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Saturday, December 21, 2024

 विद्यार्थियों के लिए 

मनोरंजन

मनोरंजन: जीवन का अमृत और मन की तरावट

मनोरंजन, जीवन का वह सुखद पहलू है जो हमें तनाव की चक्की से निकालकर खुशी के झूले पर झुलाता है। यह न केवल हमें दिनभर की भागदौड़ और जिम्मेदारियों की धूल झाड़ने का मौका देता है, बल्कि हमारी आत्मा को सुकून और ताजगी का अनुभव भी कराता है। अगर जीवन एक व्यस्त नदी है, तो मनोरंजन इसके किनारे बसा वह हरा-भरा उपवन है, जहाँ ठहरकर हम अपनी थकान मिटाते हैं।

प्राचीन काल के मनोरंजन के साधन

प्राचीन समय में, जब तकनीक के परों पर उड़ने का सपना भी न था, लोग प्रकृति के साथ सुकून के पल बिताते थे। नीम की छांव में चौपाल सजती थी, और कहानियों के रंग बिखरते थे। बच्चों के लिए कंचे, गिल्ली-डंडा, और बड़ों के लिए चौपड़ जैसे खेल मनोरंजन का साधन थे। चाँदनी रातों में लोकगीतों की गूँज, बांसुरी की मधुर तान और नाच-गाने से गाँव-देहात जीवंत हो उठते थे।

पुराने समय में नौटंकी, रामलीला, कथक, भरतनाट्यम, और अन्य लोक कलाएँ लोगों के दिलों को लुभाती थीं। मेलों में हाट-बाज़ार और झूले के साथ जादूगरों के करतब आँखों को चकित कर देते थे। सर्कस के शेरों की दहाड़ और बाजीगर के करतब मनोरंजन के राजदरबार में अपनी अलग छटा बिखेरते थे।

आधुनिक युग के मनोरंजन के साधन

जैसे-जैसे समय ने करवट ली, मनोरंजन के साधनों में भी नयापन आया। अब न केवल लोकगीत, बल्कि संगीत के विभिन्न रूप, सिनेमा, और डिजिटल प्लेटफॉर्म लोगों के दिलों पर राज करने लगे हैं।

  • टेलीविजन आज हर घर का अभिन्न हिस्सा है। यह हमें मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञान का भंडार भी प्रदान करता है।
  • इंटरनेट और सोशल मीडिया ने तो मनोरंजन की दुनिया में क्रांति ला दी है। एक क्लिक पर फिल्में, गाने, गेम्स और वेब सीरीज़ का खजाना उपलब्ध हो जाता है।
  • मोबाइल फोन ने हर व्यक्ति को अपनी दुनिया में खो जाने का साधन दे दिया है।

हालांकि, तकनीक ने जीवन को आसान बना दिया है, लेकिन कभी-कभी यह हमें अपनों से दूर भी कर देती है। कहा गया है, "अति सर्वत्र वर्जयेत्," यानी किसी भी चीज़ की अधिकता नुकसानदेह होती है।

पारंपरिक और आधुनिक का संगम

आज भी पारंपरिक मनोरंजन के साधन, जैसे नाटक, नृत्य, और मेले, लोगों को अपनी ओर खींचते हैं। ये साधन न केवल मनोरंजन का माध्यम हैं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर को भी जीवित रखते हैं। भारत में कला और संस्कृति का इतिहास अद्वितीय है। वैदिक काल से लेकर मुगल काल तक, और उसके बाद आजादी के आंदोलन तक, कला और मनोरंजन समाज का आईना रहे हैं।

सिनेमा, जिसे "सपनों का महल" कहा जाता है, भारतीय मनोरंजन का एक बड़ा हिस्सा बन गया है। यहाँ मनोरंजन केवल पैसा कमाने का जरिया नहीं है, बल्कि यह समाज को नई दिशा देने का साधन भी है। कला, साहित्य और संगीत के माध्यम से सामाजिक मुद्दों को उठाया जाता है, जिससे लोगों को सोचने और समझने का मौका मिलता है।

मनोरंजन का महत्व और सावधानियाँ

मनोरंजन न केवल मन को तरोताजा करता है, बल्कि हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी आवश्यक है। यह हमें "साँप के केंचुली की तरह" तनाव और चिंता को उतार फेंकने में मदद करता है। हालाँकि, आज के युग में मनोरंजन का असंतुलित उपयोग एक नई समस्या बन गया है।

  • अत्यधिक सोशल मीडिया का उपयोग लोगों को वास्तविक दुनिया से काट रहा है।
  • बच्चों में ऑनलाइन गेम्स की लत उनके मानसिक विकास को प्रभावित कर रही है।

इसलिए, यह आवश्यक है कि हम "न दाँव लगाना भूलें और न सावधानी," यानी संतुलन बनाए रखें। मनोरंजन के लिए समय निकालें, लेकिन इसे अपने जीवन के अन्य महत्वपूर्ण कार्यों पर हावी न होने दें।

निष्कर्ष

मनोरंजन जीवन का रंग है, जो इसे नीरसता से बचाता है। चाहे पारंपरिक साधन हों या आधुनिक तकनीक, हर माध्यम का उद्देश्य हमारे जीवन को आनंदमय बनाना है। बस ज़रूरत है, सही विकल्प चुनने और उसका विवेकपूर्ण उपयोग करने की। यदि हम संतुलन बनाए रखें, तो मनोरंजन न केवल हमें खुशी देगा, बल्कि हमारे जीवन को नई ऊर्जा और उमंग से भर देगा। आखिर, "मन खुश तो तन और जीवन पुष्ट।"

 

Friday, July 26, 2024

मूक प्रेम

                                               
लँगड़ा भिखारी बैसाखी के सहारे चलता हुआ भीख माँग रहा था । भिखारी की उम्र होगी यही कोई पचास से पचपन  साल की । “बाबा बहुत भूख लगी है कुछ दे दे खाने को ।” कुछ दुकानदार एक-दो रुपए देकर उसे चलता करते । कुछ दुकानदार उसे दुत्कार देते । वह किसी से कोई गिला सिक्वा किए बिना आगे बढ़ जाता । अक्सर वह यही बुदबुदाता रहता- “जो दे उसका भला जो ना दे उसका भी भला।” इसी तरह वह एक -एक दुकान पर जाता और भीख माँगता। दोनों टाँगों से लाचार होने के कारण बैसाखियों के सहारे किसी न किसी प्रकार चलता जाता और भीख माँगता जाता। जो कोई भीख में कुछ दे देता उसे –‘भगवान आपको सुखी रखे का आशीष देते हुए आगे बढ़ जाता।’ जो कुछ नहीं देता वहाँ से  भी  आगे चलता बनता ।  भीख माँगते  हुए कुछ दूर ही गया था कि उसने  कुत्ते के भौकने की आवाज़ सुनी जैसी ही पीछे पलटकर देखा तो उसके चेहरे पर एक अजीब सी चमक आ गई । कुत्ते को देखते ही वह बोला –‘ कालू आ गया तू ।’ भिखारी की आवाज़ सुनकर कुत्ता उसके पास आकर बार -बार उछलकर उसके मुँह को चूमना चाह रहा था । “अरे यार रुक तो सही … हाँ-हाँ मुझे पता है तुझे बहुत भूख लगी है पर रुक तो सही....” अब भिखारी भीख माँगना छोड़कर कुत्ते के साथ  चायवाले की दुकान की तरफ चला गया । भिखारी ने चाय वाले से कुछ टोस्ट और ब्रेड खरीदे कुछ टोस्ट उसने कुत्ते को खिला दिए और जो कुछ बचे उसने  खा लिए। खाते -खाते वह कुत्ते से बाते करने लगता – ‘आज यार आने में थोड़ी देरी हो गई , तुझे पता है कल हमारे मोहल्ले के पास बड़ी दावत हुई थी । कल रात तो बहुत सारा खाना मिला था मैने तुझे बहुत जगह ढ़ूँढ़ा पर तेरा कही कोई पता ही नहीं था । कहाँ चला गया था कल रात .....। कुत्ता भी उसकी बातों को सुनता जाता और अपनी पूँछ हिलाते रहता । भिखारी कभी उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरता कभी उसके सिर को अपनी गोद में रखकर उसे सहलाता ।

एक दिन  भिखारी अपनी नित्य दिनचर्यानुसार भीख माँगने के लिए बाजार में गया । भीख माँगते माँगते उस स्थान  तक जा पहुँचा जहाँ रोज कालू कुत्ते  और उसकी मुलाकात होती थी । लेकिन आज उसे कालू कहीं नजर नहीं आ रहा था, उसे लगा थोड़ी बहुत देर में आ जाएगा । कालू का इंतजार करते करते सुबह से दोपहर हो गई लेकिन कालू का कोई अता-पता नहीं था। एक कालू ही तो था जिससे वह अपने दिल की बातें किया करता था । अब तो भिखारी से न रहा गया वह कालू को ढ़ूँढ़ने के लिए इधर-उधर चला गया । कालू को ढ़ूँढ़ते -ढ़ूँढ़ते उसे काफी देर हो गई थी लेकिन कालू का पता नहीं  चला वह थक हार कर एक दुकान के सामने जा बैठा । जिस दुकान के सामने वह बैठा था उसकी बगल में एक खाली प्लॉट था जिसमें लोगों से कूड़ा करकट फेंक रखा था । भिखारी निराश -हताश वहाँ बैठा हुआ था कि अचानक उसकी नजर खाली पड़े प्लॉट पर गई उसने देखा कि वहाँ पर कोई कुत्ता सोया हुआ है वह बैसाखियों के सहारे वहाँ तक गया वहाँ जाकर देखा कि कालू लहु-लुहान पड़ा है अभी उसकी साँसे चल रही है । उसने कालू को आवाज़ दी .. उसकी आवाज सुनकर कालू ने उठने की कोशिश की लेकिन उठ न सका किसी गाड़ी वाले ने उसकी आगे की दोनों टाँगें कुचल दी थी । सड़क पर चलनेवाले लोगों ने उसे सड़क से उठाकर इस खाली पड़े प्लॉट में फेंक दिया था। यह देखकर भिखारी की आँखों में आँसू भर आए उसने कालू को  धीरे -धीरे एक तरफ खिसकाया और अपने फटे हुए कपड़ों में से एक कपड़ा निकालकर उसके दोनों पैरों पर बाध दिया । कपड़ा बांधने के बाद पास ही एक नल लगा हुआ था वहाँ से पानी लाकर उसके मुँह पर डाला । मुँह पर पानी पड़ने से कालू को कुछ राहत महसूस हुई उसने अपनी बंद होती आँखें खोल ली। वह उसके पास बैठ गया उसके सिर पर हाथ फेरने लगा  पैरों की पट्टी को कसकर बाँधने के बाद वह बैसाखियों के सहारे धीरे- धीरे चलता हुआ एक किराने की दुकान पर गया वहाँ से  हल्दी ,फिटकरी और कुछ ब्रेड लेकर आया।  ब्रेड  कालू के सामने  रखते हुए बोला – ‘ये ले थोड़ा कुछ खा ले ।’ लेकिन आज कालू ने उन ब्रेडों को मुँह तक नहीं लगाया । आज सुबह से उसने भी न कुछ खाया  था न पानी की एक बूँद पी थी ।  फिटकरी को कूटकर पानी में  ड़ाल लिया और पास ही चायवाले की दुकान पर जाकर पानी को गरम करवा लाया । फिटकरी के पानी से उसने कालू की दोनों टाँगों को सेका । फिटकरी के पानी से सेकने के बाद कालू के घावों पर हल्दी डाल दी । हल्दी के पड़ते ही कालू दर्द से  तिलमिला  उठा .. …कराहने लगा . बेजुबान बेचारा अपना दर्द किसी से कह भी  नहीं सकता , कालू को इस प्रकार तड़पता  देखकर उसकी  आँखें भर आई…….। मन ही मन वह उस गाड़ीवाले को कोसने लगा जिसने कालू की यह हालत की है।

यह सब देखकर उसे लग रहा था कि कालू शायद अब ज्यादा दिन जीवित नहीं रहेगा । उसने कालू के पैरों की  पट्टी को कसकर बाँध दिया था । धीरे-धीरे शाम होने लगी । जैसे-जैसे शाम होने लगी भिखारी को कालू की चिंता ज्यादा सताने लगी कि अब वह क्या करे ? कालू को वह उठाकर अपने साथ झोपड़ी में भी नहीं ले जा सकता ।यही सोचते-सोचते रात का अँधेरा गहराने लगा बाज़ार में दुकानदार अपनी-अपनी दुकाने बंद करके अपने-अपने घर   जाने लगे थे। वह वही कालू के पास ही बैठा था। कालू को इस हालत में छोड़कर जाने के लिए उसका दिल कतई तैयार नहीं था । उसे डर था कि कही दूसरे कुत्ते आकर उसे मार न डालें ...। उसने कालू के पास रहने का फैसला किया और वही कालू के पास एक मैला सा कपड़ा बिछाकर लेट गया। सुबह होते ही उसने कालू को देखा अभी उसे थोड़ा आराम लग रहा था। यह देखकर उसके मन में एक आस जगी कि अब शायद कालू बच जाएगा। वह कई दिनों तक अपनी झोपड़ी में भी नहीं गया वहीं आस-पास के मोहल्लों से कुछ भीख माँग लाता और कालू के पास आकर बैठ जाता । जो कुछ खाने के लिए मिलता उसमें से आधा कालू के सामने रख देता और आधा स्वयं खा लेता।   वह रोज कालू के लिए फिटकरी का गरम पानी करवाकर लाता ,उसकी सिकाई करता, सिकाई करने के पश्चात हल्दी लगाता उसके और अपने खाने के लिए वही पर कुछ ले आता दोनों साथ  ही खाते ..। धीरे- धीरे कालू की स्थिति में सुधार होने लगा उसकी टाँगे पूरी तरह तो ठीक न हो सकी पर हाँ अब वह इस लायक हो चुका था कि थोड़ा बहुत खड़ा हो सके । लँगड़ाता -लँगड़ाता धीरे -धीरे  चलने फिरने भी लगा था। भिखारी उसे अपने साथ अपनी झोपड़ी में ले आया था। वह रोज सुबह उठता और अपना भीख माँगने चला जाता। अब कालू उसकी झोपड़ी के बाहर ही बैठा रहता है । जब भिखारी भीख माँगकर लौट आता है तब दोनों एक साथ खाना खाते हैं। एक दिन भिखारी ने कालू से कहा  – “अब तो हम दोनों एक जैसे हो गए  तू भी लँगड़ा मैं भी लँगड़ा , तेरा भी इस संसार में कोई नहीं और मेरा भी कोई नहीं ……. वाह रे ! विधाता तेरी माया ....कहते हुए उसकी आँखें भर आई ....”