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Friday, October 19, 2012

समर्पण


                                                                         
शांता अस्पताल के जनरल वार्ड के कमरे में अपने जीवन की आखिरी साँसे गिन रही थी. जीवन के इस अंतिम समय में शायद उसकी साँसें  कहीं अटकी हुई थीं| उसकी टूटती साँसे और अधखुली आँखें अस्पताल के उस कमरे में खोज रहीं थीं| उसकी आँखें कमरे के दरवाज़े पर अटकी हुई थीं शायद किसी  बाट जोह रहीं थीं|  हाँ उसे अपनी बेटी गीता का इंतज़ार था| वही गीता जिसे पैदा होने के कुछ वर्षों बाद से ही उसने उसे एक अनाथाश्रम में छोड़ दिया था| बेरहम समय की तीव्र गति ने उसे कब यौवनावस्था से वृद्धावस्था और कब वृद्धावस्था से इस मरणासन्न पर लाकर पटक दिया उसे पता ही नहीं चला| अंतिम समय में शांता अपनी ज़िन्दगी के उन बीते हुए लम्हों को याद कर रही थी.........कि कैसे उसने अपने माता-पिता के लाख समझाने पर भी उनकी मर्ज़ी के खिलाफ घर से भागकर किशनलाल से शादी की थी| आज वह उस मनहूस घड़ी को कोस रही थी| काश उसने अपने घरवालों की बात मान ली होती.... काश किशन लाल से शादी ना की होती| समय रहते काश उसकी आँखों से किशनलाल के झूठे प्यार का पर्दा उठ गया होता तो आज उसकी यह दुर्गति न होती| वह भी समाज में आम नागरिकों के समान सम्मानपूर्वक जीवन जी रही होती| उसका भी हँसता खेलता परिवार होता वह भी अपनी बेटी के साथ रह रही होती| उसकी एक भूल ने उसे समाज के आम लोगों के जीवन से दूर उन बदनाम गलियों में पहुँचा दिया| जहाँ की बदनाम गलियों ने उसे इस लाइलाज बीमारी का शिकार बनाकर अस्पताल के इस कमरे तक पहुँचा दिया| अपनी इस लाइलाज बीमारी से जूझते-जूझते वह थक चुकी थी| अब तो वह दिन-रात ईश्वर से अपनी मृत्यु की भीख माँग रही थी|

किशन लाल ने उसके साथ शादी तो जरूर की थी पर वो सब एक दिखावा था| शांता किशनलाल की साज़िशों से पूरी तरह से अंजान थी| वह नहीं  जानती थी की वह किस जाल में फँसने जा रही है| शादी के कुछ दिनों तक तो सब ठीकठाक चलता रहा| एक दिन किशनलाल उसे शहर खरीददारी करने के बहाने लेकर आया| शांता बहुत खुश थी| आज वह पहली बार शहर जो जा रही थी| उसने अपने सपने में भी कल्पना न की होगी कि किशनलाल उसके साथ किसी प्रकार का धोखा भी कर सकता है| वह उसे जिस्मफरोशी के मोहल्ले में मात्र पाँच हजार रुपए में बेच कर चला गया|  एक लाचार और बेबस औरत की कीमत मात्र पाँच हजार रुपए.......?वाह रे दुनिया .....बेचारी शांता यहाँ सबके आगे गिड़गिड़ाई, सबसे   फरियाद की .....मिन्नतें की  कि कोई उसे इस नरक से बाहर निकाले| लेकिन ऐसा हो न सका ...... अंत में हारकर उसने अपने जीवन से जीवन से समझौता कर लिया| यहाँ आकार उसका जीवन नरकीय  जीवन से भी बदत्तर बन गया| यहाँ रोज़ शाम को उसे अपने आपको सभ्य समाज के भूखे भेड़ियों के सामने किसी लज़ीज़ पकवान की तरह परोसना होता| समय के साथ-साथ उसने भी उस नरक से बाहर निकलने की आशा छोड़ दी और उस नारकीय जीवन को ही अपनी नियति मानकर जीने की आदत डाल ली थी| 

शांता को इस नरक में आए हुए लगभग तीन साल बीत गए थे| इन तीन सालों में उसने इन बदनाम मुहल्लों के अलावा बाहर की दुनिया देखी तक न थी| तीन साल के बाद शांता ने एक फूल सी बच्ची को जन्म दिया| फूल सी मासूम बच्ची के जन्म के साथ ही वहाँ के लोगों ने उस मासूम बच्ची की किस्मत भी तय कर दी थी| शांता उन लोगों की बातें सुनी पर उनसे कहा कुछ नहीं| उसने मन ही मन अपने आप से वादा किया कि उसकी बेटी का इस नरक में उसका पालन-पोषण नहीं होगा| समाज के इन भेड़ियों के बीच उसका पालन-पोषण किसी भी हालत में नहीं होने देगी जहाँ औरत को इन्सान नहीं केवल एक भोग की वस्तु समझा जाता है| कहते हैं न कि जब किसी काम को करने की सच्ची लगन हो तो रास्ता अपने आप ही मिल जाता है| ऐसा ही कुछ शांता के साथ हुआ| एक दिन की बात है शांता अपनी सहेली के साथ बाजार गई थी| सहेली से बातों ही बातों में रेणु दीदी के बारे में पता चला कि रेणु दीदी ऐसे बच्चों की देखभाल करती है जिन्हें समाज ने ठुकरा दिया है या अनाथ हैं| रेणु भी कभी शांता की तरह ही इस गंदे बाजार में धोखे से लाई गई थी लेकिन वह तो खुश किस्मत थी कि इस  गंदगी में डूबने से पहले ही भाग निकलने में सफल रही लेकिन हर कोई रेणु की तरह खुशकिस्मत नहीं होता ....| 

देखते ही देखते शांता की बेटी दो साल की हो चुकी थी| शांता किसी न किसी तरह उस दो साल की बच्ची गीता को उन बदनाम गलियों से बाहर निकालना चाहती थी| एक दिन उसे यह मौक मिल ही गया वह गीता को लेकर रेणु दीदी के पास ले आई| उसने रेणु दीदी से अनुरोध किया कि वह उस बच्ची को एक आम नागरिक की जिन्दगी दे, उसे पढ़ा–लिखाकर ........ कहते हुए उसका गला भर आया| रेणु दीदी उस पीड़ा को समझती थी| रेणु दीदी ने शांता उसकी बेटी गीता की तरफ से आश्वस्त रहने का भरोसा दिया|  वह उसकी लड़की की परवरिश करेगी केवल उसकी लड़की की ही नहीं उसके जैसे सभी बच्चों की की ....| शांता नहीं चाहती कि उसकी बेटी बड़ी होकर ....कहते हुए उसकी आँखें छलक आई| उसने बेटी को गले से लगाया उसके माथे को चूमा और रेणु दीदी को सौंपकर वहाँ से चलने लगी कि बेटी उसका आँचल पकड़ कर बिलख–बिलखकर रोने लगी .....शांता ने बेटी की तरफ देखा फिर एक बार उसका  माथा चूमा और अपने आँसुओं को पौंछते हुए वहाँ से बाहर निकल आई| क्या बीत रही होगी उस माँ पर जो अपनी दूध पीती बच्ची को अपने कलेजे से दूर छोड़कर जा रही थी| इस आश्रम में गीता अकेली ऐसी लड़की नहीं थी जो इस उम्र में अनाथाश्रम आई थी| उससे भी छोटी उम्र के बच्चे यहाँ  पर पहले से ही थे| कुछ दिन तक उसका मन इस माहौल में नहीं लगा लेकिन धीरे–धीरे अन्य बच्चों के साथ वह घुल-मिल गई| धीरे –धीरे उसकी  माँ की यादें धूमिल होती चली गई| अब यही आश्रम उसका घर परिवार बन था| रेणु दीदी उसकी माँ| रेणु दीदी ने उसे अपनी बेटी की तरह ही पाला| 

रेणु दीदी ने उन बदनाम गलियों से भागकर अपना जीवन ऐसे लोगों के लिए ही समर्पित कर दिया है जो बेसहारा हैं| जहाँ कही भी कोई अनाथ बच्चा मिलता वह उसे अपने साथ अनाथाश्रम ले आती| हमारे समाज में एक ऐसा भी कोना है, ऐसी भी बदनाम गलियां हैं जहाँ लोग सिर्फ रात के अँधेरे में अपनी हवस की प्यास बुझाने जाते हैं| अपनी रातों को रंगीन करने के लिए जाते है उनकी इन्हीं रंगरलियों से अगर कोई बच्चा पैदा हो जाए तो उसे समाज के लोग अपनाने के लिए कतई तैयार नहीं होते| उसे नाजायज कहकर उसका तिरस्कार करना शुरू कर देते हैं| ऐसी स्थिति में उन मासूमों को किसी कचरे के ढेर में पाप समझकर फेंक दिया जाता है, या किसी मंदिर की सीढ़ियों पर रखकर छोड़ दिया जाता है| रेणु दीदी ने उन बच्चों के पालन-पोषण के लिए सरकार के सभी दफ़्तरों का दरवाजा खटखटाया| सरकारी दफ़्तरों से उन्हें आश्वासन तो मिलता लेकिन किसी भी प्रकार की कोई आर्थिक सहायता नहीं मिलती| उन्होंने  भी  इस नेक काम को करने में हार नहीं मानी| अपने बलबूते और कुछ गैर सरकारी संस्थाओं की सहायता से उन अनाथ बच्चों की परवरिश जारी रखी| धीरे– धीरे समय के साथ–साथ रेणु की इस निस्स्वार्थ सेवा को देखकर वहाँ के लोग भी उनकी सहायता के लिए आगे आए|  यहाँ ऐसे न जाने कितने ही बच्चे हैं जिनको  समाज ने ठुकरा दिया है| ऐसे बच्चे जिनकी माँ तो है पर पिता का नाम पता नहीं.......| ऐसे बच्चे और अन्य बेसहारा बच्चे इस अनाथाश्रम में एक ही छत्त के नीचे रेणु दीदी की देखरेख में अपना जीवन जी रहे हैं| यहाँ पर रेणु दीदी ने उन बच्चों के लिए पढ़ने–लिखने का इंतजाम भी किया | इन बच्चों के भविष्य को सुधारने के लिये रेणु दीदी दिन-रात मेहनत करती रहती हैं| उनकी कोशिश है कि ऐसे बच्चे समाज में सम्मान के साथ जी सकें| लेकिन हमारा समाज है कि उन्हें स्वीकार करने को तैयार ही नहीं होता| 
 
     आज उनके आश्रम में कम से कम ऐसे तीस –चालीस बच्चे होंगे जिन्हें उन्होंने उन बदनाम गलियों में रोते –बिलखते पाया था|  यहाँ पर अधिकांश बच्चे रेड लाइट एरिया के ही हैं| यह रेणु दीदी  की मेहनत का ही परिणाम है कि इतने सारे बच्चों को खासकर लड़कियों को उन बदनाम गलियों से निकाला  और शिक्षत किया| उन्हें सही गलत को परखने की सीख दी ....|  इन्ही बच्चों  में से कुछ बड़े होकर रेणु दीदी  का सहारा बन चुके हैं|  उसके कार्यों में सहायता करते हैं| उन्हें पता है कि वे लोग जिन गलियों से निकलकर आए हैं उन्हें समाज इतनी आसानी से स्वीकार नहीं करेगा| वे लोग अपनी इस नन्ही दुनियां में खुश हैं| देखते –देखते नन्ही गीता जीवन के तेरहवे साल में आ चुकी है समय किस प्रकार से गुजर गया पता ही नहीं चला|

 रेणु दीदी  आश्रम के सभी बच्चों के सप्ताह में एक दिन बाहर घुमाने ले जाती थी| जिस दिन बच्चे बाहर घूमने जाते थे उस दिन उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता था | जब लड़कियां  बाहर घूमने जाती थी उन्हें एक संस्था सौ रुपए खर्चे के लिए देती थी| लड़कियां उन सभी पैसों को अपने लिए ही खर्च नहीं करती थीं| उनमें से कुछ पैसे वे अपने आश्रम भाइयों के लिए भी खर्च करती थीं| वे अपने भाइयों के लिए कुछ ना कुछ अवश्य खरीदकर लाती थीं| लड़कियों के इस लगाव को देखकर रेणु की आँखें भर आतीं ...| इस स्वार्थी दुनिया में ये लोग किस प्रकार अपनी और अपने लोगों की ज़रूरतों का ध्यान रखते हैं|

एक दिन की बात है जब रेणु किसी काम से बाहर गई थी| अपना काम समाप्त करके आश्रम लौटने में थोड़ी देर हो गई थी सूरज ढल चुका था| शहर की स्ट्रीट लाइट जल चुकी थीं| जिस  रस्ते से वह आ रही थी यह वही इलाका था जिसमें तवायफ़ों में कोठे हैं| रेणु अपने सीधे रस्ते चली जा रही थी कि अचानक उसकी नजर एक औरत पर पड़ी| उस औरत की हालत देखकर वह उसके पास गई| पास जाकर देखा तो वह शराब के नशे में दुत्त पड़ी थी| उसके पास एक साल का बालक बिलख–बिलख कर रो रहा था| उस गली में खूब चहल–पहल थी लेकिन किसी को उस बालक का रोना सुनाई नहीं दे रहा था| रो –रो कर उस बालक का गला भी सुख चुका था| बालक की हालत को देखकर उसका गला भर आया| अपने आप पर काबू करते हुए रेणु दीदी ने उस औरत को होश में लाने की बहुत कोशिश की लेकिन नाकाम रही| रेणु को आस–पास के लोगों से पता चला कि नशे में दुत्त पड़े रहना उस औरत की आदत है| बच्चा भले ही भूखा–प्यासा बिलखता रहे लेकिन उसे तो शराब किसी भी हालत में चाहिए| जब कभी  होश में आ जाती है तो बेटे को दूध पीला देती है नहीं तो यह बेचारा इसी प्रकार बिलख –बिलख कर रोता रहता है| उन्होंने बताया कि अगर इसके बच्चे को हम लोगों में से कोई खिलाने  लगता है या उसकी देख रेख करता है यह सब उसे अच्छा नहीं लगता| जब उसे होश आता है तो वह उन लोगों से लड़ने-झगडने लगती है| उन लोगों को बुरा-भला कहती है| इसलिए उन लोगों ने भी उस बच्चे की तरफ ध्यान देना बंद कर दिया है| अब कौन रोज–रोज झगड़ा करे ..... जब इसे अपने बच्चे की फिक्र नहीं तो हमें क्या पड़ी| एक तो इसके बच्चे की देखभाल करो ऊपर से इसके ताने, गालियां सुनों ........

लोगों की बातें सुनने के बाद रेणु ने उस बच्चे को गोद में उठाया उसे पानी पिलाया और पास के होटल से कुछ दूध लाकर पिलाया|  बच्चे का पेट भर गया तो वह कुछ देर रेणु की गोदी में शांत बैठा रहा और थोड़ी देर बाद रेणु से लिपट कर सो गया| बच्चे की इस प्रकार की हालत देखकर रेणु को बहुत दुःख हुआ| काफी  समय तक वह उस औरत के होश में आने का इंतजार करती रही| वहाँ पर लोगों की भीड़ बढ़ती जा रही थी आने–जाने वाले लोग उसे बड़ी ही गंदी नज़रों से देख रहे थे.......थक हार कर जब उसके सब्र ने जवाब दे दिया वह उस बच्चे को अपने साथ अनाथाश्रम लेकर आ गई | बच्चे को लाते समय वह अपना नाम और पता वहाँ उसके जान पहचाना के लोगों को लिखवाकर आ गई| साथ ही साथ बता आई कि जब यह होश में आए तो मेरे पास भेज देना| अभी तो ‘मैं इस बच्चे को अपने साथ ले जा रही हूँ’| वहाँ पर खड़े कुछ लोगों ने रेणु को समझाया कि क्यों वह इस मुसीबत को अपने सिर बाँध रही है इसे यही रहने दें| रेणु ने लोगों की एक न सुनी और बच्चे को अपने साथ लेकर आश्रम आ गई| आश्रम में बच्चे की जिम्मेदारी गीता को सौप दी गई| गीता ने उस बच्चे का नाम करन रखा| 

   दो–तीन दिन के बाद उस बच्चे की माँ आश्रम में आई और आते ही  रेणु दीदी  से झगड़ा करना शुरू कर दिया| रेणु दीदी  उसकी सभी बातें शांति से सुनती रही| जब उसकी बातें खत्म हो गई तब वह उसे अपने ऑफिस में ले गई| उसे समझाया कि वह जो कर रही है वह गलत है|  उससे उस बच्चे का भविष्य बर्बाद हो जाएगा| अगर वह उस बच्चे की परवरिश सही ढंग से नहीं कर सकती तो कम से कम उसके जीवन को बर्बाद तो ना करे ...... रेणु की बातें उस औरत की समझ में आई पर अंजान बनते हुए  बोली –आपको जैसा अच्छा लगे वैसा करो कहकर बाहर चली आई| बाहर जाते समय करन ने उसे देख लिया अपनी माँ को देखते ही वह जोर –जोर से रोने लगा| उस औरत ने न तो उस बच्चे के रोने को सुना और न ही उसकी तरफ देखा| वह सीधे आश्रम से बाहर निकलकर चली गई| गीता ने बच्चे को शांत करने की कोशिश की लेकिन वह और बिलख –बिलखकर रोने लगा| गीता ने उसे चुप करने की बहुत कोशिश की लेकिन नाकाम रही| बच्चे को इस प्रकार रोते-बिलखते  देखकर वह भी रोने लगी.......| जब बच्चा  रोते–रोते थक गया थक हारकर वह  गीता से लिपटकर सो गया| गीता ने उसे कमरे में सुलाया और उसके सिरहाने बैठ गई .....वह अभी भी सुपक रहा था| बच्चे की इस प्रकार की हालत देखकर उसकी आँखों से भी आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे|

 धीरे –धीरे समय के साथ –साथ करन  ने अपने आप को उस आश्रम के माहौल में ढाल लिया था| शुरू के कुछ महीने तो गीता को करन की देखभाल करने में कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ा| लेकिन धीरे –धीरे  सब ठीक हो गया| अब करन गीता को ही अपनी माँ समझता था वह जहाँ कहीं जाती वह उसके साथ ही रहता| एक पल के लिए भी उसे अकेले नहीं छोड़ता था| गीता भी उसे बेटे के सामान ही प्रेम करने लगी थी| दोनों एक दूसरे का साथ पाकर बहुत खुश थे| दोनों की अपनी ही एक अलग दुनिया थी जिसमें तीसरे के लिए कोई जगह नहीं थी| गीता भी करन का साथ पाकर उसके साथ हँसती–खेलती| यह वही गीता है जो कभी किसी के साथ ज्यादा  हँसती खेलती नहीं थी| अकसर वह  एकांत में बैठी रहती थी बस अपने काम से मतलब रखती थी| वही मासूम सी लड़की करन का साथ पाकर हंसना–खेलना सीख चुकी थी| समय के साथ– साथ करन उस आश्रम में बड़ा हो रहा था | 

  आज करन को इस आश्रम में आए हुए सात साल हो चुके हैं| इन सात सालों में उसकी माँ ने एक बार भी आश्रम में आकार यह जानने की कोशिश नहीं की कि उसका बेटा कैसा है? किस हाल में है|  उस औरत से तो अच्छी शांता ही है जो अकसर चोरी –छिपे आकार रेणु दीदी से मिलती और गीता की राज़ी–खुशी मालूम करके चली जाती| इधर करन ने गीता में अपनी माँ को पा लिया था| उसे तो याद भी नहीं कि उसकी और भी कोई माँ है| गीता और करन के प्रेम देखकर रेणु की आँखें भी नम हो जाती| जैसे-जैसे गीता और अन्य लड़कियाँ बड़ी हो रहीं थीं वैसे-वैसे वे लोग भी रेणु दीदी के समाज सेवा के कामों में उसकी सहायता करने लगीं| वहाँ पर अन्य बच्चे जो बड़े हो चुके थे वे भी रेणु दीदी के कामों में उसकी सहायता करने लगे थे| गीता ने दसवीं कक्षा में टॉप किया था| गीता के टॉप करने की खुशी में आश्रम में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था| इस कार्यक्रम के लिए वहाँ के विधायक को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था| विधायक ने उस कार्यक्रम में  उस आश्रम के सुधार के बड़े–बड़े वादे किए और कहा कि जब भी किसी भी बच्चे को उसकी सहायता की जरूरत हो वह बिना किसी झिझक के उसके पास आ सकता है| उन बच्चों की सहायता अवश्य करेगा| गीता की मेहनत की भी उसने प्रशंसा की और कहा कि विपरीत परिस्थियों के बावजूद इस लड़की ने शहर में टॉप करके साबित कर दिया कि हुनर को किसी की सहायता की जरूरत नहीं होती|

गीता ने दसवीं की पढ़ाई तो पूरी कर ली थी| वह आगे भी पढना चाहती थी| जब वह एक कॉलेज में दाख़िले के लिए गई तो वहाँ के लोगों ने उसे किसी पहचान के लोगों के हस्ताक्षर लाने के लिए कहा| गीता सीधे अपने इलाके के उस विधायक के पास गई जिसने उसकी सहायता करने का भरोसा दिया था|  गीता ने उस विधायक को बताया कि वह आगे पढ़ना चाहती है अगर वह उस फार्म पर अपने हस्ताक्षर कर देता है तो उसे कॉलेज में दाखिला आसानी से मिल जाएगा| विधायक ने उसकी बातें तो सुनी लेकिन फार्म पर हस्ताक्षर करना तो दूर की बात उसने उसे पहचानने से ही इन्कार कर दिया| विधायक के इस प्रकार के व्यवहार से वह बहुत दुःखी हुई| उसे अपनी इस बेबसी पर रोना आ रहा था ........| वहाँ से वह सीधे अपने आश्रम चली गयी| जब रेणु ने उसे इस तरह उदास आते देखा तो उसकी उदासी का कारण पूछा रेणु को देखते ही वह उससे लिपटकर जोर–जोर से रोने लगी| गीता को इस प्रकार रोते देखकर  किसी अनहोनी की आशंका से रेणु का दिल बैठा जा रहा था| वह उसे अपने ऑफिस में ले गई उसे शांत किया और उसके रोने का कारण पूछा| जब गीता ने विधायक के व्यवहार की बात बताई तब जाकर रेणु की जान में जान आई| रेणु ने उसे समझाया कि वह परेशान न हो वह उसका दाखिला कॉलेज में जरूर करवा देगी| गीता तो रोता देखकर करन उससे लिपटकर रोने लगा| गीता ने उसे गोद में उठाया और रोने का कारण पूछा ...उसकी बातें सुनकर कि वह रो रही है इसीलिए वह भी रोने लगा यह सुनकर गीता ने उसे सीने से लगा लिया ... .....गीता और करन के इस लगाव को देखकर रेणु की आँखें भर आई| 

रेणु ने  गीता को कॉलेज में एडमिसन दिलाने के लिए दिन-रात एक कर दिए| जिस दिन रेणु ने गीता को उसके एडमिसन की खबर सुनाई थी यह सुनकर खुशी के कारण उसी आँखें भर आई| यह रेणु दीदी   की मेहनत  का  ही परिणाम था कि गीता को आगे पढ़ने का मौका मिल सका| आश्रम में बड़े हो रहे बच्चों ने आश्रम में ही स्कूल खोल लिया था| उन लोगों ने  वहाँ पर रह रहे छोटे बच्चों को पढ़ाने का काम शुरू कर दिया| बच्चों की देख रेख उनकी पढ़ाई तक तो सब ठीक था| समय के साथ– साथ बच्चे बड़े हो रहे थे लड़कों का तो ठीक था लेकिन लड़कियों के लिए रेणु दिन- रात चिंतित रहती| जवान होती लड़कियों को समाज में किस प्रकार एक सम्मान का जीवन दिया जा सके उनका घर परिवार बस सके| समय के साथ –साथ गीता भी बड़ी हो रही थी| गीता और करन की  अपनी एक अलग दुनिया थी वे दोनों एक दूसरे का साथ पाकर बहुत खुश है| बाहर की इस स्वार्थ से भरी दुनिया से इन लोगों की अपनी एक निस्स्वार्थ दुनिया है| गीता ने अपने आप को करन की परवरिश के लिए समर्पित कर दिया था| इस समर्पण में किसी प्रकार का स्वार्थ नहीं है अगर कुछ है तो वह है प्रेम और बस प्रेम .........|

जब रेणु को शांता के बारे में पता चला कि वह अस्पताल में भर्ती है और कभी भी उसकी साँसें उसका साथ छोड़ सकती हैं| रेणु गीता को अपने साथ लेकर उस सरकारी अस्पताल जा पहुँची जहाँ गीता की माँ अर्थात शांता भर्ती थी| रेणु ने गीता को आज शांता के बारे में सब कुछ बता दिया कि किन परिस्थितियों शांता को यह सब करना पड़ा| यह सब सुनकर गीता के पाँव तले की जमीन ही खिसक गई कि उसकी माँ .........| अस्पताल पहुँचकर रेणु गीता को साथ लेकर उस कमरे तक जा पहुँची| वहाँ पहुँचकर जैसे ही रेणु ने शांता को आवाज दी उसने धीमी गति से आँखें खोली रेणु के साथ गीता को देखकर उसकी आँखों से आँसुओं की धार बहने लगी| रेणु उससे कुछ कह पाती उससे पहले ही उसकी साँसों ने उसका साथ छोड़ दिया|


1 comment:

  1. kya baat hain! bahut hi badiya! dunia main aise bhi log hain jo itne dukh sahne ki baad bhi kush rahte hain. bahut kuch seekha diya aap ne aaj iss kahani ke dawara. bahut - bahut dnyawad.

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