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Wednesday, May 18, 2011

चुनौती

आज सुजाता के सिर से बाप का साया भी ईश्वर ने छीन लिया । आज उसे सारी दुनिया में सिर्फ अंधेरी ही नजर आ रहा था । कुछ वर्षों पहले माँ का साया सिर से उठ गया था एक पिता का साया बचा था वह भी चला गया । सुजाता का न कोई भाई है न बहिन वह अपने माँ-बाप की इकलौती संतान थी । कितने जतन से माँ -बाप ने उसे पाला था जीवन में जिस चीज की चाह की वह मिली लेकिन आज वह किसके सहारे रहे….। हमारे समाज में एक अकेली  जवान लड़की का जीना कितना मुश्किल  होता है यह तो वही जानती है । सुजाता के पिता के नाम कुछ दस एकड़ ज़मीन थी और एक घर । सुजाता का एक चाचा था । माता -पिता के गुजरने के बाद वह अपने चाचा - चाची के साथ उनके घर शहर में आ गई थी उसने सोचा था कि माता -पिता तो छोड़ गए ,अब चाचा-चाची ही मेरे माता पिता हैं । जैसे -जैसे समय बीतने लगा वैसे -वैसे उसके चाचा-चाची का असली चेहरा सुजाता के सामने आने लगा। सुजाता को कुछ समय तक तो घर में एक परिवार के सदस्य की तरह देखा जाता था लेकिन कुछ समय बाद वह घर के आम सदस्य से नौकरानी बन गई घर का सारा काम खाना बनाना, बरतन धोना , कपड़े धोना सारे घर की साफ सफाई उसके काँधों पर जबरन रख दी गई । सुजाता के चाचा - चाची बैंक में नौकरी करते थे सुजाता ने कई बार अपने चाचा-चाची से उसे नौकरी पर लगाने का आग्रह किया था लेकिन उन्होंने उसकी बातों को विशेष महत्तव नहीं दिया । दिन प्रतिदिन उसके चाचा-चाची का अत्याचार उसपर बढ़ता ही जा रहा था । अब तो उसे खाने के लिए भी नाप तोलकर  दिया जाने लगा था । फिर भी उसने किसी से कोई शिकायत नहीं की अपना नसीब मानकर वह सब दुखों को सहती रही । उसे पता था कि अगर वह घर से बाहर जाती है तो बाहर समाज उसे चैन से जीने नहीं देगा । एक जवान लड़की वह भी अकेले…..यही सोचकर वह उनके अत्याचारों को सहती रहती घुट -घुट कर जीती । सुजाता की एक चचेरी बहिन भी थी। चचेरी बहिन थी तो सुजाता से दो साल छोटी लेकिन हुकुम ऐसे चलाती थी जैसे सुजाता छोटी हो और वह बड़ी । सुजाता के नाम दस एकड़ ज़मीन है यह सुजाता भी जानती थी और उसके चाचा-चाची भी । साल भर जो कुछ खेतों में पैदा होता था चाचा उसे बेचकर पैसे  चुप अपनी जेब में रख लेते थे उसे तो यह तक नहीं पता कि कब कितनी फसल बिकी और किस खेत में कौन सी फसल है । चाचा -चाची ने उसे एक कैदी के समान घर में रख रखा था न बाहर जाना न किसी से बात करना सब पर पाबंदी थी। इस प्रकार के जीवन से सुजाता तंग आ चुकी थी ...। रह रह कर उसे एक प्रश्न खाए जा रहा था कि क्या यही रिश्ते होते हैं ….?

धीरे -धीरे समय बीता आज सुजाता की  चचेरी बहन की शादी है । सारा घर  रौशनी से सजा हुआ था,  चारो तरफ चहल-पहल थी सभी रिश्तेदार आए । आज सुजाता भी बहुत खुश थी सभी रिश्तेदारों से मिलकर उसे अच्छा लगा लेकिन वह किसे अपने मन की पीड़ा कहे… । देखते देखते चचेरी बहन की शादी हो गई वह अपनी ससुराल चली गई । इधर धीरे-धीरे सारे रिश्तेदार भी विदा हो चुके थे । चाचा -चाची ने अपनी बेटी का विवाह तो बड़ी धूम-धाम से कर दिया लेकिन कभी सुजाता के विवाह के विषय में नहीं सोचा । अक्सर उनके रिश्तेदार उन्हें टोकते रहते –‘कि अब तो सुजाता के बारे में भी सोचना चाहिए उसके भी हाथ पीले कर देने चाहिए । वह भी  विवाह के योग्य हो गई है। भले ही विवाह में  ज्यादा रुपया खर्च नहीं करना किसी गरीब के घर ही विवाह कर दो.. ।’ जब भी सुजाता के विवाह का प्रश्न आता चाचा कोई न कोई बहाना बनाकर उसे टाल देते ।

एक दिन उसके चाचा ने कहा – ‘बेटा नदी पार जो जमीन है उसे बेच देते है अभी अच्छे दाम मिल रहे है ।’ सुजाता को लगा कि वे अपनी ज़मीन को बेचने की बात कह रहे है क्योंकि दोनो की ज़मीन एक साथ ही तो थी । सुजाता ने भी कह दिया कि आप की मरजी ज़मीन आपकी है अब उसे बेचो या न  बेचो । यह सुनकर उसके चाचा को मानो मुँह माँगी मन्नत मिल गई हो.। तुरंत ही वे ज़मीन के कागज लेकर आ गए और सुजाता को उन पर हस्ताक्षकरने के लिए कहने लगे । हस्ताक्षर की बात सुनकर सुजाता को दाल में कुछ काला लगा उसने पूरे कागजात पढ़े ,कागजात पढ़ने के बाद उसके पैरों तले की ज़मीन खिसक गई असल में उसके चाचा अपनी ज़मीन नही सुजाता की दस एकड़ ज़मीन बेचना  चाह रहे थे । जब सुजाता ने यह प्रश्न किया कि वे उसकी ज़मीन क्यों बेचना चाह रहे है तो उन्होंने कहा कि उस ज़मीन को बेचकर तेरे हाथ पीले जो करने हैं नहीं तो इतने पैसे कहाँ से आएंगे .......। यह देखकर सुजाता ने कागजातों पर हस्ताक्षर करने से साफ मना कर दिया । अब क्या था  अब तो सुजाता पर दिन रात ज़मीन के कागजातों पर हस्ताक्षर करने का दवाव बढ़ने लगा । अब वह क्या करे उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था लेकिन वह जानती थी कि वह किसी भी हालत में अपने पिता की ज़मीन को उनके नाम नहीं लिखेगी उसके लिए उसे चाहे कितने ही अत्याचारों का सामना क्यों न करना पड़े.।
अत्याचारों का सिलसिला लगातार चलता रहा सुजाता उन अत्याचारों को सहती रहती ।अपने कमरे में बैठी अपने अतीत के दिनों को याद करते हुए सोच रही थी कि - क्या ये वही चाचा-चाची है जो कभी मुझपर इतना  लाड़ लड़ाते थे ….? माँ-पिता क्या गए इनका लाड़ - प्यार भी चला गया क्या वह सिर्फ दिखावा था ? सोचते-सोचते उसकी आँखें भर आई…। आज उसे अपने माता -पिता की बहुत याद आ रही थी .......। तभी दरवाजे के खटकटाने की आवाज़ हुई सुजाता अपनी आँखों के आँसुओं को पोंछती हुई दरवाजा खोलने के लिए गई । दरवाजा खुलते ही उसने देखा कि चाची लाल तमतमाती हुई बाहर खड़ी हैं । चाची ने दरवाजा खुलते ही आव देखा न ताव सीधे सुजाते के गाल पर एक ज़ोर का तमाचा लगाते हुए दहाड़ने लगी .....। आज चाची का यह रौद्र रुप देखकर सुजाता के रोगटे खडे हो गए । आज तक उसके माता -पिता ने उसे दो अँगुली तक नहीं लगाई ...... आज चाची ने बिना किसी कसूर के ......। कुछ देर तो वह मूर्तीवत खड़ी रही उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे तभी चाची ने उसका हाथ पकड़ा और जोर का झटका देते हुए कमरे से बाहर खींचते हुए चिल्लाने लगी ..... सुजाता वहाँ से सीधे  रसोई में जाकर खाना बनाने लगी । इधर चाची का बड़बड़ाना लगातार जारी था कभी वह सुजाता को कोसती कभी उसके माँ-बाप को ......।

      आज घर में दावत का आयोजन किया गया है । उसके चाचा का प्रमोशन जो हुआ है । शाम को चाचाजी के सभी दोस्त खाने पर आने वाले हैं । मेहमानों के लिए खाना बनाने की ज़िम्मेदारी सुजाता को दी गई साथ ही साथ यह हिदायत भी दी गई कि खाने में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं होनी चाहिए वर्ना......। खाना बनाने में सुजाता की  सहायता के लिए घर के दो नौकर भी थे । बीस से तीस लोगों का खाना बनाना कोई बच्चों का खेल तो नहीं … एक बार तो सुजाता के मन में आया कि वह कह दे वह इतने सारे लोगों के लिए अकेले खाना नहीं बना सकती फिर न जाने क्या सोचकर खाना बनाने के काम में लग गई ...। जैसे ही सूरज आसमान की गोद में छिपा एक -एक करके मेहमानों का आना शुरु हो गया ...इन्हीं में से एक थे अनुराग  जो कि उसी बैंक में मैनेजर के पद पर कार्य कर रहे थे जिस बैंक में उसके चाचा-चाची कार्य कर रहे थे। वे सुजाता को तब से जानते थे जब वह बहुत छोटी थी। सुजाता को अपने सामने दीन हीन हालत में देखकर वे चौक गए पहले तो उन्हें लगा कि शायद सुजाता की सक्ल की कोई और लड़की है। लेकिन जब सुजाता ने आकर उन्हें ‘नमस्ते अंकल जी कहा’ तब उन्हें पता चला कि वह सुजाता ही है । अनुराग  को यह तो पता था कि सुजाता के माता -पिता का स्वर्गवास हो चुका है लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि वह अपने चाचा-चाची के साथ इसी शहर में रह रही है। जब उन्होंने सुजाता से उसकी कुशलता का समाचार पूछा तो उसकी आँखें भर आई...सुजाता ने अपनी आप बीती किसी तरह उन्हें कह सुनाई .... अनुराग को सुजाता की आप बीती सुनकर यकीन ही नहीं हो रहा था कि सीधे-साधे दिखने वाले उसके चाचा-चाची इतने निर्दयी होंगे ... ।

अनुराग ने सुजाता को समझाया कि वह यहाँ रहकर अपना जीवन बर्बाद न करे । उन्होने समझाते हुए कहा कि– ‘तुम पढ़ी लिखी होकर भी क्यों अनपढ़ों के समान यहाँ इनके अत्याचार  सह  रही हो ऐसा तो है नहीं कि तुम्हारे पास घर नहीं है या ज़मीन जायदाद नहीं है । यह तो तुम भी अच्छी तरह जानती हो कि अगर तुम अपनी दस एकड़ ज़मीन को किराए पर दोगी तो इतना पैसा तो तुम्हें मिल ही जाएगा कि तुम आराम से घर बैठी खाओगी और फिर तुम पर किसी का कोई अहसान नहीं होगा...। तुम पढ़ी लिखी हो कही नौकरी क्यों नहीं कर लेती . अगर यहाँ इसी प्रकार घुट घुट कर जीती रही तो ये लोग तुम्हारा इसी प्रकार शोषण करते रहेंगे। क्यों किसी बेसहारे के समान इनकी चौखट पर पड़ी हो ...जब तक तुम स्वयं अत्याचार के खिलाफ नहीं खड़ी होगी कोई भी तुम्हारी मदद नहीं कर सकता अब फैसला तुम्हें करना है.....। यदि तुम्हें मेरी मदद की कभी भी ज़रूरत पड़े तो बिना संकोच  कह देना ।

धीरे -धीरे दावत समाप्त हुई घर आए हुए सभी मेहमान अपने - अपने घरों को जा चुके थे । अनुराग की कही बातों ने सुजाता पर न जाने क्या जादू सा कर दिया था कि अब वह अपने चाचा के घर को छोड़कर अपने घर जाने के लिए तैयार हो चुकी थी । आज रात उसने जैसे - तैसे काटी सारी रात वह सुबह होने का इंतजार करती रही  सुबह होते ही उसने अपने चाची-चाचा के सामने अपने घर जाने की बात कही तो दोनों यह सुनकर सन्न रह गए । उन्हें लगा कि यदि वह अपने घर जाकर रहेगी तो जो दस एकड़ ज़मीन है वह जाती रहेगी और वे किसी भी कीमत पर उस ज़मीन को छोड़ना नहीं चाहते थे। अगर सुजाता उनके साथ न रहकर अकेली रहेगी तो जो कुछ खेती से आमंदनी हो रही है वह भी रुक जाएगी , अब तक तो जो कुछ भी खेती में पैदावार हो रही थी उस सब के वे ही कर्ता धर्ता थे जब सुजाता वहाँ नहीं रहेगी तो वह सब कुछ बंद हो जाएगा और फिर घर पर भी तो  काम करने के लिए भी कोई नही रहेगा । इसी लिए उन्होंने उसे समझाया कि तुम्हारा अकेले रहना ठीक नहीं है और फिर तुम्हें यहाँ पर किसी चीज़ की कमी तो है नहीं.... फिर क्यों तुम वहाँ जाकर अकेले रहना चाहती हो । वैसे भी आज-कल का ज़माना ठीक नहीं है आदि बातें …. लेकिन सुजाता ने निर्णय ले लिया था कि अब वह इस घर में नहीं रहेगी….

जो कुछ उसका सामान था वह लेकर वह किसी न किसी तरह वह चाचा-चाची का घर छोड़कर निकली ,  वह घर से बाहर तक तो आ गई लेकिन अपने घर तक कैसे जाए यह सबसे बड़ा प्रश्न था क्योंकि उसके पास किराए के लिए के रुपया तक नहीं था । चाचा-चाची ने उसे एक रुपया तक नहीं दिया यहाँ तक कि जो चप्पलें उन्होंने उसे खरीदकर दीं थी वे भी उसके पाँवों से निकलवा ली । सुजाता बिना चप्पलों के नंगे पाँव घर से निकल आई .... गरमी के दिन थे सूरज की ताप से सारी धरती जैसे मानो एक गरम तवा सी बन चुकी थी उसपर नंगे पाँव चलना कितना कठिन होगा यह तो वही जान सकता है जिसपर बीती होगी। कुछ देर सुजाता सड़क पर एक पेड़ के नीचे बैठी रही यही सोचती रही कि वह अपने घर तक कैसे जाए, घर भी वहाँ से करीब पंद्रह से बीस किलोमीटर दूर था  ... कुछ देर सोचने के बाद वह खड़ी हुई अपना सामान उठाया और पैदल चलने लगी । ऊपर सूरज आग बरसा रहा था नीचे सड़क दहक रही थी वह सड़क के किनारे उगी घास पर पाँव रख-रखकर चलती चली गई कुछ दूर जाती फिर किसी पेड़ की छाँव में आराम करने लग जाती इसी प्रकार चलते-चलते दोपहर से शाम हो गई भूखी प्यासी सुजाता आखिरकार अपने घर पहुँच ही गई ....। गरमी में बीस किलोमीटर पैदल चलने के कारण उसके पैरों में छाले पड़ चुके थे । कुछ छाले तो फूट चुके थे जिसके कारण उसे अत्यधिक पीड़ा हो रही थी । घर में कुछ भी नहीं था जो वह उन छालो पर लगा सके ।

सारा घर धूल से भरा पड़ा था । शुक्र है …वह घर को जैसा छोड़कर गई थी वैसा ही है। अब वह घर तो आ गई है लेकिन खाएगी क्या सामान कहाँ से लाएगी उसके पास तो पैसे ही नहीं है...। थकी हारी सुजाता ने जैसे तैसे घर थोड़ा बहुत साफ किया और भूखी प्यासी अपने कमरे में सोने के लिए लेट गई लेकिन छालों की पीड़ा के कारण वह सारी रात सही ढ़ंग से सो न सकी। घर में न बिजली थी  न पानी ...क्योकि साल भर से बिजली का बिल नहीं जमा किया इसी लिए बिजली काट दी गई थी वही हाल पानी का भी था ...। दूसरे दिन सुबह लंगड़ाते -लंगड़ाते  वह पड़ौस की दुकान जिससे हमेशा उसके पिताजी सामान खरीदा करते थे उस दुकान पर गई और कुछ खाने का सामान उधार लेकर आई, दुकादार सुजाता को अच्छी तरह जानता -पहचानता था। इसीलिए उसने सुजाता को उधार सामान दे दिया । दो दिन से भूखी सुजाता ने खाना बनाकर खाया ....। खाना खाने के बाद वह घर की साफ - सफाई में लग गई । उसके कपड़े और पिताजी के कपड़े इधर उधर बिखरे पड़े थे । जैसे ही उसने पिता जी के कपड़े  देखकर उसकी आँखें भर आर्इं..... कपड़ों को झाड़ कर बक्से में रखने लगी तभी एक कपड़े  से कुछ पैसे नीचे गिरे उसने पैसों को देखा और उठाकर गिनने लगी  वे तीन सौ रुपए थे जो पिताजी के कुर्ते में रखे थे । इतने पैसे पाकर उसे लगा जैसे पिताजी को पहले से ही पता था कि उनकी बेटी को उनके जाने के बाद इन पैसो की सख्त ज़रूरत पड़ेगी । इसीलिए वे इतने सारे पैसे अपने कुर्ते में रखकर छोड़ गए थे। मेरी मदद के लिए….. यह सोचकर वह फूट-फूटकर रोने लगी.....।

आज सुजाता को चाचा-चाची का घर छोड़े हुए एक महीना बीत चुका है वह अपनी ज़िन्दगी को धीरे -धीरे पटरी पर ला रही है । जो पैसे उसे पिता के कुर्ते से मिले थे सबसे पहले उसने दुकानदार का उधार चुका दिया। घर पर न बिजली थी न पानी बिजली का बिल भी बहुत था और पानी का भी ....इतना पैसा कहाँ से लाए ...तभी उसे अनुराग की कही बातें याद आई कि उसके पास दस एकड़ ज़मीन है वह उस ज़मीन को किराए पर देकर भी पैसे कमा सकती है ..उसने ऐसा ही किया एक साल के लिए अपनी ज़मीन एक किसान को किराए पर दे दी ... चाचा ने ज़मीन को किराए पर न देने के लिए कहा लेकिन अब सुजाता ने चाचा की एक न सुनी ....किराए के जो पैसे मिले थे उनसे उसने अपने घर की बिजली और पानी के नए कनेक्शन लगवाए । बिजली और पानी के कनेशनों के लिए उसे कितनी भाग -दौड़ करनी पड़ी तब जाकर कही काम बन पाया था । बिजली पानी की समस्या तो उसने भाग-दौड़ करके हल कर ली थी लेकिन अब सबसे बड़ी समस्या यह थी कि आगे का सफर बिना नौकरी के कैसे चलेगा.....?

एक दिन वह बाजार से सामान लेकर लोट रही थी कि उसकी मुलाकात बचपन की सहेली कल्पना से होती है । दोनों सहेलियाँ एक दूसरे को आमने सामने देखकर चौक जाती है फिर बातें करती हुए घर आती है । कल्पना एक प्राइवेट स्कूस में टीचर की नौकरी करती है । जब कल्पना ने सुजाता की आपबीती सुनी तो उसकी भी आँखें भर आई ... । कुछ समय सुजाता के पास बैठने के बाद वह घर लौट आई दूसरे दिन उसने अपने स्कूल में अपनी प्रिसीपल से सुजाता के विषय में बात की जब प्रिसिपल ने यह सारी घटना सुनी तो उन्होने सुजाता को अगले दिन स्कूल आने के लिए कहा .... प्रिसिपल ने सुजाता का इन्टरव्यू लिया और उसे प्राइमरी कक्षाओ के लिए नियुक्त कर लिया ...। स्कूल में नौकरी मिल गयी । इधर अपनी दस एकड़ ज़मीन को दूसरे किसानों को भाड़े पर दे देती  इस प्रकार अब उसका जीवन सुख से  व्यतीत होने लगा । जब तक वह स्कूल में रहती तब तक तो सारा दिन अच्छे ढंग से गुजर जाता जैसे ही शाम होती उसे घर में अकेलापन खाने को दौड़ता। अपने  इस अकेलेपन को दूर करने के लिए वह घर पर गरीब बच्चों को पढाने लगी उन्हें  वैदिक मंत्रों की शिक्षा देने लगी । वैदिक मंत्रों की शिक्षा उसने अपने पिताजी से प्राप्त की थी । उसके पिता  एक ब्रााहृण ज्योतिषी थे । नौकरी के साथ -साथ सुजाता ने आगे की पढ़ाई का काम भी शुरू कर दिया । धीरे -धीरे उसने एम.फिल तक की पढ़ाई कर ली । अब उसे बच्चों को पढ़ाने का अनुभव चार -पाँच साल हो चुका था एक स्कूल में काम करने के बाद उसने दूसरे स्कूल में नौकरी की जहाँ उसे ज्यादा  तन्ख्वाह मिलने लगी इस प्रकार वह अपने जीवन की गाढ़ी को आगे चलाने लगी। जीवन की इस आपाधापी में समय कैसे गुजर गया पता ही नही चला । बीस -पच्चीस साल की सुजाता अब जीवन के दूसरे पड़ाव को भी पार करने लगी थी । मानसिक तनाव  कारण  सिर के पूरे बाल सफेद हो चुके थे। जीवन  जीने के संघर्ष ने उसे समय से पहले ही वृद्धावस्था की देहलीज पर लाकर खड़ा कर दिया था ।

एक दिन जब सुजाता स्कूल से घर लौटी तो एक चिट्ठी को पढ़कर उसके पैरों तले की ज़मीन खिसक गई । वह चिट्ठी कोर्ट का नोटिस था । उसके चाचा ने उसकी दस एकड़ ज़मीन पर अपना मालिकाना हक जताया था । इसी लिए उन्होंने सुजाता के ऊपर केस कर दिया था कि वह उनकी ज़मीन पर जबरन कब्जा करके खेती कर रही है..। सुजाता ने कभी सपने में भी कल्पना नहीं की थी कि उसके चाचा इस हद तक नीचे गिर सकते हैं  । उसने भी एक वकील से मिलकर कोर्ट में अपना पक्ष रखा । कोर्ट कचहरी के रोज रोज चक्कर लगाना ....स्कूल जाना बच्चों को पढ़ाना । धीरे -धीरे जमा पूजी कोर्ट कचहरी के चक्करों  में समाप्त होने लगी यहाँ तक कि उसे अपना घर तक बेचना पड़ा। वह चाहती थी कि किसी भी प्रकार से अपने पिता की ज़मीन को बचा सके लेकिन...........। कोर्ट कचहरी के फैसले इतनी जल्दी कहाँ आते हैं ...तारीख पर तारीख एक साल दो साल देखते देखते बीस साल बीत गए लेकिन उस ज़मीन का कोई फैसला न हो सका ... कोर्ट कचहरी के इसी झंझट के कारण उसकी तबीयत खराब होने लगी इधर कोर्ट कचहरी का खर्चा , उधर घर का किराया और अब बीमारी का खर्चा आमदनी उतनी थी नहीं ….जैसे तैसे सरकारी अस्पताल में जाकर अपना इलाज करवाया।   वह इस हालत  में क्या करे क्या ना करे उसकी कुछ समझ में नहीं आ रहा था .....कभी कभी तो उसे लगता कि ऐसी ज़िदगी से तो मौत भली । लेकिन उसने भी ठान लिया था कि मौत के विषय में तो कायर लोग सोचते हैं और वह कायर नहीं है ।  कुछ भी हो वह कोई भी ऐसा काम नहीं करेगी जिससे उसकी और उसके स्वर्गवासी माता -पिता की बदनामी हो ...... आत्मसम्मान से जीवन जीने की चुनौती को वह जीतकर ही दिखाएगी. ।

आखिर एक दिन उसके सब्रा का बाँध टूट गया । एक अकेली जान कहाँ -कहाँ, किस किस से लड़े   इन कोर्ट कचहरी के झंझटो से तंग आकर उसने अपना केस वापस ले लिया । वह ज़मीन जिसके लिए अपना घर तक बेच दिया था । चाचा को दे दी। इस ज़ालिम समाज में अकेला होना भी पाप है। वह अपने पेट के लिए कमाए कि केस लड़ने के लिए ....एक अकेली औरत के लिए समाज में इज्जत से जीना कितना दूभर होता है यह तो वही जानती है ….पग पग पर उसे ज़ालिम समाज में बैठे भेड़ियों से रोज लड़कर अपनी रक्षा खुद करनी होती है…..।

23 comments:

  1. मार्मिक कथा...
    जन की पीड़ा को शब्द दे रही है ...

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  2. उफ़ बेहद मार्मिक्…………कब तक लडे कोई और किस किस से।

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  3. यह चुनौती नहीं....आत्मसमर्पण है :(

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  4. अच्छा प्रयास .....पर अंत में सुजाता हार क्यों गयी.....आभार !

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  5. सुजाता का हार जाना ही इस समाज का कडुवा सच है..... बेहद मार्मिक और सच को लिए कहानी .... प्रवाहमयी लेखन के लिए बधाई.....

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  6. बहुत मार्मिक कहानी, लेकिन सुजाता का हार जाना कुछ अच्छा नही लगा, ओर उस के चाचा जैसे हरामी लोग आज हमारे समाज मे भरे पडे हे, काश इस सुजाता की आवाज भगवान के मानो तक पहुये ओर उस के चाचा को जीते जी अपने कर्मो की सजा मिले... ओर वो इस लडकी के पांव पकड कर माफ़ी की भीख मांगे तभी उस की जान निकले वर्ना एक एक सांस को तरसे.... बहुत सी कहानी याद आ गई आप की इस कहानी से

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  7. उफ़ ...दर्दनाक ! कलंक है हमारी व्यवस्था पर ...

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  8. बहुत ही मार्मिक कहानी काश ! सुजाता जीत जाती

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  9. नमस्ते शिव कुमार जी,
    आज का यह एक मार्मिक सच हैं. सुजाता का संघर्ष सराहनीय है ! यथार्थ हैं कि आज के वास्तविक जीवन में हर मोड़ सुखद नहीं होता और सुजाता की कहानी के अंतिम पंक्तियों से पता चलता हैं.. बहुत बहुत प्रेरणादाई रचना..
    बधाई
    अनुराग अमित

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  10. कथा मार्मिक है परंतु यह भी सच है कि न्याय में देरी से बडा अन्याय कोई नहीं है।

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  11. शिव कुमार जी,
    बहुत मार्मिक कहानी,समाज का कडुवा सच है

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  12. Sir,

    Your story made me cry. Very true story

    Thanks
    Shubhangi

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  13. Three cheers to Sujata!!

    I liked Sujata's battle for her rights..A very meaningful story..we all women should be like Sujata and fight for our rights without depending on anyone..

    Congrats for a very inspiring story
    Radhika

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  14. नमस्कार शिव कुमार जी ,
    आप की रचना हमें बहुत अच्छी लगी
    क्योकि आप की रचना जो है वह सत्य घटना और लोगो के जीवन पर आधारित है . इस कहानी में जो सुजाता का जीवन संघर्ष दिखाया गया है वह हमें अपने आसपास अक्सर दिखाई देता रहता है पर कोई गौर नहीं करता .

    धन्यवाद्

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  15. बेहद मार्मिक है और समाज का कडुवा सच है!

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  16. ek or kahani jisne mujhe rone pe majboor kar dia...

    bahut achchi kahani hai shiv ji aapki...

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  17. Shiva ji.....kahaani pasand aayi. Thodi lambi zaroor thi. aapne kahaani ke maadhayam se samaaj ka kadvaa sach saamne rakha. Bas ye ummed hi kar skate hain ki kash ....kisi ke saath bhi aisa n ho.

    Ek saarthak kahaani ke liye aapko AAbhar!

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  18. अनुराज अमित जी ,
    सुरेन्द्र सिंह जी ,
    वंदना जी ,
    चंद्रमौलेश्वर जी ,
    निवेदिता जी ,
    डॉ. मोनिका जी ,
    राज भाटिया जी ,
    सतीश सक्सेना जी ,
    अर्पनादिप्ती जी ,
    संजय भास्कर जी ,
    अनुराग शर्मा जी ,
    शुभांगी जी ,
    रिधिका जी ,
    अजीत जी ,
    महेश जी ,
    विरेन्द्र जी ,
    गोपाल मिश्रा जी ,
    आप सभी लोगों का बहतु -बहुत धन्यवाद् जो आपलोंगों ने चुनौती कहानी पढी और अपने सुझाव दिए ...

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  19. आदरणीय शिव कुमार जी आप मेरे ब्लॉग को Follow कर रहे हैं...मैंने अपने ब्लॉग के लिए Domain खरीद लिया है...पहले ब्लॉग का लिंक pndiwasgaur.blogspot.com था जो अब www.diwasgaur.com हो गया है...अब आपको मेरी नयी पोस्ट का Notification नहीं मिलेगा| यदि आप Notification चाहते हैं तो कृपया मेरे ब्लॉग को Unfollow कर के पुन: Follow करें...
    असुविधा के लिए खेद है...
    धन्यवाद....

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  20. sir aap ki kahani sach ko samne rakhti hai.. jab bhi pado mano aisa lagta hai.. ki merehi kahani hai... par sujata ka haar jan ..pasand nahi aaya.. is kahani ne aakho me aasu la deya.... behad acha pryas hai.. dhnyavaad

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  21. Shiva ji ...agli kahaani kab post karoge? AAPKI agli post ka intzaar hai!

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