अनुराग हैदराबाद के नामपल्ली रेलवे स्टेशन के
वेटिंग रूम में बैठकर प्रेमचंद का
मशहूर उपन्यास गोदान बड़ी तल्लीनता से पढ़ रहा था| स्टेशन पर चारों ओर लोगों की भीड़
लगी हुई थी। वेटिंग रूम में वह अकेला नहीं था, कुछ
लोग उससे पहले से बैठे थे, कुछ लोग आ रहे थे। उसने अपने चारों ओर नज़र दौडाई वहां
चारों तरफ भीड़ ही भीड़ दिखाई दे रही थी, परंतु
इस भीड़ में हर एक व्यक्ति अकेला नज़र आ रहा था। किसी को किसी और की सुध
नहीं। उसने वेटिंग रूम के बाहर इधर-उधर
देखा, चाय की
दुकान, फल
की दुकान, मैग्ज़ीन
कार्नर और जगह-जगह पानी पीने के नल, हर
जगह विशाल जन समूह। सभी लोगों को जल्दी हो रही थी, किसी की ट्रेन प्लेटफार्म पर खडी है उसे उसमें चढ़ने की जल्दी है, कोई
ट्रेन से उतारा है उसे अपने घर जाने की जल्दी है|
इस भीड़ में हर कोई पहले अपनी मंजिल की तरफ जाना चाहता है| प्लेटफ़ॉर्म पर
चारो तरफ भागा-दौड़ मची थी|
तभी उद्घोषणा हुई कि आन्ध्र
प्रदेश एक्सप्रेस निश्चित समय से बीस मिनिट के विलंब से चल रही है। अनुराग को इसी
ट्रेन की प्रतीक्षा थी,
ट्रेन के आने में विलम्ब को सुनकर वह निराश हो गया| वह कर भी क्या सकता था? बीस मिनिट के अंतराल के
पश्चात ट्रेन प्लेटफार्म एक पर आ गई| वह अपनी बोगी
में जाकर सीट पर जा बैठा|
गर्मी का मौसम में ए.सी. की ठंडी हवा मिल जाए तो क्या कहना| थोड़ी देर में ट्रेन ने हैदराबाद का नामपल्ली स्टेशन छोड़ दिया। ट्रेन
चलने के कुछ समय बाद उसने अपने बैग से एक किताब निकाली उस किताब में रखी एक तस्वीर
को निहारने लगा, तस्वीर को निहारते –निहारते उसकी आँख लग गई .....वह अपने परिवार
के साथ केदारनाथ जाने की तैयारी में लगा है –
अनुराग – अरे सुमित क्या हुआ तुम अभी तक तैयार नहीं हुए ...?
सुमित – नहीं पापा मुझे नहीं जाना ......
अनुराग – अब क्या हुआ तुम्हें .....कल तक तो तुम लोग केदारनाथ
जाने के लिए जिद्द किये बैठे थे....
सुमित- हाँ पर न जाने क्यों मेरा मन नहीं कर रहा आप लोग चले
जाओ .....मैं यहीं रहता रहता हूँ|
सुमित की बातें सुनकर अनुराग ने अपनी पत्नी हेमा को बुलाया|
कुछ देर में हेमा उस कमरे में आ गई जहाँ सुमित और अनुराग बातें कर रहे थे|
हेमा – क्या बात है ....
अनुराग- सुनों तो सुमित क्या कह रहा है ....कह रहा है की वह
हमारे साथ केदारनाथ नहीं चल रहा .....
हेमा – क्या हुआ तुम्हें ....कल तक तो तुम बड़े उत्साहित थे
..आज क्या हो गया?
सुमित – पता नहीं माँ पर मेरा मन नहीं कर रहा ....
हेमा – ये भी तुम्हारी कोई बात हुई ....अब जब चलने का समय हुआ
तुम्हारा मन नहीं कर रहा.... चलो तैयार हो जाओ| घर पर तुम अकेले बोर हो जाओगे
.....
सुमित का मन न होते हुए भी वह अपने माता-पिता के साथ केदारनाथ
की यात्रा के लिए चल दिया| रास्ते में
ऊँचे-ऊँचे पहाड़, नदी, तालाबों को देखकर सुमित ने मन ही मन सोचा –“अच्छा किया जो मैंने
मम्मी-पापा की बात मान ली और उनके साथ आ गया नहीं तो यह सब कैसे देखने को मिलता|” दूसरे दिन वे लोग केदारनाथ
जा पहुंचे| वहां चरों तरफ बम भोले के जयकारे सुनाई दे रहे थे| सभी श्रद्धालु जल्द
से जल्द भोले के दर्शन करने की लालसा लिए भोले बाबा का जयकारा लगा रहे थे| घंटों
कतार में खड़े रहने के बाद अनुराग और उसके परिवार ने भोले बाबा के दर्शन किये उनके
दरबार में माथा टेका| कुछ समय बाद वे लोग मंदिर से बाहर आ गए| मंदिर से बाहर आकर
उन्होंने वहां के दर्शनीय स्थलों को देखने का मन बनाया| वहां से उन्होंने एक कार
किराए पर लेकर चले गए| ऊँचे –ऊँचे पहाड़ चारों तरफ हरियाली ही हरियाली सुनसान
रास्ते बल खाती सड़कें | करीब एक घंटे के सफर के पश्चात वे लोग एक दर्शनीय स्थल पर
जा जा पहुंचे| कार को छोड़कर वे लोग पहाड़ पर जा पहुंचे| पहाड़ पर खड़े होकर सभी लोग
एक दूसरे की फोटो खीच रहे थे| पहाड़ के ऊपर से धरती का नज़ारा अद्भुद नजर आ रहा था,
पहाड़ों की चोटियों से गिरता पानी का झरना| वहां से देखने पर लग रहा था जैसे धरती
पर हरे रंग की चादर बिछी हो| जहाँ भी नज़र जाती वहां हरियाली ही हरियाली नज़र आ रही
थी| कितना मनोहर दृश्य था वह....| हर कोई उस दृश्य को अपने- अपने कैमरे में कैद कर
लेना चाह रहा था| अचानक मौसम में ऐसा बदलाव आया कि लोग कुछ समझ ही नहीं पाए| खराब
होते मौसम के कारण वहां पर आए सभी पर्यटकों में खलबली मच गई| हर कोई जल्द से जल्द
वहां से बाहर सुरक्षित स्थान पर जाना रहा था|
अनुराग भी अपने परिवार के साथ सुरक्षित स्थान की तलाश में
वहां से चल दिया| वे लोग कुछ दूरी पर गए ही होंगे की अचानक पहाड़ की छोटी से तेज
बहाव से साथ पानी आता दिखाई दिया| तेज बहाव से आते पानी को देखकर सभी लोग जल्द से
जल्द किसी सुरक्षित स्थान पर पहुँचना चाह रहे थे| सुरक्षित स्थान की खोज में जाने
के कारण वे लोग रास्ता भटक गए| धीरे-धेरे रात का अन्धेरा चारो तरफ छाने लगा|
अन्धेरा बढ़ रहा था और ये लोग जंगल में रास्ता भटक गए थे| रात के करीब नौ बजे होंगे
कि तेज बारिश शुरू हो गई| एक तो रास्ता भटके लोग उस जंगल से बहरा जाने का रास्ता
खोज रहे थे दूसरी तरफ तेज बारिश ने उनकी और मुसीबत खडी कर दी थी| तेज बारिश से
बचने के लिए जिसे जिस पेड़ के नीचे शरण मिली वह वहीं अपने लोगों के साथ खड़ा हो गया| पेड़ भी कितनी देर बारिश के पानी को रोक सकता
है| बारिश कम होने के स्थान पर धीरे –धीरे ओर तेज़ होती जा रही थी| बढ़ते तूफ़ान में
सभी की साँसे अटकी हुई थी| रह रहकर तेज़ कडकडाती बिजली.....| पानी का बहाव पहाड़ पर
बढ़ता ही जा रहा था| अनुराग अपने परिवार के
साथ के विशालकाय वृक्ष के नीचे खडा था| तेज बारिश के कारण सभी लोग पूरी तरह से भीग
चुके थे| बारिश में भीगते रहने के कारण
उनका शरीर ठण्ड से कांपने लगा लागा था| चारो तरफ अँधेरा ही अन्धेरा
सुमित- मम्मी अब क्या होगा ....?
हेमा – कुछ नहीं होगा सब ठीक हो जाएगा ....थोड़ी देर में बारिश
बंद हो जाएगी ..और हम लोग .....
अनुराग – सब ठीक हो जाएगा ...घबराओ मत ...भोले नाथ सब ठीक
करेंगे .....
किसी तरफ वह भयानक काली रात कटी| सुबह होते होते पानी का बहाव
और तेज़ हो चुका था, इधर पानी का बहाव बढ़ता जा रहा था उधर बारिश है की थमने का नाम
ही नहीं ले रही थी| इस दृश्य को देखकर हर किसी का मन किसी अनहोनी की आशंका से काँप
उठता| सारी रात पानी में खड़े रहने और भीगने के कारण हेमा की तबीयत खारब होने
लगी|
हेमा – ठण्ड से कापती आवाज़ में सुनिए जी ...अब मुझसे और नहीं
चला जा रहा ....
अनुराग – हिम्मत रखो सब ठीक हो जाएगा ...थोड़ी-बहुत देर में
रास्ता मिल ही जाएगा......घबराओ मत ...कहते हुए उसका गला भर आया|
सुमित – माँ ..सब ठीक हो जाएगा ...हम जल्दी ही इस जंगल से
बाहर निकल जाएगे ....हेमा ने सुमित की तरफ देखा और प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते
हुए बोली –
हेमा – अ...हाँ ...हाँ सब ठीक हो जाएगा....कहते हुए उसकी
आँखों से आंसू छलक आए....
इधर हेमा की तबीयत खाराब हो चुकी थी उधर दूसरे लोग जंगल से
बाहर निकलने के लिए रास्ता खोजने की जी जान से कोशिश कर रहे थे| चारों तरफ एक डर
का माहौल था हर किसी के चेहरे पर एक अनजान अनहोनी की छाया साफ़ देखी जा सकती थी|
अनुराग और सुमित ने हेमा के दोनों हाथ अपने-अपने कन्धों पर रखकर उसे सहारा देखे
हुए रास्ते की खोज में चल दिए| इस तरह भटकते-भटकते सुबह से शाम हो चुकी थी लेकिन
रास्ते का कहीं नामोनिशान न था| दो दिन के भूखे-प्यासे सभी लोग अब चलने में अपने
आप को असमर्थ महसूस कर रहे थे| थक हार कर एक चट्टान पर बैठ गए| जैसे-जैसे समय
बीतता जा रहा था वैसे-वैसे हेमा की तबीयत भी खराब होती जा रही थी| दो दिन से पानी
में भीगने के कारण सुमित की तबीयत भी खराब होने लगी थी| सुमित ने अपने बिगड़ते
स्वास्थय का आहास अपने माता- पिता को नहीं होने दिया| उसने किसी न किसी तरह अपने
आप को संभाले रखा...लगातार अपनी माँ को हौसला बनाए रखने को कहता रहता .......| इन
दो दिनों के हालातों को देखकर हेमा को आभास हो गया था की शायद अब वह नहीं बचेगी|
शायद हेमा का आभास सही था.....उसने दो दिन और दो रातें किसी न किसी तरह काट दी
लेकिन तीसरे दिन तक आते आते उसकी साँसों
ने उसका साथ छोड़ दिया| हेमा को मृत देखकर अनुराग और सुमित के पैरों तले की ज़मीन
खिसक गई ...
सुमित – माँ .....माँ ...आँखे खोलो ......पापा देखों ना माँ
को .....कुछ बोल नहीं रही ....माँ ..माँ कुछ बोलो ना ......सुमित माँ के शव से
लिपटकर फफक-फफकर रोने लगा ....
हेमा को मृत देखकर अनुराग का भी अपने आप पर काबू न रख सका वह
भी फूट-फूटकर रोने लगा| काफी देर रोने के बाद अनुराग ने सुमित को अपने सीने से
लगाकर चुप कराया| जैसे उसने सुमित को अपने सीने से लगाया उसने देखा कि उसका बदन तो
आग के अंगारे की तरफ तप रहा है|
अनुराग –अरे ...तुम्हें तो तेज़ बुखार है.........
सुमित को अभी अपने बुखार का कोई ख्याल नहीं आ रहा था वह
बार-बार माँ...माँ कहकर रोए जा रहा था| अनुराग उसे बार –बार धीरज बंधाता
लेकिन......... सारा दिन रोते-रोते गुजर गया| शाम तक तो आँखों से आंसूं भी सूख
गए| सारा दिन माँ की मृत्यु पर विलाप
करते-करते सुमित की तबीयत और खाराब होती जा रही थी| एक तरफ मृत पत्नी दूसरी तरफ
जवान बेटे का बिगड़ता स्वास्थ्य.... | बारिश है की बंद होने का नाम ही नहीं ले रही
थी| दोनों बाप बेटे चौबीस घंटे उस शव के पास ही बैठे रहे| इधर दूसरे लोग रास्ते की
खोज में लगे हुए थे| चौबीस घंटे के बाद शव फूलने लगा| दोनों बाप-बेटे उस शव के पास
शोकातुर बैठे थे| तभी एक व्यक्ति ने उन्हें
आवाज दी– “भाई साहव इस शव के साथ बैठे
रहोगे तो थोड़ी बहुत देर में आप लोग भी शव
बन जाओगे......मेरी बात मानिए इसे यही छोड़कर यहाँ से बाहर निकलने का रास्ता खोजिए|” अनुराग को उस व्यक्ति की
बात समझ में आई ....उसने सुमित को वहां से चलने का आग्रह किया लेकिन सुमित मृत माँ
को इस प्रकार लावारिश छोड़ने को कतई तैयार नहीं था|
अनुराग – चलो बेटा ........शायद ईश्वर को यही मंजूर है
.....कहते हुए वह भी फूट-फूटकर रोने लगा...
सुमित – नहीं ....पापा .....मम्मी को यहाँ छोड़कर नहीं जा सकते
.......मम्मी ......उठो ना.....चलो .....हमारे साथ|
अनुराग ने सुमित को अपनी छाती से लागा लिया| उसे समझाया कि
उसकी माँ अब इस दुनिया में नहीं रही| उसे अब अपनी जान बचाने के लिए यहाँ से आगे
चलना ही होगा| सुमित है की मानने को तैयार ही नहीं हो रहा था| इधर उसका भी
स्वास्थ्य हर पल बिगड़ता जा रहा था| किसी न किसी तरह अनुराग उसे समझकर वहां से भारी
मन से आगे चल पडा.....आगे चल तो रहा था लेकिन बार –बार पीछे मुड़कर अपनी मृत पत्नी
को देखता जा रहा था| उसके कदम आगे बढ़ने को तैयार ही नहीं हो रहे थे लेकिन बेटे को
सुरक्षित स्थान पर ले जाना भी है यही
सोचकर बाप-बेटे सारा दिन उस जंगल में भटकते रहे लेकिन रास्ता कहीं नहीं मिला| तीन
दिन से भूखे-प्यासे होने के कारण उनमें अब और चलने की ताकत नहीं थी| बेटे का पल
बिगडती हालत को देखकर अनुराग की समझ में नहीं आ रहा था कि वह किस तरफ अपने बेटे की
जान बचाए| पत्नी को तो वह पहले ही खो चुका है अब बेटे को .........सोचकर ही उसके
रोंगटे खड़े हो जाते हैं| अब तक अपने आप को संभाले रखने वाला सुमित अपनी खाराब होती
हालत से और लड़ने में असमर्थ होता नज़र आ रहा था| धीरे –धीरे उसकी आँखें बंद हो रही
थी| अनुराग से उसकी हालत देखी नहीं जा रही थी| उसने जीवन में कभी आपने आप को इतना लाचार नहीं पाया था जितना आज ......
अनुराग – सुमित .....बेटा हिम्मत रखो सब ठीक हो जाएगा
.....भगवान कोई न कोई रास्ता ज़रुर निकालेंगे ...बस तुम हिम्मत मत हारों कहते हुए
वह उसके लिपट कर रोने लगा .......|
सुमित – पा.....प ..पापा ....मुझे बचा लो....पापा बचा लो मुझे
.....मैं जीना चाहता हूँ .....म ....म...मैं मरना नहीं चाहता .....
अनुराग – सब ठीक हो जाएगा ...मरने की बात मत बोल मेरे बच्चे
.....तुम लोगों के बिना मैं कहते...कहते वह सुमित को अपने सीने से लगाकर
बिलख-बिलखकर रोने लगा......अब भी उसका शरीर अंगारे की तरह तप रहा था......
अनुराग ने उस दिन सभी देवी-देवताओं से अपने बेटे के जीवन की भीख माँगी| हर पल
बेटे की हालत नाजुक हो जा रही
थी| ठण्ड में ठिठुरते --ठिठुरते
वह रात भी कटी लेकिन पानी में भीगने और ठण्ड के कारण बेटे की साँसें टूट रही थी वह
उसे झूठा दिलासा दे रहा था,
उसे मौतसे लड़ने का हौसला दे रहा थ| वह भी
भूखा-प्यासा कितना मौत
से लड़ता आखिरकार उसकी साँसों ने भी उसका साथ छोड़ दिया| पहले पत्नी की
मृत्यु फिर जवान बेटे की मृत्यु ने अनुराग को पुरी तरह से झकझोर रख दिया| उसने
जीवन में कभी कल्पना भी नहीं की होगी कि उसके जीवन में ऐसी भी स्थिति आएगी| वह
सारी रात बेटे के शव के साथ बैठा रहा| अगले दिन जब बारिश बंद हुई तो कुछ फ़ौज के
सैनिक खोजते हुए वहां तक पहुँचे|
फ़ौजी- चलिए आप यहाँ से चलिए ..
अनुराग – भाई साहब मेरे बेटे को भी ले चलिए ....ना
फ़ौजी – देखिये अभी फिल हाल तो हम जीवित लोगों को ही साथ ले जा
सकते हैं ...जो मृत हैं उन्हें बाद में ले जायाजेगा ....आप जल्दी चलिए समय बहुत कम
है और वैसे भी मौसम खराब होता जा रहा है|
अनुराज – नहीं मैं अपने बेटे को छोड़कर नहीं जाऊँगा .....
फौजियों के बार-बार समझाने पर अंत में उसने दिल पर पत्थर रखकर
उसे वहीं छोड़ दिया| वह और कर भी क्या सकता था..........|
अचानक शोर से उसकी आखें खुली तो उसने अपने आप को ट्रेन की
बोगी में पाया| उसे बेटे की वह बात याद आने लगी जब उसने केदारनाथ जाने से पहले कही
थी| वह जाना नहीं चाहता था| काश उसने उसकी बात मान ली होती तो शायद आज उसका बेटा
उसके पास होता| पत्नी और बेटे को याद कर उसकी आँखें नम हो आई| दूसरे दिन सुबह दस
बजे ट्रेन नई दिल्ली पहुँच गई|
मूल कथा तक पहुँचने के लिए जो लम्बी पीठिका बनाई गयी है वह निरर्थक लगती है. कहानी को फ्लैश बैक में चलाना था तो फोटो वाली घटना से सीधे आरम्भ किया जा सकता था. कहानी में बाढ़, बीमारी, मृत्यु और शव को छ्प्दने जैसे जो मार्मिक स्थल हैं उन्हें विस्तार देने पर इसमें जान पड सकती है. अभी तो यह अखबारी विवरण भर है.घटनाएं, दृश्य और संवाद जोडिए.
ReplyDeleteशुभाकांक्षी
ऋ.
शव को छोड़ने
ReplyDeletemarmik कहानी ....
ReplyDelete