"गुब्बारे ले लो.........., खिलौने ले लो....... रंग बिरंगे खिलौने ले लो..........." प्रतिदिन की तरह बूढी अम्मा सिर पर खिलौनों की टोकरी ले कर धीरे धीरे चली जा रही थी. उसकी आवाज़ सुन कर गली - मोहल्ले के बच्चे दौड़ कर अम्मा को चारों तरफ से घेर लेते . अम्मा भी उन बच्चों को देखकर खुश हो जाती . गांव के बीचों -बीच एक पीपल का एक विशाल वृक्ष था . पीपल के चारों तरफ चबूतरा बना हुआ था. बूढी अम्मा उसी चबूतरे पर जाकर अपनी टोकरी रखकर बैठ जाती . गाँव के बच्चे उन्हें चारों तरफ से घेरे लेते और अपनी तोतली -तोतली आवाजों में अपने -अपने खिलौनों की फरमाइशें शुरू कर देते .. अम्मा भी उनकी तोतली आवाज़े सुनकर उन्हें उन्हीं के अंदाज़ में समझती और कहती अमुक खिलौने का दाम ये है इतने पैसे लाओ तब मैं खिलौना दूंगी . गाँव के सभी लोग उन्हें अम्मा के नाम से जानते थे. कोई भी उनका असली नाम पता नहीं जानता था हाँ सबको यह पता था कि वे पड़ोस के गाँव में ही रहती हैं ., वे बूढी अम्मा के नाम से ही आसपास के गाँव में जानी जाती. सब उन्हें बूढी अम्मा ही कहकर बुलाते ... चाहे बालक हों , जवान हों , या फिर बूढ़े सब उन्हें अम्मा कहकर पुकारते थे .
अम्मा की टोकरी हमेशा सुंदर -सुन्दर खिलौनो से भरी रहती थी शायद इसीलिए वे जिस गाँव में भी जाती ,गाँव का हर बच्चा उनके पास आकर उन खिलौनों को देखता .... खिलौनों का दाम पूछता. अम्मा से बातें करता फिर एक बार खिलौनों का दाम पूछता और एक टक उन्हें निहारता रहता.....अम्मा को भी गाँव के हर बच्चे के एक प्रकार का आत्मिक लगाव हो गया था .वे भी घंटो बच्चों के साथ बैठकर बातें किया करतीं . दिनभर में जितने खिलौने बिक जाते सो बिक जाते . दिनभर में जो कुछ कमातीं उसी से उनका गुजर बसर होता . जब भी अम्मा खिलौने बेचने जातीं घंटो बच्चों के साथ बातें किया करती उन्हें तरह -तरह की कहानियां सुनाया करतीं. जब लगता कि समय ज्यादा हो गया तो वहाँ से उठती खिलौनों की टोकरी अपने सिर पर रख कर लकड़ी का सहारा लेते हुए आगे बढ़ जाती और फिर वही आवाज़ ..... "गुब्बारे ले लो, खिलौने ले लो..रंग बिरंगे खिलौने ले लो......
गाँव -गाँव खिलौने बेचकर अम्मा की जीविका चल रही थी . अम्मा एक छोटी सी झोपड़ी में अकेली रहती थी . अम्मा को इस गाँव में आये हुए वर्षों बीत गए . वे कहाँ से आई ..? क्यों आई..? कोई इस विषय में कुछ नहीं जानता था और ना ही किसी ने उनके अतीत के बारे में उनसे पूछा .... पर हाँ जब कभी कुछ स्त्रियाँ अम्मा के साथ बैठकर बातें करती तो कई बार स्त्रियों ने उनके अतीत के बारे में जानना चाहा लेकिन जब भी कोई स्त्री उनके अतीत के बारे में पूछती अम्मा उस प्रश्न को सुनकर मौन हो जाती ...ऐसा कुछ वर्षों तक चला फिर बाद में बस्ती वालों ने यह सब पूछना ही छोड़ दिया ....
वैसे तो अम्मा अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर थीं लेकिन उनकी चुस्ती पर फुर्ती के आगे जवान लोग भी हार मानते थे ..अम्मा अपने शरीर से भले ही बूढी थी लेकिन मन और विचारों से अभी भी जवान थीं . अम्मा ज़रुरतमंदों की मदद को हमेशा तैयार रहती थी . शायद इसीलिए आस पास के गाँव के लोग उनका आदर , सम्मान करते थे . किसी के घर विवाह हो , बच्चे का नामकरण हो या फिर और किसी प्रकार का कोई भी कार्यक्रम हो गाँव के लोग अम्मा को अपनी खुशियों में शामिल करना बिलकुल नहीं भूलते . अम्मा भी सबको अपने बच्चों के सामान ही प्रेम करती थी . वे सभी कार्यक्रमों में बढ़- चढ़कर भाग लेती थी . उनकी चुस्ती -फुर्ती और सूझबूझ के आगे अच्छे -अच्छे नतमस्तक होते थे . सर्दी हो, बरसात हो या फिर गर्मी अम्मा कभी भी घर में नहीं बैठती ...हाँ बरसात और सर्दियों के दिनों में उन्हें काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था. लेकिन वे कभी भी किसे से किसी प्रकार की सहायता की उम्मीद नहीं करती थी और ना ही किसी के आगे अपना दुखड़ा रोती जो जैसा चल रहा है वह उसी में अपने आपको खुश रखने की कोशिश करती थी .. ....
गर्मियों के दिन थे सूरज की तपती गर्मी से धरती का बुरा हाल था. ऐसी तपती गर्मी में भी अम्मा रोज़ खिलौने बेचने जाया करती . उनका मानना था कि यदि मैं कमाउंगी नहीं तो खाऊँगी क्या ...? हमेशा की तरह अम्मा अपने सिर पर खिलौनों की टोकरी लेकर जा रही थी , धूप तेज़ थी पैदल चलने के कारण उनकी सांसे फूल रही थी .... उन्हें बहुत तेज़ प्यास भी लग रही थी. पानी पीने के लिए पास ही के हैण्ड पम्प के पास गयी. पानी पीने के बाद उन्होंने अपना चेहरा धोया और चेहरा पोछते हुए हैंडपंप के पास बने चबूतरे पर जाकर बैठ गई ... कुछ समय वहाँ बैठने के बाद उन्हें किसी बच्चे के रोने की आवाज़ सुनाई दी ... पहले तो उन्होंने सोचा कि शायद कोई मंदिर में आया होगा..या इधर ही किसी खेत में कोई किसान दम्पति काम कर रहे होंगे ,उनका बच्चा होगा ....... बच्चे के रोने की आवाज़ को अनसुना करके एक फटा सा कपड़ा चबूतरे पर बिछा कर लेट गईं .... लेकिन बच्चे के रोने की आवाज कम होने के स्थान पर और बढ़ती ही जा रही थी . काफी समय तक बच्चे के रोने की आवाज़ को सुनने के बाद उनसे रहा नहीं गया वे चबूतरे से उठी और जिस तरफ से आवाज़ सुनाई दे रही थी उस तरफ गयी. वही पास ही में देवी माँ का मंदिर था. बच्चे के रोने की आवाज़ उस तरफ से ही आ रही थी . अम्मा उस तरफ गई वहाँ जाकर देखा कि मंदिर के पीछे बनी सीढ़ी पर एक नन्ही सी बच्ची बिलख -बिलख कर रो रही है . अम्मा ने इधर -उधर देखा उन्हें कोई नज़र नहीं आया वे बच्ची के पास गई और उसे चुप कराते हुए उसके पास बैठ गयी . कुछ समय इंतजार करने के बाद अम्मा ने उस बच्ची को उठा लिया जैसे ही उन्होंने बच्ची को अपनी गोद में उठाया तो वो बच्ची एक दम शांत हो गयी . अम्मा को लगा शायद उस बच्ची के माता पिता यही कहीं किसी खेत में काम कर रहे होंगे खेत में शायद ज्यादा काम होगा इसीलिये उस बच्ची को यहाँ मंदिर की छांव में सुला गए होंगे ... थोड़ी बहुत देर में आ जायेंगे . यह सोचकर उन्होंने बच्ची को सीढ़ी से उठाकर पेड़ की छांव में ले जाकर बैठ गई .... काफी देर से रोने के कारण बच्ची को प्यासा लग रही थी, उसके होंठ प्यास के कारण सूख रहे थे .... अम्मा हैंडपंप से अपने चुल्लू में थोड़ा पानी लेकर आई और बच्ची को पानी पिलाया. पानी पीकर बच्ची थोड़ी शांत हो गई ...... काफी देर तक अम्मा उस बच्ची के साथ खेलती रही. बच्ची भी उनके साथ हंस -खेल रही थी, जैसे मानो वही उसकी माँ हो ... बच्ची के साथ खेलते -खेलते लगातार वे इधर -उधर भी देखती जाती कि कहीं उसके के माता -पिता इसे ढूंढ़ तो नहीं रहे .... लेकिन जब समय अधिक हो गया और कोई दूर -दूर तक नज़र नहीं आ रहा तो अम्मा घबराने लगी बच्ची के माता -पिता का इंतजार करते करते सुबह से दोपहर हो गई. .. उन्होंने फिर भी सब्र से काम लिया , उन्हें लगा शायद कुछ देर और इंतजार करना चाहिए.. वैसे भी इस तपती दोपहरी में वह इस नन्ही से जान को कहाँ लेकर जायेगी ... बच्ची की उम्र एक- डेढ़ साल की होगी . जैसे -जैसे दिन ढल रहा था अम्मा की चिंता भी बढ़ती जा रही थी मंदिर के आस -पास उसे कोई भी नज़र नहीं आ रहा था .वह बच्ची को अपनी गोद में उठाये हुए उसी पेड़ के नीचे बैठ गई . अब तो बच्ची भी भूख के कारण फिर से बिलख - बिलख कर रोने लगी . उसे रोता देखकर अम्मा की आँखें भर आई उनके पास बच्चे को खिलाने -पिलाने के लिए कुछ भी तो नहीं था . कभी वो बच्ची को गोद में उठाकर चुप करातीं कभी गोद में झुलाकर लेकिन बच्ची भूखा होने के कारण शांत होने का नाम ही नहीं ले रही था , तभी उन्हें ख्याल आया कि उनकी टोकरी में दो रोटी रखीं हैं , उन्होंने रोटियों में से आधी रोटी तोडी और पानी में भिगोकर मसला और बच्ची को खिलाया भोजन मिलने के बाद बच्ची शांत हो गया , ....... दोपहरी भी धीरे -धीरे ढलती जा रही थी लेकिन उस बच्ची को लेने कोई नहीं आया . धीरे -धीरे लोगों की चहल पहल बढ़ने लगी .... अम्मा रास्ते पर आते - जाते सभी लोगों से उस बच्ची के बारे में पूछती .... , "ए माई, यह आप की बच्ची तो नहीं , बाबूजी यह आप की बच्ची हैं क्या ?" सभी लोगों ने उसे नकार दिया. काफी देर तक लोगो से पूछने के बाद थक हर कर वो मंदिर के पुजारी के पास गयी उनसे भी पूछा , " महाराज, आप ने इस बच्ची के माँ- बाप को देखा हैं क्या ....? क्या आपने देखा था कि यह बच्ची किसके साथ आई थी, इसे कौन छोड़ गया...? पर मंदिर के पुजारी को भी इसके बारे में कुछ भी नहीं पता था, उन्होंने भी किसी को मंदिर के पास नहीं देखा था ... पहले तो उन्हें कुछ समझ में नहीं आया आखिर अम्मा उस बच्ची के बारे में क्यों इतनी तहकीकात कर रही है ... फिर अम्मा ने उन्हें सुबह घटित घटना का सारा वृतांत कह सुनाया ....तब पुजारी की समझ में आया ....थोड़ी देर अम्मा सोच में पड़ गयी अब क्या करे...? उन्होंने पुजारी से कहा, " महाराज! क्या आप इस बच्ची को अपने पास रख सकते हैं....? हो सकता हैं , इसके माँ - बाप इसे ढूँढते हुए यहाँ आ जाए तो आप उन्हें इस बच्ची को दे देना . बच्ची को अपने पास रखने की बात सुनकर पुजारी गुस्से से आग बबूला हो गया और अम्मा से कहने लगा –
“ मैंने क्या यहाँ सब का ठेका ले रखा हैं.....? या मैंने कोई धर्मशाला खोल रखी है ....?. ले जाओ इसे यहाँ से इसके माँ बाप को ढूंढने का काम मेरा नहीं . इसे पुलिस स्टेशन में दे दो, वे लोग इसके माँ- बाप को ढूंढ़ लेंगे या फिर वहीं छोड़ दो जहाँ से इसे उठाकर लायी हो . कोई ना कोई जो इसे जानता होगा आकर ले ही जायेगा.
पुजारी की कटु बातें सुनकर बूढी अम्मा सहम सी गयी,... उन्हें अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था कि माता के मंदिर का पुजारी इतना कठोर ह्रदयी भी हो सकता है . वह इन्सान जो दिन-रात ईश्वर की सेवा , भक्ति करता है . वह ऐसा कैसे कह सकता हैं. थोड़ी देर सहमी सी खड़ी रहने के बाद अम्मा ने सोचा शायद पुजारी जी ठीक ही कह रहे हैं मुझे इस बच्ची के विषय में पुलिस को सूचना दे देनी चाहिए . वे लोग ही इसके माँ - बाप को ढूंढ निकालेगे . मैं बेचारी बुढ़िया कहाँ -कहाँ इसके माँ -बाप को खोजुंगी ...... यह सोचते हुए अम्मा ने अपनी खिलौनों की टोकरी सिर पर रख ली और उस बच्ची को गोद में उठा लिया जैसे ही अम्मा आगे चलने लगी वैसे ही वह नन्ही बच्ची उनसे लिपट गई . नन्ही बच्ची के अम्मा से लिपटने पर अम्मा को एक अजीब सा असीम सुकून मिला . अम्मा ने बच्ची के चहरे की तरफ देखा बच्ची मंद -मंद मुस्कुरा रही थी, बच्ची की मुस्कराहट देखकर एक पल के लिए अम्मा के पाँव जैसे रुक से गए . उसे देखकर उनके दिल को एक अजीब से आनंद का अहसास हो रहा था. तभी उनके मन में विचार आया कि अगर पुलिस इस बच्ची के माँ- बाप को नहीं ढूंढ सकी तो ....वे लोग तो इसे किसी अनाथ आश्रम में डाल देंगे. अगर आश्रम में भी .....इसके साथ कुछ .....नहीं नहीं .... यह सोचकर अम्मा ने पुलिस के पास जाने का फैसला बदल दिया और उस नन्ही बच्ची को अपने साथ लेकर अपनी बस्ती की और चल दी ..
अम्मा बस्ती की ओर चलती जाती और कुछ सोच कर मन ही मन हंसने लगती और आगे बढ़ती जाती . मन ही मन अब उन्होंने उस बच्ची के पालन -पोषण करने का फैसला कर लिया .... यह सोचते ही मानो उनके कदमो को एक दैविय ताकत मिल गयी हो. उस बच्ची को लेकर जब अपनी बस्ती में आई, बस्ती के सभी लोग अम्मा के साथ एक शिशु को देखकर चौक गए ... बस्ती के लोगों को पता था कि अम्मा का कोई भी रिश्तेदार नहीं है जहाँ तक उनका सवाल है जब से वे इस बस्ती में रह रही है तब से ही वे अकेली रहती है फिर आज ये बच्चा ....? जिसने भी अम्मा की गोद में बच्चे को देखा उसी नहीं ही पूछ लिया .....अम्मा आग किसका बच्चा उठा लायी .... एक एक कर सभी पूछने लगे कि यह बच्ची कौन हैं, किसी हैं....? अम्मा ने उन्हें सारा हाल कह सुनाया. और साथ ही साथ अपना निर्णय भी बता दिया कि वे इस बच्ची को अपने साथ रखना चाहती है और उसका पालन पोषण करना चाहती हैं ... अम्मा के इस फैसले से कुछ लोगों ने उन्हें समझाया कि अब उनकी उम्र बच्चों के पालन पोषण की नहीं ..... फिर भी अम्मा ने कहा कि कुछ भी हो वे इस बच्ची का पालन पोषण करेंगी ... अम्मा के इस निर्णय पर कुछ लोग तो खुश हुए .कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्हें अम्मा का यह फैसला बिलकुल पसंद नहीं आया......फिर भी उन लोगों ने अनमने मन से हामी भर दी .....
अब अम्मा के अकेले सूने पड़े जीवन में एक खुशी की किरण दिखने लगी . वह नन्ही बच्ची अम्मा के जीवन के अकेलेपन की साथी बन गई . अम्मा उसे अपनी नज़रों के सामने से एक पल के लिये भी दूर नहीं करती . जब वे खिलौने बेचने जाती तो उसे भी अपने साथ ले जाती...एक गोद में बच्ची और सिर पर खिलौनों का टोकरा अम्मा धीरे - धीरे एक गाँव से दूसरे गाँव खिलौने बेचती . जब से नन्ही बच्ची उनके जीवन में आई है तब से वे गाँव में बच्चों के साथ व्यर्थ समय नहीं बिताती . ऐसा भी नहीं था कि वे बच्चों के साथ पहले जैसी बात नहीं से ज्यादा समय अपनी बच्ची को देना चाहती थी . देवी माँ के मंदिर पर मिलने के कारण उस बच्ची का नाम उन्होंने अम्बा रखा ... धीरे – धीरे समय बीतता गया दो साल की अम्बा अब पाँच साल की हो गयी .. अब तो अम्बा बूढी अम्मा के जीवन का एक हिस्सा बन गई थी . अम्मा उससे बहुत प्यार करती थी जैसे मानो वह उनकी अपनी ही बेटी हो . जो कुछ भी अम्मा खिलौने बेचकर कमाती वह सब अम्बा कि परवरिश पर खर्च कर देती. अम्बा बड़ी हो रही थी. उधर अम्मा का स्वास्थ्य धीरे -धीरे बिगड़ता जा रहा था . एक तो वृद्धावस्था ऊपर से अम्बा की देख रेख में उन्होंने अपने बारे में कभी सोचा ही नहीं ..
अम्मा अब अपने जीवन के बिलकुल अंतिम पड़ाव पर पहुँच चुकी थी . धीरे- धीरे अम्मा का स्वास्थ्य ख़राब रहने लगा , लेकिन अम्बा को पालने के लिए उन्होंने कभी अपने स्वास्थ्य की ओर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया . जब कभी ज्यादा स्वास्थ्य ख़राब होता तो वे घरेलू नुस्खो से ही काम चला लेती उन्हें लगता कि यदि डॉक्टर के पास जायेंगी तो पैसे खर्च हो और उनके पास इतने पैसे नहीं होते कि घर का खर्च भी चला ले और डॉक्टर की फीस भी दे दें ...फिर दवाइयों का खर्चा अलग से...इसीलिए अम्मा घरेलू नुस्खो से ही काम चलाती रहती थी . स्वास्थ्य के प्रति इसी लापरवाही ने एक दिन उन्हें खाट पर लाकर रख दिया . इस बार वो जो बिस्तर पकड़कर बैठी उसमें कोई घरेलू नुस्खो काम न आया .. अब तो दिन रात अम्मा खाट में ही पड़ी रहतीं . उन्हें अपने स्वास्थ्य से ज्यादा अम्बा की परवरिश की चिंता सताए जा रही थी ... अक्सर वो ईश्वर से प्रार्थना करती रहती कि उन्हें अभी इस दुनिया से ना उठाये. अगर वो नहीं रही तो अम्बा का क्या होगा .....? कौन इस नन्ही सी जान की देखभाल करेगा ...? कही इसके साथ कुछ गलत हो गया तो ......? यही सोच -सोचकर उनका दिल बैठ जाता ... इस बार जो बीमार पड़ी तो बीमारी में ही पड़ी रही .. यहाँ तक कि उनका खाट से उतरना तक संभव न हो सका . अम्मा के बिगड़ते स्वास्थ्य को देखते हुए अम्बा अपने सिर पर खिलौनों की टोकरी रखकर दिनभर खिलौने बेचने जाती . अम्बा को खिलौने बेचते हुए देखकर अम्मा मन ही मन में कुढा करती ... एक तो उसकी उम्र ही क्या थी मात्र सात - आठ साल.......अम्बा दिन भर में जो कुछ कमाकर लाती उससे घर का खर्च और अम्मा के लिए कुछ दवाई लेकर आ जाती ...
जब अम्मा का स्वास्थ्य ज्यादा बिगड़ने लगा ... जब इस बात की जानकारी बस्ती वालों को मिले तो कुछ लोगों ने उनका कुछ दिनों तक इलाज करवाया . लेकिन ढलती उम्र में डॉक्टरों की दवाई भी बेकार साबित हुई ... लम्बी बीमारी से लड़ते -लड़ते एक दिन अम्बा को इस संसार में अकेला छोड़कर अम्मा परलोक सिधार गई. बस्ती के लोगों ने अम्मा का अंतिम संस्कार किया ..
अम्मा तो इस संसार से चली गई पीछे छोड़ गई अम्बा को .. अब अम्बा इस संसार में बिलकुल अकेली रह गयी . कई दिनों तक तो अम्बा ने अन्न जल की एक बूंद तक नहीं ली . अपनी झोपड़ी में अकेले बैठी रहती ..बस अम्मा को याद कर उसकी आँखों की आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे . जब बस्ती वालों ने उसे समझाया .... काफी समझाने के बाद उसने कई दिनों के बाद भोजन ग्रहण किया ....
इधर बस्ती के लोगो को अम्बा की चिंता हो रही थी कि अब उस मासूम का क्या होगा ? अम्बा के विषय में चिंता तो सब को हो रही थी पर कोई भी उस मासूम को अपनाने और अपने साथ घर में रखने को तैयार नहीं था . तभी वहां एक अधेड़ उम्र का आदमी जिसका नाम " सुरेश" था, आगे आया और बोला मैं इस बच्ची को संभालूँगा. मैं करूँगा इस का पालन - पोषण करूँगा. सुरेश भी उसी बस्ती में रहता था . सुरेश की पत्नी को गुजरे तीन -चार साल बीत चुके थी उसके भी कोई संतान नही थी . जब सुरेश ने अम्बा को गोद लेने के लिए कहा तो बस्तीवालों ने सबकी रजामंदी से अम्बा को सुरेश को सौप दिया.
सुरेश शराब की भट्टी में काम करता था. उसने कुछ दिन तो अम्बा का पालन -पोषण अच्छी तरह से किया लेकिन धीरे -धीरे उसने अपना असली रंग दिखाना शुरू कर दिया . सबसे पहले उसने अम्बा का स्कूल जाना बंद कर दिया और उसे एक होटल में बर्तन साफ़ करने के काम पर लगा दिया . मात्र आठ-नौ साल की अम्बा रोज सुबह से साम तक होटल में लोगो के झूठे बर्तन साफ़ करती . होटल पर काम करने के जो पासे उसे मिलते थे वे सब पैसे सुरेश उससे छीन लेता और अपनी ऐय्याशी जुए शराब में उड़ा देता था. अम्बा अक्सर स्कूल जाते बच्चों को देखा करती ... स्कूल जाते बच्चों को देखकर उसके मन में भी स्कूल जाने की बहुत इच्छा होती . एक दो बार उसने सुरेश से स्कूल जाने की बात भी की थी . इस पर सुरेश ने उसे बड़ी बेरहमी से पीटा .. पिटाई के भय के कारण उसने फिर कभी सुरेश से स्कूल जाने के बारे में कुछ नहीं कहा लेकिन जब भी उसे थोड़ा बहुत समय मिलता वह पास ही के एक सरकारी स्कूल में चली जाती वहाँ जाकर कुछ पढना-लिखना सीख रही थी . उस स्कूल के एक मास्टर अनुराग जी उसे अच्छी तरह से जानते थे . मास्टर जी उसकी माली हालत और सुरेश के बारे में भली भाती जानते थे. जब उन्होंने देखा कि अम्बा के मन में पढने -लिखने की लगन है . यह देखकर वे उसे अक्सर पढ़ा देते थे .चोरी - छिपे अम्बा ने थोडा पढना -लिखना सीख लिया था . समय अपनी तेज़ गती से भागा जा रहा था मानो जैसे उसे पंख लग गए हो देखते ही देखते आठ -नौ साल की अम्बा अपने सोलहवे साल में प्रवेश कर चुकी थी.
एक दिन की बात है सुरेश अम्बा को अपने साथ लेकर एक आदमी के पास लेकर गया, सुरेश अम्बा को जिस आदमी के घर लेकर गया था . देखने में तो वह आदमी एक सेठ की तरह लग रहा था. अम्बा उसके साथ चली तो आई लेकिन उसे बहुत डर लग रहा था . सुरेश ने अम्बा को बताया कि यह सेठ जी हैं और इनका कपड़ो का बहुत बड़ा कारखाना हैं . तू अब इनकी मिल में काम करना और ये तुम्हे वेतन भी ज्यादा देंगे और वेतन के साथ -साथ खाने को खाना और रहने के लिए घर भी . अब तुझे उस गंदी बस्ती में रहने की ज़रूरत नहीं . ज्यादा तनख्वाह और एक अच्छा घर मिलने कि खबर सुनकर अम्बा थोड़ा संकुचाई ......पर बाद में उसने सेठ की मिल में काम करने के लिए हामी भर दी . अगले ही दिन से अम्बा ने कपड़ा मिल में काम करना शुरू कर दिया . मिल में वह मन लगा कर काम सीखने लगी. उस मिल में और भी बहुत सारी लड़कियां काम करती थी. यहाँ पर कुछ ही दिनों में वह सब से हिल मिल गयी और उनसे दोस्ती भी कर ली थी . धीरे -धीरे समय बीतने लगा .
कारखाने का सेठ अक्सर रात को शराब के नशे में आता और उन लोगों से गाली गलौच किया करता गाली -गलौच तक तो ठीक था लेकिंग दिन प्रतिदिन उसकी हरकते अश्लील होती जा रही थी . उसकी इन हरकतों से शुरू में अम्बा को लगा कि शायद वो काम ठीक से ना होने की वजह से ऐसा करता हैं, पर जैसे -जैसे समय बीतता गया अम्बा को समझने में देरी नहीं लगी कि सेठ की नीयत में खोट है ....वह सब शराब के नशे में नहीं करता बल्कि ऐसा करने का कारण और कुछ है . असल में वह कपड़े के कारखाने की आड़ में वैश्यावृति का धंधा करता था . गरीब बेसहारा लडकियों को काम देने के बहाने लाकर कुछ दिन तक अपने कपड़े की मिल में काम करवाता फिर जबरन उन्हें वैश्यावृति के गंदे दलदल में धकेल देता . उसने न जाने कितनी मासूम लड़कियों के जिस्म का सौदा कर दलाली खाई थी .. जो लड़की उसकी बात नहीं मानती उसे बहुत मारता -पीटा . जब तक वे उस काम के लिए राजी नहीं हो जाती तब तक उनका खाना -पानी सब बंद कर देता .... .... भूखी प्यासी लड़कियों को मजबूर होकर वह घिनोना कार्य करना पड़ता था .
सेठ के इन सब कारनामों की जानकारी अम्बा को बहुत दिनों के बाद पता चली . लेकिन वो अपने आपको बहुत बचाकर रखे हुए थी. यह सब जानने के बाद तो वह फूंक -फूंक कर कदम रखने लगी. एक दो बार उस सेठ ने अम्बा जबरन इस धंधे में धकेलने की कोशिश की लेकिन अम्बा ने साफ़-साफ़ मना कर दिया . सेठ ने उसे अधिक से अधिक धन का लालच भी दिया लेकिन साफ़-साफ़ माना कर दिया .अम्बा के मना करने पर सेठ ने उसकी पिटाई भी की कई दिनों तक भूखा-प्यासा रखा. लेकिंन मार खाकर, भूखी -प्यासी रहकर भी अम्बा उस गलत काम के लिए राजी नहीं हुई . सेठ के अत्याचार दिन प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे थे . एक दिन अम्बा ने उस घर से भागने कि कोशिश भी की, लेकिन नाकाम रही . जब सेठ को इस बात का पता चला तो सेठ ने उसके दोनों पैरों को गर्म सलाखों से दाग दिया .....कई दिनों तक अम्बा दर्द और जलन से चीखती रही लेकिन वहाँ उसकी सुनने वाला कोई नहीं था . सेठ ने उसे एक कमरे में बंद कर दिया उसके लिए वह घर जेल के सामान हो गया था .. सप्ताह भर भूखी -प्यासी रहने के बाद भी अम्बा ने हिम्मत नहीं हारी... वह वहाँ से किसी न किसी तरह भागना चाहती थी .
आखिरकार एक दिन उसे वह मौका मिल ही गया उसने बिना समय गवाए मौके का लाभ उठाते हुए उस घर से भाग आई . घर से तो भाग आई लेकिन अब कहाँ जाए अगर वह अपने घर जहाँ सुरेश रहता है वहाँ गयी तो वह उसे बहुत मारेगा और फिर से जबरन उस सेठ के पास ले जायेगा . यही सोच रही थी कि कहाँ जाए तभी उसकी नज़र दूसरी तरफ से आते हुए मास्टर अनुराग पर गयी . वह तुरंत भागकर अनुराग के पास गयी . अम्बा को घबराई हुई देखकर उसने उसके घबराने का कारण पूछा . अम्बा की बात सुनकर पहले तो उसे विश्वास नहीं हुआ की को इतना बड़ा नामी व्यक्ति ऐसा घिनौना काम भी कर सकता है . अम्बा ने उन्हें बताया कि वह एक अकेली ऐसी लड़की नहीं है और भी बहुत सी लड़कियां हैं जो उस धंधे में जबरन धकेली जा रही हैं . वह उन सब को भी बचाना चाहती है . अनुराग को अम्बा पर पूरा विश्वास था उन्होंने उसकी सहायता करने का वादा किया . कुछ दिनों बाद उसने मास्टरजी के साथ जाकर पुलिस थाने जाकर उस सेठ के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई . पहले तो पुलिस को भी उसकी बातों पर यकीन नहीं हो रहा था पुलिस को लग रहा था कि वह लड़की एक नामी व्यक्ति पर बेबुनियादी आरोप लगा रही है. लेकिन जब मास्टर जी ने अम्बा का समर्थन करते हुए पुलिस पर दबाव डाला तब जाकर पुलिस ने उनकी शिकायत और सुनाक्त पर उस कंपनी पर छापा मारा तो पुलिस भी यह देखकर दांग रह गई . वहाँ पर बंद लड़कियों को भी मुक्त कराया . मास्टर जी और पुलिस की मदद से उसने उस सेठ का असली चेहरा समाज के सामने लाकर उसका भांडा फोड़ दिया. पुलिस ने सेठ को उसके बंगले से गिरफ्तार कर जेल भेज दिया . . जिस कारखाने के आढ़ में यह काला धंधा चल रहा था वह कारखाना भी सील कर दिया गया .
कारखाने के बंद होने से अब अम्बा के सामने एक सबसे बड़ी समस्या आन खड़ी हुई कि अब वह क्या करे फिर से नौकरी की तलाश .... पहले जिस होटल में वह काम करती थी उस होटल में काम के लिए गयी , लेकिन होटल के मालिक ने उसे दुत्कार कर निकाल दिया. बिना काम के वह क्या करे वापस घर भी नहीं जा सकती थी, अगर घर वापस जाएगी तो सुरेश उसके साथ न जाने क्या सलूक करेगा , हो सकता है कि फिर वह उसे बेरहमी से पीटे और फिर कही ज़बरन किसी ऐसे काम पर लगा दिया तो वह क्या करेगी ....? रहने के लिए घर नहीं खाने के लिए भोजन नहीं में वह करे तो क्या करे ..... तभी उसे मास्टर अनुराग का ध्यान आया वह सीधे उनके पास गयी और उनसे अनुरोध किया वे उसे कही काम दिलवा दे . मास्टर जी ने उसे समझाया कि अगर वह थोडा -बहुत पढ़ लिख ले तो उसे ऐसी –वैसी जगहों पर काम करने की कोई जरूरत नहीं रहगी और वह भी एक सम्मान जनक जीवन व्यतीत कर सकती हैं. मास्टर जी का सुझाव अम्बा को पसंद तो बहुत आया पर उसने अपनी आर्थिक स्थितियों के बारे में मास्टरजी को बताया. मास्टर जी के समझाने पर अम्बा ने उनकी बात मान ली .
अगले ही दिन मास्टर जी अम्बा को अपने मित्र श्याम जो की से मिलाने के लिए लेकर गए जो कि एक नर्सिंग ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट चलाते थे जिसका नाम “मानसी” था , जहाँ पर गरीब, बेसहारा बच्चों को नर्सिंग कोर्स का प्रशिक्षण दिया जाता था .इस संस्था में दाखिले के समय पाँच हजार रुपये के रूप में सुरिक्षत धन राशी जमा करवाई जाती थी . कोर्स करने के बाद जब उन बच्चों को नौकरी मिल जाती थी तो उनके पाँच हजार रूपये उन्हें वापस लौटा दिए जाते थे . लेकिन अम्बा के पास तो फूटी कौड़ी तक न थी, फीस कहाँ से जमा करती . मास्टर जी ने फीस के संदर्भ में श्याम जी से बात की और उन्हें अम्बा की आप बीती सुनाई और उन्हें समझाया कि वह एक शरीफ और होनहार लड़की है. वे उस पर भरोसा करके उसे अपने ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट में दाखिला दे सकते हैं . मास्टर अनुराग जी के आश्वासन पर फीस माफ़ कर दी गई और उसे दाखिला दे दिया गया. अम्बा वहां उनके हॉस्टल में ही रहकर नर्सिंग का कोर्स करने लगी . उसने नर्सिंग की सभी परीक्षाओं में प्रथम स्थान प्राप्त किया . परीक्षा में अपने आपको प्रथम स्थान पाकर उसकी ख़ुशी का ठिकाना न था. अम्बा के कठिन परिश्रम और लगन को देखते हुए श्याम जी ने उसे एक अस्पताल में नर्स के काम पर लगवा दिया . अम्बा मेहनती तो पहले से ही थी. अपने उच्च आचरण और मेहनत के कारण वह कुछ ही दिनों में अस्पताल में सबकी चहेती बन गयी.
अम्बा जिस प्यार और अपनेपन की भावना के साथ रोगियों की सेवा करती, उसी भावना के साथ उनकी देख भाल भी करती . अम्बा की सेवा और लगन से बहुत से मरीज़ अच्छे होकर अपने घर लौट जाते . अस्पताल से जो भी मरीज़ ठीक होकर जाता वह अम्बा को आशीष देते हुए जाता . अम्बा भी उन लोगों के आशीष को पाकर फूली न समाती. वह दिन प्रतिदिन यही प्रयास करती कि अपने मरीजों को बेहतरीन सेवा दे सके . अस्पताल में नौकरी के बाद भी वह अपने अतीत को भूली नहीं थी . उसके मन में सदैव कुछ और अच्छा करने की चाह रहती थी, लेकिन उसे समझ में नहीं आ रहा था की आखिर वह है क्या ....? जिसे वह पूरा करना चाहती हैं.
एक दिन की बात है जब अम्बा अस्पताल से घर जा रही थी, रास्ते में उसने देखा की एक व्यक्ति दो ढाई साल की बच्ची को बुरी तरह मार रहा हैं. लड़की को मार खाता देखकर वह उसके पास गयी और उस आदमी को रोकना चाहा, लेकिन उस आदमी ने उसे धक्का देकर दूर धकेल दिया और कहा तुम अपना काम करो हमारे घरेलू मामलों में दखल मत दो . उस दिन तो अम्बा वहाँ से चली गयी लकिन उसका मन उस मासूम बच्ची के पास ही था . उस रात वह ठीक से सो नहीं पायी रह -रह कर उस बच्ची का रोता -चीखता चेहरा दिखाई देता रहा . जैसे ही सुबह हुई . उसने फिर से उस जगह जाने का फैसला किया . सुबह -सुबह वह वहाँ पर पहुँच गयी . काफी पता करने के बाद मालूम चला की जिस लड़की को कल शाम वह आदमी मार रहा था वह उस बच्ची को कही से उठा कर लाया था और उसे बेचना चाह रहा था . इस प्रकार की घटना को जानकर अम्बा ने तुरंत पुलिस को फोन किया . थोड़ी देर में पुलिस भी मौके पर पहुँच गयी और उस आदमी को गिरफ्तार कर जेल ले गयी . पुलिस आरोपी को तो थाने ले गयी लेकिन उस मासूम बच्ची को अम्बा कि गोद में ही छोड़ गयी .
जब अम्बा ने उस बच्ची को देखा तो उसे अपनी बूढी अम्मा की बहुत याद आई अम्मा को याद कर उसकी आँखें भर आयीं . थोड़ी देर बाद वह स्वयं ही उस बच्ची को लेकर पुलिस थाने चली गयी और उसने पुलिस से निवेदन किया की जब तक इस बच्ची के माता - पिता के बारे में कुछ पता नहीं चल जाता क्या वह उसको अपने घर पर रख सकती हैं ? पुलिस ने अपनी कुछ औपचारिकतायें निभाकर अम्बा का नाम - पता लिख कर बच्ची को ले जाने की अनुमती दे दी . बच्ची को पाकर अम्बा को एक अजीब सा सकूँ अनुभव हो रहा था. कुछ दिनों तक तो वह बच्ची से ज्यादा घुली मिली नहीं जब समय धीरे - धीरे आगे बढ़ता जा रहा था वैसे -वैसे अम्बा उस बच्ची के प्रेम और लगाव में डूबती जा रही थी . कुछ समय उस मासूम बच्ची के साथ बिताकर उसे समझ में आ रहा था कि उसका दिल जो बहुत दिनों से चाह रहा था, शायद वह यही हैं, अम्बा ने उस बच्ची को वह सारी खुशियाँ देने का फैसला किया जो उसे कभी न मिल सकी थी . उस बच्ची के आने से अम्बा के जीवन में एक अनोखी रोशनी सी छा गयी थी . वह उस बच्ची का एक माँ की तरह ही ख्याल रखती . उस बच्ची के आने से उसके सूने पड़े जीवन में के मुस्कान आ गयी थी. उसे जीने का एक मक्सद मिल गया था . इसीलिए उसने उसका नाम मुस्कान रखा . धीरे -धीरे मुस्कान बड़ी होने लगी .अम्बा ने उसे एक अच्छे अंग्रजी माध्यम के स्कूल में दाखिल करवाया. मुस्कान के अम्बा के जीवन में आने से ऐसा लग रहा था जैसे उसके सूने जीवन में मुस्कान सावन की फुहार बन कर मुस्करा रही हो . मुस्कान को पाकर अम्बा ने कभी अपने वैवाहिक जीवन के बारे में नहीं सोचा .....मुस्कान के आने के बाद उसे अपने बारे में सोचने का कभी समय ही नहीं मिला ...जब कभी थोड़ा -बहुत समय मिलता तो वह मुस्कान के विषय में ही सोचा करती ......दोनों एक दूसरे का साथ पाकर काफी खुश थे. कभी -कभी अम्बा को डर भी लगता था कि कही मुस्कान के असली माँ -बाप आ गए और वे उसे लेकर अपने साथ चले जायेंगे तो वह मुस्कान के बिना कैसे जीयेगी...?
धीरे - धीरे समय अपनी तेज गति के साथ चलता जा रहा था . बदलते समय के साथ मुस्कान बड़ी हो रही थी ..और अम्बा भी अब हेड नर्स बन चुकी थी. मुस्कान अब अपनी स्कूल की पढाई पूरी करके कॉलेज जाने लगी थी. धीरे -धीरे उसने अपने कॉलेज की पढाई भी ख़त्म कर ली . अम्बा ने मुस्कान तो अच्छे संस्कारों में पाला था .जब से मुस्कान बड़ी हुयी उसने अम्बा को कठिन परिश्रम करते देखा था. मुस्कान ने अक्सर अम्बा को उसकी खुशियों के लिए अपनी खुशियों के साथ समझौता करते देखा था . मुस्कान भी बचपन से यही सोचा करती कि वह भी बड़ी होकर अपनी माँ की तरह समाज की सेवा करेगी . अपनी कॉलेजे की पढाई ख़त्म करते ही उसे कई बड़ी -बड़ी कंपनियों से नौकरी के प्रस्ताव आये. उन प्रस्तावों में से एक प्रस्ताव को स्वीकार कर एक अंतर्राष्ट्रीय कम्पनी में नौकरी करने लगी . कम्पनी उससे वेतन भी खूब अच्छा दे रही थी ..मुस्कान भी अपनी माँ की तरह हंस मुख और चंचल थी साथ ही साथ कठिन परिश्रमी भी ... मुस्कान को अपने पैरों पर खड़ी देखकर अम्बा बहुत खुश थी . उसे लगा कि उसने वर्षों पहले जो जिम्मेदारी अपने कन्धों पर ली थी वह कुछ हद तक पूरी हो गयी .. अब उसे मुस्कान के विवाह की चिंता सताने लगी ....
मुस्कान ने कुछ वर्षों तक उस कंपनी में मन लगाकर मेहनत से काम किया. लेकिन उस काम को करके वह सदा असंतुष्ट ही रहती . वह कुछ ऐसा करना चाहती थी जिससे समाज और लोगों की सेवा हो सके ... एक शाम वह अपने ऑफिस से घर जा रही थी . रास्ते में उसे एक व्यक्ति भीख मांगते नज़र आया ... उसने उससे कहा कि तुम भीख क्यों मांगते हो, कुछ काम क्यों नहीं करते ... मुस्कान की आवाज सुनकर उस भिखारी ने इशारों में बताया कि वह बोल नही सकता ...और कोई उसे काम पर नहीं रखता ..सब उसका मजाक बनाते हैं ... भिखारी की कही एक एक बात मुस्कान समझ गयी. उसने उस भिखारी को कुछ पैसे दिए और घर चली गई ...समय आगे बढ़ रहा था उसी समय के साथ मुस्कान भी आगे बढ़ रही थी .. कम्पनी में काम करते -करते उसे तीन साल बीत चुके थे... एक दिन अनायास ही वह अपनी एक सहकर्मी सहेली के घर चली गयी .... सहेली की एक बड़ी बहन थी जो बोल और सुन नहीं सकती थी ... जब मुस्कान उसके घर गयी थी तभी उसके बहन इधर - उधर घूम रही थी . उसकी माँ उसे बहुत डांट रही थी ...भला -बुरा कह रही थी , उसके जन्म को लेकर उसे कोस रही थी ...... बाद में उसे ले जाकर उसके कमरे में बंद कर दिया ... यह देखकर मुस्कान को बहुत दुःख हुआ वह मन ही मन सोचने लगी कि इन लोगों की ज़िन्दगी भी क्या है ...क्यों लोग इन्हें इंसान नहीं समझते ...ये भी इंसान है ....इन्हें भी सम्मान से जीने का अधिकार है फिर ...? उसी दिन से मुस्कान ने ऐसे लोगों की सहायता करने का निर्णय किया
इसीलिए उसने एक दिन उसने अपनी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया ... उसके इस फैसले से अम्बा थोड़ी दुखी तो हुई, लेकिन जब मुस्कान ने अपनी नौकरी छोड़ने का कारण बताया तो वह बहुत खुश हुई . समाज सेवा के उद्देश्य से उसने एक स्कूल शुरू किया.एक ऐसा स्कूल जो मूक बधिर बच्चों के लिए था. स्कूल तो शुरू कर दिया बच्चे कहाँ से आयेंगे ... ? स्कूल को चलाने के लिए धन कहाँ से आएगा. यह एक विकट समस्या मुस्कान के सामने थी .इस नेक कार्य के लिये उसने अपनी सब जमा पूंजी स्कूल में लगा दी थी .इसके बाद एक और समस्या यह आन खड़ी थी कि वह लोगों को कैसे समझाए कि मूक-बधीर बच्चे भी समाज के अन्य लोगों की तरह ही होते हैं . हमें उन्हें हीन भावना से नहीं देखना चाहिए..
उस नेक कार्य में आने वाली बाधाओं का सामना करते हुए मुस्कान अपने कार्य को चला रही थी .. अपने स्कूल में बच्चों के लिए वह गाँव - गाँव छानबीन कर के ऐसे बच्चों को ढूंढ़ती जो मूक और बधीर है ..वह उनके माता- पिता को समझाती , उन्हें मनाती कि यह बच्चे भी आगे पढ़ सकते हैं. ज्यादातर माता पिता ऐसे बच्चों को उनके ही हाल पर छोड़ देते थे, पर मुस्कान उन्हें अपने साथ ले आती और अपने पास रखती उन्हें पढ़ाती .. धीरे -धीरे स्कूल में बच्चे बढ़ने लगे .शुरू -शुरू में तो मुस्कान को काफी आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ा पर उसने हिम्मत नहीं हारी . वह अपने काम को यथावत चलाये हुए थी . धीरे -धीरे उसके इस काम की सराहना होने लगी . उसकी सहायता के लिए लोग हाथ बढाने लगे . देखते ही देखते मुस्कान उसकी इस नेक मुहीम से हजारो लोग जुड़ गए . मुस्कान उस स्कूल की प्रिंसिपल बन गयी थी. जीवन के जो आदर्श उसने अपनी माँ अम्बा से पाए थे. उन्ही आदर्शों पर वह भी चलने का प्रयास कर रही थी .. . अम्बा भी मुस्कान के इस काम से बहुत खुश थी. मुस्कान ने उन बच्चों के लिए अलग अलग तरह की मशीनों का इंतज़ाम किया जिससे वे बच्चे पढ़ सके. धीरे धीरे मुस्कान समाज के उन असहाय लोगों के होठों की मुस्कान बन गयी जिन्हें समाज बेकार समझकर नकार देता था , मुस्कान ऐसे लोगों को अपने पैरों पर खड़ा होने लायक बना देती , उन्हें समाज में एक नागरिक होने का गौरव प्रदान कराती ... उनके हकों के लिए आवाज़ उठाती .....
जैसे एक दिन अम्बा ने बूढी अम्मा के जीवन में खुशियाँ बिखेरी थी वैसे ही आज मुस्कान ने अम्बा के जीवन को धन्य कर दिया .... आज वह केवल अम्बा की मुस्कान नहीं सब लोगों की मुस्कान हो गयी है...खासकर ऐसे लोगों की जिन्हें परिवार , समाज के लोगों ने बेकार समझकर दुत्कार दिया था ....
नमस्ते शिव कुमार जी,
ReplyDeleteनिसंदेह आपकी यह मुस्कान सभी के चेहरों की मुस्कान बन जाएगी...इंसान अगर दूसरो के दुःख दर्द के बारे में थोडा सा ही सोचे तो कइयो के चेहरे इस मुस्कान से खिल उठेंगे..एक यथार्थ और उत्तम रचना..
बधाई
अमित अनुराग हर्ष
अनुराग जी ,
ReplyDeleteआपने मुस्कान कहानी पढ़ी ओर उसे सराहा ...उसके लिए बहुत -बहुत धन्यवाद .
Shiv Sir,
ReplyDeleteA very good story..you have written..I am fond of your story telling way..
Congrats
Tanmaya
Shiva Sir jee,
ReplyDeleteaapki ki kahni padd kar achcha laga..
Best Luck
Upendraa
Sirji,
ReplyDeleteIt was a pleasure reading you story " muskan". I liked Amba's character very much.
Thank you
Shubhangi
Sir,
ReplyDeleteYou have proved again the women's will power through your story..superb
Regards
Radhika Karanjkar