पर्यावरण प्रदूषण
उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में विश्व स्तर पर हुई ``औद्योगिक क्रान्ति'' के बाद से तो `पर्यावरण प्रदूषण' की समस्या दिन व दिन गम्भीर ही होती जा रही है। वायुमण्डल में सभी गैसें एक निश्चित मात्रा में होती हैं परन्तु वायुमण्डल में कार्बन डाईआक्साइड, कार्बन मोनोआक्साइड, सल्फर डाईआक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड व क्लोरोफ्लोरो कार्बन की मात्रा में अत्यधिक वृद्धि हो जाने के कारण इन गैसों का संतुलन बिगड़ रहा है जिसके फलस्वरुप हरितगृह प्रभाव के कारण उत्पन्न ग्लोबल वार्मिंग एवं ओजोन परत का क्षरण जैसी समस्याऐं उभरी हैं। इन समस्याओं से निबटने के लिए सम्पूर्ण विश्व के मानव समुदाय को एकीकृत रुप से प्रयास करना होगा।
पर्यावरण हमारे चारों ओर के जैविक और अजैविक कारकों का सम्मिश्रण है। समस्त पेड़- पौधे और जीव जन्तु जैविक कारक के अन्तर्गत आते हैं जबकि वायु, जल तथा भूमि अजैविक कारकों में आते हैं। जैविक व अजैविक कारक जब तक प्रकृति में साम्यावस्था में रहते हैं तब तक ``पर्यावरण सन्तुलन'' बना रहता है, परन्तु जब दोनों कारकों में से किसी भी कारक में प्राकृतिक या अप्राकृतिक रुप से कमी या वृद्धि हो जाती है तो साम्यावस्था विचलित हो जाती है। इसी `साम्यावस्था के विचलन' को ही `पर्यावरण-असन्तुलन' तथा पर्यावरण के विभिन्न घटकों में किसी प्रकार की विकृति को `पर्यावरण-प्रदूषण' कहते हैं।
अति ठंडे प्रदेशों व ऊँचे पर्वतों पर जहां तापमान काफी कम होता है, सब्जियों व फलों आदि की खेती के लिए शीशे के घरों का निर्माण किया जाता है जिन्हें हरित गृह भी कहते हैं। ये हरित गृह पौधों के लिए आवश्यक ऊष्मा सूर्य से प्राप्त करते हैं। सूर्य से आने वाला ``लघु तरंगीय विकिरण'' शीशे की दीवारों को पार करके हरित गृह के अन्दर पहुँच जाते हैं परन्तु जब इनकी वापसी होती है तो वह दीर्घ तरंगों के रुप में होती है। अत: ये शीशे की दीवारों को पार नहीं कर पाती हैं और सूर्य विकिरण की ऊर्जा हरित गृह के अन्दर ही एकत्रित होकर पौधों की वृद्धि में सहायता करती हैं। इसी प्रकार वायुमण्डल में उपस्थित कार्बन डाईआक्साइड, मीथेन व नाइट्रस आक्साइड गैसें विकिरणों को पृथ्वी से अंतरिक्ष में जाने के मार्ग में बाधा डालती हैं जिससे ये विकिरण अंतरिक्ष में नहीं पहुँच पाते हैं क्योंकि ये विकिरण उपर्युक्त गैसों द्वारा शोषित कर लिये जाते हैं। कार्बन डाईआक्साइड, मीथेन व नाइट्रस ऑक्साइड को ताप अवशोषक गैस या ग्रीन हाउस गैसें भी कहते हैं। इन गैसों की मात्रा में निरन्तर वृद्धि हो रही है जिससे पृथ्वी के तापमान में भी ०.१ डिग्री सेल्सियस प्रति दशक के हिसाब से वृद्धि होती जा रही है। जीवाश्म ईधनों के दहन में निरन्तर वृद्धि होने से कार्बन डाईआक्साइड की मात्रा में भी वृद्धि होती जा रही है। इस वृद्धि के लिए मुख्य रुप से संसार के सबसे बड़े प्रदूषक देश अमेरिका, यूरोपीय संघ व जापान ही उत्तरदायी हैं। IGPCC (Inter Governmental Panel on Climate Change) का कहना है कि संसार को खतरनाक जलवायु परिवर्तन से बचाने के लिए इसमें तुरन्त ६० प्रतिशत कमी की जरुरत है।
१ दिसम्बर १९९७ में क्योटा (जापान) में सम्पन्न जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में हरित गृह गैसों के उत्सर्जन में विकसित देश वर्ष १९९० के स्तर से ५.२ प्रतिशत औसतन कटौती पर सहमति हुई जबकि यूरोपीय संघ ने १५ प्रतिशत कटौती का प्रस्ताव रखा था। इस सम्मेलन में जिन छ: हरित गृह गैसों की पहचान की गयी है वे हैं - कार्बन डाईआक्साइड, क्लोरोफ्लोरो कार्बन, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, ओजोन एवं जलवाष्प। गैस उत्सर्जन को रोकने हेतु ``स्वच्छ विकास कोष'' के गठन पर भी सहमति हुई। विश्व भर में कुल हरित गृह गैसों के उत्सर्जन में भारत का योगदान ०.९० प्रतिशत है जबकि अमेरिका का योगदान २५.३७ प्रतिशत है।
जापान की टोयोटा कम्पनी ने `प्रियस' नाम की कार बनाई है जिसमें बिजली तथा गैसोलीन दोनों का ही इस्तेमाल होता है। यह एक परिस्कृत कार है। परम्परागत इंजनों से आधी CO२ इस कार से निकलती है। इस प्रकार के और अधिक प्रयोगों के अतिरिक्त CO२ की मात्रा में वृद्धि को नियन्त्रित करने का एक मात्र व सरल उपाय वृक्षारोपण ही है। बढ़ते नगरीकरण के कारण जहां वृक्षों की कटाई की जा रही है वहीं दूसरी ओर इन्हें जलाने से दोहरी हानि हो रही है। ग्लोबल वार्मिंग से ध्रुवों के हिम के पिघलने का खतरा भी बढ़ गया है जिसके फलस्वरुप सागरतल में वृद्धि और फिर कुछ द्वीपों जैसे मारीशस, लक्षद्वीप आदि के जलमग्न होने की सम्भावनाएँ प्रबल हो रही हैं। जापानी पर्यावरण एजेन्सी ने अनुमान लगाया है कि जब वाहन रास्ते में पेट्रोल बचाने के लिए इंजन को बन्द कर देते हैं तो उस समय सबसे ज्यादा कार्बन डाईआक्साइड गैस निकलती है। उनके अनुसार यदि हर वाहन एक दिन में रास्ते में केवल एक मिनट ही इंजन बन्द न करें तो कार्बन डाईआक्साइड गैस का उत्सर्जन २ लाख २५ हजार २०० टन कम हो जायेगा।
वायुमण्डल में ओजोन परत जो कि समताप मण्डल में स्थित है, के क्षय से ऑस्ट्रेलिया, उत्तरी यूरोप आदि में पराबैगनी किरणों से होने वाले चर्म कैंसर की घटनाऐं बढ़ रही हैं। ओजोन एक नीले रंग की अस्थिर गैस है जिसके एक अणु में ऑक्सीजन के तीन परमाणु होते हैं। ८० से १०० कि०मी० की ऊँचाई पर ऑक्सीजन के अणु सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों द्वारा विघटित होकर स्वतन्त्र ऑक्सीजन परमाणु नवजात ऑक्साइड बनाती हैं। ये ऑक्सीजन परमाणु (O) आपस में मिलकर ऑक्सीजन O२ तथा ऑक्सीजन अणु से मिलकर ओजोन बनाते हैं। इस प्रकार ओजोन परत बन जाती है जो कि सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों को अवशोषित कर लेती हैं। इस प्रकार ये ओजोन परत पृथ्वी पर जीवन को सुरक्षित रखने के लिए रक्षा कवच की तरह कार्य करती हैं।
इस प्रकार से निर्मित ओजोन परत का विघटन भी पराबैंगनी किरणों से होता है जिसके फलस्वरूप ऑक्सीजन का एक अणु व एक परमाणु बनता है। ये ऑक्सीजन परमाणु पुन: ऑक्सीजन अणु से मिलकर ओजोन बना लेते हैं। इसी ओजोन के निर्माण व विखंडन की क्रिया में सूर्य की पराबैंगनी किरणों की ऊर्जा की खपत हो जाती है और वे पृथ्वी के धरातल तक नहीं पहुँच पातीं हैं। परन्तु वायुमण्डल में क्लोरोफ्लोरो कार्बन व नाइट्रोजन ऑक्साइड की वृद्धि के कारण ओजोन परत का निरन्तर क्षय होता जा रहा है। सुपरसोनिक जैट विमानों की तीव्र गति भी ओजोन को ऑक्सीजन में परिवर्तित कर देती है। एयरकंडीशनर, रेफ्रिजरेटर, फोम, प्लास्टिक, अग्निशामक, प्रसाधन सामग्रियाँ उत्सर्जित होती हैं और हल्का होने के कारण ये वायुमण्डल में ऊपर उठ जाती हैं। ओजोन परत के क्षय के भावी परिणामों का पूर्वानुमान करके पर्यावरणविदों ने विश्वस्तर पर क्लोरोफ्लोरो कार्बन के प्रयोग व उत्पादन मे कमी लाने तथा साथ ही साथ वैकल्पिक पदार्थों की आवश्यकता पर बल दिया है जिससे ओजोन परत के क्षय को रोका जा सके। विकसित देशों द्वारा यदि इस दिशा में अब भी ढील दी जाती रही तो पर्यावरण प्रदूषण के कारण मानव के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लग जायेगा। अत: यह मानव समुदाय के लिए परम आवश्यक है कि वह प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए निम्न बिन्दुओं पर सार्थक कदम उठावें -
• वृक्षारोपण करना।
• वाहनों में कैटालिटिक कन्डक्टर लगाकर सीसा की मात्रा को नियंत्रित करना।
• साइक्लान कलेक्टर,इलेक्ट्रोस्टेटिक प्रेसिपिटेटर,हाई एनर्जी स्क्रबर तथा फैब्रिक फिल्टर के द्वारा भी
अत्यंत छोटे आकार के कणों को वायुमण्डल में जाने से रोकना।
• उद्योग में धुऐं की चिमनियों में बैग फिल्टर का प्रयोग करके कणिकीय पदार्थों को वायुमण्डल में जाने
से रोकना।
bahut badhiya jankaari
ReplyDeleteparyawaran prahari ko mai badhai deta hoo
bahutbahutaccha hai
ReplyDeletemujhe esi hi jaankari chahiye thi