गौरव भागता हुआ अमित के पास आया । भागने के कारण उसकी साँसें फूल रही थी। अमित ने उसके इस तरह भागकर आने का कारण पूछा ....? गौरव ने बताया कि दो महिने पहले जिस कम्पनी में उन दोनों ने नौकरी के लिए आवेदन दिया था उसका इन्टरव्यू के लिए पत्र आया है । इन्टरव्यू अगले सप्ताह की बारह तारीख को है । इन्टरव्यू की खबर सुनकर अमित की खुशी का ठिकाना न रहा । इन्टरव्यू के लिए उन्हें हैदराबाद जाना था । हैदराबाद जाने के लिए उन्होंने तत्काल में रेल टिकट निकलवाई और हैदराबाद के लिए निकले..। इन्टरव्यू दोपहर एक बजे था दोनों अमित और गौरव कम्पनी में बाहर बजे ही पहुँच गए थे । वहाँ जाकर देखा तो दोनों दोस्त वहाँ का नजारा देखकर दंग रह गए । अमित - बाप रे ..... इतने सारे लोग सभी के सभी इन्टरव्यू के लिए। अमित की बात का समर्थन करते हुए गौरव ने भी कहा हाँ यार ऐसा लगता है कि शहर के पूरे लोग यहीं पर आकर ठहर गए हों। अमित और गौरव सहमें से वहाँ पर जा बैठे जहाँ पर सभी लोग बैठे थे । मन में एक प्रकार की घबराहट थी कि पता नहीं नौकरी मिलेगी कि नहीं ...। एक -एक करके इन्टरव्यू देकर बाहर निकल रहे थे बाहर बैठे सभी लोगों का यही हाल था सब के सब कुछ सहमे से बैठे थे वहाँ पर बैठे सभी लोह अपनी बारी आने का इंतज़ार कर रहे थे । कुछ घंटों इन्तज़ार करने के पश्चात गौरव का नम्बर आया । गौरव को इन्टरव्यू के लिए अंदर गए हुए कम से कम एक घंटा हो गया बाहर अमित की टेन्शन बढ़ती जा रही थी कि पता नहीं अंदर किस प्रकार के प्रश्न पूछे जा रहे हैं। थोड़ी देर बाद गौरव मुस्कुराता हुआ बाहर निकला । गौरव के चेहरे की मुस्कुराहट को देखकर अमित को लगा जैसे उसकी नौकरी पक्की हो गई है। गौरव ने आकर बताया कि यह तो पहला ही राउन्ड था जो उसने क्लीयर कर लिया है अभी तो तीन राउन्ड और बाकी हैं। कुल चार राउन्डस की बात सुनकर अमित और भी घबरा गया । गौरव ने उसे बताया कि अभी तो उसका सामान्यज्ञान और जनरल विषय का ही इन्टरव्यू लिया गया है जो उसने क्लीयर कल लिया है उसने अमित को समझाया कि जो भी वे लोग तुमसे प्रश्न पूछे उसका शांती से सोचकर सही जवाब देना अगर प्रश्न का उत्तर नहीं आता है तो उन्हें सीधे-सीधे मना कर देना आदि बातें । थोड़ी देर के बाद अमित का नम्बर आया वह इन्टरव्यू के लिए अंदर गया एक घंटे के बाद वह बाहर निकला बाहर आते समय उसके चेहरे पर भी वहीं रौनक थी जो गौरव के चेहरे पर थी। उसका चेहरा देखते ही गौरव समझ गया था कि उसने अपना पहला राउन्ड क्लीयर कर लिया है। इसी तरह दोनों दोस्तों ने एक -एक कर दो राउन्ड तो क्लीयर कर लिए तीसरे राउन्ड में अमित पीछे रह गया अर्थात गौरव ने अपना तीसरा राउन्ड क्लीयर कर लिया अमित तीसरे राउन्ड में बाहर हो गया । अमित का तीसरा राउन्ड क्लीयर न होने की वजह से गौरव भी बहुत दुखी हुआ । अब बारी थी चौथे और आखिरी राउन्ड की अमित बाहर बैठा अपने दोस्त की सफलता के लिए मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना कर रहा था । कुछ समय बाद गौरव बाहर निकला गौरव के चेहरे पर एक मायूसी थी , मायूसी थी चौथे राउन्ड में बाहर होने की अर्थात गौरव चौथे और आखिरी राउन्ड में बाहर हो गया । यहाँ पर दोनों दोस्तों को निराशा ही हाथ लगी । हाँ यहाँ आकर उन्हें यह पता चल गया कि इन्टरव्यू में किस प्रकार के प्रश्न पूछे जाते हैं । यह उन दोनों का पहला इन्टरव्यू था । दोनों मित्र एक दूसरे का हौसला बढ़ाते हुए यह कहते – ‘कोई बात नहीं यार यह ज़रूरी नहीं कि जिस इन्टरव्यू को हम अटेन्ड करे उस में सलैक्ट भी हो। कोई बात नहीं इस में सलैक्ट नहीं हुए तो क्या किसी और कम्पनी में सही.....?’ दोनों हैदराबाद से दिल्ली के लिए रवाना हुए । दिल में एक मायूसी तो थी ही लेकिन क्या करे...?
अमित खिड़की के पास बैठा कुछ सोच रहा था। गौरव को लगा कि कही वह फिर से उन बीती बातों यानी कि निधी के बारे में तो नहीं सोच रहा इसीलिए उसने एक नया विषय छेड़ते हुए कहा –‘अरे अमित तुमने बहुत दिनों से कोई शेरोशायरी नही की । आज कुछ सुनाओ ना यार ।
अमित-' नहीं यार अभी शेरोशायरी का मूड़ नहीं है।'
गौरव-‘अरे यार अभी तक तुम्हारा मूंड़ ऑफ है... छोड़ ना यार यहाँ नौकरी नहीं मिली तो क्या हुआ कहीं ना कही मिल ही जाएगी तू चिंता क्यों कर रहा है ? बहुत दिनों से तेरी कोई कविता नहीं सुनी। अपनी कविता या शायरी सुना दे….।’
अमित - ‘अरे यार अभी मुझे कुछ याद नहीं है....?’
गौरव – ‘अच्छा कोई पुरानी ही सुना दे..।’
अमित - 'तू भी ना.....?'
अमित खिड़की के पास बैठा कुछ सोच रहा था। गौरव को लगा कि कही वह फिर से उन बीती बातों यानी कि निधी के बारे में तो नहीं सोच रहा इसीलिए उसने एक नया विषय छेड़ते हुए कहा –‘अरे अमित तुमने बहुत दिनों से कोई शेरोशायरी नही की । आज कुछ सुनाओ ना यार ।
अमित-' नहीं यार अभी शेरोशायरी का मूड़ नहीं है।'
गौरव-‘अरे यार अभी तक तुम्हारा मूंड़ ऑफ है... छोड़ ना यार यहाँ नौकरी नहीं मिली तो क्या हुआ कहीं ना कही मिल ही जाएगी तू चिंता क्यों कर रहा है ? बहुत दिनों से तेरी कोई कविता नहीं सुनी। अपनी कविता या शायरी सुना दे….।’
अमित - ‘अरे यार अभी मुझे कुछ याद नहीं है....?’
गौरव – ‘अच्छा कोई पुरानी ही सुना दे..।’
अमित - 'तू भी ना.....?'
अब तो सीने में एतबार के खंजर उतर गए , जो बरता एहतियात तो अपने साए से ही डर गए,
अब तो वक्त की ठोकरों में पड़ा सोच रहा हूँ, मेरा दुख दर्द बाँटने वाले वो लोग किधर गए।
शायद जी को सुकूँ मिल जाए दोस्तों के बीच,सुकूँ की तलाश में हम किस -किस के घर चले गए,
दोस्तों के बीच भी हमें सुकूँ ना मिला ,आज उनके बीच ही बेगाने हम हो गए..।
हमने भी जीना चाहा हँसी - खुशी हमें तो अपने ही जीते जी मार गए,
अब तो सीने में एतबार के खंजर उतर गए , जो बरता एहतियात तो अपने साए से ही डर गए।
गौरव - 'वाह …वाह....! क्या बात है.....?'
छोड़ इन गम भरी बातों को कब तक उसकी यादों को अपने सीने से लगाकर रखेगा……?
अमित - क्या करुँ यार भूलना तो बहुत चाहता हूँ लेकिन .......?
गौरव - 'क्यों उन बीती बातों को तू अपने सीने से लगाकर बैठा है । छोड़ उन सब बातों को और यह
बता कि आगे और क्या करने का इरादा है?'
अमित - 'यार आगे एम. बी.ए. करने का इरादा है लेकिन ......?'
गौरव - 'लेकिन क्या..?'
अमित - "यार एम.बी.ए करने के लिए पैसे भी तो चाहिए और अभी मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वे मेरी एम.बी.ए. की फीस जमा कर सकें । घर में पिताजी अकेले कमानेवाले हैं। हम तीन भाई बहन और इस महंगाई में घर का खर्च चलना कितना मुश्किल है यह तो मैं भी जानता हूँ । मम्मी -पापा अपनी छोटी-छोटी खुशियों का बलिदान करके हमे सुखी रखने का प्रयाश करते रहते हैं । हमारा भविष्य बनाने के लिए पिताजी दिन रात मेहनत करते हैं । अब मैं इस लायक हो गया हूँ कि पिता जी का कुछ बोझा हलका कर सकूं तो नौकरी ही नहीं मिल रही ...। धीरे-धीरे करके पूरा एक साल होने जा रहा है। सोचा था कि जैसे ही पढ़ाई खत्म होगी कही न कहीं नौकरी ज़रूर मिल जाएगी लेकिन ....।"
गौरव - कोई बात नहीं यार नौकरी एक न एक दिन मिल ही जाएगी चिंता मत कर ।
अमित और गौरव दिल्ली लौट आए । यहाँ आकर दोनों ने कई कम्पनियों में नौकरी के लिए आवेदन किया । कॉलेज के दोस्तों में केवल गौरव ही था जो लगातार अमित से मिलता रहता था।
दोनों ने साथ-साथ कई कम्पनियों में नौकरियों के लिए आवेदन किया, साथ-साथ कम्पनियों में इन्टरव्यू भी दिया । कुछ समय बाद गौरव को पुणे में एक आई.टी कम्पनी में नौकरी मिल गई लेकिन अमित की नौकरी की तलाश अभी भी जारी थी।
गौरव - 'लेकिन क्या..?'
अमित - "यार एम.बी.ए करने के लिए पैसे भी तो चाहिए और अभी मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वे मेरी एम.बी.ए. की फीस जमा कर सकें । घर में पिताजी अकेले कमानेवाले हैं। हम तीन भाई बहन और इस महंगाई में घर का खर्च चलना कितना मुश्किल है यह तो मैं भी जानता हूँ । मम्मी -पापा अपनी छोटी-छोटी खुशियों का बलिदान करके हमे सुखी रखने का प्रयाश करते रहते हैं । हमारा भविष्य बनाने के लिए पिताजी दिन रात मेहनत करते हैं । अब मैं इस लायक हो गया हूँ कि पिता जी का कुछ बोझा हलका कर सकूं तो नौकरी ही नहीं मिल रही ...। धीरे-धीरे करके पूरा एक साल होने जा रहा है। सोचा था कि जैसे ही पढ़ाई खत्म होगी कही न कहीं नौकरी ज़रूर मिल जाएगी लेकिन ....।"
गौरव - कोई बात नहीं यार नौकरी एक न एक दिन मिल ही जाएगी चिंता मत कर ।
अमित और गौरव दिल्ली लौट आए । यहाँ आकर दोनों ने कई कम्पनियों में नौकरी के लिए आवेदन किया । कॉलेज के दोस्तों में केवल गौरव ही था जो लगातार अमित से मिलता रहता था।
दोनों ने साथ-साथ कई कम्पनियों में नौकरियों के लिए आवेदन किया, साथ-साथ कम्पनियों में इन्टरव्यू भी दिया । कुछ समय बाद गौरव को पुणे में एक आई.टी कम्पनी में नौकरी मिल गई लेकिन अमित की नौकरी की तलाश अभी भी जारी थी।
इसी तरह समय का चक्र चलता रहा और अमित उसी में पिसता रहा जहाँ कही जाता निराशा ही हाथ आती । यह बात उसके भी समझ में नहीं आ रही थी कि आखिर उसके ही साथ ऐसा क्यों हो रहा है? यहाँ तक कि गौरव जो कि उससे पढने -लिखने में कम होशियार था उसे भी नौकरी मिल गई लेकिन अमित ने हार नहीं मानी वह लगातार मेहनत करता रहा । अमित के घर की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी । अमित बच्चों के ट्यूशन से जितने पैसे कमाता था उसमें से कुछ घर के खर्चे के लिए माँ को दे दिया करता बाकी पैसे खुद के खर्चे के लिए रख लेता । इन्टरव्यू के चक्कर में उसके काफी बच्चों ने ट्यूशन छोड़ दिया था क्योंकि अब वह उन बच्चों पर उतना ध्यान नहीं दे पाता था । अब तो गिने चुने पाँच -छह बच्चे ही बचे थे । घर की आर्थिक स्थिति और नौकरी न मिलने के कारण अमित काफी परेशान रहने लगा। अमित की माँ ने उसे समझाया कि परेशानी से किसी समस्या का हल नहीं निकलता । आज नहीं तो कल तुम्हें नौकरी मिल ही जाएगी नौकरी को लेकर इतनी चिंता करना ठीक नहीं है इस तरह तो तुम्हारी तबीयत भी खराब भी हो सकती है ।
गौरव अक्सर अमित को कॉल करता था यह जानने के लिए कि कही उसे नौकरी मिली की नहीं । एक दिन गौरव ने अमित को अपने पास पुणे आने के लिए कहा । उसने बताया कि यदि वह वहाँ आ जाएगा तो नौकरी ढूँढने में वह भी उसकी कुछ सहायता कर सकता है। अमित को गौरव की बात सही लगी और एक दिन वह पुणें आ गया । यहाँ वह एक पेइन्ग गैस्ट की तरह रहने लगा । यहाँ आकर उसके सामने सबसे बड़ी समस्या नौकरी पाने की थी और दूसरी नया शहर न को जान-पहचान का केवल गौरव है जिसे वह इतने बड़े शहर में जानता है। यहाँ आकर अमित ने कुछ आई.टी. कम्पनियों में नौकरी के लिए अपलाई कर दिया था । वह रोज़ सा ही किसी ना किसी कम्पनी में इन्टरव्यू देने के लिए जाता लेकिन अभी तक उसे नौकरी नहीं मिल पाई । जहाँ कही भी वह इन्टरव्यू के लिए जाता उसके ज्ञान की प्रशंसा तो सब लोग करते लेकिन साथ ही साथ नौकरी करने का अनुभव भी मांगते । नौकरी करने का अनुभव अमित को था नहीं ...। यहाँ आकर अमित और परेशान रहने लगा एक तरफ परिवार की आर्थिक स्थिति दूसरी तरफ खुद का बेरोज़गार रहना उसे बहुत परेशान करता रहता था ।
एक दिन दोपहर का समय था अमित खाना खाने के लिए बैठा पहला निवाला खाने के लिए हाथ बढ़ाया ही था कि सेलफोन पर कॉल आया कॉल किसी अन्जान का था। निवाला वापस थाली में रखते हुए फोन लिफ्ट किया ।
अमित- ‘हैलो’
फोन पर सारी बातें सुनकर वह थोड़ी देर के लिए समझ ही नही पाया कि जो कुछ उसने सुना क्या वह सब सही है..........।
उसने पास उसका दोस्त भी बैठा खाना खा रहा था, अमित को भौचक्का देखकर दोस्त ने पूछा कि ‘क्या बात है तुम ऐसे भौचक्के क्यों रह गए । किसका फोन था ...सब कुछ ठीक तो है ना .... ।’
अमित की खुशी का ठिकाना नही था अपने दोस्त को गोदी में भरते हुए कहा कि जिस कम्पनी में पिछले सप्ताह उसने इन्टरव्यू दिया था उस कम्पनी में उसकी नौकरी पक्की हो गई है और ऑफर लैटर लेने कि लिए सोमवार को बुलाया है। अमित यह कहते कहते भावुक हो गया उसकी आँखों से खुशी के आँसू गिरने लगे ।
अमित का दोस्त यह देखकर कि नौकरी मिलने की खुशी में सब लोग तो खुश होते है और यह कि रोने लगा ….।
अमित ने बताया कि वह गम के आँसू नहीं खुशी के आँसू हैं । कितने दिनों से नौकरी पक्की होने की खबर सुनने के लिए उसके कान तरस गए थे ।
इस खुशी की खबर को सुनने के बाद अमित से थाली में रखा खाना भी न खाया जा सका ।
उसने ये दो दिन शनिवार और रविवार किस तरह से काटे थे यह तो वही जानता है। सोमवार की सुबह दस बजे वह उस कम्पनी के लिए निकल चला आज उसकी खुशी का ठिकाना न था । वह सोच रहा था कि पहले अपोइन्मेन्ट लैटर मिल जाए फिर वह घर पर मम्मी -पापा को यह खुशखबरी सुनाएगा। कुछ समय बाद वह अपनी मंज़िल तक पहुँच ही गया । वहाँ पर कुछ घंटों इन्तज़ार करने का बाद उसे अपना अपोइन्मेन्ट लैटर मिला। दो दिन के बाद उसे नौकरी ज्वाइन करनी थी । वहाँ से सीधा घर आया और सबसे पहले घर फोन करके यह खुशखबरी दी फिर गौरव को । आज सचमुच उसकी खुशी का ठिकाना नहीं था, बार-बार ईश्वर को धन्यावाद देता .। वह दिन भी आया जिस दिन उसे अपना ऑफिस ज्वाइन करना था । आज उसका पहला दिन था ऑफिस में नौकरी मिलने की खुशी उसके चेहरे पर साफ देखी जा सकती थी फिर भी एक अनजाने भय की छाया भी देखी जा सकती थी शायद आज उसका ऑफिस में पहला दिन है इसी लिए वह थोड़ा सा भयभीत है।
अमित के ऑफिस ज्वाइन करने के कुछ महीनों बाद उसे कम्पनी की तरफ से पाँच दिन की वर्कशॉप के लिए भेजा गया। इस वर्कशॉप में कई कम्पनियों के नए ज्वाइन किए हुए एम्प्लोय आए हुए थे । यहाँ पर अमित का बहुत से नए लोगों के साथ परिचय हुआ , नए लोगों के साथ काम करने का मौका मिला इन पाँच दिनों में यहाँ पर उसके मित्रों का एक समूह बन गया था । नए मित्रों के साथ उसका भी मन लग रहा था । वर्कशॉप के अंतिम दिन वहाँ पर आए सभी लोगों को कुछ ना कुछ प्रेसेंट करना था । किसी ने गाना गाया किसी ने नाच प्रस्तुत किया किसी ने जोक्स कहे…। अमित और उसके दोस्तों को विषय दिया गया था जीवन में धन की महत्ता जिसे उन्हें एक हास्यात्मक नाटक के रुप में प्रस्तुत करना था। अमित और उसके दोस्तों ने वह नाटक बखूबी प्रस्तुत किया ।
पाँच दिनों के बाद वर्कशाप समाप्त करके अमित फिर से कम्पनी में पहुँचा। कम्पनी ज्वाइन करके छह-सात महीनें बीत चुके हैं । अमित के कामों में अक्सर कोई न कोई कमी रह जाती है। वह अभी तक अपने अतीत की यादों से पूरी तरह से बाहर नहीं निकल पाया है। उसी कारण वह अपने काम में पूरी तरह ध्यान नहीं लगा पाता जिसके कारण उसकी बनाई हुई रिपोर्टस में कोई न कोई कमी रह जाती है। यहाँ पर उसके कुछ दोस्त बने जब उन्हें पता चलता है कि अमित की बनाई हुई रिपोर्टस में अक्सर गलतियाँ हो जाती तो वे लोग उसकी सहायता करते हैं। ऐसा नहीं है कि अमित को विषय की जानकारी नही है उसे विषय की बराबर जानकारी है लेकिन क्या करे अभी तक वह अपने अतीत से बाहर नहीं आ सका है ...। जैसे-जैसे समय बीतता गया वैसे-वैसे उसके अतीत की यादें भी धूमित होती चली गयीं। अपने आप को कम्पनी के कामों में इतना व्यस्त कर लिया था कि साँस लेने तक की फुरसत नहीं थी । कम्पनी हर साल अपने कर्मचारियों में से कुछ कर्मचारियों को एम.बी.ए की शिक्षा के लिए चुनती है । एम.बी.ए की पढ़ाई का खर्चा कम्पनी ही देती है। अमित की मेहनत का ही परिणाम था कि कम्पनी द्वारा बीस हजार कर्मचारियों में से चुने गए दस कर्मचारियों में उसका भी नाम था । जब उसे यह सूचना मिली कि कम्पनी की तरफ से एम.बी.ए करने का मौका मिला है तो उसकी खशी का ठिकाना न रहा...अमित ने तुरंत यह खबर अपने मम्मी -पापा ,अपने दोस्त गौरव को सुनाई। किसी ने सच ही कहा है मेहनत का फल हमेशा माठा होता है। आज उसे लग रहा था कि ईश्वर के घर देर है अँधेर नहीं....।
समय भी न जाने मनुष्यों के साथ कैसे -कैसे खेल खेलता है । जिस कॉलेज से अमित और उसके अन्य साथी एम.बी.ए करते है उसी कॉलेज से निधी भी एम.बी.ए कर रही है । न अमित को इस बात का पता था कि निधी भी इसी कॉलेज से एम.बी.ए कर रही है और ना ही निधी को पता था कि अमित भी इसी कॉलेज से एम.बी.ए कर रहा है। आखिर एक दिन दोनों अमित और निधी का आमना सामना हो ही जाता है। निधी और अमित एक दूसरे को अपने सामने देखकर चौक गए । निधी को अपने सामने खड़ा देखकर अमित को लगा कि ज़रूर यह उसका भ्रम है .. निधी की तो शादी हो चुकी है अब पता नहीं वह कहाँ होगी ...। लेकिन जब निधी ने उसे हाय ... कहा तो उसे यकीन हुआ कि वह निधी ही है जो उसके सामने खड़ी है..। उस दिन बस हाय...हैलो तक ही बात हुई। उस रात अमित बहुत बेचैन रहा कि अब वह क्या करे ....? जिसे भुलाने में उसे वर्षों लग गए है आज वह फिर उसके सामने आकर खड़ी हो गई है । एक साल पहले के अमित और आज के अमित में ज़मीन-आसमान का फर्क है ...। अमित ने मन ही मन फैसला किया कि अब वह निधी के किसी भी बहकावे में नहीं आएगा उसे अब अपने कैरियर को बनाना है बस और कुछ नहीं…..।
इसी कॉलेज में अमित की दोस्ती वैशाली नाम की लड़की से होती है जो निधी और अमित दोनों की दोस्त है । कुछ दिनों बाद अमित को पता चलता है कि निधी की जिस लड़के के साथ शादी हुई थी एक साल के अंदर ही दोना का तलाक भी हो गया है। एक दिन निधी ने वैशाली से संदेश भिजवाया कि वह अमित से मिलकर कुछ बात करना चाहती है । निधी ने वैशाली को अपने और अमित के विषय में सब कुछ बता दिया था ...। जब अमित ने भी निधी से मिलना स्वीकार कर लिया । एक दिन वे दोनों मिले.....निधी ने अपना दुखड़ा अमित को कह सुनाया .... अमित ने उसका दुखड़ा सुना लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं दी ...। अमित ने उसे समझाया कि जो कुछ हो गया है उसे वह बदल तो नहीं सकता , लेकिन अब वह उसके लिए और कुछ नहीं कर सकता… । निधी यह देखकर हैरान थी कि क्या यह वही अमित है जो कभी उसकी एक आहट पर जान न्यौछावर करने को तैयार रहता था। अमित, निधी के भावों को समझ गया… लेकिन उसने उससे कुछ नहीं कहा । कुछ समय निधी के साथ व्यतीत करने के पश्चात अमित ने निधी से कहा ‘देखो निधी अब मैं जीना चाहता हूँ…., जीवन में कुछ बनना चाहता हूँ उम्मीद करता हूँ कि तुम ......... और वह चला गया । अमित के मुख से इस प्रकार के वाक्य सुनकर वह सन्न रह गई। उस दिन के पश्चात अमित ने निधी की तरफ न देखा और न किसी प्रकार की कोई बात की...। निधि से हुई मुलाकात को उसने एक बुरा सपना समझकर भुला दिया । एम.बी.ए की पढ़ाई समाप्त हो गई। अमित वापस अपनी कम्पनी में एक और ऊँचे पद पर कार्य करने लगा ... ।
यह सब सोचते -सोचते अमित सो गया। अगले दिन सुबह दस बजे उसकी छोटी बहन ने आकर उसे जगाया। अपनी छोटी बहन को सामने देखकर वह चौक गया ... ‘छोटी तू यहाँ ….?’
‘भैया मैं यहाँ नहीं तो कहाँ होगीं..?’
‘ओह ! शायद मैं सपना देख रहा था ....?’
‘अच्छा जल्दी से उठो और नहा धोकर आ जाओ चाय नाश्ता तैयार है।’
‘अच्छा तू चल मैं आता हूँ’- कहकर अमित ने छोटी बहन को भेज दिया । जैसे ही वह उठने लगा उसकी ऑटोग्राफ की किताब नीचे गिर गयी । किताब के साथ-साथ उसमें रखी एक पुरानी तस्वीर भी नीचे गिर गयी । यह तस्वीर क़ॉलेज के दोस्तों की थी । उस तस्वीर के पीछे उसके कुछ दोस्तों के फोन नम्बर भी लिखे हुए थे । उसने फोटो और ऑटोग्राफ की किताब उठाकर टेबल पर रख दी और नहाने के लिए बाथरूम में चला गया। जैसे ही वह बाथरूम से निकला उसके फोन पर गौरव का फोन आया। गौरव के फोन को देखकर वह बहुत खुश हुआ।
अमित- 'हैलो "
गौरव –‘अबे आज-कल तो बहुत बिज़ी हो गया है एक फोन करने तक का समय भी नहीं मिलता है..।’
अमित- ‘यार तू तो जानता है ऑफिस में कितना काम रहता है...।’
गौरव- ‘अच्छा यह बता अभी कहाँ पर है।’
अमित –‘ दिल्ली ।’
गौरव – ‘क्या बात कर रहा है ? कब आया तू दिल्ली..?’
अमित – ‘दो दिन हो गए यार.. और तू बता कहाँ है तू।’
गौरव – ‘यार मैं भी कल ही दिल्ली आया हूँ । अच्छा सुन .... ।’
अमित – ‘बोल ना..।’
गौरव- ‘कोई तुझसे बात करना चाह रहा है..?’
अमित – ‘कौन…?’
गौरव – ‘अब यह तो तू उसकी बातें सुनकर पहचान कर लेना।’
अमित – ‘अबे.. बता ना कौन है...?’
गौरव – ‘ले उससे बात कर ... ।’
अमित ने जब उस व्यक्ति से बातें करना शु डिग्री किया तो पहले वह उसे पहचान नहीं सका कुछ देर बाद उसकी समझ में आ गया कि वह उसके कॉलेज का दोस्त जयकुमार है। यह वही जयकुमार था जिसे ब्लड कैंसर हो गया था, अमित और उसके दोस्तों ने मिलकर उसके इलाज के लिए पैसे इकट्ठे किए थे।
जयकुमार को फोन पर पाकर वह एक दम चौक गया । उससे बातें करने के बाद पता चला कि वह दिल्ली में ही भारतीय स्टेट बैंक में काम करता है । अमित ने उससे कॉलेज के दोस्तों के विषय में पूछा कि क्या वह अब भी उन दोस्तों के सम्पर्क में है या नहीं ? उसने बताया कि ज्यादा तो नहीं पर हाँ एक -दो मित्रों से उसकी अक्सर मुलाकात होती रहती है। अमित ने सब दोस्तों से मिलने की इच्छा जताई और कहा कि आज दोपहर दो बजे के बाद सब लोग उसी कॉलेज में मिलेंगे जहाँ से सब लोग अलग हुए थे । अमित ने सभी को दोपहर दो बजे का समय दिया। गोविन्द से बातें करने के बाद उसने सुबह का नाश्ता किया और अपने दोस्तों से मिलने के लिए चला गया। कॉलेज घर से थोड़ा दूर ही था । जैसे ही वह उस इलाके में पहुँचा वहाँ का नज़ारा देखकर वह दंग रह गया जहाँ कभी छोटे-छोटे घर हुआ करते थे, वहाँ उनके स्थान पर बड़े-बड़े अपार्टमेंन्ट खड़े हो गए हैं। थोड़ी देर के बाद वह अपने कॉलेज जा पहुँचा कॉलेज भी पूरी तरह बदल चुका था । कॉलेज के सामने दो छोटे -छोटे मॉल बन चुके थे । कॉलेज की मुख्य इमारत उन मॉलों के बीच दबकर रह गई थी । दो सालों में हुए इस बदलाव को देखकर अमित भौचक्का रह गया । सबसे पहले पहुँचनेवालों में अमित ही था। उसके बाद गौरव और जयकुमार आए धीरे-धीरे एक दो दोस्त और आए । आज ये लोग एक दूसरे से वर्षों बाद मिल रहे थे ...सब एक दूसरे को देखकर यही सोच रहे थे कितने बदल गए हैं सब ...। सभी दोस्त एक दूसरे के गले मिल और एक दूसरे सी राजी-खुशी पूछी सभी कॉलेज के अंदर गए और उसी जगह जाकर बैठ गए जहाँ कभी उनका सारा ग्रुप बैठा करता था । थोड़ी देर बैठने के बाद चारो-पाँचों दोस्त एक साथ अपने लैक्चररों से मिलने चले गए । कॉलेज के प्रांगड़ में अमित की नज़र एक पेड़ के नीचे बैठे कुछ बच्चों पर गई वे लोग एक दूसरे से हँसी- मजाक कर रहे थे कुछ एक दूसरे से किसी विषय पर बहस कर रहे थे यह सब देखकर उसे अपने उन दिनों की यादों में खो गया जब वे लोग भी कभी इसी प्रकार वहाँ पर बैठा करते थे………..उसने अपने दोस्तों से कहा ‘अरे यार हम लोग भी कभी इसी प्रकार उस पेड़ की छाँव में इकट्ठे होकर बैठते थे कितना हँसी -मजाकर किया करते थे...?’सभी दोस्तों ने उस पेड़ की तरफ देखा और सभी ने एक साथ कहा ‘हाँ यार कॉलेज के वे दिन भी क्या थे…… ?’ सभी कॉलेज के दिनों की उन मीठी यादों में खो गए……………।
---------------- समाप्त -----------------------------
arey! samaapt?
ReplyDeleteनमस्ते शिव कुमारजी,
ReplyDeleteकाफी प्रतीक्षा के बाद औटोग्राफ की तीसरी किश्त पढ़ कर अत्यंत प्रसन्नता हुई. सच में अपने वो सुनहरे कॉलेज के दिन याद आ गए.
हार्दिक बधाई आपके इस भावपूर्ण लेखन के लिए..
अनुराग अमित
बहुत इंतजार करवा भईया आपने , लेकिन मजा आ गया पढकर , हम भी कहीं अतित में खो गये थे ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया कहानी..आप बड़ी ही आसानी से मानव स्वाभाव को कागज़ पर उतार देते हैं..सशक्त लेखन!
ReplyDeleteनीलाभ कुमार
सुंदर भावुक लम्बी कहानी के लिए बधाई॥
ReplyDeleteबहुत दिन इंतज़ार करवाया....लेकिन अच्छी लगी पूरी कहानी.....
ReplyDeleteसुन्दर.....
सामान्यतः मैं लम्बी कहानियां बीच बीच में भूल जाया करता हूँ.....
ये कहानी के पीछे कोई सत्य घटना तो नहीं है?
गणतंत्र दिवस के अग्रिम बधाई...
bahut lambi pr mazadar kahani
ReplyDeleteaabhar
बहुत अच्छी कहानी...
ReplyDeleteपुष्पक
बढ़िया ढंग से लिखी हैं आपने यह कहानी..
ReplyDeleteउपेन्द्र
शिवा जी नमस्ते !
ReplyDeleteदेरी के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ ...
तीसरा भाग अमित के संघर्षों को बताता है .....बहुत ही प्रेरणादायी रही ये कड़ी ....आपने बहुत ही सुन्दर तरीके से इस कहानी का अंत किया है ...धन्यवाद!
ऋषभदेव शर्मा सर जी ,
ReplyDeleteअनुराग अमित जी ,
चंद्रमौलेस्वर जी ,
मिथिलेश ,
नीलभ,
राजेश कुमार ,
आलोक,
मनप्रीत,
बाबु ,
उपेन्द्र ,
प्रदीप जी
अपना कीमती समय देने के लिये आप सभी लोगों का बहुत -बहुत धन्यवाद्
शिवा जी,
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा !
कहानी मन को छूती है !
सुन्दर लेखन !
nice blog
ReplyDeletechk out my blog also
http://iamhereonlyforu.blogspot.com/
main ab isi blog par likhunga
aap ne jis blog par comment kara hain use delete karne ja raha hu
बचपन के दिन भी क्या दिन थे,...
ReplyDeleteसुन्दर लेख के लिए बहुत मुबारकवाद
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखतें हैं आप, आप का कथानक बहुत सुन्दर
बहुत बहुत शुभकामना
bahut sundar kahani.
ReplyDeletebhasha shaily bahut achchhi.
आटोग्राफ के बहाने आपने आपने जिन्दगी की वास्तविकताओं से भी रुबरु करवा दिया ....आपकी कहानियों का इन्तजार रहेगा
ReplyDeleteशिवा जी,
ReplyDeleteनमस्कार !
आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा !
सुन्दर लेखन !
ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.
ज्ञानचंद जी ,
ReplyDeleteचिराग जी ,
डॉ. श्याम गुप्ता जी ,
दीप जी ,
सुरेंदर सिंह जी ,
केवल राम जी
अपना कीमती समय देने के लिये सभी लोगों का बहुत -बहुत धन्यवाद्
शिवकुमार जी कहानी अच्छी लगी. अगली कहानी का इंतज़ार है .
ReplyDeleteसुन्दर शैली में लिखी गयी बढ़िया कहानी ।
ReplyDeleteबहुत खूब, बढ़िया रही कहानी. अंत भी अच्छा दिया आपने.
ReplyDeleteआपकी अगली कहानी की प्रतीक्षा रहेगी.
(देर से आने के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ)
bahut hi bavuk kahani hai sirji....
ReplyDeletebahut accha hai....
ravali
कहानी की सहजता के कारण इसके पात्र बहुत अपने से लगे ...अमित का संघर्ष आखिर सफल हुआ ...!
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण कहानी..बहुत ही सुन्दर प्रस्तुतीकरण..
ReplyDeleteप्रभावपूर्ण वर्णन ।
ReplyDeletekyun re bhai......kya kya likh jata hai....kyun
ReplyDeletepathk ko adra kar jate ho........nidhi ke saath
to niyay kar jate ..... khair kahani teri - apni
si lagi...bura na mamn-na bhai....age se bulane
ki formalty nahi.....aap hi aa jaoonga........
sadar.
जबरदस्त कहानी लिखी आपने..बधाई.
ReplyDeleteBahut achchhi lagi...
ReplyDeletebahut khoob
ReplyDelete:-)
ReplyDeleteसुन्दर शैली में लिखी गयी बढ़िया कहानी ।
ReplyDeletekahani bahut badiyan. par badi lambi main 4 baar me padh paya. aapne intna lamba unicode me likha kaise.
ReplyDeleteशिवकुमार जी,
ReplyDeleteखूबसूरत तरीके से कालेज से कैरियर तक का सफ़र याद दिलवाने के लिये शुक्रिया। कहानी जैसा तो नहीं था अपना समय, लेकिन फ़िर भी पुराने समय को याद करना अच्छा लगा।
सुंदर भावुक लम्बी कहानी के लिए बधाई॥
ReplyDeleteवास्तविकता के करीब लगी कहानी आपकी.
ReplyDeleteटुकड़ों में पढ़ा, सधा हुआ लगा आपका लेखन. लेकिन स्पष्ट कर रहा हूं कि वैसे मनोयोग से नहीं पढ़ सका, जैसी अपेक्षा करती है यह साहित्यिक रचना. इस स्वरूप की सामग्री का आनंद इस माध्यम पर लेने का अभ्यास नहीं बन सका है, लगता है मुद्रित रूप में देखने मिले तो पढ़ना आसान होगा.
ReplyDeleteबहुत सुंदर . अनुशरण भी कर लिया .
ReplyDeleteविरेन्द्र सिंह चौहान
ReplyDeleteZeal jee,
सोमेश जी ,
रवलिका रेड्डी ,
वाणी गीत ,
कैलाश जी , संजय
निवेदिता जी ,
संजय झा जी ,
के .के यादव जी ,
सुशांत झा ,
ओमराज पाण्डेय ,
आशीष ,
दीपक ,
मुसफ्फिर ,
संजय ,
पतली ,अभिषेक मिश्र ,
राहुल सिंह जी और
नित्यानंद जी .
आप सभी ने अपना कीमती समय निकालकर औटोग्राफ कहानी को पढ़ा
सभी लोगों का बहुत -बहुत धन्यवाद्
’सभी दोस्तों ने उस पेड़ की तरफ देखा और सभी ने एक साथ कहा ‘हाँ यार कॉलेज के वे दिन भी क्या थे…… ?’ सभी कॉलेज के दिनों की उन मीठी यादों में खो गए……………।
ReplyDelete...padhkar ham bhi college ke dinon mein kho gayee.. sundar prastuti... bahut achha laga aapka blog... haardik shubhkamnayne
एक बार में कहानी पढने में शारीरिक कष्ट तो हुआ मग़र अच्छा लगा , बधाई
ReplyDeleteजबरदस्त
ReplyDeleteवसंत पंचमी की ढेरो शुभकामनाए....
ReplyDeleteविगत की यादें आनंददायी रही.
ReplyDeleteएक बेहतरीन कहानी...शुरू से आखिर तक बांधे रखती हैं..आगे भी आपकी कहानियों को जरूर पढूंगी
ReplyDeleteधन्यवाद्
शुभांगी कुलकर्णी
आपकी कहानी पढ़ कर बहुत अच्छा लगा..
ReplyDeleteहार्दिक बधाइयाँ
राधिका
देर से कमेन्ट देने के लिए माफ़ी चाहता हूँ..मैंने आपकी दो कहानियां पढ़ी हैं "आकर्षण" और "औटोग्राफ". बहुत अच्छी तरह से प्रेसेंट किया हैं आपने लाइफ की सच्चाई ..
ReplyDeleteशुभकामनायें
तन्मय तिवारी
A very nice story..
ReplyDeleteThanks
Shailesh Patil
Good story...Wating for your next story..
ReplyDeleteWarm Regards
Jay Chandel
very big story..but it's indeed touched my old memories..
ReplyDeleteBest Wishes
Indresh
आपकी लेखन शक्ति एवं भावपूर्ण शब्दावलियाँ काबिले तारीफ हैं।
ReplyDeleteएक निवेदन:-
मैं वृक्ष हूँ। वही वृक्ष, जो मार्ग की शोभा बढ़ाता है, पथिकों को गर्मी से राहत देता है तथा सभी प्राणियों के लिये प्राणवायु का संचार करता है। वर्तमान में हमारे समक्ष अस्तित्व का संकट उपस्थित है। हमारी अनेक प्रजातियाँ लुप्त हो चुकी हैं तथा अनेक लुप्त होने के कगार पर हैं। दैनंदिन हमारी संख्या घटती जा रही है। हम मानवता के अभिन्न मित्र हैं। मात्र मानव ही नहीं अपितु समस्त पर्यावरण प्रत्यक्षतः अथवा परोक्षतः मुझसे सम्बद्ध है। चूंकि आप मानव हैं, इस धरा पर अवस्थित सबसे बुद्धिमान् प्राणी हैं, अतः आपसे विनम्र निवेदन है कि हमारी रक्षा के लिये, हमारी प्रजातियों के संवर्द्धन, पुष्पन, पल्लवन एवं संरक्षण के लिये एक कदम बढ़ायें। वृक्षारोपण करें। प्रत्येक मांगलिक अवसर यथा जन्मदिन, विवाह, सन्तानप्राप्ति आदि पर एक वृक्ष अवश्य रोपें तथा उसकी देखभाल करें। एक-एक पग से मार्ग बनता है, एक-एक वृक्ष से वन, एक-एक बिन्दु से सागर, अतः आपका एक कदम हमारे संरक्षण के लिये अति महत्त्वपूर्ण है।
शिवकुमार जी!
ReplyDeleteकहानी में अंर्तनिहित संदेश प्रभावकारी है। प्रयास सराहनीय है। अध्ययन के साथ अभ्यास जारी रखें। सफलता आपके निकट होगी।
@ समय का महत्व सदैव रहा है। आज के दौर में इसकी महत्ता और अधिक है। इसलिए यदि विशेष प्रयोजन न हो तो कम शब्दों में पाठक के हृदय में आपनी पैठ बनाने के लिए बड़ी कहानियों की बजाय छोटी कहानी अथवा लघु कथा लिखना कहीं ज्यादा बेहतर है।
@ लम्बी कहानी को छोटे-छोटे पैराग्राफों में सहेजना चाहिए।
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कृपया पर्यावरण संबंधी इस दोहे का रसास्वादन कीजिए।
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गाँव-गाँव घर-घ्रर मिलें, दो ही प्रमुख हकीम।
आँगन मिस तुलसी मिलें, बाहर मिस्टर नीम॥
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शहरीपन ज्यों-ज्यों बढ़ा, हुआ वनों का अंत।
गमलों में बैठा मिला, सिकुड़ा हुआ बसंत॥
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
बहुत अच्छी रही कहानी...आभार.
ReplyDeleteनमस्ते सर,
ReplyDeleteबहुत दिनों से आपकी कोई story नहीं पढ़ने को मिली। नई stories कब post कर रहे हैं।
Regards
Tanmay, Upendra, Radhika