मानव जीवन में शिक्षा का विशेष महत्त्व है। शिक्षा ही तो है जो मानव को यथार्थ रुप में मानव बनाती है। शिक्षा के बिना मनुष्य जीवन पशु तुल्य ही होता । मानव और पशु में यही अंतर है कि मानव शिक्षा के द्वारा ही अपने को उन्नति के शिखर पर ला सका है। मानव शिक्षा ग्रहण करके शिक्षा प्रचार-प्रसार करता है किन्तु पशु ऐसा नहीं कर सकते । मनुष्य जब से जन्म लेता है और जब तक जीता है कुछ न कुछ सीखता है और सिखाता है ।
ज्ञान वो दीपक है जो मनुष्य को अंधकार रुपी संकट में सहारा देता है। मनुष्य का स्वभाव है कि ज्यों -ज्यों उसकी आयु बढ़ती जाती है ,त्यों -त्यों वह अनुकरण के द्वारा अनेक बातें सीखता जाता है । जब शिशु इस संसार में आता है धीरे-धीरे चलना सीखता है ,बोलना सीखता है ,यद्यपि बच्चे को यह ज्ञान नहीं होता कि वह सीख रहा है फिर भी उस का सांसारिक ज्ञान बढ़ता चला जाता है। मनुष्य जीवन की सबसे अधिक मधुर तथा सुनहरी अवस्था विद्यार्थी जीवन ही होता है । विद्यार्थी जीवन ही सारे जीवन की नीव मानी जाती है । एक चतुर कारीगर बहुत ही सावधान तथा प्रयत्नशील रहता है कि वह जिस मकान का निर्माण कर रहा है कहीं उस की नींव कमजोर न रह जाए । नीव दृड़ होने पर ही मकान की मजबूती नापी जा सकती है। जब नींव मजबूत होगी तब ही मकान धूप -छांव, आँधी पानी और भूकंप के वेग को सह सकता है । इसी प्रकार बुद्धिमान व्यक्ति
अपने जीवन की नींव को सुदृढ़ बनाने के लिए सावधानी से यत्न करता है।
भलि प्रकार विद्या ग्रहण करना विद्यार्थी का प्रमुख कर्तव्य होना चाहिए। विद्यार्थी का कर्तव्य है कि वह अपने शरीर बुद्धि ,मस्तिष्क मन और आत्मा के विकास के लिए पूरा -पूरा यत्न करे । अनुशासन प्रियता, नियमितता समय पर काम करना, उदारता ,दूसरों की सहयता करना , सच्ची मित्रता ,पुरुषार्थ, सत्यवादिता,नीतिज्ञता ,देश भक्ति ,विनोद-प्रियता आदि गुणों से विद्यार्थी का जीवन सोने के समान निखर उठता है। उसी प्रकार उसकी कड़ी मेहनत से उस का भविष्य उज्जवल हो जाता है। जिस प्रकार सोने की सत्यता को पहचानने के लिए उसे आग में जलाया जाता है ,तब जाकर सोना अपने सच्चें आकार को पाता है। उसी प्रकार एक सच्चे विद्यार्थी को अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कठिन परिश्रम रूपी आग में जलना ही पड़ता है। किन्तु जिस प्रकार हम उन्नती की ओर बढ़ रहे हैं , हमारी शिक्षा में भी नित नए-नए परिवर्तन आते जा रहे हैं।
एक समय था कि विद्यार्थियों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए गुरु के आश्रम में जाना पड़ता था किन्तु आज की शिक्षा पद्धति में यह बात नहीं आज शिक्षा मात्र धन कमाने के केन्द्र बनते जा रहे हैं । आज जिस प्रकार शिक्षा को कठपुतली की तरह प्रयोग में लाया जा रहा है इसकी कल्पना शायद किसी ने न की होगी । यह बात सही है कि हमें शिक्षा में नए-नए परिवर्तन करते रहना चाहिए किन्तु हमें इस बात को भी नहीं भूलना चाहिए कि हमें आधुनिक शिक्षा के प्रयोग के साथ - साथ अपनी सभ्यता और संस्कृति को नहीं भूलना चाहिए। यह सही है कि हमें ऐसी शिक्षा को ग्रहण करना चाहिए जिससे हमें भविष्य में उद्योग आसानी से उपलब्ध हो सकें।
आज बड़े दुर्भाग्य से कहना पड़ता है कि विद्या एक व्यापर का बड़ा केन्द्र बन चुकी है। विद्यालय एक केन्द्र की इमारत की तरह हो गई है और अध्यापक एक व्यापारी के समान बनते जा रहे हैं । जिस प्रकार समाज दिन -प्रतिदिन उन्नति कर रहा है । आज एक बच्चे को विद्यालय में प्रवेश दिलाने के लिए माँ-बाप को कितनी ही समस्याओं का सामना करना पड़ता है, और यदि विद्यालय नामी है तब तो माँ-बाप को विद्यालय के दसो चक्कर काटने पड़ जाते हैं। आज बच्चे विद्यालय में पढ़ते तो हैं किन्तु उनकी पढ़ाई पूरी नहीं हो पाती क्यों क्योंकि वहां के शिक्षक -शिक्षिकाएं उन्हें ट्यूशन की शिक्षा देते हैं अर्थात विद्यालय में फीस जमा करो फिर ट्यूशन की फीस अदा करो । आज इसी ट्यूशन की लत ने अधिकांश शिशकों -शिक्षिकाओं को व्यापरी बना कर रख दिया है । आज जब शिक्षक स्कूल या कॉलेज में किसी विषय की पूर्ण जानकारी विद्यार्थियों को न देकर कहता है कि आप ट्यूशन आ जाना वहीं पर सब परेशानी का हल कर देंगे । आज क्या होता जा रहा है हमारी सभ्यता को ? कहाँ थे हम और कहाँ आ गये?
लेकिन हमें सिक्के के एक ही पहलू को नहीं देखना चाहिए , सिक्के का एक दूसरा पहलू भी है । यदि शिक्षक किसी विद्यार्थी को ट्यूशन पढ़ाता है तो क्या गलत करता है ? क्या समाज के किसी भी वर्ग ने शिक्षक की आर्थिक स्थिति की ओर ध्यान दिया है ? नहीं … शिक्षक का भी परिवार होता है उसके भी अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने का अधिकार है। यदि उसे अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलानी है तो पैसों की जरुरत पड़ेगी ही वे पैसे कहाँ से आएं ? शिक्षक अपने बच्चों को सम्मान के साथ शिक्षा दिला सके इसके लिए उसे ट्यूशन का सहारा लेना पड़ता है । यह बात भी सही है कि कुछ लोग इस सम्मानजनक पद की गरिमा को अपमानित कर रहे है किन्तु एक के किए की सजा सब को देना यह तो सही बात नहीं है। आज विद्यालयों के कर्तव्य और दायित्व के प्रति देशभर के अधिकांश लोगों की धारणाएं बदल रही हैं । इन बदलती धारणाओं का कारण है आज की शिक्षा पद्धति और अध्यापकों की कड़ी मेहनत जिसके कारण विद्यालय की यथार्थ तस्वीर समाज के सामने आ जाती है। आज की शिक्षा जहाँ एक तरफ छात्रों से कमरतोड़ मेहनत करवाती है वहीं उनमें नया जोश और उत्साह भी भरती है। आज बदलती शिक्षा ने किशोरों मे एक नया जोश भर दिया है आज उनमें कुछ कर दिखाने का जोश पनप रहा है । उनमें देश के प्रति कुछ करने की लगन पनप रही है । यह सब तभी तक चल सकता है जब शिक्षको को उनकी योग्यता के अनुसार कार्य करने के अवसर प्राप्त होते रहेंगें और उन्हें
उनकी योग्यता के आधार पर ही वेतन मिलता रहेगा । जब शिक्षक को अपनी नौकरी के न खोने और वेतन की चिंता नहीं रहेगी तभी वह अपने विद्यार्थियों को निÏश्चत होकर शिक्षा प्रदान कर सकेगा, तभी वह नवयुवको का सही मार्गदर्शन कर सकेगा। यदि समाज मे शिक्षक उन्नत रहेंगे तभी समाज उन्नत बन सकेगा और
समाज की उन्नती देश की उन्नती होगी ।
अगर प्रमाण का आंकड़ा चाहिए तो बिहार से मिल सकता है नवनियुक्त शिक्षकों से शिक्षा के हाल तक .
ReplyDeleteनमस्ते शिव कुमार जी,
ReplyDeleteबिलकुल सही लिखा है आपने...अगर समाज में शिक्षक उन्नत रहेंगे तभी समाज उन्नत बन सकेगा. आपकी यह रचना बहुत अच्छी लगी.
धन्यवाद्
अमित अनुराग हर्ष
sir jee,
ReplyDeletebahot sahi lika hain apne
best luck, thanks
Upendraa
Dear Sir,
ReplyDeleteA meaning ful, a very good write up.
Regards
Tanmay Tiwari
Sir,
ReplyDeleteIt's indeed a good matter you have written.
Thanks & kind regards
Shubhangi
Shiv sir,
ReplyDeleteIt's nice to read this article.
Thanks
Regards
Radhika
शिक्षा सबको चाहिए और अच्छी चाहिए...
ReplyDeleteशिक्षकों से किसी को कोई मतलब नहीं , सोंचना भी नहीं है !
काश हम समझ सकें !
well said shiva!!!aaj ke samaj me shikshak ki bhoomika ko behtar dhang se samjhaya.
ReplyDeleteलेख अच्छा है. भारत में शिक्षा की स्थिति का और माता-पिता की मजबूरी का चित्र प्रस्तुत किया है. बधाई.
ReplyDeletesir ji aaj ye sanse munafa wala fayda hai kyo ki isme start me koi invesment nhi kerna padta
ReplyDeletebahut hi badiya
http://blondmedia.blogspot.com/2011/12/blog-post.html