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Saturday, October 23, 2010

भूमिका

हैदराबाद शहर के बीचों बीच बना एक मकान जो कटहल अमरूद और जामुन के आठ-दस पेड़ों से घिरा हुआ । ऐसा मकान जिसे देखते ही किसी का भी मन उस तरफ आकर्षित हुए बिना नही रहता । देखते ही लगता कि घर नहीं स्वर्ग है इतना सुन्दर । वैसे घर अधिक बड़ा नहीं था । पुराने जमाने के तरीके से बना घर बिल्कुल हवेली के समान लगता था । इस घर में मोहन का परिवार रहता है। परिवार भी कितना बड़ा पति- पत्नी और दो बच्चे । मोहन पेशे से दुकानदार है। उसकी कपड़ों की दुकान है । मोहन की एक बड़ी बहन है जो दिल्ली में रहती है। असल में मोहन का परिवार राजस्थान के जयपुर शहर से यहाँ  आकर बस गया था । एक दिन की बात है मोहन दोपहर के समय घर पर भोजन करने के लिए आया हुआ था । भोजन करने के बाद वह आराम केरने के लिए लेटा ही था कि फोन की घंटी बजी  मोहन ने देखा कि उसकी बड़ी बहन पद्मा का फोन है।
हैलो –“दीदी नमस्ते , कैसी हो”
पद्मा – “मैं ठीक हूँ । तू बता कैसा चल रहा है तेरा काम धंधा?”
मोहन – “आपके आशीर्वाद से ठीक ठाक चल रहा है।”
पद्मा – “घर पर सब कैसे है?  बच्चे और रेखा ?”
मोहन –  “सब ठीक है अभी -अभी खाना खाकर सब सो रहे हैं।”
पद्मा – “अच्छा सुन”
मोहन –  “जी दीदी”
पद्मा –  “हमने नोएडा में एक  नया फ्लैट खरीदा है। उसका गृह प्रवेश अगले
            शनिवार को है तुम सब गृह प्रवेश में जरूर आना ।”
मोहन –  “पर….. दीदी दुकान को कौन संभालेगा ।”
पद्मा –  “दो-चार दिन बंद रहेगी तो कुछ नही होगा , शनिवार का गृह प्रवेश है भले 
           ही तुम रविवार को चले जाना पर ग्रह प्रवेश में आना जरुर ।”
मोहन –  “ठीक है। पर अभी तो ट्रेन की टिकिट भी नहीं मिलेगी ।”
पद्मा –  “सब मिल जाएगी तुम तत्काल में निकलवा लेना ।”
मोहन –  “ठीक है।”
पद्मा –  “अच्छा अब मैं फोन रखती हूँ । आना मत भूलना ।”
मोहन –  “ठीक है दीदी।”
मोहन फोन रखकर सोने ही लगता है कि उसकी पत्नी रेखा पूछ लेती है -
“किसका फोन था जी?”
मोहन –   “दिल्लीवाली दीदी का।”
रेखा – “सब ठीक ठाक है ना ?”
मोहन – “हाँ सब ठीक है उन्होंने नोएड़ा में फ्लैट खरीदा है  उसका गृह प्रवेश अगले 
         शनिवार को है उसमें आने के लिए कह रहीं थीं।
रेखा –  “अच्छा ! दीदी ने नया फ्लैट खरीदा है ।”
मोहन – “हाँ”
रेखा – “चलो इसी बहाने से हम सब दिल्ली की सैर भी कर आएंगे । दीदी का गृह 
       प्रवेश का गृह प्रवेश हो जाएगा और हम लोग दिल्ली भी घूम आएँगे।”
मोहन –  “पर दुकान को इतने दिन बंद करना भी तो ठीक नहीं होगा।”
रेखा – “कुछ नही होता , हम कौन से रोज -रोज दुकान बंद करके घूमने जाते हैं। अब मौका मिल रहा है तो चलते हैं वैसे भी बच्चों की छुट्टियाँ चल रही है वे लोग भी घर में बैठे-बैठे बोर हो जातै है उनका मन भी बहल जाएगा और हमारा दीदी से मिलना भी हो जाएगा। वैसे भी दीदी से मिलकर काफी दिन हो गए हैं।”
मोहन –   “अच्छा बाबा ठीक है ।"

मोहन ने परिवार के साथ दिल्ली जाने के लिए तत्काल में टिकट निकलवाई और  दिल्ली के लिए रवाना हो गया। वह हैदराबाद से बुधवार को ही निकल गया था उसने सोचा कि हम गुरूवार को दिल्ली पहुँच जाएँगे । गुरूवार और शुक्रवार दिल्ली घूम लेंगे शनिवार को  दीदी का गृह प्रवेश है । शनिवार और रविवार दीदी के साथ गुजर जाएगा , रविवार की शाम उनकी वापसी की ट्रेन थी सो वापस  सोमवार तक  हैदराबाद पहुँच जाएगा । ट्रेन में उसकी  की मुलाकात एक तेलुगु परिवार से होती है । पति-पत्नी और एक तीन साल की बच्ची, ये लोग भी दिल्ली की सैर करने के लिए जा रहे थे । उस परिवार के मुखिया का नाम श्रीकान्त था । श्रीकांत के परिवार को हिन्दी भाषा नहीं आती थी । श्रीकांत थोड़ी बहुत हिन्दी समझ , बोल लेता था ।  उसकी पत्नी और बच्ची बिंदु को हिन्दी ज़रा भी नहीं आती थी न बोलनी और न समझनी। अक्सर ट्रेनों में जब दो परिवारवाले मिलते हैं तो थोड़ी बहुत जान- पहचान हो ही जाती है। ट्रेन अपनी तेज रफ्तार से दिल्ली की ओर लगातार बढ़ रही थी । एक एक  कर स्टेशन निकलते जा रहे थे । मौसम भी काफी सुहावना था ठंडी हवा चल रही थी । यहाँ बच्चे एक दूसरे से काफी घुल - मिल गए थे । बच्चे अपना खेलने में लगे थे और बड़े अपनी आपसी बातों में ।



सुबह से चलते -चलते शाम हो चुकी थी । ट्रेन लगातार अपनी तेज रफ्तार से दिल्ती की तरफ दौड़े जा रही थी लग रहा था मानो वह हवा से बातें करती हुई हवा से दौड़ लगा रही हो। धीरे -धीरे दिन का उजाला खत्म हुआ रात का काला अँधेरा चारों तरफ छा गया । चारो तरफ सन्नाटा ही सन्नाटा उस सन्नाटे को चीरती हुई ट्रेन तेज रफ्तार से अपनी मंजिल की ओर दौड़ रही थी । यात्रियों ने रात का खाना खाया और अपनी-अपनी सीटों पर सोने की तैयारियों में लग गए । कुछ समय बाद ट्रेन में भी सन्नाटा छा गया था सब गहरी नींद में सोए हुए थे । रात के करीब बारह बजे होंगे कि अचानक रेल पटरी पर एक ज़ोर का धमाका हुआ और देखते ही देखते ट्रेन की चार-पाँच बोगियाँ एक दूसरे के ऊपर चढ़ गई । एक बड़ी दुर्घटना ।  रात के सन्नाटे को ट्रेन की इस भयानक दुर्घटना ने मिटा दिया देखते ही देखते चारो तरफ हा- हाकार मच गया । बड़ा ही भयानक हादसा था वह । इतनी जोर का धमाका हुआ था कि आस पास के गाँवों के लोग अपने घरों से निकलकर भागते हुए मदद के लिए वहाँ पर पहुँच गए ।  कुछ समय बाद पुलिस भी अपनी पूरी मशीनरी के साथ घटना स्थल पर पहुँच गई।


ट्रेन के दो डिब्बे तो इतनी बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हुए थे कि उनमें से किसी के बचने की कोई उम्मीद नहीं थी । पुलिस ने स्थानिय लोगो की सहायता से बोगियों में फँसे लोगों को निकालने का काम शरू किया । स्थानीय लोगों ने भी बढ़ चढ़ कर लोगों की मदद करने की कोशिश की। सारा माहौल दर्दनाक चीखों से गूँज उठा किसी ने अपना बेटा खोया , किसी ने अपने माँ-बाप , किसी ने अपना पति तो किसी ने अपनी पत्नी । चारो तरफ हा- हाकार मचा हुआ था । धरती पर चारो तरफ खून बिखरा पड़ा था । ऐसा लग रहा था मानो खून की नदी बह रही हो । खून से लथपथ शवों को लगातार  बाहर निकाला जा रहा था । सबसे नीचे की जो बोगी थी वह वही बोगी थी जिसमें मोहन और श्रीकांत का परिवार सफर कर रहा था । उस बोगी में फँसे लोगों को बाहर निकालने के लिए क्रेन मंगानी पड़ी बोगी को जगह -जगह से काटा गया । उस बोगी में किसी का बचना मुश्किल था । क्योंकि वह बोगी चार- पाँच बोगियों के नीचे जो दबी थी । पुलिस का बचाव दल एक एक कर शवों को बाहर निकाल रहा था कि एक बच्ची के रोने की आवाज सुनाई दी । पुलिस दल  बड़ी सावधानी से उस बच्ची को बाहर निकाल ही रहे थे कि किसी औरत के कराहने की आवाज भी सुनाई दी पुलिस दल ने बड़ी ही सावधानी से बच्ची और स्त्री को बाहर निकालकर शिविर कैंप अस्पताल में भर्ती करवाया ।


जीवित निकाली गई औरत मोहन की पत्नी रेखा थी और बच्ची श्रीकांत की बेटी बिंदु । वाह ! रे ईश्वर  तेरी माया ।  जाको राखे साईयाँ मार सके ना कोई। रेखा अस्पताल में बेहोश पड़ी थी जैसे ही उसे होश आया वह अपने पति और बच्चों  की तलाश में भागी-भागी आई । चारो तरफ शव ही शव । शवों को देखकर उसका दिल बैठा जा रहा था । इधर से उधर पागलों की तरह भटक रही थी । जब उसके सब्र का बाँध टूट गया ।  तो एक जगह बैठ गई तभी उसकी नजर मोहन पर पड़ी वह भागी -भागी उसके पास गई देखा कि वह तो मृत पड़ा है पास ही उसके दोनों बच्चों के शव पड़े हैं। यह देखर वह सन्न रह गई । थोड़ी देर तक तो उसके मुँख से आवाज ही नहीं निकली ,कुछ समय पहले तक जो उसके साथ हँसी मजाक कर रहे थे अब वे लोग यहाँ  शवों के रुप में पड़े हैं।  उसे यकीन नहीं हो रहा था कि ऐसा भी हो सकता है। तभी भीड़ में से एक व्यक्ति का उसे जोर का ध्क्का लगा और वह सीधे मोहन के ऊपर जा गिरी । मोहन और बच्चों को मरा हुआ देखकर वह पूरी तरह बदहवास हो गई । उसने अपना आपा खो दिया वह मोहन और बच्चों के सिरों को गोद में रखकर फफक -फफककर रोने लगी । कभी  पति के चेहरे को देखकर रोती तो कभी बच्चों के चेहरे को देखकर। हाय ! रे विधाता यह कैसी घड़ी थी उस पत्नी के लिए जिसकी माँग आज सूनी हो गई है ,उस माँ के लिए जिसके बच्चे आज उसकी गोद में मृत पड़े हैं। चारो तरफ हाहाकर मचा हुआ था । हर कोई अपनों को खोज रहा था । तभी रेखा की नजर श्रीकांत और उसकी पत्नी पर गई, उनके शव भी मोहन के पास ही रखे हुए थे । उसने देखा कि श्रीकांत और उसकी पत्नी के शव तो यहाँ हैं पर उनकी तीन साल की बेटी बिंदु कहीं नजर नहीं आ रही थी । वह वहाँ से उठी और बिंदु को खोजने लगी । खोजते -खोजते वह अस्पताल तक जा पहुँची जहाँ उसका इलाज चल रहा था । वह अभी जीवित थी । जैसे ही बिंदु को होश आया वह जोर -जोर से रोने लगी । उस समय रेखा वहीं पर थी उसने बिंदु को उठाकर अपने सीने से लगा लिया । बिंदु अपने माँ-बाप को न पाकर फिर रोने लगी। हाय ! बेचारी को क्या पता कि जिन्हें वह खोज रही है अब वे कभी  उसके सामने आने वाले नहीं। बिंदु लगातार रोए जा रही थी । रेखा ने उसे चुप करने की बहुत कोशिश की लेकिन नाकाम रही , क्योकि रेखा को तेलुगु भाषा नहीं आती थी और न बिंदु को हिन्दी भाषा , अब वह क्या करे क्या  ना करे उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था । एक तरफ उसके परिवार के शव पड़े हुए थे दूसरी तरफ वह बच्ची । बिंदु की आँखे उस भीड़ में अपने माँ -बाप को ही खोज रही थीं । बिंदु जब रो-रोकर थक गई तो रेखा से लिपटकर सो गई। रेखा बच्ची को अपने सीने से लगाए उन शवों के पास  बैठी विलाप  कर रही थी ।

ट्रेन हादसे की खबर पूरे देश में फैल चुकी थी । हादसे की जगह पर मुसाफिरों के रिश्तेदार आने लगे थे । चारों तरफ भगदड़ मची हुई थी । हर कोई अपनों को खोजने में लगा था । मोहन के परिवार वाले भी हादसे की जगह पर पहुँच चुके थे । हादसे के चौबीस घंटे बीत जाने के बाद हादसे में मारे गए व्यक्तियों के शवों का पास ही के गाँव में अंतिम संस्कार कर दिया गया । मोहन के परिवारवाले तो हादसे की जगह पर पहुँच चुके थे किन्तु रेखा इंतज़ार कर रही थी कि श्रीकांत के परिवार का कोई व्यक्ति आए और बिंदु को ले जाए किन्तु हादसे के दो दिन बीत जाने के बाद भी जब उसे लेने कोई नहीं आया  तो रेखा , बिंदु को अपने साथ दिल्ली ले आई । बिंदु बार -बार अपने माँ-बाप को याद कर रोने लगती । रेखा उसे बार-बार इशारों से चुप कराती । अब वह क्या करे  बिंदु के बारे में  कुछ भी तो नहीं जानती कहाँ की है? इसके  रिश्तेदार कौन हैं ? आदि बातें । यहाँ  परिवार के लोगों ने फैसला किया कि बिंदु को हैदराबाद ले जाकर पुलिस को सौंप देते हैं और बता देंगे कि ट्रेन हादसे में इस मासूम के माता-पिता की मृत्यु हो चुकी है , आप इसके रिश्तेदारों तक इसे पहुँचाने का इन्तजाम कर दे।
किन्तु रेखा ने ऐसा करने से साफ मना कर दिया । उसे लगा कि उसका पति और बच्चे तो संसार में उसे  अकेले छोड़ गए और इस बेचारी बच्ची के माँ-बाप इसे संसार में अकेला । अगर हैदराबाद में पुलिस इस बच्ची के रिश्तेदारों  को न खोज सकी तो वे लोग इसे अनाथाश्रम में भेज देगी । पता नहीं इस बेचारी का जीवन कैसे कटेगा और कही यह किसी बदमाश के हाथ लग गयी तो ……? इसका जीवन बरबाद हो जाएगा । नहीं नहीं मैं ऐसा नहीं होने दुँगी। मैं इस बच्ची का पालन -पोषण करुँगी। अगर इसके कोई रिश्तेदार होंगे भी तो वे लोग यहाँ आकर ले जाएंगे । हम अख्बार में इस्तहार दे देंगे । इस्तहार देने के तीन महिने बीत गए किन्तु बिंदु को लेने कोई नहीं आया । अब बिंदु रेखा के साथ घुल मिल गई थी । एक माँ की ममता ने यह साबित कर दिया कि माँ के प्यार को किसी भाषा की ज़रुरत नहीं होती । माँ की ममता के रास्ते में कोई भाषा बाधा न बन सकी । दोनों एक दूसरे की भाषा से अंजान होते हुए भी एक दूसरे के अज़ीज़ बन गए। कहते हैं ना कि प्यार से तो जानवर को भी अपने वश में किया जा सकता है। यह तो एक मासूम सी बच्ची जिसने अभी संसार में चलना ही सीखा था फिर वह कैसे ना प्यार की भाषा समझती ।

रेखा ने अपना हैदराबाद का मकान बेच कर दिल्ली में ही एक फ्लैट खरीद लिया था । वह पढ़ी लिखी थी दिल्ली आकर उसने एक नौकरी ढूँढ़ी और अपने जीवन को एक नई उम्मीद के साथ शुरु करने लगी। कहते हैं ना कि वक्त धीरे - धीरे हर गम -दुख को भुला देता है । अब रेखा के जीवन में बिंदु की अहम भूमिका है। उसका सारा ध्यान  बिंदु पर ही लगा रहता है।  बिंदु उसके जीने का आधार जो बन गई थी । वह बिंदु की  परवरिश में किसी प्रकार की कमी नहीं होंने देना चाहती थी । उसे पाकर वह अपने  दोनों बच्चों की कमी को पूरा करने की कोशिश करती पर जो कमी उसके जीवन में हो गई है उसे वह कभी पूरा नहीं कर सकती …… । उसने बिंदु की परवरिश में अपनी पूरी जवानी लगा दी । आज वह यह देखकर अपने आप पर गर्व महसूस करती है कि उसने जिस ज़िम्मेदारी को बरसों पहले अपने कांधों पर उठाया था  आज वह एक कामियाब नारी बन चुकी है। आज बिंदु आए. टी क्षेत्र में एक उच्च शिखर पर कार्य कर रही है। आज बिंदु का किसी भी आए.टी कम्पनी के साथ होना उस कम्पनी के लिए गर्व की बात है । इस स्थान पर पहुँचने में जितनी मेहनत, परिश्रम  बिंदु ने की है उससे ज्यादा  मेहनत और परिश्रम रेखा ने किया था । शायद इसी लिए  आए. टी कम्पनी उसे अपनी कम्पनी में उच्च आधिकारिक पद पर रखना चाहती है। बिंदु की भूमिका ने  रेखा को जीने की एक नयी राह दिखाई एक नया हौसला दिया । शायद इसी लिए वह अपने जीवन की जंग को जीत पाई है।

2 comments:

  1. नमस्ते शिव कुमार जी,

    "भूमिका" से आपने एक नया ही पहलू सामने लाया हैं. यह कहानी सही मायनो में एक मील का पत्थर हैं.हम पाठको तक यह सुन्दर कहानी पहुचने में आपकी भी एक अहम् "भूमिका" हैं.

    आप यू ही सुन्दर और अर्थपूर्ण कहानियां लिखते रहे !!!

    शुभकामनाएं
    अमित अनुराग

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  2. ‘उसका ग्रह प्रवेश अगले....’
    समझ गया था कि ग्रहाचार ठीक नहीं है :)

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