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Friday, March 18, 2011

नन्ही मुस्कान


किशनलाल जेल की कालकोठरी में बैठा कुछ सोच रहा था । सोचते सोचते उसकी  आँख लग गई (उसे नींद आ गई)  ....... तभी उसे बाबा ...बाबा के शब्द सुनाई दिए । बाबा शब्द सुनकर किशनलाल ने इधर-उधर देखा  सामने एक छोटी बच्ची नजर आई वही उसे बाबा ..बाबा कहकर पुकार रही थी
किशनलाल – ‘कौन हो तुम जो मुझे बाबा ..बाबा कहकर पुकार रही हो.?’         
बाबा .. मैं तुम्हारी मुस्कान
किशनलाल -‘मेरी मुस्कान ...?’ 
कुछ दोनों पहले ही तो परिवार के लोगों ने मुझे यह नाम दिया था …भूल गए मुझे।
अपनी बच्ची को सामने खड़ा देखकर किशनलाल ने झट से उसे अपनी गोदी में भर लिया और उसे चूमने लगा ।
उसने देखा कि मुस्कान उससे  कुछ कहना चाह रही है।  मुस्कान बाबा के आँसू पोंछते हुए कहने लगी.   
“बाबा मेरा क्या कसूर था जो मुझे इस संसार में आते ही ……बाबा  मैं तो तुम्हारे आँगन में खिली एक नन्ही कली थी  फिर क्यों मुझे फूल बनने से पहले ही तोड़ दिया गया क्यों बाबा क्यों….?  मै भी जीना चाहती थी बड़ी होकर कुछ बनना चाहती थी , बड़ी होकर  तुम्हारे सपनों को साकार करना चाहती थी। मै तुम्हारी आँखों का तारा बनकर जीना चाहती थी । बाबा मैं जानती थी बेटियाँ माँ-बाप के लिए  पराया धन होती हैं लेकिन मैं  ........।  तुम ही तो कहते थे कि बेटियाँ बेटों से कम नहीं होती  फिर  क्यों बेटियों की ही बली दी जाती है। बेटियाँ तो बाबा (बाप) को बेटों से ज्यादा प्यारी होती है लेकिन मैने ऐसा कौन का अपराध  किया था…. किस गुनाह की मुझे यह सज़ा मिली.... न मैं माँ की ममता देख सकी न बाप का प्यार….न मैं सुख देख सकी ना दुख क्यों मुझे संसार के किसी बंधन में बंधने  से पहले ही आज़ाद कर दिया गया।  मैं तो तुम्हारे घर की इज्जत बनकर  जीना चाहती थी फिर क्यों मुझे किसी के घर की इज़्जत बनने से पहले ही घर-संसार से बाहर कर दिया गया……? बेटियाँ तो  फूलों की तरह होती हैं जो सदैव दूसरों के आँगन को महकाया करती हैं फिर क्यों बेटियों को  फूल बनने से पहले ही नष्ट कर दिया जाता है। सब ने मुझे मुस्कान नाम दिया था फिर क्यों मेरे मुस्काने से पहले ही मुझे  संसार से अलविदा कर दिया गया….. ।”
मुस्कान की बातें सुनकर किशनलाल उसे समझाने का प्रयास करता - ‘नहीं बेटी  ऐसा नहीं है ।’
बाबा कब तक अपने आप से झूठ बोलते रहोगे । अब तो सच्चाई को स्वीकर कर लो…बेटियों के आने से कहीं मिठाइयाँ नहीं बाँटी जाती। 
नींद में किशनलाल को बड़बड़ा हुआ देखकर पास ही बैठे एक अन्य कैदी ने उसे  झकझोकर जगाया।
जैसे ही वह नींद से जगा . उसने अपने चारों तरफ पागलों की तरह देखना शुरू  कर दिया यह देखकर उसके कैदी साथी ने उससे पूछा  ‘क्या हुआ ….? क्या ढ़ूँढ़ रहे हो...?’ 
किशनलाल  - ‘भाई अभी -अभी मेरी बच्ची मुस्कान मुझसे बातें कर रही थी । कहाँ गई मुस्कान…..।’
उसकी बातें सुनकर साथी कैदी ने अपनी आवाज़ मे कठोरता आते हुए कहा ‘क्या पागल हो गए हो तुम्हें शायद याद नहीं कि तुम जेल में बंद हो यहाँ कोई मुस्कान -वुस्कान नहीं है चुपचाप सो जाओ और हमें भी सोने दो।

अपनी बेटी की कही बातों को याद कर आज उसे अपनी गलती का अहसास हो रहा था कि उसने जो किया वह गलत था । बार -बार उसे अपनी बेटियों की याद आने लगी.... जो कुछ भी उसने किया था आज उसपर उसे पछतावा हो रहा था । अपने आप को संसार का सबसे बड़ा पापी मान रहा था जिसने अपने ही हाथों अपनी हँसती - खेलती दुनिया को तबाह कर दिया  । कभी  अपने अतीत की सुनहरी यादों को याद करके हँसने लगता तो कभी अपने द्वारा किए उस जघंन्य अपराध को याद कर दहाड़ मार कर रोने लगता.... किशनलाल को इस तरह रोता हुआ देखकर उसके अन्य कैदी साथी उसे सांत्वना देते …धीरज बंधाते ।

रात काफी हो चुकी थी  रात के अंधेरे में सभी कैदी अपने-अपने बिस्तरों पर सोए हुए थे । इधर किशनलाल एक टक रोशनदान से आती रोशनी को देखते हुए कुछ सोच रहा था । सोचते -सोचते वह अपने अतीत की गहराइयों में खो गया.....
किशनलाल और उसकी माँ अस्पताल में एक बेन्च पर चिंता मग्न बैठे थे  । आज किशनलाल की पत्नी कमला को बच्चा होने वाला है । किशन लाल के चार बेटियाँ है , किशनलाल को इस बार उम्मीद है कि ज़रूर बेटा ही होगा , वह बैठा-बैठा ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है कि इस बार ईश्वर उसकी झोली में एक बेटा दे दे ........। घंटों बैठे रहने  के बाद एक नर्स ने आकर उसे सूचना दी - आपकी पत्नी ने बेटी को जन्म दिया है । बेटी पैदा होने की खबर सुनते ही किशनलाल के पैरों तले ज़मीन खिसक गई । उसे लगा जैसे उसे किसी ने गहरी खाई में फेंक दिया हो। वह एक मूर्ती के समान बैंच पर बैठ गया उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि इस बार उसकी पत्नी फिर से बेटी को जन्म देगी । बेटे  की चाह के लिए उसने कितने ही मंदिर ,मस्जिद में जाकर माँथा टेका था कितनी ही मन्नते माँगी, ओने-टोटके जो कुछ हो सकता था  सब कुछ करवाया लेकिन .... । कुछ समय बाद अस्पताल की एक आया बच्ची को गोद में लेकर बाहर आई जहाँ किशनलाल और उसकी माँ बैठे थे। 
आया- “देखो कितनी सुन्दर है बच्ची , बिल्कुल चाँद का टुकड़ा लग रही है।”   
किशनलाल ने बेटी की तरफ देखा तक नही और वह वहाँ से उठकर बाहर चला गया । किशन की माँ ने एक नज़र अपनी पाँचवी पोती को देखा तो उसकी  आँखों से आँसू छलक आए .....। आया बच्ची को वापस अंदर ले गई ।

किशनलाल को आज ईश्वर पर बहुत क्रोध आ रहा था। वह बार बार ईश्वर को कोसने लगा  कि उसने उससे ज्यादा तो कुछ नहीं माँगा था केवल एक बेटा ही तो माँगा था उससे वह भी नहीं हो सका फिर तू किस बात का भगवान ...तूने मुझे पहले से ही चार-चार बेटियाँ दी मैने तुझसे कभी कोई शिकायत नहीं की लेकिन इस बार भी ........। नहीं ..नहीं अब मैं और बेटियों का भार नहीं  सह सकता .... । क्या करे क्या न करे उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था? इसी कश्मकश में  सीधे घर जा पहुँचा । जैसे ही वह घर पहुँचा चारो बेटियों ने उसे घेरकर पूछा-“ बाबा क्या हुआ....? माँ कैसी है ?आ गया हमारा भैया..... कैसा है वह…?  हमें भी ले चलो ना माँ के पास हम भी भैया को देखना चाहती हैं ...क्या हुआ बाबा तुम कुछ बोलते क्यों नहीं, क्या हुआ..?”
किशनलाल –“कुछ नही... ।”
कैसा है हमारा छोटू , हमारा भैया ....?   
उसने बेटियों की तरफ देखा उनके सिर पर हाथ फेरा........ बिना कुछ कहे  बाहर निकल आया ... ।
इधर अस्पताल में उसकी पत्नी और माँ उसके आने का इंतजार कर रही थीं  । घर से वह निकला तो था कहीं और जाने के लिए किन्तु न जाने उसके कदम उसे अस्पताल में ले आए जैसे ही वह अस्पताल में घुसा , उसका सामना माँ से हुआ ।

माँ- “कहाँ चला गया था तू ...? कब से तेरा इंतजार कर रहे हैं .. तेरा फोन भी नहीं लग रहा ..क्या हुआ..?”
उसने निराशाभरी नज़रों से माँ की तरफ देखा और एक लंबी साँस छोड़ते हुए बोला –‘कुछ नहीं माँ... मन थोड़ा बेचैन था इसी लिए बाहर चला गया था ...।’ उसकी माँ को पता है कि वह क्यों बुझा-बुझा सा लग रहा है । उसे लग रहा था कि इस बार तो उसे अपने बेटे की प्राप्ति होगी लेकिन उसके सारे सपने चकनाचूर हो गए । यहाँ तक कि किशन की माँ भी यही उम्मीद लगाए हुए थी कि ईश्वर इस बार तो उसे पोते के दर्शन करवाएगा लेकिन ऐसा हो न सका .. किशन की माँ ने उसे अपना नसीब मानकर स्वीकार कर लिया  लेकिन किनशन इस बात को कतई स्वीकार करना नहीं चाहता था। किशन की मानसिक स्थिति को देखते हुए उसकी माँ ने उसे समझाने की कोशिश की…
माँ – “मैं जानती हूँ कि तू यहाँ से क्यों  उठकर चला गया .............पर बेटा किस्मत को तो कोई बदल नहीं सकता ना.. कहते हुए  माँ की आँखें भर आईं । ”
किशन ने माँ से कुछ नहीं कहा वह माँ को लेकर अस्पताल के अंदर चला गया जहाँ उसकी पत्नी को रखा गया था। जैसे ही किशन की पत्नी ने उसे देखा वैसे ही उसकी आँखे नम हो गईं .... जो सपने उसने अपने आनेवाले बेटे के लिए बुने थे सब चकनाचूर हो गए । उसने एक नज़र  पत्नी की तरफ देखा और बैंच पर बैठ गया । तभी माँ नवजात शिशु को अपनी गोद में उठाकर उसके सामने ले आई , जैसे ही माँ बच्ची को उसके पास लेकर आई वैसे ही वह वहाँ से उठा और कमरे से बाहर निकल गया उसने बच्ची को एक नज़र देखा तक नहीं । माँ उसे पुकारती रह गई पर उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा सीधा अस्पताल से बाहर निकल गया । बार-बार उसके मन में एक ही ख्याल आ रहा था पाँचवी बार भी बेटी.....?

 दो दिन के बाद कमला को अस्पताल से छुट्टी मिल गयी वह दो दिन की बच्ची को गोद में लिए घर आ गयी । जब  घर के परिवारवालों ने नन्हीं बच्ची को देखा तो उसके चेहरे को देखते ही किशनलाल की बेटी रीना कहने लगी– ‘देखो तो कितनी सुंदर है, कैसी मुसकुरा रही है , हम इसका नाम मुस्कान रखेगे ।’ मुस्कान नाम सुनकर घर के अन्य लोगों ने भी हाँमी भर दी । कितना सुन्दर नाम है मुस्कान । कमला को न जाने क्यों एक अजीब सी घबराहट हो रही थी , न जाने क्यों आज उसका मन किसी अनहोंनी की आशंका से काँप रहा था । कमला ने कभी सोचा भी न था कि इस नन्ही सी बच्ची के आने से उसकी ज़िन्दगी में इतना बदलाव आ जाएगा जो पति उसे जान से भी ज्यादा चाहता था उसका बर्ताव भी बदल जाएगा । आज- कल वह घर में कम और बाहर की दुनिया में ज्यादा रहने लगा  है । घर पर भी आता तो चुप चाप रहता न किसी से बोलना न किसी से हँसी - मजाक करना । यह सब देखकर कमला मन ही मन घुटती रहती अपने आप को कोसती रहती । घर के  अन्य लोगो ने जो हुआ उसे अपना भाग्य मानकर स्वीकार कर लिया। घर-परिवार के सभी लोग दिखावे के लिए तो खुश थे लेकिन बेटा न होने का गम  उनकी हँसी में साफ झलक रहा था। जब से यह नन्हीं सी जान किशन के घर-परिवार में आई है  पता नहीं वह मन ही मन किन ख्यालों में खोया रहता ...। घरवालों ने दोस्तों ने, रिश्तेदारों ने, किशन को समझाया कि जो हो गया उसे लेकर ज्यादा चिंता करने की जरुरत नहीं । अगर तुझे बेटे की इतनी ही चाह है तो एक बच्चा गोद ले लेना लेकिन इस तरह जीवन में निराश नहीं हुआ करते । सब ठीक हो जाएगा किन्तु किशन को किसी की बात समझ में नही आती.. किशन किसी और के बच्चे को गोद लेना नहीं चाहता था उसे तो अपना ही बेटा चाहिए था।

 एक रात को किशन  वह सब कर गुजरा जिसकी किसी ने कल्पना भी न की थी। किशन ने अपनी पाँचों बेटियों को संसार के बंधन से मुक्त कर दिया . ….बीच -बचाव में पत्नी भी बुरी तरह घायल हो गई।  सुबह होते ही उसने अपने आप को  पुलिस के हवाले कर दिया। पुलिस ने बुरी तरह घायल कमला को अस्पताल में भर्ती करवा दिया ।  सुबह जिसने भी यह खबर सुनी सुनकर दंग रह गया । अब घर में एक बूढ़ी माँ के अलावा और कौन बचा था। यह सब देखकर बूढ़ी माँ का रो-रोकर बुरा हाल था ।  पुलिस भी यह सब जानकर दंग रह गई कि कोई बेटे की चाह में अपने हँसते-खेलते परिवार का नाश कर सकता है । अस्पताल में भर्ती कमला का इलाज डॉक्टरों ने तुरंत शु डिग्री कर दिया  जिसके कारण उसे बचाने में डॉक्टरों ने कामियाबी हासिल कर ली लेकिन पाँचों बेटियों को ……. । पिछले तीन चार दिनों से अस्पताल में पड़ी है जैसे ही कमला को होश आता वैसे ही वह अपनी बेटियों को पुकारने लगती। जब हद से ज्यादा हो जाता तो डॉक्टर नींद का इंजेक्शन  लगा देते । पिछले तीन-चार दिनों से वह एक ज़िदा लाश के समान थी ...उसकी आँखों के आँसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे । इधर किशनलाल की विधवा बूढ़ी माँ इस घटना से बहुत विचलित हो चुकी थी एक तरफ बहू अस्पताल में भर्ती , दूसरी तरफ जवान बेटा जेल में ...। पिछले तीन -चार दिनों से वह अस्पताल में कमला के सिरहाने से हिली तक नहीं । जब भी कमला होश में आती और बेटियों को याद कर रोने लगती तब माँ ही उसे सांत्वना देती उसे संभालती ..। रिश्तेदारों ने कमला की सास को घर  जाकर कुछ आराम करने के लिए कहा लेकिन वे एक पल के लिए भी  वहाँ से न हिली।  कमला की हालत में धीर- धीरे सुधार हो रहा था ।
अचानक किशनलाल को जोर का धक्का लगा धक्का लगने के कारण उसकी आँखे खुल गई सामने देखा तो हवलदार खड़ा था। वह जल्दी उठने के लिए चिल्ला रहा था।किशलाल ने हवलदार की तरफ देखा और एक लंबी साँस लेते हुए उठ खड़ा हुआ ..।          

24 comments:

  1. पूरी कहानी पढने के बाद ही प्रतिक्रिया व्यक्त की जा सकती है,समयाभाव के कारण पूरी रचना को पढ़ नहीं पाया हूँ ,फिलहाल तो आपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकानाएं प्रेषित क्र रहा हूँ ,
    आभार ........

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  2. पी.एस .भाकुनी जी ,
    आपको भी सपरिवार होली की हार्दिक शुभकानाएं .

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  3. बेटे की चाह मे ना जाने कितने गुनाह होते रहेंगे…………बेहद मार्मिक चित्रण्।
    होली की हार्दिक शुभकामनायें।

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  4. मुस्कान पर इतनी संजीदा कहानी :(

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  5. आपको और आपके सारे परिवार को हार्दिक शुभकामनाएं।

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  6. अभी इस रचना को एक बार पढने के बाद कुछ कहा जा सकता है ......आपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनायें

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  7. मार्मिक कहानी ...हमारे समाज और परिवार का आइना ...... बहुत प्रवाहमयी लिखा आपने..... सुंदर
    होली की शुभकामनायें

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  8. प्रिय शिव कुमार,
    मुझे यह देखकर बड़ी प्रसन्नता है कि तुम कहानियों पर रिसर्च करते करते कहानीकार हो गए हो.
    इस कहानी में एक दो मार्मिक बिन्दुओं का और विस्तार हो सकता था.
    खैर, कहानी अच्छी है और सच भी है.
    बधाई !

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  9. प्रिय शिव कुमार जी,
    नमस्ते
    सर्वप्रथम आपको होली की हार्दिक शुभकामनाएं !!
    आप की रचना "नन्ही मुस्कान" मुझे बहुत अच्छी लगी. पढ़ते समय मन में कई तरह के सवाल आये, कि आज भी हमारा समाज में ऐसे लोग भी हैं. आँखें नम हो गयी..

    बधाई
    अनुराग अमित

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  10. Hai Shiva,

    I bet you are going to be a great & sensilble writer. A very great story. I felt the situation exactly happen in my family when my brother was not happy when a girl child was born to him. We all gave all type of gyan to him. You won't believe he dint seen her for 2 months. But when she got viral infection and she used to cry all day and he just entered the room just to tell her wife to stop her crying and the moment he looked at her, it was that moment and the day today. He is feeling proud to be a father of a girl child. She is a very brilliant girl.

    Really your story reflects a mirror image of a common man's life.

    I CONGRATS!! you for such a lovely story. Keep up the good work!!

    Thanks
    Best Regards
    Mukesh

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  11. Such a wonderful story..

    Thanks
    Radhika

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  12. Sir,

    A very true, heart touching write up..

    a great work

    Regards
    Shubhangi

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  13. Nanhi Muskan ka apne pita se safai mangana pasand aaya..ek achchhi rachna..

    badhai
    Tanmaya

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  14. आज के वर्तमान हालात को दिखाती हुई कहानी आपकी अच्छी लगी| वर्तमान सामाजिक व्यवस्था में लिंग आधारित भेदभाव एक परंपरा बन गई है| दरअसल दोष किसे दें यह बड़ा सवाल है? माँ बाप, समाज और दूसरे लोग? यहाँ यह भी ध्यान रखना अरुरी हो जाता है आर्थिक असमानता कभी कभी किशनलाल की तरह कदम उठाने को मजबूर कर देती है फिर ऐसी परिस्थिति में सारे नैतिक वक्तव्य जूते लगते हैं| दोष सिर्फ़ उस समाज में रहने वाले लोगों का भी नहीं है जबतक यह असमानता दूर करने के प्रयास नहीं किये जायेंगे ऐसी घटनाओं पर रोक संभव नहीं है|
    फिर ऐसा भी नहीं है कि पैसे वाले ऐसा नहीं करते हैं पैसे वाले भी करते उसनके लिए कानून का कठोर पालन ज़रुरी है| लेकिन फिलहाल समाधान जागरूकता है|

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  15. समाज का सच दिखा दिया

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  16. Shiv jee,
    Sabse pahle mai aapko badhai dena chahunga aapke
    shabdon ki jadugari ke liye ....Muskan ki kahani hamare samaj ki ek sachchai hay ..aur aapke chitran ka koi jawab nahi...beti ke mahtwa hame jaanna hoga..beta aur beti me antar karne walon se hamare samaj me ek kuriti janm le chuki hay..aur use khatm karna hoga nahi to bhagwan ke darbar me ham dosi honge.

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  17. सच बयान करती उम्दा कहानी ।

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  18. कहानी अच्छी है और सच भी है|धन्यवाद|

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  19. धन्यवाद जी !!!
    आप के विमर्श भी सही है लेकिन गालियाँ देने से पहले ब्लॉगर जो लिखा है जो विडियो एडिटिंग किया है
    किस परिस्तिथियों में किया है ये तो सोचना पडेगा !!!
    उस विडियो (जो आपने देखा) पिछले पंद्रह दिन पहले द.भा. हि.प्र सभा के बी .एड कॉलेज में हुवा प्रोग्राम है वहां का जो विडियो फाइल्स मिला है उस फाइल्स हम कोल्लेक्ट करके शर्मा जी के ऊपर जो भी आदर है उनकी शिक्षा देने की तारीख और पद्दतियां सभी लोगों को दिखाने के वास्ते किया गया है... मैं भी हिन्दी प्रचारक ट्रेनिंग किया हैं २००८ में !
    अभी जो गालियाँ देंने का है आप दे सकते!

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  20. sir, seriously speaking, this story is very sentimental and reflects the life of a 'common man'... "a girl should not be treated so cruelly"...
    its high time to realize that,"girls are as capable as men."
    the story is too good....
    ravali...

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  21. वंदना जी ,
    चंद्रमौलेश्वर जी ,
    गगन शर्मा जी ,
    केवल राम ,
    डॉ.मोनिका शर्मा जी ,
    डॉ.ऋषभदेव शर्मा जी ,
    राज भाटिया जी ,
    अनुराग अमित जी ,
    मुकेश जी ,
    राधिका जी ,
    सुभांगी जी ,
    तन्मय जी ,
    संदीप पवार जी ,
    गिरिजेश कुमार जी ,
    अरशद अली जी ,
    डॉ दिव्या श्रीवास्तव जी ,
    राधाकृष्ण जी
    रविलिका रेड्डी
    आपने मेरी कहानी नन्ही मुस्कान को पढ़ा उसे पसन्द किया... हार्दिक धन्यवाद ! इसी तरह अपने अमूल्य विचारों से अवगत कराते रहें।

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  22. नन्ही मुस्कान,
    आप की कहानी हमें बहुत अच्छी लगी .
    और हर बार मैं आपकी कहानी को सबसे पहले पढ़ना चाहुँगा
    क्योकि आपकी कहानी सब से अलग होती है और मुझे एक नया जोश देती है.
    धन्यवाद् देना चाहुँगा कि आपने हमें इतनी अच्छी कहानी से अवगत कराया .
    अजीत वर्मा

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  23. Budding Story Writer,
    First I wish you "ALL THE BEST FOR YOUR FUTURE."

    Your story is so touching and is revealing the fact what exactly is happening even in this so called Post Modern Era.

    Only one thing I wish to say is that until the mentality does non change the situation will remain the same.
    Once again ALL THE BEST.

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  24. बहुत दिनों से आपकी नई पोस्ट देखने में नहीं आ रही है । कृपया कम से कम दो पोस्ट का तो महिने में सिलसिला बनाये रखने का प्रयास अवश्य करें । धन्यवाद सहित...

    सार्वजनिक जीवन में अनुकरणीय कार्यप्रणाली
    होनहार

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