जब तुम मिले तो ऐसा लगा जैसे बरसों का खोया यार मिल गया .
आने से तुम्हारे सूने पड़े जीवन में बहार का मौसम छा गया .
अधूरी पडी उम्मीदों को एक राह का सहारा मिल गया
मिलकर दिन गुजरे महीने गुजरे गुजर गए साल .
जिन्होंने मेरे सपनों को अपने सपनो से जोड़कर एक मुकाम दे दिया
ना चाहकर भी हमसे नाता जोड़ लिया अपनी राहों को हमारी राहों से जोड़ लिया .
ठोकर खा –खा कर अब और जीने की आस ना रही
दिल पर अब और जख्म खाने की जगह ही ना रही .
मेरी खुशियों को अपनी खुशियों में ढाल लिया
मिलकर मुझसे मुझे जीना सिखा दिया .
काश मेरी खुशी किस में है यह भी जान लिया होता
गैरों ने जो जख्म दिया था वो तुमने तो ना दिया होता .
जिन खुशियों को देने की खातिर तुम हम से दूर हुए
दुनियां से लड़ –लड़कर थककर चूर हुए .
एक बार जान तो लिया होता आखिर मेरी चाह क्या है
दिल की हर धडकन में दिख जाता उसमें सिर्फ नाम तेरा है .
वाह शिवा जी क्या गजब लिखा है, बहुत दिनों बाद लिखा है आजकल कहाँ रहते हो?
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ReplyDeleteनमस्कार
ReplyDeleteसंदीप जी ,
आपने मेरी रचना पढ़ी उसे सराहा उसके लिए बहुत -बहुत धन्यवाद....
बस थोडा सा अपनी Phd को पूरा करने में लगा हुआ हूँ ...इसी लिए आजकल ब्लॉग पर ज्यादा आना नहीं हो पाता...
धन्यवाद
शिवकुमार (शिवा )
सुभान आल्लाह, बहुत खूब, इस कविता में जीवन की सच्चाई प्रतीत होती है. ऐसे ही कविताएं लिखते रहना.
ReplyDeleteबेहद खुबसूरत लिखा है |
ReplyDeleteThis poem is so heart touching that my heart was very much emotional and crying when I was completing some lines.
ReplyDeleteheads off to you sir
नमस्ते शिवकुमार जी
ReplyDeleteआपकी कविता काफी अपनी सी लगी..पढ़ कर दिल भर आया..
बधाई
अमित अनुराग हर्ष
Dear Sir,
ReplyDeleteA very nicely written poem
Thanks
Tanmay
Shiv Sir,
ReplyDeleteGood to read this poem
Regards
Radhika
Sir,
ReplyDeleteVery Touchy!! My heart was heavy reading this
Regards
Shubhangi
sir jee,
ReplyDeleteachchi poam likhi apne
best luck
Upendra
अमृता जी ,अजीत जी , सौरभ जी , अनुराग अमित जी , तन्मय जी ,राधिका जी , सुभांगी जी ,और उपेन्द्र जी आप लोगों ने अपने व्यस्त समय से कुछ क्षण मेरी कविता के लिए निकले उसे पढ़ा और उसे सराहा .... आप सभी का बहुत -बहुत धन्यवाद .
ReplyDeleteati sundar....
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