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Tuesday, December 6, 2011

मेरी चाह


जब तुम मिले तो ऐसा लगा जैसे बरसों का खोया यार मिल गया .
आने से तुम्हारे सूने पड़े जीवन में बहार का मौसम  छा गया .

       अधूरी पडी उम्मीदों को एक राह का सहारा मिल गया
       मिलकर दिन गुजरे महीने गुजरे  गुजर   गए साल .

जिन्होंने मेरे सपनों को अपने सपनो से जोड़कर एक मुकाम दे दिया
ना चाहकर भी हमसे नाता जोड़ लिया अपनी राहों को हमारी राहों से जोड़ लिया  .

    ठोकर खा –खा कर अब और जीने की आस ना रही
    दिल पर अब और जख्म खाने की जगह ही ना रही .

मेरी खुशियों को अपनी खुशियों में ढाल लिया
मिलकर मुझसे मुझे जीना सिखा दिया  .
              काश मेरी खुशी किस में है यह भी जान लिया होता  
              गैरों ने जो जख्म दिया था वो तुमने तो ना दिया होता .
जिन खुशियों  को देने की खातिर  तुम हम से दूर हुए
दुनियां से लड़ –लड़कर थककर चूर हुए .

एक बार  जान  तो लिया होता आखिर मेरी चाह क्या है
दिल की हर धडकन में दिख जाता उसमें सिर्फ नाम तेरा है .

13 comments:

  1. वाह शिवा जी क्या गजब लिखा है, बहुत दिनों बाद लिखा है आजकल कहाँ रहते हो?

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  2. This comment has been removed by the author.

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  3. नमस्कार
    संदीप जी ,
    आपने मेरी रचना पढ़ी उसे सराहा उसके लिए बहुत -बहुत धन्यवाद....
    बस थोडा सा अपनी Phd को पूरा करने में लगा हुआ हूँ ...इसी लिए आजकल ब्लॉग पर ज्यादा आना नहीं हो पाता...
    धन्यवाद
    शिवकुमार (शिवा )

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  4. सुभान आल्लाह, बहुत खूब, इस कविता में जीवन की सच्चाई प्रतीत होती है. ऐसे ही कविताएं लिखते रहना.

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  5. बेहद खुबसूरत लिखा है |

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  6. This poem is so heart touching that my heart was very much emotional and crying when I was completing some lines.
    heads off to you sir

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  7. नमस्ते शिवकुमार जी

    आपकी कविता काफी अपनी सी लगी..पढ़ कर दिल भर आया..

    बधाई
    अमित अनुराग हर्ष

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  8. Dear Sir,

    A very nicely written poem

    Thanks
    Tanmay

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  9. Shiv Sir,

    Good to read this poem

    Regards
    Radhika

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  10. Sir,

    Very Touchy!! My heart was heavy reading this

    Regards
    Shubhangi

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  11. sir jee,

    achchi poam likhi apne

    best luck
    Upendra

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  12. अमृता जी ,अजीत जी , सौरभ जी , अनुराग अमित जी , तन्मय जी ,राधिका जी , सुभांगी जी ,और उपेन्द्र जी आप लोगों ने अपने व्यस्त समय से कुछ क्षण मेरी कविता के लिए निकले उसे पढ़ा और उसे सराहा .... आप सभी का बहुत -बहुत धन्यवाद .

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