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Thursday, April 29, 2010

छोटी बहू

कल रात पड़ौस के घर में बड़ी हलचल मची हुई थी । एक आदमी अपनी पत्नी को बड़ी ही बेरहमी से मार रहा था । वह बेचारी रो रही थी और आदमी उस पर दना दन बजाए जा रहा था। वह पिटती जा रही ,और रोती जा रही थी, पर उस निर्दयी को उस पर लेशमात्र भी दया नहीं आ रही थी । वह उसे कभी थप्पड़ों से तो कभी घूंसों से तो कभी लात सें मार रहा था और जब हाथ-पैरो से मारते - मारते थक गया तो एक लकड़ी उठा ली और उससे मारने लगा । शायद कोई जानवर को भी इतनी बेरहमी से न मारता होगा जिस बेरहमी से वह अपनी पत्नी को पीट रहा था । जब तक स्त्री से सहा गया वह मार खाती रही जब उसका सब्र टूट गया तो उसे भी क्रोध आ गया ।उसने खड़े होकर ड़ंड़े को पकड़ लिया और बोली – “बस ! बहुत हो चुका , अब तक चुपचाप मार खा रही थी सो खाई अब अगर तुमने मुझे हाथ भी लगाया तो ठीक न होगा। तुम इन्सान हो या जानवर ? इस तरह तो कोई किसी जानवर को भी नहीं मारता होगा जिस तरह तुम मुझे पीट रहे हो ? आखिर मेरा कसूर क्या है ? जो तुम मुझे इतनी बेरहमी से पीट रहे हो। जब से ब्याह कर इस घर में आई हूँ तब से लेकर आज तक तुम लोगों ने जो - जो अत्यार मुझपर किए मैने चुप- चाप सहे लेकिन अब और न सहुँगी। आज से मेरा तुमसे कोई रिश्ता -नाता नहीं । सहने की भी एक सीमा होती है। मैं कहीं भी मेहनत मज़दूरी करके अपना और अपने बच्चों का पेट भर लुँगी, और अगर कहीं कोई काम नहीं मिला तो भीख मांगुँगी पर लौटकर इस घर में न आऊँगी” - कहकर अपने दो-तीन माह के बच्चे को गोद में उठाया और दूसरे हाथ से अपने तीन-चार साल के बेटे को पकड़कर घर से बाहर चलने लगी।वहीं पर उसकी सास खड़ी थी । सास ने दोनों बच्चों को उससे छीनते हुए कहा- “तुझे जहाँ कहीं भाड़-कूएँ में जाना है तो जा बच्चों को कहाँ ले जा रही है?” दोनों बच्चों को लेकर सास -बहू में खूब जमकर बहस हुई । हाय रे! विधाता ये कैसा जमाना जहाँ औरत ही औरत की दुश्मन बनी बैठी है। एक माँ दूसरी माँ का दर्द ही नहीं समझती तो वह कैसी माँ? खैर जो भी हो आखिर बहू को बिना बच्चों के ही घर से बाहर निकाल दिया गया और घर के दरवाजे अंदर से बंद कर लिए गए । बेचारी बहू.......काफी समय तक बाहर दरवाजे पर ही रोती - बिलखती रही । आज उसका साथ देने वाला वहाँ कोई नहीं था । बेचारी बाहर बैठी-बैठी बच्चों के लिए बिलख रही थी, किन्तु निर्दयी माँ -बेटे को उस पर तनिक भी दया न आई। बाहर स्त्री रो रही थी और अंदर उसके दोनों बच्चे । हाय रे! ह्यदयहीनता मानव का मानव के प्रति यह अत्याचार । एक दिन इसी स्त्री को ये लोग बड़े ही जतन से ब्याहकर लाए होंगे । एक दिन इसी स्त्री के साथ पति ने न जाने कितने कस्में बादे किये होंगे, न जाने उस स्त्री की एक झलक के लिए, उससे बातें करने के लिए क्या-क्या बहाने बनाए होंगे । किन्तु आज इतना निष्ठुर हो गया है , मानो उसे पहचानता ही न हो । कभी उसने स्त्री को उसके सुख-दुख में साथ देने का वादा किया होगा किन्तु आज वह अपने उन सब वादों को भूल चुका है ।


वाह रे इन्सान ..........।इन दोनों के ब्याह को हुए बहुत दिन भी नहीं बीते , कुल चार -पाँच साल हुए होंगे । इन्हीं चाल-पाँच सालों में ही इनकी यह हालत है । सास - बहू का झगड़ा तो घर -घर की कहानी है किन्तु इस प्रकार किसी की बसी बसाई गृहस्ती टूट जाए यह भी तो ठीक नहीं । रोज़-रोज़ सास -बहू का झगड़ा , सास का दिन -रात बहू को ताने मारते रहना, हर काम में नुकस निकालते रहना , बहू भी सहे तो कितना....आखिर वह भी तो हाड़ -मास की ही से ही बनी है, कोई मशीन तो है नहीं। उसके सीने में भी और लोगों की तरह दिल है जो धड़कता है, वह भी खुशी - गम महसूस करती है । आज अगर बहू की जगह उनकी बेटी पर कोई इस तरह का आरोप लगा रहा होता तो यही माँ उसकी ढ़ाल बन जाती । किन्तु यह उसकी बेटी नहीं है बहू है। क्यों लोग बहुओं को बेटी का दर्जा नहीं दे पाते । स्त्री के रोने की आवाज सुनकर आस-पड़ौस के कुछ लोग वहाँ पर एकत्रित हो गए । आस-पड़ौस के लोगों ने घर के बंद क्यों दरवाजों को खुलवाया और घर के अंदर लोगों की भीड़ जमा हो गई । वहाँ पर इकट्ठे हुए लोगों ने घटना की जानकारी जानी तो कुछ लोग वहू के पक्ष में बातें करने लगे, तो कुछ लोग बहू की सास और बेटे के पक्ष में बातें करने लगे ।दर अल यह झगड़ा शुरू हुआ था एक चाँदी की पायलों की जोड़ी को लेकर । सास कहती कि मैने इसके ब्याह के समय इसे पाव किलो चाँदी की पायल दी थी जिन्हें यह अपने माइके में रख आई है या बेच दी हैं। बहू कहती कि मैने ब्याह के दूसरे महीने बाद ही उन पायलों को उन्हें लौटा दिया था । उसके बाद से उसने वे पायल न तो देखी हैं और न ही उसे उन पायलों के बारे में कुछ पता है। सास यह सिद्ध करने का प्रयास कर रही थी कि बहू ने पायल वापस दी ही नहीं हैं। एक तरफ सास और दूसरी तरफ बहू दोनों एक दूसरे पर आरोप - प्रत्यारोप करने में लगीं थी । बहू रोती जाती और बार-बार यही दोहराती कि वह उन पायलों के बारे में कुछ नहीं जानती उसने पायलों को बहुत दिनों पहले ही सास को लौटा दिया था। मुझ पर बेवजह ही चोरी का इल्जाम लगा रही हैं। किन्तु सास इस बात को मानने के लिए तैयार ही नही कि बहू ने कभी उसे पायल दी थी । पुरुष काठ के उल्लू के समान एक कोने में खड़ा तमाशा देख रहा था । जब स्त्री ने वहाँ पर एकत्रित भीड़ को उसकी करतूत बताई कि उसने उसे किस बेरहमी से मारा है उसने वहाँ पर खड़ी अन्य औरतों को अपने शरीर पर मार के पड़े निशानों को दिखाया तो सभी लोगों ने आदमी की निंदा की । जब से वह ब्याह कर उस घर में आई थी तब से अब तक कभी भी उसने किसी चीज की चाह नहीं की जो रुखा सूखा मिल जाता था उसी से संतुष्ट होकर अपना जीवन व्यतीत कर रही थी । दिन -रात बैलों की तरह काम करती रहती फिर भी उसे एक प्यार का बोल नसीब नहीं हो पाता । इस पूरे फसाद की जड़ वह सास ही थी । सास दिन -रात बहू की उलटी -सीधी चुगली बेटे से करती रहती । एक तो थका हारा आदमी जब घर पहुँचता है वह चाहता है कि घर पर दो मिनिट सुकून से गुजारे पर जब उसके घर आते ही घर में कलह शुरू हो जाती तो उसका भी पारा चढ़ जाता और उसका सारा गुस्सा बहू पर ही निकलता । सास नहीं चाहती कि उसका बेटा उसकी किसी भी बात को काटे । वह चाहती कि उस घर में सदैव उसका ही राज चले वह नहीं चाहती कि उसके बहू बेटे उसकी किसी भी आज्ञा की अवहेलना करें । उसके इसी व्यवहार के कारण उसके तीन बेटे और बहुएँ घर छोड़कर जा चुके थे। यह बेटा सबमें छोटा था । सास की दिन- रात की कलह के कारण ही घर में सदैव कलह मचा रहता था, घर में सदैव अशांति का माहौल बना रहता। इसी के कारण घर में किसी भी प्रकार की कोई बरकत नहीं हो पा रही थी । दिन -रात बहू के खिलाफ बेटे के कान भरती रहती थी ताकि उसका बेटा सिर्फ उसकी ही बात सुने जो वह कहे वही सच हो । उसे लगता है कि अगर बेटा बहू की बातों पर विश्वास करने लगेगा तो उसका उस घर से राज खत्म हो जाएगा।
वहाँ पर खड़ी भीड़ ने उन लोगों को समझाया कि इस प्रकार घर में लड़ाई -झगड़े नहीं किया करते । किन्तु माँ-बेटे के कान पर जूँ तक न रेंगी । बहू ने अपने दोनों बच्चों को उठाया और घर से चलने लगी तो उसके पति ने पूछा – “बच्चों को कहाँ ले जा रही है?”
“कहीं भी ले जाऊँ, दुनिया बहुत बड़ी है कही भी चली जाउँगी जहाँ चैन से जी सकूँ।”
“खाएगी क्या”
“इससे तुम्हें क्या लेना -देना मैं चाहे कुछ खाऊँ या भूखी रहूँ । तुम्हें मेरी चिंता करने की कोई जरूरत नही है।”
“जितनी मेहनत यहाँ करती हूँ अगर इतनी मेहनत मैं कही भी करुँगी तो इज्ज की रोटी कमा ही सकती हूँ । तुम इसकी चिंता मत करों मैं बच्चों को वापस लेकर तुम्हारी चौखट पर पाँव भी नहीं रखूँगी। इतनी ताकत अभी भी मुझ में हैं कि तुम दोनों माँ-बेटे से ज्यादा मेहनत मजदूरी कर सकती हूँ। अगर कही कोई मजदूरी नहीं मिली तो भीख माँगकर अपना और अपने बच्चों का पेट पालुँगी । लौटकर यहाँ कभी न आऊँगी” कहकर उसने बड़े बच्चे का हाथ पकड़ा और बाहर जाने लगी तो दोनो माँ-बेटे ने उसका रास्ता रोक लिया । बहू ने दोनों को ऐसी ललकार मारी कि उनके होश उड़ गए उन्होंने कभी कल्पना भी न की होगी कि वह ....................। दोनों अपना सा मुँह लेकर हट गए । ऐसा लग रहा था जैसे कि आज स्वयं माँ काली ने उसके शरीर में प्रवेश कर लिया हो जो अत्याचारियों का नाश करने के लिए ही आई हो। स्त्री अपने दोनों बच्चों को लेकर घर छोड़कर चली गई । वहाँ पर खड़ी भीड़ देखती की देखती रह गई ।

3 comments:

  1. bahut hi vishad kahani hai. bahu ne ghar se bahar aakar sahi kam hi kiya... ham tarah tarah es prakar ki atyachar ko sunte hai. bahu ne en sab ka samadhan diya...
    bahut acha kahani hai sir...

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  2. “बस ! बहुत हो चुका , अब तक चुपचाप मार खा रही थी सो खाई अब अगर तुमने मुझे हाथ भी लगाया तो ठीक न होगा।''
    अब बस भी कर वरना पिटने की नौबत आ जायेगी.चेतावनी है उन पुरूषों के लिए जो स्त्री पर अत्याचार करना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझतें हों .
    - डॉ. बी. बालाजी

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  3. कहानी अच्छी लगी. स्त्री की शक्ति का अच्छा उदाहरण है.

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