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Tuesday, September 19, 2017

आज़ादी


कल देर रात तक काम करने के कारण  सचिन  की नींद देर से खुली, अधखुली आँखों से ही उसने पास में रखे अपने फोन को उठाकर टाइम चैक किया  ओह ! आठ बज गए कहकर झट से उठकर सीधे हॉल में चला गया। हॉल में आकर उसने फोन को देखा साहिल जो उसका सबसे घनिष्ठ मित्र है उसके सात  मिस कॉल थे। साहिल के कॉल देखकर उसने उसे कॉल किया। बात करने पर पता चला कि साहिल की माँ की तबीयत ज्यादा खराब होने के कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया है।  थोड़ी देर में सचिन भी उस अस्पताल में पहुँच गया। यहाँ आकर पता चला कि बी. पी. अधिक बढ़ने के  कारण वे बेहोश होकर गिर गई थीं। डॉक्टर ने उन्हें कुछ दवाई और इंजेक्शन दे दिया था जिससे उन्हें होश तो आ गया था किन्तु गिरने के कारण हाथ  में गहरी चोट आ गई थी।  डॉक्टर ने माँ को एक – दो दिन अस्पताल में रखने की सलाह दी जिससे उनकी  सेहत का पूरा ध्यान रखा जा सके। दो– तीन दिन बाद माँ  घर वापस आ गई।
  साहिल गुड़गाँव में एक मल्टी नेशनल कंपनी में मैनेजर के पद पर काम कर रहा था, मैनेजर के पद पर होने के कारण आमदनी भी अच्छी थी। खुद का आलीशान घर  जिसमें उसका छोटा परिवार पत्नी, एक बेटा और एक बेटी रहते थे।  पिछले साल वह अपने बूढ़े माता-पिता को भी अपने साथ शहर ले आया था। वैसे भी गाँव में उनकी सेवा करनेवाला या उनकी देखभाल करने वाला भी कोई नहीं था।  कहाँ गाँव का खुला वातावरण और कहाँ शहर का संकीर्ण वातावरण, कुछ महीने तो बूढ़े माता-पिता का शहरी वातावरण में मन ही नहीं लगा फिर जैसे –तैसे  उन्होने  अपने आप को उस वातावरण में ढालन शुरू कर दिया।  जब से बूढ़े माता –पिता इस घर में आए थे उसके कुछ समय बाद से ही घर का बातावरण गंभीर रहने लगा था। परिस्थिति तो यहाँ तक आ गई कि साहिल की पत्नी और बच्चों ने बूढ़े माता –पिता से बात करना तक बंद कर दिया।   घर के इस बदलते माहौल से साहिल और उसके बूढ़े माता –पिता काफी दुखी थे, अक्सर रह रहकर बूढ़े माता –पिता अपने आप को कोसते कि क्यों वे लोग यहाँ आए .... ? अगर न आते तो कम से कम उसके परिवार में मनमुटाव तो न पैदा होता।  बेटे के सुखी जीवन के लिए माँ ने कई बार उससे कहा कि वह उन्हें वापस गाँव छोड़ आए या गाँव जानेवाली बस में बैठा दे। वैसे भी उनका यहाँ मन नहीं लगता घर में बैठे –बैठे ।  
एक दिन घर में बने बगीचे मैं बैठा –बैठा  इसी विषय पर सोच रहा था कि किस तरह से अपने परिवार को जोड़कर रखे ? कैसे रिश्तों में बढ़ती दूरियों को मिटाए ? पत्नी है कि बूढ़े माता-पता से बात तक नहीं करना चाहती , बच्चों के पास उनके साथ बात करने या उनके साथ बैठने का टाइम ही नहीं है वह ऐसा क्या करे जिससे कि उसके घर का माहौल फिर से पहले जैसा हो जाए।  इन्हीं बातों को सोचते –सोचते  वह अपने अतीत की घटनाओं को याद करने लगा- कितना खुश रखते थे उसके माता पिता उसे।  बचपन से अब तक उसकी हर छोटी बड़ी  ख्वाइश का ध्यान रखते थे। आज भी उसे याद है किन विपरीत परिस्थितियों में उसके मात –पिता ने उसे  इस मुकाम तक पहुँचाया  है। उनके घर में बिजली तो थी नहीं, माँ किसी तरह घासलेट (कैरोसिन )  का  इंतजाम करती जिससे कि वह रात में पढ़ सके। रात में पढ़ाई  करते समय उसकी माँ भी उसके साथ –साथ जागती।  पिता  बेलदारी का काम  करते और माँ  दूरसों के घरों में काम करके घर का खर्चा और उसकी पढ़ाई का खर्चा चला रहे थे।  बचपन की भूली बिछड़ी यादों में उसे याद आया कि कभी भी उसके माता-पता ने उसे अकेला नहीं छोड़ा । अकेला छोड़ते भी कैसे चार संताने हो –होकर चल बसी थीं, यही उनकी आखरी उम्मीद था। जीवन की हर कठिन राह पर दोनों ने उसे सहारा दिया था। उनके कठिन परिश्रम और त्याग का ही परिणाम था  कि आज वह इस मुकाम तक पहुँच पाया है। माँ फटी साड़ी में काम पर जाती जब अधिक फट जाती तो उसे सिल लेती कहीं –कहीं उसमें थेगरी (दूसरा कपड़ा) लगाकर सिल लेती, ऐसा ही हाल पिता का भी था। तभी उसके नौकर ने आकर उसे  आवाज देते हुए चाय का कप रख दिया  ओह ! कहकर उसने  चाय का कप उठाया और कुछ सोचते हुए चाय की चुसकियाँ लेने लगा.....             
 
 रात के आठ बजे थे सचिन अपने ऑफिस से घर  के लिए निकलने ही वाला था कि उसके मोबाइल पर एक कॉल आई, फोन साहिल की पत्नी जया  का था, जैसे ही उसने फोन उठाया वैसी ही उसे उधर से रोने की आवाज़ सुनाई दी .... रोने की आवाज़ सुनकर किसी अनहोनी की आशंका से उसका दिल बैठ गया ।
उसने किसी तरह उन्हें शांत किया और पूछा कि आखिर बात क्या है ... क्या हुआ ?
जया  – “ रोते हुए .... अभी आप कहाँ हैं ?
सचिन –“ मैं अभी ऑफिस से घर के लिए निकल रहा हूँ । आखिर हुआ क्या आप कुछ बताओगी भी ?
जया  – “आप किनती देर में यहाँ पहुँच सकते हैं ?
सचिन – “ भाभी जी आखिर बात क्या है ? कुछ बताइए तो .... सब खैरियत से तो है ?
जया  – “ बस आप जल्दी से घर आ जाइए”
सचिन –“ अच्छा ठीक है  मुझे वहाँ पहुँचने में लगभग एक –डेढ़ घंटा लग जाएगा। कहकर उसने फोन रख दिया। किसी अनहोनी की आशंका से उसका दिल बैठा जा रहा था। करीब एक घंटे की यात्रा के बाद घबराहट में वह साहिल के घर जा पहुँचा। घर में  प्रवेश करते ही उसे घर का वातावरण  बहुत गंभीर लगा, एक सोफ़े पर साहिल बुत्त की तरह बैठा था दूसरी तरफ उनकी पत्नी लगातार रोए जा रही थीं।  सचिन को देखकर वो और  ज़ोर- ज़ोर से रोने लगी। उसने घर के सभी सदस्यों  से जानने की कोशिश की लेकिन किसी ने कोई जवाब  नहीं दिया  सिर्फ इधर  जया  लगातार रोए जा रही थी।
किसी से कोई उत्तर न पाकर उसने साहिल से पूछने की कोशिश की “ आखिर क्या बात है ? भाभी जी क्यों रो रही हैं ? सब ठीक तो है ना …? साहिल किसी के सवाल का कोई जवाब नहीं दे रहा था।  सचिन कुछ समझ पाता तभी सुमन ने कुछ पेपर उसके सामने रखते हुए कहा “ ये देखिए “ सचिन ने उनके हाथ से वे पेपर ले लिए। पेपर पढ़कर उसकी आँखें  खुली की खुली रह गई “ये क्या तलाक ? पर क्यों ....?  ऐसा क्या हो गया? तभी उसने इधर - उधर अपनी नज़रें दौड़ाई घर के सभी लोग वहाँ मौजूद थे, यहाँ तक कि  घर के नौकर भी पर अंकल आंटी कहीं नज़र नहीं आ रहे थे ।
सचिन – “ अंकल आंटी कहाँ हैं ...?” सचिन का सवाल सुनकर घर में एक सन्नाटा सा छा गया, थोड़ी देर बाद साहिल का बेटा मोनू बोला कि “ दादा –दादी को तो लास्ट वीक ही ओल्डएज होम  में शिफ्ट कर दिया”
ओल्डएज होम  शिफ्ट कर दिया पर क्यों ...? सचिन के इस प्रश्न का जवाब किसी के पास नहीं था सब के सब मौन बने खड़े थे, इधर जया  का  रोना लगातार जारी था ,  रोते –रोते कहती जाती “ अब इस उम्र में तलाक देना चाहते हैं .... “
इसी बीच साहिल हॉल से उठकर बाहर बरामदे में पड़ी कुर्सी पर जाकर बैठ गया। एक तरफ जया  दूसरी तरफ साहिल  वह क्या करे? क्या कहे कि उसे वह बात पता चल सके जिसके कारण यह सब फसाद हुआ है। कुछ देर हॉल में बैठने के बाद वह बरामदे की तरफ चला गया जहाँ साहिल बैठा था, बरामदे में अंधेरा था, सचिन वहाँ की लाइट जलाते हुए साहिल के पास रखी कुर्सी पर जा बैठा। उसने देखा कि साहिल की आँखें लाल हो रखी थी, उसे देखकर लग रहा था जैसे वह काफी देर से रो रहा हो । इस बात का किसी को पता न चले इसीलिए वह अंधरे में आकर इस बरामदे में बैठ गया था।  परिस्थितियों को भाँपते हुए उसने बरामदे की लाइट बंद करते हुए घर के नौकर को दो कप कॉफी बनाकर लाने के लिए कहा और खुद  साहिल के पास बैठ गया।       
 सचिन – “ भाई आखिर बात क्या है .... ? कोई कुछ बताता क्यों नहीं है ?  साहिल ने उसकी बातें सुनी, वह कुछ कहता तभी घर का  नौकर  कॉफी मेज़ पर  रखकर चला गया। साहिल ने एक कप उठाकर साहिल की तरफ बढ़ाया किन्तु उसने कप नहीं लिया... इससे पहले कि सचिन कुछ कह पाता  वह  एक अबोध बालक की तरह फूट –फूटकर रोने लगा, रोते –रोते कहने लगा कि उसने पिछले चार –पाँच दिनों से कुछ नहीं खाया है ?
सचिन – “ पर क्यों ....?आखिर हुआ क्या है ? और अंकल आंटी को ओल्डएज  होम में क्यों छोड़ आए तुम?
साहिल –   “ अब क्या बताऊँ ..... सब किस्मत का खेल है यार” कहकर वह चुप हो गया।   
सचिन – “ यार आखिर बात क्या है साफ-साफ बताओ, उधर भाभी जी रोने से लगीं हैं ..... इधर तुम .... ?”
साहिल –“ जब से मम्मी –पापा यहाँ आए हैं तभी  से इस घर में न तो कोई उनसे सीधे मुँह बात करता ना  उनका ख्याल रखा जाता। उसी दिन से उनके लिए इस घर में रहना दूभर हो रखा था । पत्नी तो पत्नी मेरे बच्चे तक उनसे दूरी बनाकर रखते थे जैसे वे मेरे माता-पिता न होकर कोई छूत की बीमारी हों । मैं जब भी ऑफिस से घर आता अक्सर मैंने अपने बूढ़े माता– पिता को रोते देखा है, मुझे इस बात का पता न चले मेरे आते ही वे दोनों हंसने का नाटक करते थे। घर के नौकर तक उनसे सीधे मुँह बात नहीं करते। घर के बिगड़ते हालातों तो देखते हुए ही मम्मी –पापा ने लास्ट वीक मुझसे कहा था कि वह उन्हें किसी वृद्धाश्रम में भेज दे, या गाँव भेज दे। गाँव तो वे लोग जा नहीं सकते वहाँ जाकर रहेंगे भी तो  कहाँ ?  एक टूटा-फूटा घर था वह भी उन्होने उसकी एम. बी. ए.  की पढ़ाई के लिए बेच दिया था। मैंने अपने परिवार को समझाने की बहुत कोशिशें कीं लेकिन किसी के कानों पर जूं तक न रेंगी। आखिर मजबूर होकर मुझे  उन्हें वृद्धाश्रम में भेजना ही पड़ा।“ कहते-कहते  वह पुनः  फूट-फूटकर रोने लगा, सचिन ने उसे शांत करते  हुए कहा।
सचिन – यार इट्स सो सैड  बट डोन्टवरी सब ठीक हो जाएगा ...” कहते हुए वह भी भावुक हो गया पर अपने पर काबू रखते हुए उसने साहिल को शांत किया कुछ देर सन्नाटा पसरा रहा । कुछ देर बाद साहिल जैसे अपने आप से बातें करते हुए कहने लगा
साहिल –“  मैं ही जानता हूँ कि मेरे माँ – बाप ने कितनी कठिनाइयों को झेलते हुए मुझे इस मुकाम तक पहुँचाया है। मेरे  यूनीवर्सिटी में दाखिले के लिए जब कहीं से पैसों का जुगाड़ नहीं बन पाहया तो उन्होने  घर तक को बेच दिया ताकी मेरी पढ़ाई में कोई रुकावट न हो। आज जब उन्हें मेरे साथ की सबसे ज्यादा ज़रूरत है मैं उन्हें  ऐसे माहोल में, ऐसे लोगों के बीच छोड़कर आया हूँ जो उनके लिए एक दम अपरिचित हैं। ऐसी कामियाबी किस काम की जिससे मेरे माँ –बाप ही दूर हो जाए। कहते हुए पुनः उसकी आँखों से आंसुओं की धार बह निकली..... जब मैं ऐसे माँ-बाप के लिए कुछ नहीं कर पाया तो भला औरों के लिए क्या कर सकता हूँ ?  आज सब को आज़ादी चाहिए, बिना किसी रोक टोक के जीवन जीना है तो जीए ....  मैं सब  को पूरी तरह आज़ादी देना चाहता हूँ । जब मेरे बूढ़े  माता –पिता किसी अंजान माहौल में अंजान लोगों के साथ जी सकते हैं तो ये लोग भी जी लेंगे .... इसीलिए मैं इन्हें हर बंधन से आज़ाद करता हूँ। रही बात घर की, मेरी दौलत की सो  मैंने अपनी सारी जायदाद इन लोगों के नाम लिख दी है” । सचिन ने उसे बीच में ही रोकते हुए कहा
सचिन –“ये क्या पागलपन है .... और तुम कहाँ रहोगे “
साहिल – “मेरे बूढ़े माँ-बाप अंजान लोगों के साथ रह सकते हैं तो मैं भी  वहीं जाकर उनके साथ रहूँगा  मैं उसी  वृद्धाश्रम में अपने बूढ़े माँ-बाप के साथ रहूँगा, कम से कम बूढ़े माँ-बाप के साथ सुकून से तो रह सकूँगा। जब इतना सब कुछ करने के बाद भी मेरे माँ-बाप वृद्धाश्रम में रह सकते हैं तो मैं क्यों नहीं ? वैसे भी माँ-बाप के साथ रहते हुए मुझे भी आदत हो जाएगी ... आखिर एक दिन जाना तो वहीं होगा ... उनकी तरह तकलीफ तो नहीं होगी। वह जितना कहता जाता उतना ही रोते जा रहा था .... सब को आज़ादी चाहिए तो लो आज़ादी सब आज़ाद रहो ..... कहते –कहते एक मौन में डूब गया .... चारो तरफ सन्नाटा छा गया।   
              

            

    


9 comments:

  1. कैसी आजादी, किससे आजादी ! सोचना जरुरी है

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  2. गगन शर्मा जी,
    धन्यवाद,

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  3. नमस्ते शिवकुमार जी,

    सर्वप्रथम आपको इस रचना के लिए बधाई!

    कहानी अच्छी लिखी है आपने लेकिन विषय में कुछ खास नयापन नहीं लगा.

    अमित

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  4. After reading this thoughtful story i could reflect that to maintain new relationship(Life partner and kids) can we ignore our existing relationship (Parents)

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  5. Dear sir, I am still thinking why can't most of the woman treat her in-laws as her own parents or family per say. I believe the husband did the right thing to make her wife realize about her responsibility.

    Thanks and congrats- Tanmay

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  6. Hello Shiva Sir, I too agree that sometime husband need to take strict action for the betterment of the family like in your story. Nice story. Thank you Radhika

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  7. Hi Sir, your stories always make me think. Nice story. Congrats and Thanks Shubhangi

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  8. Hi Sir, Nice story though at first I felt it is very common subject but the way you have treated this is good.

    Best luck
    Upendraa

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  9. शालिनी जी, अनुराग जी, तनमय जी, राधिका जी, शुभांगी जी, और उपेंद्र जी आप सभी ने कहानी पढ़ी, अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद, आप लोगों का स्नेह इसी प्रकार सदैव बना रहे ...
    धन्यवाद

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