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Monday, November 2, 2009

सहायक रमेश

दिल्ली में रहने वाला रमेश एक होनहार लड़का है । रमेश जब बहुत छोटा था तभी ईश्वर ने उसके माँ-बाप का साया उसके सिर से छीन लिया उसका अब इस संसार में कोई सहारा नहीं था , कहते है न कि जिसका कोई सहारा नहीं उसकी रक्षा ईश्वर करता है । बचपन से ही अनाथ होने के कारण उसने अपने सभी कार्यों और विचारों में बुद्धिमत्ता विकसित कर ली थी । वैसे तो वह था अनाथ किन्तु उसने कभी भी अपने आप को अनाथों की तरह असहाय नही माना । वह सदैव अपने बल पर , अपनी बुद्धि के बल पर अपने कार्यों को करता था । जैसे - जैसे वह बड़ा होने लगा वैसे -वैसे वह दूसरे बेसहारा और अनाथ लोगों की सहायता करने लगा उसने अपने जीवन का एक लक्ष्य बना लिया था कि जितना उससे हो सकेगा वह गरीब अनाथ और बेसहाराओं की मदद करेगा। धीरे -धीरे समय बीतता गया और रमेश बड़ा होने लगा अब वह एक कुशल टेलर है। रमेश जब भी किसी अनाथ को देखता तो वह उस अनाथ की मदद अवश्य करता था । अब उसकी उम्र विवाह योग्य हो चुकी थी एक दिन उसका विवाह भी हो गया । लड़की के माता-पिता ने रमेश की दूसरों के प्रति सद्व्यवहा और एक एक मेहनती इन्सान को देखकर ही उन्होंने अपनी लड़की का विवाह उसके साथ कर दिया था । रमेश की पत्नी भी काफी समझदार थी उसकी पत्नी भी उसके सभी कार्यों में बराबर सहयोग करती करती थी । रमेश की पत्नी भी सिलाई का कार्य जानती थी वह घर पर ही रहकर औरतों के कपड़ो की सिलाई किया करती थी और रमेश अपनी दुकान पर । वे दोनों अपना जीवन खुशी-खुशी से व्यतीत कर रहे थे। उन दोनो की जितनी भी कमाई होती थी उसमें से अपने खाने -खर्चों को निकालकर वे दोनों बाकी के पैसों को गरीब, बेसहारा अनाथ लोगों की सेवा में लगा देते थे।

एक दिन की बात है जब रमेश अपनी दुकान से घर जा रहा था रास्ते में उसने देखा कि एक बेसहारा बूढा को देखा जो चलने में असमर्थ था उसे चलने में बहुत परेशाना हो रही थी । वैसे तो वहाँ पर बहुत लोग थे किन्तु किसी को इतनी फुरसती ही नहीं कि कोई उस बूढ़ो आदमी की मदद कर दे । जैसे ही रमेश ने देखा कि वह वृद्ध परेशान है वह उनके पास गया और उन्हें सहारा देते हुए उन के घर तक छोड़कर आया । वृद्ध ने उसे आशीर्वाद देते हुए कहा बेटा सदा खुश रहो अगर हर व्यक्ति तुम्हारी तरह दूसरों की सहायता करे तो इस दुनिया से दुखों का ही अंत हो जाएगा लेकिन आजकल तुम्हारे जैसे लोग बहुत कम ही मिलते है जो दूसरो के दुख को अपना समझकर उसे उस दुख से बाहर आने में मदद करते हैं । वृद्ध महोदय को घर छोड़ने के कारण संजय को घर आने में थोड़ी देरी हो चुकी थी जब पत्नी ने इसका कारण पूछा तो संजय ने सारी घटना अपनी पत्नी को बता दी । रमेश के इस कार्य से उसकी पत्नी ने भी उसकी सराहना की और उसे मुँह-हाथ धोकर आने के लिए कहकर खाना बनाने के लिए चली गई । कुछ समय बाद रमेश मुँह- हाथ धोकर आया तब तक उसकी पत्नी ने खाना लगा दिया था । दोनों खाने के लिए बैठे ही थे कि दरवाजे के बाहर से किसी भिखारी की आवाज सुनाइ दी रमेश ने अपनी थाली में से दो रोटी और कुछ चावल ले जाकर उस भिखारी को दे दिए और आकर उसने स्वंय भोजन किया । एक भूखे को भोजन कराकर एक असहय की सहायता करके उसे जो आत्मसंतुष्टि हो रही थी उसे वह व्यक्त नहीं कर सकता था । रमेश की पत्नी भी सदैव उसके कार्यों में उसकी बराबर सहायता करती थी । इस प्रकार संजय और उसकी पत्नी सदैव गरीब ,असहाय बेसहारा लोगों की सहायता करते हुए अपना जीवन व्यतीत करने लगे। जीवन का सच्चा सुख तो सदैव दूसरों की सहायता करने में ही मिलता है। जो दूसरों की सहायता करते हैं ईश्वर भी उनकी सहायता करते हैं । मनुष्य को अपने जीवन में कभी भी अहंकार नहीं करना चाहिए क्योंकि जो व्यक्ति अहंकार करता है वह कभी भी सफल नहीं हो सकता । जो दूसरों के सुख-दुख बांटते हैं ईश्वर भी उनके सुख-दुख का ख्याल रखता है । इसीलिए तो कहा गया है कि मानव सेवा ही माधव सेवा है ।जो व्यक्ति मानवों का तिरस्कार करके ईश्वर को प्रशन्न करने का प्रयास करते है ईश्वर ऐसे लोगों से कभी प्रशन्न नहीं होता और न ही ईश्वर ऐसे लोगो को पसंद करता है।

2 comments:

  1. wwwwwwwwwwoooooooooowwwwwwwwww app ka likha hua तेरा साथ kavita bahut achha laga mujhe aur pyp ka profiles hindi mein likhna bhi bahut achha idea hai i think u r the first person to do this gud gud
    vasundhara v

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  2. sahayak ramesh' bahut acha kahani hai sir.
    sach hai aaj kal ese log bahut kam hai. sahanubhooti mahan gun hai.
    ravali

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