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Tuesday, September 29, 2009

" खडूस "

काफी देर से खिड़की के पास खड़ा रात के अँधेरे में कुछ खोज रहा था । उस दृश्य को बार - बार याद कर रहा था जिसका भयावह चेहरा अभी भी मेरे मन पर छाया था । एक ऐसी घटना जिसने मेरे मन को झकझोर कर रख दिया। यह घटना मेरे ही गाँव की है । गाँव में सभी लोग किसान हैं ,सभी किसानों के पास अपनी जमीन है किसी के पास दस बीघे ,किसी के पास बीस बीघे तो किसी के पास पचास -साठ बीघे जमीन। यहाँ की ज़मीन सोना उगलने वाली मानी जाती है । यहाँ पर सभी प्रकार की फसलें होती हैं । सिंचाई के पर्याप्त साधन होने के कारण बारह मासों खोतों में फसलें लहराती रहती हैं। लहराती फसलों के कारण ही किसानों के मुख पर खुशी की लालीमा झलकती रहती है।सुबह का समय था मैं अपने घर की छत पर बैठा चाय पी रहा था । एक दूसरी छत पर मोर नाच रहा था मैं चाय पीते-पीते मोर के नाच का आनंद ले रहा था तभी किसी स्त्री के रोने की आवाज सुनाई दी मैं जल्दी से उस तरफ बढा जिस तरफ से स्त्री के रोने की आवाज आ रही थी । जो दृश्य मैने देखा वह बड़ा ही भयावह था उस दृश्य की साक्षी तो मेरी आँखे ही हैं । एक वृद्ध महाशय जिनकी उम्र लगभग सत्तर से पचहत्तर वर्ष की होगी एक स्त्री को पीटने से लगे हुए हैं जिस स्त्री को वे महाशय पीट रहे थे उस की उम्र लगभग पैतीस से चालीस बीच की होगी । वृद्ध उस स्त्री को बड़ी बेरहमी से अपनी चमड़े की जूतियों से मार रहे थे । वह बेचारी छत पर पड़ी बचाओ - बचाओ की गुहार लगा रही थी । यह देखकर मैं तुरंत वहाँ जाने के लिए छत से जल्दी -जल्दी उतरा मेरे वहाँ पहुँचने से पहले ही पड़ौस का एक लड़का वहाँ पहुँच गया उसने वहाँ पहुँचकर उस वृद्ध को वहाँ से अलग हटाया तब तक वहाँ और भी आस-पड़ौस के लोग इकट्ठा हो चुके थे वहाँ पर आई कुछ स्त्रियों ने उस स्त्री को छत से नीचे पहुँचाया मार के कारण वह स्त्री बेहोश हो चुकी थी ।वहाँ पहुँचने पर पता चला कि जिस स्त्री को वृद्ध जूतियों से पीट रहे थे वह और कोई नहीं उनकी पुत्र वधु थी । यह सुनकर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ , आश्चर्य इस बात का कि अब तक सुना था देखा था कि पति पत्नियों में आपस में झगड़ा होता है । कभी-कभी पति गुस्से में पत्नी की पिटाई कर देता है किन्तु यह पहली घटना थी जिसमें एक पिता समान ससुर अपनी पुत्रीवत पुत्रवधु को लातों से पीट रहा था । धीरे-धीरे उस घर के आंगन में गाँव वालों की संख्या बढ़ती जा रही थी ।वह स्त्री अभी तक बेहोश थी उस का पति गाँव के पास ही खेत में हल चला रहा था । घर में भीड़ बढ़ती ही जा रही थी। भीड़ में से एक व्यक्ति ने उस स्त्री के पति के पास खबर भिजवाई ।घटना की सूचना पाकर स्त्री का पति तुरंत दौड़-दौड़ा घर आया घर में बेहोश पड़ी अपनी पत्नी को देखकर उसका भी सिर चकरा गया उसे समझ में ही नहीं आ रहा था कि यह सब कैसे हो गया ।हद तो तब हो गई जब सारा मोहल्ला उस स्त्री की दशा पर शोक व्यक्त कर रहा वहीं दूसरी तरफ वृद्ध महाशय जिन्होंने उस स्त्री की यह दशा की थी उनके चेहरे पर एक भी पश्चाताप की झलक तक नहीं थी , उन्हें नहीं लगता कि जो उन्होंने किया है वह गलत है । वह तो आराम से चिलम भरकर लाया और खाट पर बैठकर हुक्का पीने में लग गया । लोगो ने गाँव के डॉक्टर को बुलाने के लिए एक आदमी को भेज दिया था । थोड़ी देर में ड़ॉक्टक आ गया उसने उस स्त्री को देखकर कुछ दवाइयाँ दी और एक इन्जेक्शन लगाया । वहाँ पर खड़े सभी लोगों को उस स्त्री के साथ पूरी सहानुभूति थी । वहीं दूसरी तरफ हुक्का पीते -पीते वृद्ध महाशय उस स्त्री को उल्टी-सीधी गालियाँ देने लग गए। अरे! “हरामजादी को जरा भी शरम हया नहीं है , अरे! मेरी हड्डियाँ तोड़ दी इस हरामजादी ने आय......अरे इस बूढ़े को डंडे से मारा है अच्छा होता कि आज तेरा काम तमाम हो जाता ।”यह सारी बातें सुनकर मुझसे नहीं रहा गया “अरे ताऊ क्यों झूठ बोल रहे हो कुछ तो अपने इन सफेद बालो की शरम करो क्यों इस बुढ़ापे में झूठ बोल रहे हो तुम खुद ही तो इस बेचारी को लात घूंसों से मार रहे थे वह बेचारी तो छत पर पड़ी बचाओ-बचाओ चिल्ला रही थी तुम्हें ऐसा करते हुए जरी भी शरम नही आई ऊपर से उसी पर झूठा आरोप लगा रहे हो । क्यों इस उम्र में अपनी मिट्टी पलीत करते हो ? कम से कम अपने इन सफेद बालों की तो कुछ शरम करो।”मेरी बात बात खत्म भी हुई थी कि वहाँ पर खड़े कुछ लोगों ने मेरी बात का समर्थन करते हुए कहा कि “तुम्हें शरम आनी चाहिए इस प्रकार का काम करते हुए भला कोइ बहु बेटियों पर हाथ उठाता है ?” वहाँ पर खड़ी एक महिला बोल उठी शायद वो दिन तुम भूल गए हो जब तुम्हारे सिर में चोट लगने के कारण तुम अपनी सुध-बुध खो बैठे थे ,तीन-चार महीने खाट में पड़े रहे थे तब इसी ने तुम्हारी सेवा की थी । इसी की सेवा के कारण आज तुम यहाँ बैठे -बैठे भाषण झाड़ रहे हो। ये बिचारे तुम्हारे इलाज के लिए तुम्हें कहाँ - कहाँ नहीं भटके बड़े से बड़े अस्पताल में तुम्हारा इलाज करवाया कौन करता आज के जमाने में इतना सब कुछ ?तुम्हें इतना होश तक नहीं था तुम कहाँ हो किस हाल में हो तुम कहाँ पर पड़े हो क्या पहना है ? पहना भी है या नहीं ,कहां पेशाब कर रहे हो कहाँ.......? कर रहे हो तुम तो उस समय अपने कपड़ों में ही ...... ? कर देते थे । यह वही है जोे तुम्हारे गंदे कपड़े धोती थी भला करता है कोई इतना । इस बेचारी ने अपने पिता की तरह तुम्हारी सेवा की थी और एक तुम हो कि उसे ही मार रहे हो । अगर कोई और औरत होती तो तुम्हारी तरफ फटकती तक नहीं तुम्हारी सेवा तो दूर एक गिलास पानी तक लाकर नहीं देती और तुम उसी बेचारी को जानवरों की तरह मार रहे हो । इसे मारने का अधिकार तुम्हें किसने दिया तुम्हें पता अगर इसने पोलिस के जाकर तुम्हारे खिलाफ रपट लिखवा दी तो तुम्हारा सारा बुढ़ापा जेल की चक्की पीसते -पीसते गुजरेगा समझ में आई कुछ।
उस बुढ़िया की बातें सुनकर बुड्ढे के तन बदन में और आग लगने लगी, बुढ़िया की बातें सुनकर वे झुंझलाकर चिल्ला उठे अरी बकवास बंद कर हाँ बहुत देखे जेल भिजवाने वाले देखे । बहुत देर से भाषण झाड़ रही है आज अगर ये छोरा नहीं आता तो आज इस कंबखत का काम तमाम कर देता था । बुड्ढे की अकड़ भरी बातें सुनकर वहाँ पर खड़ी मोहल्ले की और औरते बोल उठी अरे! “इस बूढ़े को कुछ शरमोहया तो है नहीं भला कोई बहु बेटियों पर हाथ उठाता है । वहीं दूसरी तरफ उस स्त्री जिसे बूढ़े ने लातों से मार-मार कर बेहोश कर दिया था के बच्चे माँ के पास आकर रो रहे थे मम्मी ..मम्मी कहकर बच्चे वहाँ पर खड़ी औरतो से पूछने लगे क्या हुआ मम्मी को ? मम्मी बोल क्यों नहीं रही क्या हुया मम्मी को ? वहाँ पर खड़ी औरते उन बच्चों को चुप करा रही थी , चुप हो जाओ बच्चों तुम्हारी मम्मी को कुछ नहीं हुआ वह जल्दी ठीक हो जाएगी , चिंता मत करो । अरे ! यह आदमी है या कसाई कोई किसी को इस तरह मारता है, कसाई ने जानवरों की तरह मारा है ।घर के अंदर बहुत सी औरते इकट्ठी हो चुकी थी सभी बड्ढे द्वारा किए गए कार्य से गुस्से में थी । उन सबका बस चलता तो वे सभी उस बुड्ढे को उसके किए का मजा चखा देती । उस भीड़ में खड़ी एक औरत बोल उठी कि ये बेचारी जब ब्याह कर इस घर में आई थी तब कैसी थी ? और अब देखो बेचारी सूखकर कांटा हो रही है । दिन रात खूब काम करती है । फिर भी बेचारी सुख का एक निवाला तक नहीं खा सकती और इस बूढ़े को अंघाई नहीं झिल रही इसे घर बैठे-बैठे खाना हज़म नहीं हो रहा । इसे समय पर खाने के लिए बराबर मिल जाता है इसीलिए इसे बुढ़ापे में भी जवानी का नशा चढ़ रहा है।वहाँ पर खड़ी औरतों में से एक बूढ़ी औरत बोली “इस बुड्ढे का तो यही हाल देखते आ रहे हैं पहले भी इसकी अकड़ वैसी ही थी और आज बुढ़ापे में भी यही हाल रस्सी जल गई लेकिन उसके बल नहीं गए । एक समय था जब दूर दराज गाँव के लोगों में भी इसका बड़ा सम्मान था । इसने अपने इन कारनामों से अपनी मिट्टी खुद ही पलीत कर ली । वो सब तो ठीक है कि जवानी में क्या किया या क्या नहीं किया ठीक है जवानी में इसकी धाक थी किन्तु अब बुढ़ापे में तो इसे ऐसा नहीं करना चाहिए था। मार पिटाई करना कोई नई बात तो है नहीं ? यह तो सदा से ही ऐसा करता आया है। पहले घर परिवार और ज़मीन की एक -एक क्यारियों के लिए लड़ते रहे हैं । इनका तो सदा से यही हाल रहा है, कभी घर से जंगल को खाना ले जाने में थोड़ी बहुत देर हो जाती थी तो वहीं पर हंगामा शुरु हो जाता था । पता नहीं कब सुधरेगा?”घर पर इकट्ठी हुई भीड़ के सभी लोग उस स्त्री के पक्ष में ही बोल रहे थे यह सब उन वृद्ध महोदय से सहा नहीं गया वह तिलमिला उठे और क्रोध से आग बबूला होकर बोले “अजी ! सब को उसी की पड़ी है सब उस की सी ही कह रहे हैं । कोई यह नहीं देख रहा ,यह कोई भी नहीं पूछ रहा कि चाचा क्या बात हो गई ? आपको तो कहीं चोट नहीं लगी। उस हरामजादी को तो सारा मोहल्ला देखने चला आ रहा है जैसे कि वह मर गई हो। अरे !कोई इस हरामजादी से यह नहीं कह रहा कि क्यों री तूने बूढ़े आदमी पर हाथ क्यों उठाया ? बूढ़े को लाठियों से क्यों मारा ? सब यहाँ आ आकर उसकी सी कह रहे हैं मेरे बारे में किसी को कोई ख्याल ही नहीं है। अरे! तामाम बदन तोड़ डाला आह...... ।” बूढ़े की बातें सुनकर वहाँ खड़ा एक व्यक्ति बोल उठा “अरे ! ताऊ क्यों बुढ़ापे में झूठ पर झूठ बोले जा रहे हो वह बेचारी आप पर कैसे हाथ उठा सकती है। तुम ही तो उसे लातों से पीट रहे थे । इस उम्र में झूठ बोलते हुए तुम्हें शर्म आनी चाहिए।”उस व्यक्ति की बातें सुनकर वृद्ध महोदय और तिलमिला उठे । “अरे ! अभी तक वह औरत भाषण झाड़ रही थी कह रही थी कि जब तुम्हारे सिर में चोट लग गई थी तो मेरी याद्दाश्त चली गई थी मुझे कुछ याद नहीं था तो इन्होंने ही मेरी सेवा की थी । अजी! सेवा की थी तो क्या मुफ्त में की । मेरे पूरे बीस बीघे ज़मीन को जोत बो रहे हैं जो कुछ खेत में पैदावार होती है ये ही लोग तो ले रहे हैं मुझे तो कुछ दे नहीं रहे हैं। साल में दो बार फसल बेचते हैं जो कुछ मिलता है सब को अपनी जेब में भरकर बैठे है। और मैं क्या इनसे कहने गया था कि तुम लोग मेरी सेवा करो न करते मर तो मैं ही रहा था ये सुसरे तो नहीं मर रहे थे । आज कल सभी अपनी मरजी से चल रहे हैं । सभी अपनी मरजी के मालिक हो रहे हैं और तुम लोग जिसको बेचारी -बेचारी करके घर को सर पर उठा रहे हो वह राणी भी कुछ कम नहीं है अजी घोड़ी हो रही है एक जगह तलवा टिकता ही नहीं है ऊपर से जवान लड़ाती है.........”घर के बाहर वृद्ध महोदय अपनी जवान के साथ -साथ अपनी चिलम भी उसी प्रकार चढ़ाते जा रहे थे । तभी उस वृद्ध का लड़का बाहर आया जिसकी पत्नी को वृद्ध ने मारा था । वह सीधा वृद्ध के पास गया और हुक्का और चिलम दोनो उठाकर बारह फेंकते हुए कहा- “आप को जरा सी भी शरम नहीं है एक तो उस बेचारी को इतनी बेरहमी से मारा है और ऊपर से उसे ही भला बुरा कह रहे हो। अगर आप को उससे कोई परेशानी है तो आप मुझसे कह देते क्यों रोज-रोज का घर में कलह करते रहते हो क्यों मोहल्ले वालों के सामने तमाशा खड़ा कर रहे हो? आप को तो इस तरह के तमाशे करने की आदत हो गई है ।”क्यों मोहल्ले वालों को हँसने का मौका देते हो । हम तो अपनी शरम के लिए मरे जा रहे हैं और आप हो कि हमें चैन से जीने ही नहीं देते हो, एक तो दिन रात काम की परेशानी दूसरा आप का रोज-रोज का घर में कलह इससे हम परेशान हो चुके हैं । आखिर आप चाहते क्या हैं? आपको समय पर खाना मिलता है जिस चीज की आप फरमाइश करते हो सब पूरी की जाती है भले हम चटनी से रोटी खा ले लेकिन आपके लिए सब्जी बनती है फिर भी आप हो कि हमें चैंन से जीने भी नहीं देते बुड्ढ़ा अपनी गलती मानने को तैयार ही नहीं। उन्हें लगता है कि उन्होंने जो किया है वह बिल्कुल सही है। लड़के की बातें सुनकर उन्हें कुछ शांत होना चाहिए था किन्तु वे तो उस लड़के को ही भला बुरा कहने में लग गए । ज्यादा बकवास न कर मैं तेरी फालतु की बकवास सुनने के लिए नहीं बैठा हूँ।बुड्ढे की बातें सुनकर लड़का बोला यह तो यहाँ पर खड़े सभी लोगो को पता है कि आप यहाँ पर मेरी फालतुु की बकवास सुनने के लिए नहीं बैठे हो आप तो यहाँ पर हमारी बरबादी के लिए ही बैठे हो और कुछ नहीं । आप के कलेजे को तो तभी ठंडक पड़ेगी जब हम सब बरबाद हो जाएंगे .
“बरबाद हो या मरो इससे मुझे कोई फरक नही पड़ता ।”वृद्ध की बातें सुनकर लड़के को और गुस्सा आ गया । आखिर आप चाहते क्या हैं ?आप हमें चैन से क्यों नहीं जीने देते ? आखिर आपको घमंड किस बात का हैं ? खेती का ? या इस घर का ? आपका जो यह झूठा घमंड है ना कि मेरा घर मेरे खेत -ज़मीन । पहले तो आपको यह बता दूँ कि आप जिस खेत-ज़मीन को अपना -अपना करते रहते हो वह सब आपने अपनी कमाई से नहीं खरीदा यह सब ज़मीन जायदाद आपके पिताजी अर्थात हमारे दादा जी ने खरीदा था जिसे वे आपको सौंपकर चले गए । जब तक दादा जी जीवित थे इस ज़मीन -जायदाद पर उनका अधिकार था । उनके गुजर जाने के पश्चात इस ज़मीन -जायदाद का अधिकार आप को मिल गया। वैसे तो यह सब ज़मीन -जायदाद हमारी खानदानी है जिसपर हमारा भी समान अधिकार है। रही बात इस घर की सो वह भी दादा जी का ही है । इस घर को रहने योग्य घर हमलोगों ने अपनी खून पसीने की कमाई से बनाया है ।लड़के की बातें सुनकर वृद्ध का खून खौल उठा , अच्छा तो मेरा कुछ नहीं है न घर न खेती क्यारी । सुसर इस भूल में मत रहना कि मेरा कुछ नहीं है घर की एक -एक ईंट मेरी है । अब देखता हूँ कि सारे तू मेरे खेत में कदम भी रख जाए । सारे जब भूखे मरोगे तब पता चलेगी सारे भूखे न मरो तो मेरा नाम भी नही। मैं देखता हूँ कैसे तुम ज़मीन वाले बनते हो अगर एक -एक दाने के लिए मोहताज न कर दिया तो देखो , ले मेरा कुछ नहीं ....हद कर दी......अब तक वहाँ पर काफी भीड़ जमा हो चुकी थी इस भीड़ में वृद्ध महोदय के कुछ वृद्ध साथी भी खड़े थे जब उन्हें इस सारी घटना की जानकारी मिली तो वे लोग भी वृद्ध को समझाने लगे । उन वृद्धों में कुछ तो उनके बचपन के साथी थे । एक वृद्ध ने उन्हें समझाते हुए कहा देखे भाई जो कुछ तुमने किया है वह सरासर गलत है तुम्हें बहु पर हाथ नहीं उठाना चाहिए था । ऐसा करते हुए तुम्हें तनिक की लाज नहीं आई। अरे अब तो सुधर जाओ कम से कम अपने बुढ़ापे को देखो। आज तो तुम्हारे हाथ-पाँव काम कर रहें हैं कल जब यही हाथ - पाँव जवाब दे देंगे तब क्या करोगे। जब तुम पूरी तरह टिक जाओगे तब ये बहु -बेटा ही तुम्हरे काम आएँगे कोई गैर आकर तुम्हारी सेवा नहीं करेंगा । बुरे वक्त में अपने ही काम आते हैं । भले -बुरे जैसे भी हैं हैं तो तुम्हारी संतान ही न । बुढ़ापे में बहु-बेटियों पर हाथ उठाकर क्यों अपने बुढ़ापे पर कलंक लगाते हो । और फिर तुम तो सुखी जीवन बिता रहे हो क्या कमी है तुम्हें जिस चीज के लिए कहते हो कहने के साथ ही हाजिर हो जाती है । मेरी हालत तो तुम देख ही रहे हो दिन-रात काम करता हूँ फिर भी दो वक्त की रोटी मुश्किल से मिल पाती है । आज के जमाने में ऐसे बहु-बेटे मिलना मुश्किल है । हमारी दशा को देखने के बाद भी तुम ............। जरा देखो तो इन बेचारों को कैसे सूख कर कांटा हो रहे हैं । जब तक घर में सुख- शांति नहीं रहेगी तब तक भला कोई कैसे सुख का निवाला खा सकता है।वृद्ध महोदय पर लोगों की किसी बात का कोई असर नहीं हो रहा था वे तो बस एक ही बात सोचकर बैठे थे कि जो उन्होंने किया है वह बिल्कुस सही है । एक तरफ वृद्ध क्रोधित स्वर में अंदर बेहोश पड़ी अपनी बहु को भलि-बुरी गाली पर गाली दिए जा रहे थे तो वहीं दूसरी तरफ तीन छोटे बच्चे कमरे के एक कौने में अपने दादा के रौद्र रुप से भयभीत हुए खड़े माँ-माँ कहकर रोए जा रहे थे । अब तक वह स्त्री जिसे वृद्ध ने पीटा था अब उले धीरे-धीरे होश आने लगा था । होश में आने के बाद जैसे ही उसकी नजर बच्चों पर गइ उन्हें देखकर वह फफक-फफककर रोने लगी ।बाहर बैठे वृद्ध जोर-जोर से गाली पर गाली दिए जा रहे थे यह सुनकर वह और रोने लगी ।रोती रोती कहने लगी कि अगर मुझे मेरे बच्चों की मोह न होता तो कब की मैं इस जिन्दगी को खत्म कर चुकी होती । रोज-रोज के डर कर जीने से अच्छा होता कि मैं खुद को ही खतम कर देती । मैं यहाँ किस प्रकार जी रही हूँ यह मैं ही जानती हूँ।उस स्त्री के रोने की आवाज बाहर तक आ रही थी । रोने -रोते वह जो बोल रही थी वह भी बाहर तक साफ सुनाई दे रहा था । स्त्री की आवाज सुनकर वृद्ध महोदय और जोर से चिल्लाकर कहने लगे अरे देखो, सुनो तो इस बेहया को कैसी जवान चला रही है । अरी मरने की धमकी किसे दे रही है कल मरने की जगह तू आज ही मर जा उपर से वो मर जाए जो तुझे ब्याहकर लाया है । मैं इन मगरमच्छ के आँसुओं से डरने वाला नहीं ।बुड्ढ़े की इन अकड़ भरी बातों को सुनकर वहाँ पर खड़े सभी लोग सन्न रह गए । सब लोग उस बुड्ढे की तरफ आश्चर्य भरी नजरों से देखते हुए आपस में यही कहने लगे कि इस बुड्ढे का दिमाग खराब हो गया है जो इस प्रकार बहकी-बहकी बातें कर रहा है। भला को माँ-बाप अपनी औलाद की मरने की दुआ करते है। देखो तो किस प्रकार अपनी औलाद के लिए बददुआ दे रहा है । ये तो बेचारे सरीफ है अगर होता न को टेड़ा सा इन्सान तो इन्हें अभी घर से धक्के मार कर बाहर निकाल देता । यह तो इन लोगो की सराफत है कि इतना सब कुछ होने पर भी चुप - चाप बैठे हैं......... नही तो इन्हे पता चल जाता कि बहु बेटियों को मारने का क्या अंजाम होता है...........।अब तक देखा था, पढ़ा था कि आज की नौजवान पीढ़ी अपने बुजुर्गों की सही देखभाल नहीं करती । किन्तु इस घर की कहानी तो बिल्कुल अलग ही निकली। वृद्ध के मुँह से यह सुनकर कि तुम मरो या तुम्हारे बालक मरो इससे मुझे कोई फरक नहीं पड़ता । आज पहली बार एक पिता को यह कहते सुना कि भले उस का जवान बेटा मर जाए उसे कोई फरक नहीं पड़ता। जवानी की रस्सी जल गई पर बल नहीं, बल आज भी उसकी अकड़ में है। वृद्धावस्था में जहाँ लोग भगवान के भजन ध्यान में मन लगाते हैं वहीं ये वृद्ध महोदय अपनी जमीन जायदाद के मोह में फसकर दूसरो को परेशान करने में लगे हुए हैं। अक्सर देखा गया है कि संतान अपने बूढ़े माँ-बाप को बोझ समझकर घर से बाहर निकाल देती है किन्तु ये वृद्ध तो अपनी उस संतान को ही बाहर निकालने पर तुले हैं जो इनकी सेवा करती है इनकी हर जरुरत को पूरा करते है ......। इस दृश्य को देखकर मैं बार-बार यही सोचने लगता कि क्या एक बाप इतना निरदयी भी हो सकता है । जो अपने अहंम के लिए , अपनी झूठी शान के लिए बच्चों की मृत्यु की कामना कर सकता है।

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