो साल के बाद उसने वह कम्पनी छोड़कर एक दूसरी कम्पनी में नौकरी कर ली वहाँ पर उसे यहाँ से ज्यादा पैसे मिल रहे थो और वहाँ पर नाइट सिफ्ट का कोई झंझट नहीं था । सुन्दर को यह जानकर बहुत खुशी हुई कि उसका दोस्त एक अच्छी पोस्ट पर पहुँच चुका है। अब दोनों का मिलना केवल शनिवार और इतवार को ही हो पाता था क्योकि शंकर की ड्यूटी दिन की होती तो सुन्दर की रात की इसी लिए वे केवल शनिवार और इतवार को ही मिल पाते थे। इसी प्रकार दोनों का चल रहा था । एक दिन सुन्दर ने शंकर से उसकी कहानियों के विषय में पूछा – ‘यार काफी दिनों से तुम्हारी कोई नई कहानी नहीं पढ़ी । आज-कल कुछ लिख भी रहे हो या नहीं?’ शंकर ने यह कहकर सुन्दर से मना कर दिया कि ‘आज-कल ऑफिस में इतना ज्यादा काम होता है कि दम निकल जाता है घर आकर इतनी क्षमता नहीं रहती कि कुछ लिखा जाए। आज -कल तो लिखना पूरी तरह से बंद हो चुका है।’ सुन्दर जानता था कि ऑफिस में उन लोगों के पास कितना काम रहता है , शायद इसीलिए उसने शंकर को आगे कुछ नहीं कहा । जैसे -जैसे शंकर की उन्नती होती जा रही थी वैसे-वैसेे शंकर के व्यवाह में बदलाव आता जा रहा था । अब उसे नए दोस्त मिल चुके थे । अब उसकी नई पहचान बन रही थी शायद उसके नए दोस्तों में उसके पुराने दोस्त का कहीं अता -पता ही नहीं चल रहा था । उन्नति का ऐसा नशा जिसने दिन- रात एक करके तुम्हें उस लायक बनाया आज उसी से ऐसी  बेरुखी .........। शायद वह भूल चुका है कि आज वह जिस मुकाम तक पहुँचा है उसके पीछे किस की मेहनत थी । वह भूल चुका है कि जब वह कभी बीमार होता था तो उसकी देखभाल करने के लिए कौन दिन-रात उसका ख्याल रखता था .....इसमें उसका कोई दोष नहीं शायद ज़माना ही ऐसा है ।

दिन -महीने -साल बीते और एक दिन शंकर की शादी की खबर सुनी , शंकर की शादी की खबर सुनकर सुन्दर बहुत खुश हुआ । शंकर ने अपने साथ काम करनेवाली सहकर्मी श्रेया  के साथ विवाह किया । शंकर ने अपनी शादी में सुन्दर को छोड़कर सभी लोगों को आमंत्रित किया। सुन्दर को उसकी इस बात का बुरा नहीं लगा उसने सोचा शायद हो सकता है कि शादी के कामों की भागा -दौड़ी में मुझे निमंत्रण पत्र देना भूल गया होगा। सुन्दर उसकी शादी के दिन उसने मिलने गया ।सुन्दर को अपनी शादी में और अपने सामने खड़ा देखकर शंकर के चेहरे का रंग ही उड़ गया । सुन्दर ने उसे शादी की बधाई दी और  वापस आ गया। सुन्दर को इस बात को बहुत दुख हुआ कि जिस दोस्त को वह जान से भी ज्यादा चाहता था आज इतना बदल जाएगा उसने कभी सोचा भी नहीं था।

धीरे-धीरे समय बीतता गया  एक  दिन सुन्दर की शादी भी तय हो गई। सुन्दर ने अपनी शादी का सबसे पहला निमंत्रण पत्र शंकर को स्वयं उसे घर पर जाकर दिया। बाद में अपने अन्य मित्र रिश्तेदारों को । सुन्दर की शादी में उसके सभी पहचान के लोग दोस्त , रिश्तेदार आए लेकिन शंकर उसकी शादी में नहीं गया । इन सभी के बीच सुन्दर की आँखे अपने उस दोस्त को खोज रही थी जिसके  साथ उसने काफी समय बिताया था सभी लोग आए और चले गए लेकिन शंकर शादी में नहीं आया। शादी से पहले तो यह हाल था कि यदि शंकर एक दिन भी अगर सुन्दर से नहीं मिलता था तो उसका खाना ही हज़म नहीं होता था । अगर किसी कारणवश मिल नहीं पाते थे तो कम से कम फोन पर बातें होती रहती थीं। शंकर अब अपनी ज़िदगी में खुश है । शायद अब उसके दोस्तों की सूची में सुन्दर का नाम नहीं है। अब वह एक कम्पनी में मैनेजर है। उसे एक कॉल सेन्टर में काम करनेवाले उस व्यक्ति से क्या लेना देना अब समय बदल चुका है अब वह कोई साधारण आदमी नहीं है अब उसका उठना बैठना बड़े-बड़े लोगों के बीच होता है। अब बड़े लोगों के बीच साधारण आदमी तो वैसा ही प्रतीत होता है जैसे मखमल की चादर में टाट का पैबंद........ ।

शंकर अपनी दुनिया में खुश हे यही सोचकर सुन्दर संतोष कर लेता था । इधर सुन्दर की भी तरक्की हो चुकी थी। अब सुन्दर कम्पनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत है । भले ही आज  वह मैनेजर बन गया है उसका व्यवहार अपने सहकर्मियों के साथ वैसा ही है जैसा वह पहले करता था, कभी भी वह अपने सहकर्मियों के सामने यह रौब नहीं दिखाता कि वह एक मैनेजर है उसका मानना है कि मैनेजर वह बाद में है उससे पहले एक इंसान है । आज भी वह अपने दोस्त (सखा) शंकर को नहीं भुला पाया है। अक्सर जब भी उसे समय मिलता है उसे ज़रूर याद कर लेता है। आज भी वह सोचता है कि एक न एक दि उसका दोस्त उससे मिलने आएगा  यही सोचते -सोचते वर्षों बीत गए हैं लेकिन शंकर तो उसे भूल चुका है। अक्सर एकांत में बैठा -बैठा यही सोचता है कि आखिर ऐसी क्या बजह होगी.... कि उसका इतना घनिष्ठ मित्र उससे दूर चला गया । क्या उससे कोई भूल हो गई अपनी दोस्ती निभाने में....... । सोचते सोचते उसकी आँखे भर आती किससे कहे अपने दिल की बात समझ ही नहीं पाता । इस बात की जानकारी उसकी पत्नी को भी है कि कभी -कभी सुन्दर अपने दोस्त शंकर को बहुत याद करता है वह भी उसे समझाती है कि जो बीत गया है उसे भूलकर आप आगे देखें पर सुन्दर है कि अपने उस सखा को भूलना तो चाहता है पर भुला ही नहीं पाता…… ।

कहते हैं कि संसार में सबसे बड़ा रिश्ता दोस्ती का होता है जो बात माता-पिता से नहीं कह सकते उसे हम अपने दोस्त के साथ कह लेते हैं। जो बात भाई -बहन से नहीं कह सकते दोस्त से कह लेते हैं। दोस्ती सारे रिश्तों का मेल है जिसमे दोस्त भाई -बहन की तरह झगड़ते हैं , माँ की तरह एक दूसरे का ख्याल रखते हैं और पिता की तरह सही समय पर सलाह देते हैं। आज भी संसार में कृष्ण सुदामा की दोस्ती की मिसाल दी जाती है ,एक वह समय था और आज....................। यह यह कहानी कृष्ण -सुदामा जैसी महत्तवपूर्ण तो है नहीं पर हाँ उस  दोस्ती के जज्बे को जरूर बयां करती है ।

Wednesday, December 1, 2010

आकृति

अमित सोफ्टवेयर कम्पनी में कार्यरत है। कम्पनी ने अमित को 20 दिनों की ट्रेनिग के लिए मुंबई भेजा है। मुंबई शहर.......... सपनों का शहर, सुना है यहाँ कभी रात ही नहीं होती  सड़को पर दौड़ती -भागती ज़िदगी...। इसी शहर में जब अमित पहुँचा तो उसे  यह देखकर बहुत आश्चर्य हुआ कि इस शहर के लोग कभी सोते भी हैं कि नहीं दिन-रात सड़कों पर ही दौड़ते -भागते रहते हैं। कम्पनी ने अमित के रहने की व्यवस्था एक गेस्ट हाउस में की थी जो शहर के बीचों बीच था। अमित ने यहाँ अपनी बीस दिनों की ट्रेनिग खत्म की और वह दिन आ ही गया जब अमित को अपनी ट्रेनिग खत्म कर वापस अपने शहर इंदौर जाना है। आज सुबह उठते ही वह अपने सामान को एक सूटकेस में रखने लगा । तभी उसे याद आया कि उसकी वापसी की टिकिट तो कन्फर्म नहीं थी। टिकिट की स्थिति जाँचने के लिए उसने जल्दी से अपना लेपटॉप निकाला और टिकिट की जाँच इन्टरनेट पर की तो पता चला कि उसकी टिकट कन्फर्म हो गई है। उसकी ट्रेन सुबह 11.30 बजे की है, 11.30 को ध्यान में रखते हुए वह अपने गेस्टहाउस से एक घंटे पहले ही निकल गया था । उसने मुंबई के ट्रेफिक को इन पिछले 20 दिनों में देखा और जाना था कि किस तरह का ट्रेफिक रहता है । गेस्ट हाउस से मुंबई रेलवे स्टेशन तक पहुँचने में उसे तीस से चालीस मिनिट का समय लगा था । वह स्टेशन पर चालीस मिनिट पहले ही पहुँच चुका था ।

स्टेशन पहुँचकर सबसे पहले उसने अपना सामान क्लोक रुम में रखा। सामान रखने के बाद  एक कप चाय ली और पास ही एक किताब की दुकान पर चला गया जहाँ उसने तीन -चार किताबें खरीदीं। किताबें खरीदने के बाद एक बेंच पर जाकर बैठ गया और अपनी चाय का आनंद लेते हुए वहाँ के नज़ारे को निहारने लगा।  यह समय  मुबई की लाइफ लाइन कही जाने वाली लोकल ट्रेनों  का था । शायद इसी लिए स्टेशन पर भीड़ और अधिक बढ़ गई थी। चारों तरफ भीड़ ही भीड़ नज़र आ रही थी । हर एक को अपनी गाड़ी पकड़ने की जल्दी थी । तभी अमित ने अपनी ट्रेन के विषय में सुना कि वह ट्रेन प्लेट फॉर्म पाँच से जाएगी । अमित एक नम्बर प्लेट फार्म पर बैठा था जैसे ही उसने सुना कि गाड़ी पाँच नम्बर के प्लेट फार्म से जाएगी वह अपना सामान उठाकर पाँच नम्बर के प्लेटफार्म की ओर चल दिया, जाकर देखा कि गाड़ी पहले से ही प्लेट फार्म पर खड़ी है । वहाँ पहुँचकर उसने सबसे पहले अपनी बोगी खोजी जिसमें उसे बैठना था। वह शायद पहले आ चुका था क्योंकि अभी तक डिब्बे (बोगी) में इक्का -दुक्का लोग ही दिखाई दे रहे थे। उसने अपनी सीट खोजी और वहाँ जाकर अपना सामान रखकर बैठ गया। धीरे -धीरे यात्री आने लगे । एक – एक कर  11.30 तक सारी बोगी में यात्री आ चुके थे । सब लोग अपना -अपना सामान अपनी सीटों के नीचे लगाकर  बैठ चुके थे कुछ यात्रियों का आना अभी जारी था । 11.35 का समय हुआ और गाड़ी अपने स्थान से धीरे - धीरे चलने लगी । जहाँ अमित बैठा था वहाँ पर अमित के अलावा तीन चार लोग ही थे। एक महाशय तो ट्रेन में चढ़ते ही ऊपर सी सीट पर जा सोए। अमित के समानेवाली सीट पर एक नव विवाहित जोड़ी आकर बैठी थी। अमित का परिचय वहाँ पर बैठे अन्य लोगों से हुआ।     आपसी परिचय से पता चला कि नवविवाहित जोड़े में पुरुष का नाम शिशिर और उसकी पत्नी का नाम स्नेहा है ।

अमित – ‘आप लोग कहाँ तक जाएँगे ?’
शिशिर – ‘दिल्ली और आप?’
अमित – ‘मैं तो इन्दौर तक ही जाऊँगा।’
शिशिर – ‘आप क्या मुंबई में नौकरी करते हैं?’
अमित – ‘नहीं  मैं तो यहाँ पर कम्पनी के काम से आया था ।’ आप क्या मुंबई में नौकरी करते हैं
शिशिर- ‘नहीं असल में हमारी पिछले महीने ही शादी हुई है हम लोग यहाँ घूमने के लिए आए थे।’
अमित ने शिशिर को शादी की बधाई दी
अमित – ‘तो कैसी लगी आप लोगों को मुम्बई।’
शिशिर – ‘बहुत अच्छी , लेकिन एक बात है यहाँ के वातावरण में हमेशा उमस बनी रहती है, शायद समुद्र के किनारे है इसीलिए।’
अमित – ‘हाँ मुझे भी काफी परेशानी रही इन बीस दिनों में । जब तक पंखा या एसी चलता है तब तक तो ठीक है जैसी ही पंखा बंद करों पसीना चालू।’
अमित और शिशिर की आपसी बातें चल रही थी, शिशिर की पत्नी स्नेहा खिड़की के पास बैठी बाहर के नज़ारों का आनंद ले रही थी।

ट्रेन को मुम्बई से चले हुए आधा घंटा हो चुका था ,आधे घंटे के बाद ट्रेन कर्जत स्टेशन पर रुकी। यहाँ  ट्रेन ज्यादा से ज्यादा तीन-चार मिनिट ही रुकती है। जिन यात्रियों को उतरना था वे जल्दी-जल्दी नीचे उतर गए और कुछ यात्री इस स्टेशन पर उस बोगी में चढ़े ।  चढ़ते ही सब अपनी -अपनी सीट के नम्बरों को खोजते हुए अपनी-अपनी सीट पर जा बैठे। ऐसे ही एक वृद्ध सज्जन अपने सोलह साल के पोते के साथ वहाँ पधारे जहाँ अमित और शिशिर बैठे थे । वृद्ध सज्जन ने जल्दी-जल्दी अपना सामान साइडवाली  सीट के नीचे लगाया और पसीना पौंछते हुए बैठ गए । भागा-दौड़ी के कारण उनकी सांस फूल रही थी  सीट पर बैठते ही उन्होंने पानी की बोतल खोली और कुछ पानी पीते हुए अपने पोते को भी पानी पीने को कहा। पोते ने प्यास नहीं है कहकर उन्हें मना कर दिया।  ट्रेन में बैठकर बालक की  खुशी का कोई ठिकाना नहीं था । ऐसा लग रहा था मानों जीवन में वह पहली बार ट्रेन में बैठा हो। उसकी मुस्कान में एक अलग ही बात थी । बालक की मुस्कुराहट को देखते हुए अमित ने उससे अपना परिचय किया ,बालक ने अपना नाम पार्थ बतलाया । उससे बातें करने के पश्चात पता चला कि जो वृद्ध उसके साथ हैं उसके दादा जी हैं,जिनका नाम किशन है । ट्रेन में खिड़की की सीट पर बैठा वह बालक ऐसा चहक रहा था मानों उसे कोई बहुत बड़ा खजाना मिल गया हो।

ट्रेन को कर्तज स्टेशन से चले हुए आधा घंटा हो चुका था , पार्थ बाहर का नज़ारा देख कर बार -बार अपने दादा जी से पूछता दद्दू यह क्या है? उसके दादा जी मुस्कुराकर उस के प्रश्नों का उत्तर दे देते । पार्थ के चेहरे पर तो मुस्कुराहट थी ही साथ ही साथ उसके दादा जी के चेहरे पर भी एक संतोष भरी मुस्कुराहट नज़र आ रही थी । ट्रेन अपनी मंज़िल की ओर अपनी तेज़ रफतार से रास्ते में नदी , नाले , खेतों को पार करती चली जा रही थी। एक स्थान पर सिग्नल न मिलने के कारण ट्रेन थोड़े समय के लिए ठहर गई थी। बाहर चारो तरफ हरियाली ही हरियाली फैली थी । खेतों में फसल लहलहा रही थी, तभी पार्थ ने अपने दादा से पूछा -
पार्थ – ‘दद्दू वह क्या हैं ?’
किशन- ‘बेटा यह खेत हैं, ये फसलों से भरे हुए हैं।’
पार्थ – ‘यह कौन सा रंग हैं दद्दू?’
किशन -  ‘हरा।’
पार्थ – ‘अच्छा तो ऐसा होता है हरा रंग?’
किशन - मुस्कुराते हुए – ‘हाँ बेटा ।’   
बालक की चंचल मुस्कुराहट पूरी बोगी में गूँज रही थी । यहाँ तक कि जो कोई सामान बेचनेवाला उस डिब्बे में आता कुछ क्षणों के लिए वहाँ पर रुककर उस बालक को देखने लगता। शायद आस -पास बैठे लोग सोच रहे थे कि यह बालक ज़रुर पागल है, या कोई मानसिक रोगी है। जिस प्रकार का व्यवहार वह अपने दादा से कर रहा था ,किसी भी वस्तु  को देखकर उत्साह से उछलना तालियाँ बजाकर उस वस्तु के नाम को एक-दो बार दोहराना आदि बातों से वहाँ बैठे यात्री उसे मानसिक रोगी मान बैठे थे। कुछ समय बाद ट्रेन वहाँ से चली शायद अब उसे हरा सिग्नल मिल गया था। थोड़ी दूर जाने पर रास्ते में बरसात होने लगी । बरसात को देखकर  पार्थ ने अपने दोनों हाथ खिड़की से बाहर निकाले और बरसात को महसूस करते हुए जोर से बोला देखों…. देखो दद्दू  बरसात ….है ना ....। इधर स्नेहा बहुत देर से पार्थ को देख रही थी । उस का इस तरह बार -बार चिल्लाना उसे अच्छा नहीं लगा रहा था, वह बहुत देर से अपने आप को रोके हुए थी । जब पार्थ ने जोर से चिल्लाकर अपने दादा को बरसात की बात कही तो स्नेहा से न रहा गया और वह गुस्से से पार्थ के दादा से बोली –
स्नेहा- गुस्से से ‘अंकल जी आप अपने पोते को शांति से नहीं बैठा सकते क्या? यह क्या लगा रखा है .. ......दो घंटे से देख रही हूँ पागलों सी हरकते कर रहा है। अगर इसका दिमाग सही नहीं है तो पहले इसके दिमाग का इलाज करवाइए।’
स्नेहा की बातें सुनकर पार्थ थोड़ा सहम गया और चुपचाप अपने दादा के पास  जा बैठा। किशन  स्नेहा की तरफ देखते हुए मुस्कुरा दिए  कुछ बोले नहीं ।
स्नेहा को यह बात और भी चुभ गई । स्नेहा ने किशन से कहा – ‘देखिए अंकल जी मैंने कोई जोक नही कहा है जिसे सुनकर आप मुस्कुरा रहे हैं । आप के पोते की हरकतो से तो यही लग रहा है जैसे वह मानसिक रोगी है। इसका किसी अस्पताल में इलाज करवाइए..........।’
स्नेहा की कटु बातें सुनकर शिशिर ने उसे टोकते हुए कहा ‘क्या यार तुम भी ना…… जाने दो बेचार बच्चा ही तो है। तुम भी ना हद करती हो..........।’
स्नेहा – ‘क्या मैं भी ना ? देख नहीं रहे जब से ट्रेन में चढ़ा है तभी से शोर मचा रखा है। ट्रेन में और भी तो बच्चे बैठे हैं वे भी खेल- कूद रहे हैं पर कोई भी बच्चा इसके जैसे तो नहीं कर रहा ।’
स्नेहा की बातें सुनकर किशन बोले -
किशन – ‘हाँ बेटा शायद तुम ठीक ही कहती हो , यह लड़का सचमुच पागल हो गया है। और रही बात अस्पताल की तो तुम्हारी जानकारी के लिए मैं बताना चाहुँगा कि मैं इसे अस्पताल से ही लेकर आ रहा हूँ। पिछले सप्ताह से ही तो इसने दुनिया को देखना शुरु किया है।’
स्नेहा- ‘क्या मतलब ?’   
किशन – ‘हाँ पिछले सप्ताह ही इसकी आँखों का ऑपरेशन हुआ है । पिछले सप्ताह ही तो इसने दुनिया को पहली बार देखा है। यह अंधा ही पैदा हुआ था। हमने इसका इलाज कई जगह करवाया लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। तभी एक दिन मेरे मित्र ने मुझे यहाँ के एक डॉक्टर से मिलकर पार्थ को दिखाने की बात कही । मैं पिछले सप्ताह पार्थ को लेकर यहाँ आया था डॉक्टर ने इसकी आँखों की जांच करके बताया कि इसकी आँखों की रोशनी  आ सकती है। इसकी आँखों का ऑपरेशन करना पड़ेगा। भला हो उस डॉक्टर का जिसने मेरे लाल को एक नई ज़िदगी दी ...........।’

जब स्नेहा ने पार्थ की कहानी सुनी तो उसका मुँह खुला का खुला रह गया और सिर शर्म से झुक गया । अमित पार्थ की मासूम मुस्कुराहट को देखकर खुश हो रहा था मन ही मन सोच रहा था ,आज पार्थ के सुनयनो को  सोलह साल के अंधकार के पश्चात एक आकृति मिल गई ………। जीने की एक राह मिल गई । पार्थ के लिए जीवन में इससे बड़ा और क्या खजाना होगा । आज उसकी खुशियों का अंत नहीं । इस सुख को तो वही महसूस कर सकता है जिसने कभी अपना जीवन अंधेरे मे बिताया हो । ट्रेन अपनी रफ्तार से चली जा रही थी । एक के बाद एक स्टेशन आते -जाते और नए मुसाफिर चढ़ते और पुराने उतर जाते । ट्रेन में पार्थ के साथ कब समय समाप्त हो गया अमित को इस बात का पता ही नहीं चला आखिरकार उसका स्टेशन आ गया और वह पार्थ को एक चौकलेट देते हुए ट्रेन से उतर गया। पार्थ और उसके दादा किशनजी को आगरा तक जाना था ।