तेरे साथ हम तेरी महफिल तक जा पहुँचे,
दिल का गम छिपाकर तेरी महफिल में जा बैठे।
दुनिया की नजरों से बचकर तेरे साथ हम मैखाने में जा बैठे,
मय के दो प्यालों के साथ हमें वहाँ से लौटना पड़ा
तेरे साथ तेरी महफिल में हमें बैठना पड़ा ।
साथ तेरा पाकर हमने लुफ्त खूब उठाया
रात गहरी होने लगी तनहाइयाँ बढ़ने लगी
हमें साथ तेरे खाली हाथ लौटना पड़ा
तेरे साथ तेरी महफिल में हमें बैठना पड़ा ।
मैखाने में अगर हमें देख ले कोई ,यूँ तीखी नज़रों से
अब तो अंगुलियाँ जमाने की हम पर उठने लगी
तेरी खातिर हमें वहाँ से यूँ खाली हाथ लौटना पड़ा
तेरे साथ तेरी महफिल में हमें बैठना पड़ा ।
महफिल चाँद सितारों सी सजी थी, चाँद अपनी जवानी में था
चेहरा न नजर आया यार का ,हमें खाली हाथ लौटना पड़ा
तेरे साथ तेरी महफिल में हमें बैठना पड़ा ।
दिल का गम छिपाकर तेरी महफिल में जा बैठे।
दुनिया की नजरों से बचकर तेरे साथ हम मैखाने में जा बैठे,
मय के दो प्यालों के साथ हमें वहाँ से लौटना पड़ा
तेरे साथ तेरी महफिल में हमें बैठना पड़ा ।
साथ तेरा पाकर हमने लुफ्त खूब उठाया
रात गहरी होने लगी तनहाइयाँ बढ़ने लगी
हमें साथ तेरे खाली हाथ लौटना पड़ा
तेरे साथ तेरी महफिल में हमें बैठना पड़ा ।
मैखाने में अगर हमें देख ले कोई ,यूँ तीखी नज़रों से
अब तो अंगुलियाँ जमाने की हम पर उठने लगी
तेरी खातिर हमें वहाँ से यूँ खाली हाथ लौटना पड़ा
तेरे साथ तेरी महफिल में हमें बैठना पड़ा ।
महफिल चाँद सितारों सी सजी थी, चाँद अपनी जवानी में था
चेहरा न नजर आया यार का ,हमें खाली हाथ लौटना पड़ा
तेरे साथ तेरी महफिल में हमें बैठना पड़ा ।
Nice one..
ReplyDeleteIndian Sushant
नमस्ते शिव कुमार जी,
ReplyDeleteहमेशा की तरह आप की रचना दिल को भा गयी..
शुभकामनाएं
अनुराग अमित
एक बेहतरीन कविता
ReplyDeleteराधिका
आपकी कविता अच्छी लगी..
ReplyDeleteशुभांगी
कहानी कविताओ को पढने का शौक तो कभी नहीं था , लेकिन आपकी कहानियो और कविताओ को जरूर पड़ना चाहूँगा..आपकी कविता "तेरी महफ़िल" बहुत पसंद आई..
ReplyDeleteशुक्रिया
तन्मय तिवारी
तेरे साथ हम तेरी महफिल तक जा पहुँचे,
ReplyDeleteदिल का गम छिपाकर तेरी महफिल में जा बैठे।
wah ji kya baat hai dil chu lene wali kavita
अच्छी रचना.
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDelete‘चाँद अपनी जवानी में था
ReplyDeleteचेहरा न नजर आया यार का’
तो क्या हुआ... चांद सा चेहरा है तो चांद को देख लो :)
good one....
ReplyDeleteBest Regards
Upendra
I liked your way of putting thoughts..Indeed a good poem
ReplyDeleteThanks Sachin Mohite
बहुत सुंदर रचना धन्यवाद
ReplyDeleteएक बेहतरीन कविता
ReplyDeleteवाह वाह...
ReplyDeleteजो चाँद आपने देखा, अरे हाँ भाई साहब वही चाँद जो अपनी जवानी पे था. क्या आप sure हैं कि वो आपका यार नहीं चाँद ही था????? बताइए.....
मस्त लिखा है...
.शब्दों को चुन-चुन कर तराशा है आपने ...प्रशंसनीय रचना।
ReplyDeleteमैखाने में अगर हमें देख ले कोई ,यूँ तीखी नज़रों से
ReplyDeleteअब तो अंगुलियाँ जमाने की हम पर उठने लगी .....
nice...........
very good poem
ReplyDeleteThanks & Regards
Shailesh Patil
waiting for your next write up
ReplyDeleteshailesh
hoon.....impresive......
ReplyDeletesadar.
सुशांत जी ,
ReplyDeleteअनुराग अमित जी ,
राधिका जी ,
शुभांगी जी
तन्मय जी ,
आलोक जी ,
भूषण जी ,
कैलाश जी ,
चंद्रमौलेश्वर जी ,
उपेन्द्र जी ,
सचिन जी ,
राज भाटिया जी ,
सम जी ,
राजेशकुमार जी ,
संजय जी ,
भाकुनी जी ,
मिथिलेश जी ,
शैलेश जी ,
संजय झा जी
आप सभी ने अपना कीमती समय कविता पढने के लिये निकला आप सभी का बहुत -बहुत धन्यवाद् .
your poem has a very deep feeling...
ReplyDeleteThanks
Puspak
ek sundar kavita..padh kar kafi achchha laga..
ReplyDeletedhanyawad
Girish
सुन्दर शब्दों से सजी कविता
ReplyDeletebahut khoob sir
ReplyDeleteवाह जी आप तो कविता भी अच्छी लिख लेते हैं ! बधाई.
ReplyDeleteमहफिल चाँद सितारों सी सजी थी, चाँद अपनी जवानी में था
ReplyDeleteचेहरा न नजर आया यार का ,हमें खाली हाथ लौटना पड़ा
तेरे साथ तेरी महफिल में हमें बैठना पड़ा ।
waah bahut khoobh
उनकी महफ़िल में रहे आप और खामोश भी । खली हाथ आपका लौटना उदास कर गया ।
ReplyDeleteठीक है।
ReplyDeleteशिवा जी...बहुत बढ़िया रचना है। बेहद पसंद आई।
ReplyDeleteNice post.
ReplyDeleteWah!! Bhai Wah!!
ReplyDeleteThanks
Jay