अमित ओ अमित ......।
कहाँ चला जाता है यह लड़का ? पल में गायब हो जाता है , अमित ओ अमित ......।
देखों तो कमरे को कितना गंदा कर रखा है,सारी किताबें फैली पड़ी हैं। कब सुधरेगा
यह लड़का ?
जैसे ही अमित ने माँ की आवाज सुनी दौड़ा हुआ घर आया।
हाँफते हुए बोला – ‘माँ मुझे बुलाया?’
हाँ कहाँ चला जाता है तू पल में यहाँ पल में वहाँ तेरा कही एक जगह तलवा टिकता है कि.... नहीं ।
‘यहीं तो था , बाहर दोस्तों के साथ क्रिकेट खेल रहा था .... क्या बात है? क्यों बुला रही थीं ….?’
‘ज़रा देख तो कमरे की क्या हालत बना रखी है तूने सारा सामान इधर -उधर बिखरा पड़ा है । दो दिन के बाद दिवाली है । सब लोग अपने -अपने घरों की सफाई में लगे हैं एक तू है कि तुझे तो सफाई का कोई शौक ही नहीं है।’
ठीक है मैं कर दुँगा।
पर कब करेगा ? देख तेरी दीदी ने अपना कमरा कितना सुंदर सजाया है।
कहा ना ……मैं कर दुँगा........।
‘मुझे पता है तू कब करेगा जब तक मैं तेरे साथ नहीं लगुँगी तब तक तो तू करने वाला है नहीं। अच्छा सबसे पहले तू अपने बिखरे हुए सामान को इकट्ठा कर उसे उनकी अपनी -अपनी जगह पर रख।’
‘माँ मैंने कहा ना कर दुँगा फिर क्यों आप मेरे पीछे पड़ी हैं ........।’
‘नहीं तू अभी शुरु कर मेंरे सामने…. फिर मैं भी तो तेरे साथ काम कर रही हूँ ना..........।’
माँ आप भी ना ....... कहते हुए अमित अपने कमरे की सफाई करने में लग गया । सारे कमरे में किताबें इधर से उधक बिखरी पड़ी थी अमित एक-एक कर किताबों को उठाकर अलमारी में रखने लगा उधर माँ बाकी कमरे की सफाई में लग गई। अमित ने कमरे में बिखरे पड़े सभी सामान को उठाकर अपनी-अपनी जगह पर रख दिया ।
माँ ने कमरे में बिखरे पड़ें कपड़ें,जूते ,मोजों को इकट्ठा कर धोने के लिए ले गई । जाते जाते अमित को उसके कमरे में रखी अन्य चीजों को साफ करने की कहते हुए बोलीं –‘अब देख तेरे कमरे को अब भी तो कमरा जैसा लग रहा है ना।’
‘तो क्या पहले कमरा नही लग रहा था क्या ?’ अमित ने कहा
‘हाँ हाँ पहले भी यह था तो कमरा ही पर इन्सानों का कमरा कम और जानवरों का ज्यादा लग रहा था।’ माँ ने कहा
‘अच्छा सुन देख तेरी अलमारी में जो -जो किताबें काम की नहीं है उन्हें निकाल कर रद्दी में डाल दे घर से कुछ कचरा कम कर । एक बार सारी किताबों को झाड़ कर साफ कर ले और जो तेरे काम की नहीं हैं उन्हें बाहर निकाल कर बाहर रख दे।’
अमित – ‘माँ सभी किताबें मेरे काम की हैं।’
माँ- अरे अब तुझे स्कूल की किताबों की क्या ज़रूरत अब तू नौकरी करेगा कि इन स्कूलों की किताबों को पढ़ेगा।’
अमित ने माँ को समझाते हुए कहा कि किताबें चाहे स्कूल की हो या कॉलेज की किताबें कभी न कभी काम आ ही जाती है।
माँ – ‘अच्छा ठीक है एक बार तू देख ले अगर कोई किताब तेरे काम की ना हो तो उसे बाहर निकाल कर रख देना ।’
अमित - ठीक है माँ अब तुम जाओ मैं देख लुँगा अगर मुझे लगेगा कि किताब मेरे काम की नहीं है तो मैं बाहर निकालकर रख दुँगा । ठीक हैं....
माँ- ‘पता नही तू क्या करेगा ? कभी इन किताबों को पढ़ते हुए तो देखा नहीं कितने ही सालों से सजा कर रखी हुई हैं .......।’
अमित – ‘मैने कहा ना मैं देखकर बिना काम की किताबों को बाहर निकाल दुँगा ...........अब तुम जाओ।’
माँ- ‘अच्छा ठीक है,’ कहते हुए कमरे से बाहर चली गई ।
माँ के कमरे से बाहर जाते ही अमित ने अपनी सारी किताबें अलमारी से बाहर निकालकर ज़मीन पर रख दी और एक - एक किताब को साफ कर अलमारी में फिर से सजाने लगा। किताबों को साफ कर रखते -रखते उसे करीब आधा घंटा हो चुका था । वह किताबों को साफ करते हुए सजा रहा था कि अचानक उसकी नज़र किताबों के नीचे दबी एक पतली किताब पर गई उसने वह किताब कुछ किताबें हटाकर बाहर निकाली । वह किताब उसके स्कूल के समय की ऑटोग्राफ बुक(किताब) थी । अपनी स्कूल की ऑटोग्राफ बुक को देखकर बहुत खुश हो गया । उसने उसे साफ कर एक तरफ रख दिया और बाकी पड़ी हुई किताबों को साफ कर अलमारी में रखने लगा थोड़ी देर में सारी किताबें साफ कर अलमारी में सजा दी थी और कुछ किताबें जो उसे बेकाम की लगी बाहर निकाल कर रख दी थीं। अब उसने अपनी ऑटोग्राफ बुक उठाई और एक -एक कर किताब के पन्ने पलटने लगा। किताब के पन्ने पलटते-पलटते वह अपने स्कूल के आखरी दिन को याद करने लगा.....................।
कहाँ चला जाता है यह लड़का ? पल में गायब हो जाता है , अमित ओ अमित ......।
देखों तो कमरे को कितना गंदा कर रखा है,सारी किताबें फैली पड़ी हैं। कब सुधरेगा
यह लड़का ?
जैसे ही अमित ने माँ की आवाज सुनी दौड़ा हुआ घर आया।
हाँफते हुए बोला – ‘माँ मुझे बुलाया?’
हाँ कहाँ चला जाता है तू पल में यहाँ पल में वहाँ तेरा कही एक जगह तलवा टिकता है कि.... नहीं ।
‘यहीं तो था , बाहर दोस्तों के साथ क्रिकेट खेल रहा था .... क्या बात है? क्यों बुला रही थीं ….?’
‘ज़रा देख तो कमरे की क्या हालत बना रखी है तूने सारा सामान इधर -उधर बिखरा पड़ा है । दो दिन के बाद दिवाली है । सब लोग अपने -अपने घरों की सफाई में लगे हैं एक तू है कि तुझे तो सफाई का कोई शौक ही नहीं है।’
ठीक है मैं कर दुँगा।
पर कब करेगा ? देख तेरी दीदी ने अपना कमरा कितना सुंदर सजाया है।
कहा ना ……मैं कर दुँगा........।
‘मुझे पता है तू कब करेगा जब तक मैं तेरे साथ नहीं लगुँगी तब तक तो तू करने वाला है नहीं। अच्छा सबसे पहले तू अपने बिखरे हुए सामान को इकट्ठा कर उसे उनकी अपनी -अपनी जगह पर रख।’
‘माँ मैंने कहा ना कर दुँगा फिर क्यों आप मेरे पीछे पड़ी हैं ........।’
‘नहीं तू अभी शुरु कर मेंरे सामने…. फिर मैं भी तो तेरे साथ काम कर रही हूँ ना..........।’
माँ आप भी ना ....... कहते हुए अमित अपने कमरे की सफाई करने में लग गया । सारे कमरे में किताबें इधर से उधक बिखरी पड़ी थी अमित एक-एक कर किताबों को उठाकर अलमारी में रखने लगा उधर माँ बाकी कमरे की सफाई में लग गई। अमित ने कमरे में बिखरे पड़े सभी सामान को उठाकर अपनी-अपनी जगह पर रख दिया ।
माँ ने कमरे में बिखरे पड़ें कपड़ें,जूते ,मोजों को इकट्ठा कर धोने के लिए ले गई । जाते जाते अमित को उसके कमरे में रखी अन्य चीजों को साफ करने की कहते हुए बोलीं –‘अब देख तेरे कमरे को अब भी तो कमरा जैसा लग रहा है ना।’
‘तो क्या पहले कमरा नही लग रहा था क्या ?’ अमित ने कहा
‘हाँ हाँ पहले भी यह था तो कमरा ही पर इन्सानों का कमरा कम और जानवरों का ज्यादा लग रहा था।’ माँ ने कहा
‘अच्छा सुन देख तेरी अलमारी में जो -जो किताबें काम की नहीं है उन्हें निकाल कर रद्दी में डाल दे घर से कुछ कचरा कम कर । एक बार सारी किताबों को झाड़ कर साफ कर ले और जो तेरे काम की नहीं हैं उन्हें बाहर निकाल कर बाहर रख दे।’
अमित – ‘माँ सभी किताबें मेरे काम की हैं।’
माँ- अरे अब तुझे स्कूल की किताबों की क्या ज़रूरत अब तू नौकरी करेगा कि इन स्कूलों की किताबों को पढ़ेगा।’
अमित ने माँ को समझाते हुए कहा कि किताबें चाहे स्कूल की हो या कॉलेज की किताबें कभी न कभी काम आ ही जाती है।
माँ – ‘अच्छा ठीक है एक बार तू देख ले अगर कोई किताब तेरे काम की ना हो तो उसे बाहर निकाल कर रख देना ।’
अमित - ठीक है माँ अब तुम जाओ मैं देख लुँगा अगर मुझे लगेगा कि किताब मेरे काम की नहीं है तो मैं बाहर निकालकर रख दुँगा । ठीक हैं....
माँ- ‘पता नही तू क्या करेगा ? कभी इन किताबों को पढ़ते हुए तो देखा नहीं कितने ही सालों से सजा कर रखी हुई हैं .......।’
अमित – ‘मैने कहा ना मैं देखकर बिना काम की किताबों को बाहर निकाल दुँगा ...........अब तुम जाओ।’
माँ- ‘अच्छा ठीक है,’ कहते हुए कमरे से बाहर चली गई ।
माँ के कमरे से बाहर जाते ही अमित ने अपनी सारी किताबें अलमारी से बाहर निकालकर ज़मीन पर रख दी और एक - एक किताब को साफ कर अलमारी में फिर से सजाने लगा। किताबों को साफ कर रखते -रखते उसे करीब आधा घंटा हो चुका था । वह किताबों को साफ करते हुए सजा रहा था कि अचानक उसकी नज़र किताबों के नीचे दबी एक पतली किताब पर गई उसने वह किताब कुछ किताबें हटाकर बाहर निकाली । वह किताब उसके स्कूल के समय की ऑटोग्राफ बुक(किताब) थी । अपनी स्कूल की ऑटोग्राफ बुक को देखकर बहुत खुश हो गया । उसने उसे साफ कर एक तरफ रख दिया और बाकी पड़ी हुई किताबों को साफ कर अलमारी में रखने लगा थोड़ी देर में सारी किताबें साफ कर अलमारी में सजा दी थी और कुछ किताबें जो उसे बेकाम की लगी बाहर निकाल कर रख दी थीं। अब उसने अपनी ऑटोग्राफ बुक उठाई और एक -एक कर किताब के पन्ने पलटने लगा। किताब के पन्ने पलटते-पलटते वह अपने स्कूल के आखरी दिन को याद करने लगा.....................।
अमित के चार खास दोस्त थे राहुल , मनीश कमल और रमेश । रमेश इन चारों में सबसे होशियार छात्र था । वैसे चारो दोस्त एक दूसरे का खूब साथ निभाते थे चाहे वह खेल का मैदान हो या फिर पढ़ाई लिखाई या फिर परीक्षा हॉल । मनीश थोड़ा सा कमजोर छात्र था । ये तीनों मित्र उसे पढ़ाई में बराबर साथ देते थे जो कुछ उसे समझ में नहीं आता था ये तीनों दोस्त किसी न किसी तरह उसे समझाने में कामयाब हो जाते। इसी लिए पूरे स्कूल में इन चारों की जोड़ी बड़ी मशहूर थी ।
आज स्कूल में बारहवी कक्षा के छात्रों का विदाई समारोह है। अमित के दोस्त स्कूल में एक एक कक्षा में जा जाकर अपनी यादों को ताजा करते हुए एक दूसरे से कहते...
अमित - अरे यार जब मैं इस स्कूल में आया था तब सबसे पहले मैं इसी कमरे मैं बैठा था। उस दिन मुझे बड़ा डर लग रहा था कोई भी लड़का पहचान का नहीं था मैं एक दम नया था इस माहौल के लिए ...तभी अमित की बात को बीच में ही काटते हुए कमल बोल उठा
कमल -‘हाँ यार मुझे भी याद है….. जब तू स्कूल में पहली बार आया था ,सबसे पहले हमारी दोस्ती इसी कमरे में हुई थी है ना .........।’
अमित – ‘हाँ यार , बाद में मनीश, रमेंश से हमारी दोस्ती हुई थी तुझे याद है एक दिन जब रमेश को कक्षा में दो-तीन लड़के मार रहे थे तब मैने ही इसे बच बचाव करके बचाया था।’
रमेश - हाँ यार उस दिन को कैसे भूल सकता हूँ । वो तीन मुस्टंडे से लड़के बिना बात ही मुझ से झगड़ पड़े थे । अगर उस दिन अमित ना होता तो वे तो मेरी चटनी ही बना देते थे.........।
चटनी बना देने की बात सुनकर चारो दोस्त ठहाकामारकर हँस दिए।
चारो दोस्त धीरे-धीरे पूरे स्कूल का दौरा करके वापस हॉल में आ गए । हॉल सभी विद्यार्थियों से खचाखच भरा हुआ था । कक्षा ग्यारह के विद्यार्थियों ने कक्षा बारह के विद्यार्थियों को एक -एक गुलाब का पुष्प भेंट किया । कक्षा बारह के विद्यार्थियों ने स्कूल की कुछ खट्टी-मीठी यादों को अपने जूनियरों के साथ बाँटा.....। इसी तरह विदाई कार्यक्रम समाप्त हुआ। कक्षा बारह के विद्यार्थियों के चेहरे पर अपने स्कूल को छोड़ने का दुख देखा जा सकता था साथ ही भविष्य में उन्नति की आशा भी साफ देखी जा सकती थी । अब कुछ पाने के लिए कुछ तो खोना ही पड़ता है........। सभी विद्यार्थी अपने दोस्तों का ऑटोग्राफ लेने में लगे थे। वहीं अमित एक पेड़ की छाँव में बैठा कुछ सोच रहा था । अमित के दोस्त उसे हॉल में ना पाकर इधर-उधर खोजने लगे उन्होंने देखा कि वह एक पेड़ के नीचे सिर झुकाए हुए बैठा है। सभी लोग उसके पास गए तो उन्होंने देखा कि अमित रो रहा था। गम्भीर से गम्भीर विषय को भी जो कभी गम्भीरता से नहीं लेता था। जो सदैव दूसरों को हँसाने का भरपूर प्रयास करता था आज वह रो रहा है । यह देखकर उसके सभी दोस्त चकित रह गए । पहले तो वह दिखाना चाहता था कि वह रो नहीं रहा किन्तु पता नहीं आज वह अपने आप को रोने से रोक न सका शायद उसे स्कूल छोड़ने का दुख था या.......? हॉल विद्यार्थियों से खचाखच भरा था वहाँ पर उपस्थित सभी विद्यार्थियों की आँखें नम थी सभी को अपने दोस्तों से स्कूले से अपने पसंदीदा अध्यापकों से बिछड़ने का दुख था ।
यहाँ जब अमित के दोस्तों ने देखा कि वह पेड़ के नीचे बैठा रो रहा है..।
‘क्या बात है अमित तुम्हारी आँखों में आँसू ........?’ मित्रों ने पूछा
अमित ने कुछ नही कहा वह ......................बैठा रहा।
आखिर बात क्या है ?
अमित ने अपने तीनों दोस्तों की तरफ देखा और ...........।
अमित के दोस्तों ने कहा कि - अरे यार इसमें रोने की क्या बात है हम सब हैं तो एक ही शहर में जब जी चाहे मिल सकते हैं , भले ही हम एक कॉलेज में पढ़े या ना पढ़े पर मिलते तो रहेंगे।
अमित को आज ही पता चला था कि उसके पिताजी का तबादला दिल्ली हो गया है । उसके माता -पिता ने उसे यह खबर इसीलिए नहीं बताई थी क्योंकि यह खबर सुनकर वह अपनी पढाई में ध्यान नहीं दे पाएगा । उसे कल ही अपने पिताजी के साथ दिल्ली जाना है।
अमित ने दोस्तों को जब यह बताया कि पता नहीं अब वह उन लोगों से कब मिल पाएगा , मिल पाएगा भी या नहीं। क्योकि उसके पिता जी का दिल्ली ट्रांसफर हो गया है और कल ही उसे अपने परिवार के साथ जाना है और फिर वह वहीं रहेगा उसके पिताजी ने उसका कॉलेज में एडमीशन भी करवा दिया है । जब उसके दोस्तों ने यह सुना तो पहले तो उन्हें लगा कि अमित मजाक कर रहा है। जब अमित ने कहा कि मैं मजाक नहीं कर रहा यह सच है तो वहाँ उसके तीनों दोस्तों की आँखें नम हो गई ।
धीरे - धीरे समय बीत रहा था । सभी लोग एक दूसरे से मिल रहे थे और भविष्य में मिलनते रहने और कभी न भूलने की बातें कर रहे थे। इधर अमित और उसके दोस्त ................। पेड़ के नीचे शांत बैठे एक दूसरे का चेहरा देख रहे थे ।कोई किसी से कुछ कह ही नहीं रहा था बस शांत बैठे हुए थे। तभी अमित उठा और बोला- अरे यारो मेरी वजह से तुम लोगों का भी मूड खराब हो गया । कोई बात नहीं हम लोग एक दूसरे से रोज नहीं मिल सकते तो क्या हुआ फोन तो है ना , फोन पर ही बात कर लिया करेंगे । पर यारो तुम लोग मुझे भूल न जाना भले ही............ अमित की 'कभी भूल न जाना' की बात सुनकर चारों दोस्त एक दूसरे के गले मिल कर .....................।
तभी अमित ने अपनी ऑटोग्राफ बुक निकालते हुए अपने दोस्तों से कहा कि कम से कम वे लोग उसे अपना-अपना ऑटोग्राफ दें ।
रमेश ने लिखा – ‘जीवन की राह पर तुम हमें भूल न जाना ,
जब भी याद हमारी आए आँखें बंद कर हमें पुकार लेना
हम तेरी साँसे बनकर सदा तेरे साथ होंगो ए यार मेरे।।’
मनीश ने किशोरकुमार के गाने की पंक्तियाँ – ‘चलते - चलते मेरे ये गीत याद रखना कभी अलविदा ना कहना................।’
इसी तरह एक -एक कर सभी ने उसकी ऑटोग्राफ बुक में लिखा। यहाँ से चलकर अमित और उसके दोस्त हॉल में पहुँचे जहाँ सभी विद्यार्थी बैठे हुए थे । अमित ने अपने सभी दोस्तों को यह बात किसी को न बताने के लिए कि अमित कल शहर छोड़कर दिल्ली जा रहा कह दिया था । यहाँ आकर वह अपने अन्य सभी दोस्तों और अध्यापकों से मिला । अपने अध्यापकों का ऑटोग्राफ लिया ………..।
तभी दरवाजा खुलने की आवाज हुई , देखा तो माँ सामने खड़ी है , अरे क्या हुआ ? क्या सोच रहा था?
अमित - ‘कुछ नही माँ।’
क्रमश ....
आगे की कहानी नए साल में…
काफ़ी रोचक है अब तो आगे का इन्तज़ार है। अपने कालेज के दिन याद आ गये।
ReplyDeleteधन्यवाद् वंदना जी ,
ReplyDeleteशिव जी बढ़िया चल रही है कहानी। अगले भाग के लिए उत्सुकता भी बरकरार है। कहानी को सही जगह रोका है आपने और अनावश्यक खींचा भी नहीं है।
ReplyDeleteबधाई...
धन्यवाद् सोमेश जी
ReplyDelete‘सारी किताबें फैली पड़ी हैं। ’
ReplyDeleteअरे भैया, अपना भी यही हाल है :)
अच्छी कहानी.... आगे बढें॥
शुभ कामनाएँ.
ReplyDeleteहैदराबाद कब आ रहे हो?
इस बार के चर्चा मंच पर आपके लिये कुछ विशेष
ReplyDeleteआकर्षण है तो एक बार आइये जरूर और देखिये
क्या आपको ये आकर्षण बांध पाया ……………
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (20/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
बहुत ही सुंदर अपनी सी लगी आप की यह कहानी धन्यवाद
ReplyDeleteनिसंदेह आपकी हर रचना एक मील का पत्थर हैं..ऑटोग्राफ इस कहानी के माध्यम से आपने हर एक इन्सान के दिल में छुपी हुई सुनहरी यादो को प्रस्तुत किया हैं..एक अविस्मरनीय और अनूठी कहानी..जो बिलकुल अपनी कहानी लगती हैं..aage ki kahani ka besabri se intezar hain..
ReplyDeletehardik shubhkamnayein
Anuraag Amit
बहुत अच्छी पोस्ट ...शुक्रिया
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत अच्छा कहानी है अध्यापकजी.. इस कहानी का दूसरा भाग के लिए इंतजार कर रही हूँ. बहुत दिनों के बाद मै फिर कमेन्ट भेज रही हूँ. उसके लिए मुझे माफ कर दीजिये. रवली
ReplyDeleteकहानी अच्छी लगी। HAPPY NEW YEAR-2011.
ReplyDeleteअगला साल तो हो गया अब का साल
ReplyDeleteकहानी का बतलाओ जी क्या है हाल
लिख रहे हो
सोच रहे हो
वैसे सबका यही हाल है। एक किताब छुटती नहीं है, छोड़ी नहीं जाती। अपना तो अखबारों का भी यही हाल है, पर श्रीमती जी रोज ही डांटती रहती हैं, पर अपन टस से मस नहीं होते। क्या करें, किताबों, अखबारों में ही है अपनी जान, समझ गए न शिवा महान।
शिवा जी ...
ReplyDeleteये कहानी पढने के बाद अपने स्कूल के दिनों को बहुत miss कर रहा हु.....अगले भाग का बेसब्री से इन्तेजार रहेगा....
किताबें पड़ी जायेगीं तो बिखरेंगी ही !अगला भाग कब लिख रहें हैं?
ReplyDeleteसुन्दर वर्णन !
स्कूल के दिनों को बहुत miss कर रहा हु.
ReplyDeleteसराहनीय कहानी. आज यहीं तक पढ़ी.
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