फोन की घंटी बजी आकाश ने फोन की तरफ देखा घर से फोन था . फोन उठाते ही जो बात उसने सुनी बात सुनकर उसके होश उड़ गए . फोन उसकी बेटी ने यह बताने के लिए किया था कि आज सुबह दादी को दिल का दौरा पड़ा है और उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया है . माँ को दिल के दिल के दौरे की बात सुनकर आकाश अपने सभी काम छोडकर माँ को देखने के लिए तुरंत हवाई यात्रा की टिकट निकलवाकर अमृतसर से चेन्नई के लिए रवाना हो गया . जब से उसने माँ के दिल के दौरे की बात सुनी थी तभी से उसका दिल बैठा जा रहा था .
आकाश की माँ पिछले कई बर्षों से बुढ़ापे की बिमारियों से ग्रस्त थी और पिछले कई महीनों से वे अस्पताल के आई .सी यू में भर्ती थी और आज अचानक दिल का दौरा . किसी अनहोनी की आशंका से उसका दिल घबरा रहा था . हवाई जहाज में बैठा –बैठा वह माँ की सलामती की दुआ कर रहा था .अमृतसर से चेन्नई का सफर पूरा करके वह सीधा अस्पताल गया . जैसे ही वह अस्पताल पहुँचा उसे एक और दुखद घटना का सामना करना पड़ा . अस्पताल में माँ के साथ –साथ पिता जी भी भर्ती थे . घर में जब उसके पिता मोहन को इस बात की जानकारी मिली कि उनकी पत्नी को दिल का बड़ा दौरा पड़ा है. यह खबर सुनकर वे भी हडबडाते हुए अस्पताल जा पहुँचे . आई .सी यू का कमरा पहली मंजिल पर था. वे सीडियों से ऊपर जा रहे कि अचानक उनका पैर फिसल गया और वे सीधे सीडियों से लुढकते हुए नीचे जा गिरे . सीडियों से गिरने के कारण उनकी छाती की पसलियो और पैर की हड्डी में गहरी चोट आई . एक तो बुढ़ापा उस पर से शरीर में इस प्रकार की चोट...... एक तरफ माँ दूसरी तरफ पिता... आकाश को समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर यह हो क्या रहा है . क्या ईश्वर उसका इम्तहान ले रहा .
आकाश के बेटे ने उसे बताया कि दादा जी तो अभी ठीक हैं, आप पहले दादी से मिल आओ . वह माँ से मिलने के लिए चला गया . जैसे ही वह माँ के कमरे के सामने पहुँचा वहाँ पर उसकी पत्नी और बेटी उसे देखते ही रोने लगी , उन्हें रोता देखकर उसकी आँखों में आँसू भर आये पर अपने आँसुओं को किसी तरह रोककर उसने पत्नी और बेटी को सांत्वना देते हुए कहा “ माँ को कुछ नहीं होगा ईश्वर इतना निर्दयी नहीं हो सकता” . पत्नी और बेटी को शांत करके वह माँ से मिलने कमरे के अंदर गया . माँ सो रही थी . जैसे ही उसने माँ का हाथ अपने हाथ में लिया माँ की आँखें खुल गयी . बेटे को सामने देखकर माँ की आँखों से आँसुओं की धार बह निकली . माँ को रोते देखकर उसका दिल भर आया और वह भी अपने आप पर काबू न रख सका . जिस दुःख को वह अब तक सब से छिपाता फिर रहा था आँखों से आँसुओं के रूप में बाहर आने लगा . माँ का सिर अपनी बाँहों में भर कर माँ को चुप करने लगा ...वैसे भी वह माँ का लाड़ला जो था .उसकी आँखों से आँसू छलकते रहे . माँ को शांत करके वह पिताजी से मिलने के लिए गया . पिता के पास जाकर उनकी हालत को देखकर वह फिर अपने आप पर काबू न रख सका .....इधर पिताजी उधर माँ दोनों को एक साथ अस्पताल में देखकर वह टूट सा गया था . जिस बाप की उँगली पकड़कर चलना सीखा था आज वे एक अपाहिज की तरह अस्पताल के बिस्तर पर पड़े हैं . पिता ने उससे उसकी माँ का हाल पूछा . इस वक्त उन्हें अपने से ज्यादा अपनी पत्नी की चिंता थी .उसने पिताजी को बताया कि अभी माँ ठीक है आप चिंता न करें . आकाश के यह वाक्य कि आप चिंता न करें पर पिता के दर्द भरे वाक्य “अ ..अ ....अरे बेटा उसकी चि ...चि ....चिंता न करूं तो किसकी करूँ . जिसके साथ जी .. ...जीवन के सत्तर साल बिता दिए..... वे थोड़े देर रुके कुछ वाक्य बोलने पर ही उनकी साँसें फूलने लगी थी ... वे थोड़ी देर रुके फिर बोले जि ...जिस ...जिसने सदैव मेरा सुख – दुःख में साथ दिया आज जब उसे मेरे साथ की जरुरत है मैं......कहते हुए उनकी आँखें भर आई .” इन वाक्यों ने आकाश को झकझोर कर रख दिया . अपनी भावनाओं पर काबू रखकर पिताजी को समझाया कि उसके रहते वे निराश न हों. कुछ देर पिता के पास रहने के बाद वह कमरे से बाहर निकल आया . उसने परिवार के लोगों को पिताजी के साथ घटित घटना को माँ को न बताने के लिए कहा.
कुछ समय बाद आकाश की माँ का इलाज कर रही डॉक्टर से उसकी मुलाकात हुई . आकाश को देखे ही डॉक्टर ने उसे बताया कि अभी माजी खतरे से बाहर है लेकिन एक बात तो कहनी होगी कि इतने बड़े दिल के दौरे के बाद भी उनकी सांसे चल रही है यह तो किसी चमत्कार से कम नहीं है. इस तरह ये और कितने दिन .... कहकर डॉक्टर वहाँ से चली गई . डॉक्टर के चले जाने के बाद आकाश कमरे में गया. उसे लगा कि माँ कुछ खोज रही है , माँ कमरे में चारो तरफ देख रही थी . आकाश की पत्नी और बेटी ने उनके कमरे में चारों तरफ देखने का कारण पूछा लेकिन वह कुछ न बोली . आकाश को पता था कि माँ उसके छोटे बेटे विकास को कमरे में खोज रही हैं . वही बेटा जो वर्षों पहले घर परिवार के लोगों से आपसी मन मुटाव और कलह के कारण अपनों से रिश्ता तोड़कर दूसरे शहर में अपने परिवार के साथ खुशी – खुशी सुखी जीवन बिता रहा है .आकाश ने माँ और पिता के अस्पताल में होने की जानकारी विकास को दे दी थी और अनुरोध भी किया था कि एक बार माँ से आकर मिल ले पर विकास की तरफ से कोई सकारात्मक उत्तर न पाकर उसे और चिंता हो रही थी .
माँ को निराश देखकर उसने माँ का ध्यान दूसरी तरफ करने के लिए अपने ऑफिस की कुछ बातें छेड दी. आई . सी .यू में माँ तो दूसरे कमरे में पिता उसका मन एक जगह नहीं लग रहा था . कुछ समय माँ के पास बैठने के बाद वह पिता को देखने के लिए चला गया . सीडियों से गिरने के कारण उनकी पसली की हड्डी और एक पैर की हड्डी टूट गयी थी इस लिए उनके पैर और पसलियों पर प्लास्टर लगाया गया था. यहाँ आए हुए दो दिन गुजर चुके थे . अस्पताल से ही उसने अपने सभी रिश्तेदारों और मित्रों को इस घटना की जानकार दे दीन थी .दो दिन बीत जाने पर भी जब विकास नहीं आया तो एक बार फिर उसने विकास को फोन किया और एक बार माँ को सपरिवार आकार देखने का अनुरोध किया . पहले तो विकास ने घर आने की बात को सिरे से नकार दिया लेकिन आकाश के समझाने , अनुरोध करने पर वह इस बात के लिए सहमत तो हो गया लेकिन कब आएगा यह नहीं कहा . धीरे –धीरे अस्पताल में आये हुए एक सप्ताह बीत चुका था . माँ – पिता से मिलने उन्हें देखने के लिए सभी रिश्तेदार और जान पहचान के लोग आ गए थे , लेकिन अभी तक विकाश नहीं आया . माँ आई .सी .यू में भर्ती थी , बहार एक कमरे में पिता दोनों ही ऐसी अवस्था में कि कभी भी कुछ हो सकता था . आकाश जब भी माँ के कमरे में जाता माँ की नज़रे आकाश की ओर इस तरह देखती कि जैसे पूछ रही हों कि अभी तक विकास क्यों नहीं आया ....?
एक दिन की बात है आकाश माँ के सिरहाने बैठा माँ से बातें कर रहा था बातों ही बातों में माँ ने मिठाई का जिक्र छेड दिया माँ ने उसे कहा कि उसका बहुत दिनों से कलाकंद खाने का दिल कर रहा है ... पहले तो आकाश ने मना कर दिया क्योंकि उन्हें सुगर की बीमारी है . लेकिन माँ के बार –बार अनुरोध करने पर मिठाई लाने को कह तो दिया लेकिन डरता था कि कहीं माँ को कुछ हो गया तो .....? पर माँ के बार –बार अनुरोध करने पर एक दिन वह माँ के लिए मिठाई ले आया और डरते – डरते एक मिठाई का टुकड़ा माँ को खिला दिया . मिठाई खिला तो दी लेकिन मन ही ईश्वर से माँ के स्वस्थ होने की प्रार्थना करते रहता . इसी तरह दस दिन बीत गए माँ की हालत तो वैसी की वैसी बनी हुई थी लेकिन पिता का स्वस्थ धीरे –धीरे सुधर रहा था . इधर आकाश ने अपने दफ्तर से कुछ समय की छुट्टी ले रखी थी वहीँ दूसरी तरफ उसके पूरे परिवार पत्नी और बच्चों ने भी अपने –अपने कॉलेजों से छुट्टी ले रखी थी पूरा परिवार वृद्द माता –पिता की देख रेख में लगा हुआ था . माँ और पिताजी की इस तरह की हालत देखकर उसका दिल रोता था अब तो हालत यह थी कि हर साँस उनकी सलामती कि दुआ लेकर ही निकल रही थी .
इधर माँ से जो भी मिलने आता माँ कमरे के दरवाजे की तरफ एक आस भरी नज़रों से देखती रहती . कुछ देर एक टक दरवाज़े की तरफ देखती ओर फिर आँखें बंद कर लेती . आने –जाने वालों से नपी –तुली बात कर वह आँखें बंद कर लेती . हर रिश्तेदार उनकी हालत को देखकर हैरान था कि बुढ़ापे में सूखकर काँटा हो चुकी माँ की साँसें न जाने किस में अटकी हैं . जब भी कमरे का दरवाज़ा खुलता उन्हें लगता कि शायद अब विकास अपनी बीमार माँ से मिलने उसकी अटकी साँसों को मुक्त करने आ गया हो लेकिन........ , माँ तो माँ है... न जाने कब तक बेटे के आने की राह निहारेंगी उसके आने के इन्जार में उसकी बूढी आँखें पथरा चुकी थी . धीरे –धीरे समय अपनी गति से चलता गया और एक दिन वह भी आ ही गया जब माँ की अटकी साँसों ने उसका साथ छोड़ दिया .वह संसार के बंधनों की जंजीरों को तोड़कर जा चुकी थी . माँ की अंतिम इच्छा पूरी ना होने पर आकाश को बहुत दुःख हुआ .... जिसके लिए माँ की साँसे अटकी थी वह नहीं आया... . अपने परिवार को ना जोड़ पाने पर आकाश पूरी तरह टूट चुका था ...
Namastey Shiv Kumarji,
ReplyDeleteSarvapratham aapko nav varsh ki hardik subh kamnayein. Saal ki pehli kahani ka intezaar pura hua aur aapki yeh kahani padh kar dil bhar aaya. Bahut achchhi lagi aapki yeh kahani.
Badhai
Amit Anuraag
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ReplyDeleteबहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी कहानी...आँखें नम कर गयी...
ReplyDeleteमोह तो आखरी सांस तक लगा ही रहता है... यही तो अंतर है मां और बेटे के हृदय में॥
ReplyDeletewoh...bahut dukhad he yaah ---paar haam itne hi begaurat ho gaye he,,,......
ReplyDeleteअमित जी , चंद्रमौलेश्वर प्रसाद जी , कैलाश शर्मा जी और अरुण साथी जी आप लोगों ने मेरी कहानी पढ़ी उसे सराहा उसके लिए आप सभी लोगों का बहुत -बहुत धन्यवाद .
ReplyDeleteजाको राखो साईयां मार सके न कोए |
ReplyDeleteप्रिय शिवकुमार जी आपकी लेखनी वाकई में काबिले तारीफ है धन्यवाद |
नमस्ते शिव भैया ...बहुत दिनों बाद कुछ लिखा आपने ...
ReplyDeleteबीच में अपनी अनुपस्थिति के लिए क्षमा चाहता हूँ ..
रिश्ते ....
रिश्तों का जुड़ाव...
पित्र-मात्री ऋण ...
सबसे ऊपर संवेदना ....सब समझता है आकाश ....
अगले भाग के साथ विकास का इन्तजार है .....ऐसा क्या मनमुटाव है जो वो ऐसा
निष्ठुर हो गया ....!
(विकास का पक्ष भी प्रस्तुत होना चाहिए)
bahut sunder kahani, ander tak jhakjhor gyi.........beautiful
ReplyDeleteप्रदीप जी , अमरेन्द्र जी आप लोगों ने आख़री इंतजार कहानी पढी और अपने सुझाव दिए उसके लिए बहुत -बहुत धन्यवाद् .
ReplyDeleteइस कहानी को इस तरह प्रस्तुत कर ने के लिए आपको बधाई.
ReplyDeleteये कहानी मुझे बहुत अच्छी लगी और आप से और भी एसी कहानी की और भी अपेक्षा रहेगी . जिससे हमारा समाज में रहने वाले लोगों की अंतरात्मा को झंझोर सकी .
इस कहानी की सबसे दुखद और दिल को छूने की बात माँ का आख़री समय तक निष्ठुर बेटे का इंतजार करना लगा . सच ही तो है पूत कपूत हो सकता है माता कुमाता नहीं ....
अच्छी कहानी के लिए बहुत -बहुत बधाई
Behtarin kahani.
ReplyDeleteHello Shiv Sir,
ReplyDeleteA very nicely written story.
Thank u
Upendraa
Sir,
ReplyDeleteIs this a true story? How can any one do this to their parents? I cried reading this.
Regards
Shubangi
I liked this story Sir. Your stories always make me think deeply on the subject.
ReplyDeleteCongrats
Radhika
Shiva Sir,
ReplyDeleteAapki kahani pad kar rona aa gaya
Tanmay