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Wednesday, April 11, 2012

प्रेम


प्रतिदिन की तरह कवलजीत  छत पर  सूख रहे  कपड़ों को उतारने के लिए गई तो सामने के घर में किसी व्यक्ति की चहल -पहल को देखकर सकपका गई क्योंकि कई महीनों से यह घर बंद पड़ा था | असल में यह घर  भी उन्हीं का है | कवलजीत छत से जल्दी –जल्दी कपड़े उतार कर नीचे आई और अपनी  बड़ी बहन प्रीतो को उस घर के विषय में बताया | कवलजीत की बात सुनकर उसे याद आया कि कल ही उस में एक नया किराएदार आया है, उसका नाम निलेश है और वह सॉफ्टवेर कम्पनी में काम करता है | कवलजीत के पूछने पर कि इस बात की जानकारी उसे क्यों नहीं दी गई के जवाब में प्रीतो ने कहा कि वह उसे बताना ही भूल गई |   
  दोनों  बहनें पास ही बने एक दूसरे मकान में रहती हैं | दोनों बहनें उम्र के दूसरे पड़ाव को पार करने को हैं लेकिन अभी तक दोनों बहनों का विवाह नहीं हुआ है | दोनों बहनों की उम्र में पाँच साल का अंतर है |  माता –पिता, एक दो रिश्तेदार  और कुछ गिने चुने लोगों के अलावा कोई नहीं | जिस उम्र में स्त्रियाँ अपने सांसारिक सुखों में लिप्त रहती हैं  उस उम्र में ये दोनों बहने अपने बूढ़े माँ- बाप की सेवा में लगी थी | ऐसा नहीं है कि इन दोनों  बहनों के चरित्र में कोई खराबी है या ये सुंदर नहीं हैं | असल में इनके पिता शादी  के लिए जन्म कुंडलियों के पूर्ण मेल पर अत्यधिक विश्वास करते थे | जब कभी भी कोई रिश्ता आया या यूँ कहें कि जितने भी रिश्ते आए किसी का भी मेल उनकी कुंडलियों से पूरी तरह से नहीं हो पाया  जिसका परिणाम यह हुआ कि दोनों बहनें आज भी उस सांसारिक सुख से वंचित हैं | कुंडलियों के मेल के चलते, समय अपनी रफ्तार से दौड़ता चला गया और ये दोनों अपनी उम्र के उस पड़ाव को पीछे छोड़ चुकी हैं जिसमें स्त्रियाँ अपने घर –परिवार ,ससुराल के विषय में सपने सँजोती हैं | ऐसा नहीं है कि उन्हें विवाह करने की इच्छा न थी  इन्होंने भी अन्य  लड़कियों के सामान ससुराल , पति के सपने संजोये थे लेकिन कुंडलियों के मेल के कारण उनके सपने सिर्फ सपने ही बनकर रह गए|
    जब विवाह की उम्र निकल गई तब पिता भी अकसर इसी चिंता में डूबे रहते कि किसी तरह उनकी बेटियों के हाथ पीले हो जाये लेकिन अब तो थक हारकर उन्होंने भी उम्मीद का दामन छोड़ दिया | घर में बैठी दो –दो जवान बेटियों की इस स्थिती के लिए पिता अपने आप को दोषी ठहराते | उन्हें अपनी गलती का अहसास तो हुआ लेकिन बहुत देर के बाद| बेटियों के विवाह की चिंता और रिश्तेदारों के तानों ने  उन्हें  इतना आहत कर दिया कि वे मृत्यु की सैया तक जा पहुँचे और इसी चिंता के कारण एक दिन इस संसार से चल बसे |  हमारे देश में जवान बेटी अगर घर में कुंवारी हो तो माँ –बाप को चिंता तो होती ही है |  माँ भी इसी चिंता में दिन रात कुढ़ती रहती , एक तो उम्र का अंतिम पड़ाव उस पर जवान बेटियों का घर में क्वाँरी  बैठे रहना यह देखकर वे भी अंदर ही अंदर कुढ़ती रहती | चेहरे से तो दिखाती  कि वे बहुत खुश हैं लेकिन  मन ही मन बेटियों के विवाह के लिए ईश्वर  से प्रार्थना  करती रहती | बेटियों की इसी चिंता के कारण धीरे –धीरे उनका भी स्वास्थ्य बिगड़ने लगा | माँ के बिगड़ते स्वास्थ्य को देखते हुए  दोनों  बहनों ने माँ को बहुत समझाया लेकिन माँ..... तो माँ है ....| माँ ने तो  यहाँ तक कह दिया कि यदि उन्हें कोई लड़का पसंद हो तो वे अपनी स्वेच्छा से अपना विवाह कर सकती हैं | दोनों बहनों ने इस उम्र में विवाह करने से इन्कार कर दिया | माँ भी बेटियों  के वैवाहिक जीवन  को देखने की  लालसा में एक दिन इस संसार से चल बसी | माँ –बाप के चले जाने के बाद दोनों बहने एक दम बिखर  गई  | उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपने आप को संभालते  हुए एक  दूसरे का सहारा बनकर आगे बढ़ने लगी | मर्दों के वर्चस्व की इस दुनिया में उन दोनों बहनों ने अपने शील की रक्षा किस प्रकार की है ये तो वही जानती हैं  | जैसे –जैसे समय बीतता गया वैसे – वैसे उन्होंने अपनी सभी इच्छाओं, कामनाओ से समझौता करके  अकेले जीना सीख लिया  | बदलते समय में दोनों बहनों ने न जाने कितने ही जीवन के उतार चढ़ाव  सहे लेकिन कभी अपने आप को कमजोर नहीं होने दिया |
पिता ने अपने जीते जी दोनों बेटियों के नाम अपनी संपत्ति का बटवारा सामान रूप से कर दिया था | इसी सम्पती में  इन दोनों बहनों के नाम ये दो मकान थे एक वह जिसमें वे रहती हैं  दूसरा जो उन्होंने किराए पर दे रखा है | वैसे तो दोनों बहने अपने पैरों पर खड़ी हैं | निलेश को इस मकान में आए हुए तीन महीने बीत गए | उसकी पत्नी और बच्चे दूसरे शहर में रहते हैं वह इस घर में अकेला ही रहता है| एक दिन प्रीतो को अपने ऑफिस के सेमीनार के लिए शहर से बाहर जाना पड़ा, जाते –जाते वह  कवलजीत से कहती गई कि वह आज शाम को निलेश से इस महीने के किराए का चैक लेती आए| कवलजीत  इस बात के लिए तैयार नहीं थी कि वह निलेश से चैक लेने के लिए उस घर में जाए , उसने प्रीतो से वहाँ न जाने की अपनी इच्छा व्यक्त की | प्रीतो  ने उसे बताया कि यदि वह आज या कल चैक लेने नहीं गई तो फिर उसे वह चैक अगले महीने ही मिलेगा क्योंकि निलेश कुछ दिनों के लिए शहर से बाहर जा रहा है |
कवलजीत  ना चाहते हुए भी चैक लेने के लिए दूसरे दिन चली गई | जिस दिन कवलजीत निलेश के घर पर गई उसे देखकर वह सकपका गया क्योंकि अब तक उसकी बड़ी बहन ही महीने का चैक लेने आती थी | निलेश एक हंसमुख और मिलनसार व्यक्ति है उसने  घर पर आई कवलजीत  का आदर – सत्कार किया | निलेश के  आदर– सत्कार से वह बहुत प्रभावित हुई | यह पहली बार था कि किसी पुरुष ने उसका इतना आदर– सत्कार किया था | ऐसा नहीं था कि उसकी जान पहचान किसी व्यक्ति से नहीं थी या उसकी दोस्ती नहीं थी सब कुछ तो  था लेकिन न जाने निलेश की बातों ने उस पर क्या जादू कर दिया कि  ......  | जब से उसकी जान –पहचान निलेश  से हुई है तब से उसका दिल बार- बार  निलेश से मिलने को करता उसके घर जाने को करता | धीरे –धीरे उसका निलेश के घर आना-जाना बढ़ गया | जान पहचान  धीरे –धीरे दोस्ती  में बदल  गई | इन तीन-चार महीनों में उसमें अलग  सा बदलाव आ गया था  | घंटों अकेले छत पर  बैठे रहना बार –बार निलेश को देखना उसकी कही बातों को याद करना , उसके  हंसी –मजाक को याद करके अपने –आप में  ही हँसने लगना, बार – बार बालकनी में किसी न किसी बहाने से आना  और निलेश की तरफ निहारना |
इन दिनों उसका घंटों आईने के सामने बैठना एक आम बात हो गई | इस उम्र में अपने आप को सजाना सँवारना, जो शौक उसने अपने बचपन ,जवानी में नहीं किये ,उन्हें वह अब इस ढलती उम्र में करने लगी थी  | रह –रहकर निलेश के विषय में सोंचना और अपने आप को उसकी उम्र के अनुसार बनाने की कोशिश करना........  उसकी उम्र और निलेश की उम्र में दस , बारह  साल का फर्क होगा | उम्र के इसी  फर्क को कम करने के लिए उसने  ब्यूटी पार्लर  जाना शुरू कर दिया था | धीरे – धीरे यह जान पहचान दोस्ती में बदली  और कब दोस्ती से प्रेम  में बदल गयी उसे पता ही नहीं चला | निलेश इस बात से एक दम अंजान था | वह तो जब भी कवलजीत  से मिलता अपने व्यवहार के अनुसार हंसी – मजाक किया करता उसके इसी  व्यवहार ने कवलजीत  को उसकी ओर आकर्षित कर लिया था | कवलजीत  के  दिन - प्रतिदिन के बदलाव को निलेश भी महसूस कर रहा था लेकिन उसने इस विषय पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया | उसने  कवलजीत से प्रेम करने के विषय में कभी सोचा तक नहीं था| वह सोचता भी कैसे वह विवाहित है उसके दो छोटे-छोटे  बच्चे हैं | वह तो कवलजीत  से केवल एक मकान मालकिन और इंसानियत के नाते ही हंसी- मजाक किया करता था |
कई बार कवलजीत ने चाहा कि वह निलेश से अपने प्रेम का इज़हार कर दे लेकिन न कर सकी ....| उसे पता है कि वह विवाहित है उसका अपना हँसता खेलता परिवार है| अपने प्रेम के इज़हार से वह निलेश के सुखी पारिवारिक जीवन में कांटे नहीं बोना चाहती थी  लेकिन........ प्रेम तो ......प्रेम है | शायद इसी लिए किसी ने कहा है कि प्रेम तो जात –पात  उम्र नहीं देखता जो मन को भा गया बस मन उसका हो गया .....| किसी अनहोनी की आशंका से वह अपने मन के भावों को मन में ही दबाकर बैठ गई | अकसर  जब भी वह अकेली होती तो अपने आप से यही कहती कि  प्रेम में यह जरूरी नहीं कि प्रेम को पाया ही जाए .....सोचते- सोचते उसकी आँखें भर आती और वह एकांत में बैठी  एक टक आसमान की और निहारती रहती  मानो ऊपर वाले से.......... | घंटों एकांत में बैठने के बाद अपने मन को समझती कि  प्रेम का यह अर्थ केवल पाना ही नहीं होता...... |
           

9 comments:

  1. बहुत सुन्दर व भावपूर्ण कहानी है।

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  2. यानी आप भी उस खतरनाक मान्यता के पक्षधर हैं कि न उम्र की सीमा हो.....वगैरह वगैरह!

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  3. सुन्दर रचना !!!

    बधाई
    अमित अनुराग हर्ष

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  4. सुन्दर भावाभिव्यक्ति.!!!

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  5. यह कहानी आप की अन्य कहानियों से एक दम अलग है , इस कहानी में आपकी लेखन कला को एक अन्य रूप से उजागर करती है ,आप समाज के हर विषय पर प्रकाश डालने का प्रयाश कर रहे हैं और भविष्य में आपसे ऐसे ही अन्य विषयों पर कहानियों की आशा है ....खास कर हाश्य कहानी ....इस कहानी में आपने जो कवलजीत के एक तरफ के प्रेम और फिर उसके अपने आप के आत्मसंयम में बांधे रखकर ...प्रेमी की खुशी और सुखी जीवन की कामना ने दिल भर दिया .... सच है ...प्रेम का अर्थ पाना ही नहीं होता .....

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  6. बढ़िया प्रस्तुति .युवा मन का भाव जगत ऐसा ही होता है .दो कदम आगे बढना ,चार पीछे लौट जाना .कवलजीत नारी के विवेक की कथा है जो मन को बरबस समझाता चलता है .इश्क पर जोर नहीं लेकिन विवेकी मन उस पर पसर जाता है .पालथी मारके.http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/कृपया यहाँ भी पधारें -
    जानकारी :कोलरा (हैजा ).

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  7. बहुत सुन्दर शिव कुमार जी...मन खुश हो गया पढ़ कर....!

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