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Thursday, March 25, 2010

आज के शिक्षक और शिक्षा के बदलते संदर्भ

आज के शिक्षक और शिक्षा के बदलते संदर्भ

मानव जीवन में शिक्षा का विशेष महत्त्व है। शिक्षा ही तो है जो मानव को यथार्थ रुप में मानव बनाती है। शिक्षा के बिना मनुष्य जीवन पशु तुल्य ही होता । मानव और पशु में यही अंतर है कि मानव शिक्षा के द्वारा ही अपने को उन्नति के शिखर पर ला सका है। मानव शिक्षा ग्रहण करके शिक्षा प्रचार-प्रसार करता है किन्तु पशु ऐसा नहीं कर सकते । मनुष्य जब से जन्म लेता है और जब तक जीता है कुछ न कुछ सीखता है और सिखाता है ।

ज्ञान वो दीपक है जो मनुष्य को अंधकार रुपी संकट में सहारा देता है। मनुष्य का स्वभाव है कि ज्यों -ज्यों उसकी आयु बढ़ती जाती है ,त्यों -त्यों वह अनुकरण के द्वारा अनेक बातें सीखता जाता है । जब शिशु इस संसार में आता है धीरे-धीरे चलना सीखता है ,बोलना सीखता है ,यद्यपि बच्चे को यह ज्ञान नहीं होता कि वह सीख रहा है फिर भी उस का सांसारिक ज्ञान बढ़ता चला जाता है।


मनुष्य जीवन की सबसे अधिक मधुर तथा सुनहरी अवस्था विद्यार्थी जीवन ही होता है । विद्यार्थी जीवन ही सारे जीवन की नीव मानी जाती है ।एक चतुर कारीगर बहुत ही सावधान तथा प्रयत्नशील रहता है कि वह जिस मकान का निर्माण कर रहा है कहीं उस की नींव कमजोर न रह जाए । नीव दृड़ होने पर ही मकान की मजबूती नापी जा सकती है। जब नींव मजबूत होगी तब ही मकान धूप -छांव, आँधी पानी और भूकंप के वेग को सह सकता है । इसी प्रकार बुद्धिमान व्यक्ति अपने जीवन की नींव को सुदृढ़ बनाने के लिए सावधानी से यत्न करता है।


भलि प्रकार विद्या ग्रहण करना विद्यार्थी का प्रमुख कर्तव्य होना चाहिए। विद्यार्थी का कर्तव्य है कि वह अपने शरीर बुद्धि ,मस्तिष्क मन और आत्मा के विकास के लिए पूरा -पूरा यत्न करे । अनुशासन प्रियता, नियमितता समय पर काम करना, उदारता ,दूसरों की सहयता करना , सच्ची मित्रता ,पुरुषार्थ, सत्यवादिता ,नीतिज्ञता ,देश भक्ति ,विनोद-प्रियता आदि गुणों से विद्यार्थी का जीवन सोने के समान निखर उठता है। उसी प्रकार उसकी कड़ी मेहनत से उस का भविष्य उज्जवल हो जाता है। जिस प्रकार सोने की सत्यता को पहचानने के लिए उसे आग में जलाया जाता है ,तब जाकर सोना अपने सच्चें आकार को पाता है। उसी प्रकार एक सच्चे विद्यार्थी को अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कठिन परिश्रम रूपी आग में जलना ही पड़ता है। किन्तु जिस प्रकार हम उन्नती की ओर बढ़ रहे हैं , हमारी शिक्षा में भी नित नए-नए परिवर्तन आते जा रहे हैं। एक समय था कि विद्यार्थियों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए गुरु के आश्रम में जाना पड़ता था किन्तु आज की शिक्षा पद्दति में यह बात नहीं आज शिक्षा मात्र धन कमाने के केन्द्र बनते जा रहे हैं । आज जिस प्रकार शिक्षा को कठपुतली की तरह प्रयोग में लाया जा रहा है इसकी कल्पना शायद किसी ने न की होगी । यह बात सही है कि हमें शिक्षा में नए-नए परिवर्तन करते रहना चाहिए किन्तु हमें इस बात को भी नहीं भूलना चाहिए कि हमें आधुनिक शिक्षा के प्रयोग के साथ - साथ अपनी सभ्यता और संस्कृति को नहीं भूलना चाहिए। यह सही है कि हमें ऐसी शिक्षा को ग्रहण करना चाहिए जिससे हमें भविष्य में उद्योग आसानी से उपलब्ध हो सकें।


आज बड़े दुर्भाग्य से कहना पड़ता है कि विद्या एक व्यापर का बड़ा केन्द्र बन चुकी है। विद्यालय एक केन्द्र की इमारत की तरह हो गई है और अध्यापक एक व्यापारी के समान बनते जा रहे हैं । जिस प्रकार समाज दिन -प्रतिदिन उन्नति कर रहा है । आज एक बच्चे को विद्यालय में प्रवेश दिलाने के लिए माँ-बाप को कितनी ही समस्याओं का सामना करना पड़ता है, और यदि विद्यालय नामी है तब तो माँ-बाप को विद्यालय के दसो चक्कर काटने पड़ जाते हैं । आज बच्चे विद्यालय में पढ़ते तो हैं किन्तु उनकी पढ़ाई पूरी नहीं हो पाती क्यों क्योंकि वहां के शिक्षक -शिक्षिकाएं उन्हें ट्यूशन की शिक्षा देते हैं अर्थात विद्यालय में फीस जमा करो फिर ट¬ूशन की फीस अदा करो । आज इसी ट्यूशन की लक ने अधिकांश शिक्षको -शिक्षिकाओं को व्यापरी बना कर रख दिया है । आज जब शिक्षक स्कूल या कॉलेज में किसी विषय की पूर्ण जानकारी विद्यार्थियों को न देकर कहता है कि आप ट्यूशन आ जाना वहीं पर सब परेशानी का हल कर देंगे । आज क्या होता जा रहा है हमारी सभ्यता को ? कहाँ थे हम और कहाँ आ गये ?


लेकिन हमें सिक्के के एक ही पहलू को नहीं देखना चाहिए , सिक्के का एक दूसरा पहलू भी है । यदि शिक्षक किसी विद्यार्थी को ट्यूशन पढ़ाता है तो क्या गलत करता है ? क्या समाज के किसी भी वर्ग ने शिक्षक की आर्थिक स्थिति की ओर ध्यान दिया है ? नहीं … शिक्षक का भी परिवार होता है उसके भी अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने का अधिकार है । यदि उसे अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलानी है तो पैसों की जरुरत पड़ेगी ही वे पैसे कहाँ से आएं ? शिक्षक अपने बच्चों को सम्मान के साथ शिक्षा दिला सके इसके लिए उसे ट्यूशन का सहारा लेना पड़ता है । यह बात भी सही है कि कुछ लोग इस सम्मानजनक पद की गरिमा को अपमानित कर रहे है किन्तु एक के किए की सजा सब को देना यह तो सही बात नहीं है। आज विद्यालयों के कर्तव्य और दायित्व के प्रति देशभर के अधिकांश लोगों की धारणाएं बदल रही हैं । इन बदलती धारणाओं का कारण है आज की शिक्षा पद्धति और अध्यापकों की कड़ी मेहनत जिसके कारण विद्यालय की यथार्थ तस्वीर समाज के सामने आ जाती है। आज की शिक्षा जहाँ एक तरफ छात्रों से कमरतोड़ मेहनत करवाती है वहीं उनमें नया जोश और उत्साह भी भरती है। आज बदलती शिक्षा ने किशोरों मे एक नया जोश भर दिया है आज उनमें कुछ कर दिखाने का जोश पनप रहा है । उनमें देश के प्रति कुछ करने की लगन पनप रही है । यह सब तभी तक चल सकता है जब शिक्षको को उनकी योग्यता के अनुसार कार्य करने के अवसर प्राप्त होते रहेंगें और उन्हें उनकी योग्यता के आधार पर ही वेतन मिलता रहेगा । जब शिक्षक को अपनी नौकरी के न खोने और वेतन की चिंता नहीं रहेगी तभी वह अपने विद्यार्थियों को निÏश्चत होकर शिक्षा प्रदान कर सकेगा, तभी वह नवयुवको का सही मार्गदर्शन कर सकेगा। यदि समाज मे शिक्षक उन्नत रहेंगे तभी समाज उन्नत बन सकेगा और समाज की उन्नती देश की उन्नती होगी ।

14 comments:

  1. vidhyarthi jivan manushya ka ek anmolya ratn hai. es jivan me manav bahut kuch seekhte aur sikhate hai. achi mitr ko pahchan na, sach aur jhoot me antar aadi, bahut kuch seekhte hai... sahi hai shikshak vyavasta me bahut parivartan aa gaya hai... ab yah ek vyapar ban gaya hai.
    sir aapne dono pakshom ko bahut achi tarah samghaya.
    ravali

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  2. PLEASE UPLOAD THIS TOPIC

    विद्यालय के प्रति हमारे कर्तव्य

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  3. Hamari shiksha pranali kaesi honi chahiye is baat ko lekar hamesha hi desh me bahesh hoti rahti hai, aur yahi ummed hai ki aage bhi hoti rahegi, lekin pichle dino Amir khan release hui film 3 idiots ne is bahesh ko aur tez kar diya hai, aur hamari moolyankan wyawastha par sawal khada kar diya hai, aur sawal sahi bhi hai kyonki hamari jo shiksha pranali hai wo kafi purani hai jise aaj bhi ghaseeta jar aha hai. Agar kuch badlao hua bhi hai to wo school ki building me class room ke furniture me ya architecture me. Jabki hamse alag paschimi deshon me chaatron ko apni pasand se visae chunne ki azadi hai. Aur ye bilkul sahi tariqa hai kyonki agar hum apni pasand se apna visae chunenge to hamari kamyabi ki garanti kahin zyada badh jati hai .

    Hamare desh me ek class me salbhar me ek bar exam dena hota hai joki hamari safalta ya vifalta ka maapdand hota hai. Ab maan lijiye koi baccha exam ke waqt beemar ho jaye ya wo chotil ho jaye to uska asar uski padhai par padega jiske karan uske number ya to kam ayenge ya fir wo fail ho jayega aur isi aadhar par hum use kamjor maan lete hain, ye bilkul galat hai. hame ek class me kam se kam 3 bar exam lena chahiye aur mulyankan teeno exam ke aadhar par hona chahiye taki agar baccha kisi karan se ek bar exam na de paye to bache hue do exam me wo mehnat karke paas ho jaye taki uska saal kharab na ho.

    Aaj hamare desh me school, collegon aur vishvidyalyon ka bahut teji se vistaar ho raha hai, par usme adhikans aese hain jo sarkar dwara banaye gaye maapdand ka palan nahin kar rahe jiske karan hajaron chatron ko shiksha se sambandhit bunyaden suwidha bhi nahi mil pati, yahan par sarkar ko sochna hoga kuch thos kadam uthaye jayen, taki is tarah ke school-collegon par pabandi lag sake. Idhar sarkar kuch harkat me zaroor dikhi hai aur usne 4 4 deemed university ki manyata radd karne ki baat ki hai.

    3 idiots film me dikhaya gaya hai ki aaj hamare shikshak chatron ko zyada se zyada number lane ke hisab se padhane me lage hain aur chatra bhi unhi ka anusaran kar rahe hain .jabki hamare shikshak nai aavishkar ke liye protsahit nahi karte joki ghatak hai, wahin dusri taraf usi ko talented mana jata hai jinke 70-80 pheesdi se adhik ank hote hain, jabki ye maapdand bilkul galat hai, shikshakon ko nae avishkar ke liye bacchon ko protsahit karna chahiye aur chatron ko unki creativity ke aadhar par unke intelligent hone ya n hone ka maapdand hona chahiye.

    Hamara samaj bhi is shiksha pranali ke liye bahut had tak jimmedar hai, mata-pita apni pasand ke anusar bacchon ko course karwana chahte hain,wae is baat ka khayal nahi karte ki akhir bacche ko kya pasand hai aur majburan bacche ko apni pasand na hote hue bhi course karna padta jiske karan wifalta haath lagti hai aur isi wajeh se aatmhatya ki ghatnaen bhi badh rahi hai. ab waqt aa gya hai ki hm apni soch ko badle aur badalti hui duniya ki nazakat ko bhi samjhe, bacchon ko unki pasand ke mutabik course ya vishae chunne ki azadi den.. yahan school aur college ko bhi thoda sochna hoga aur nae creative programme ko badhawa dena hoga taki bacche in programme me hissa le aur nai khojon ke liye tatpar rahe.

    Isliye desh me pratibha badhane ke liye school aur college level par mulyankan pranali ko badalna chahiye sath hi sath chatron ko apni pasand ke mutabik course chunne ki aazadi deni chahiye isse chatron par pariccha ka bojh kam hoga aur wae mansik roop se majboot bhi banenge. iske liye shikshakon ko bhi nai jankariyon se laes karna hoga. Isme mukya bhumika college ki hogi aur iske liye sarkar ko bhi adhik dhyan dena hoga.

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  4. shiva sir i'm also a student of 10 and i really inspired alot by your views

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  5. Sir aapki help chahiye, ek primary stubent Bhrashtachar ke bare maii kya mehsus karta hai??

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  6. bahut achhaa hai parantu shiksha ka badalta swarup sakaratmak hai is par aap kya kahenge....

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  7. sir please send your article on my whtp no.-9414957775

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