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Thursday, May 10, 2012

अभिलाषा

   आज शिवेक को अपने ऑफिस से बाहर आने में थोड़ी देर हो गई थी | बाहर आकर देखा तो उसके अन्य साथी उसका इंतजार कर रहे थे | बाहर कैब में उसके अन्य साथियों  से पता चला कि आज उसका लास्ट  ड्रॉप है | ऑफिस से निकले एक –एक करके उसके साथी अपने –अपने स्टॉप पर उतरते चले गए | अब कैब में वह और उसका ड्राइवर हेमराज था तभी उसका फोन आया उसने काफी देर तक फोन पर बातें की , शिवेक द्वारा  फोन पर की गई बातें उसका ड्राइवर सुन रहा था| जैसे ही उसने फोन रखा हेमराज ने पूछ लिया.
हेमराज – सर आप किताब छपवा रहे हैं  ....?
शिवेक –नहीं यार मैं नहीं मेरा एक दोस्त कहानियाँ लिखता है | उसी की कहानियों की किताब छपवा रहा हूँ...
हेमराज – कहानियाँ .......कैसी कहानियाँ.....क्या वे नॉवेल लिखते हैं ...?
शिवेक – नहीं यार ऐसे ही आम लोगों की कहानियाँ  हैं | उसने कई कहानियाँ लिखी हैं उनमें से कुछ  समाज में बुज़ुर्गों  के बारे में हैं, कुछ कहानियाँ दोस्ती पर तो कुछ समाज में औरतों पर हो रहे अत्याचारों पर, कहने का मतलब यह कि उसकी कहानियाँ आज के समाज की स्थिती को बयां करती हैं|
हेमराज – सर उन्हें ये कहानियाँ मिलती कहाँ से हैं ?
 कहानियाँ मिलने की बात सुनकर शिवेक थोड़ा मुस्कराया और मुस्कराते हुए बोला -
 शिवेक – अपने आस पास की घटित घटनाओं को वह एक कहानी का रूप दे देता है| ये कहानी मेरी हो सकती है, तुम्हारी हो सकती है, रास्ते पर चलते अन्य किसी भी व्यक्ति की हो सकती है | ये कहानियाँ कोई राजा –रानी की नहीं आम लोगों की हैं |
    शिवेक ने बातों ही बातों में अपने मित्र द्वारा लिखित कुछ कहानियाँ हेमराज को कह सुनाई इन्ही में से एक थी ‘एक माँ ऐसी भी’ जब वह इस कहानी को सुना रहा था तभी हेमराज कह उठा – ‘सर यह कहानी तो बिलकुल मेरी सी लगती है| ऐसा लग रहा है जैसे आप मुझे मेरी ही कहानी सुना रहे हो | ड्राइवर की बातें सुनकर शिवेक ने कहानी सुनाना  बंद करके उसके विषय में पूछ लिया -
शिवेक – क्यों यह कहानी तुम्हें अपनी से क्यों लगी ? क्या तुम्हारे साथ भी ......?
हेमराज –हाँ सर....मैं भी कुछ ऐसा ही बदनसीब हूँ जिसे आज तक माँ के होते हुए माँ का प्यार नसीब न हो    
                सका.........?

   हेमराज की बातें सुनकर शिवेक के मन में उसके जीवन के विषय में जानने की लालसा जाग उठी ...ऐसी क्या बात है जिसके कारण वह अपने आप को बदनसीब कह रहा है... उसने पूछा.
शिवेक – क्यों ऐसा क्या हो गया .......?
हेमराज  – सर मेरी भी कहानी कुछ ऐसी ही है अभी आप जो  कहानी सुना रहे थे  ना - कि एक माँ अपने बच्चों में किस प्रकार का भेदभाव कर सकती है| सर आज के ज़माने में सब कुछ संभव है ....आज माँ  एक बेटे से प्रेम और दूसरे का तिरस्कार भी कर सकती है अगर ऐसा हो तो कोई ताजुब नहीं होगा .....मेरे जीवन की  कहानी भी कुछ ऐसी ही है ...|
शिवेक – ‘मैं कुछ समझा नहीं ...’
हेमराज - सर मेरा बचपन भी कुछ इसी तरह बीता ,बचपन ही क्या आज भी मेरा जीवन तो ऐसा ही है ...कहने को तो माँ है लेकिन आज तक माँ की ममता को तरसता रहा  हूँ ...छोटा था तब बाप का भी प्यार नसीब न हो सका | बाप रोज  शराब  पीकर घर आता था शराब  पीने के कारण रोज –रोज घर में कलह होती थी | वह जो कुछ कमाता उसे शराब  में उड़ा देता | घर का खर्चा माँ दूसरों के घरों में  झाड़ू –बर्तन का  काम करके चलाया करती थी | बाप आधे से ज्यादा समय अपने नशे में धुत पड़ा रहता | उसे तो इस बात से कोई मतलब ही नहीं था कि उसके बच्चे भूखे हैं, उन्होंने खाना खाया कि नहीं, उन्हें किसी चीज की जरूरत है या नहीं | वह तो सुबह शाम अपने नशे में धुत पड़ा रहता और इसी नशे ने एक दिन उसे इस संसार से उठा लिया...| बाप चला गया उसके जाने के बाद तो घर की और बदत्तर स्थिती हो गई | धीरे –धीरे  घर की आर्थिक स्थिति और खराब होती गई जिसके कारण माँ ने हमारी पढ़ाई भी बंद करवा दी | जिस उम्र में बच्चे अपने दोस्तों के साथ स्कूल जाते हैं, खेलते –कूदते हैं, उस उम्र में  मैंने पैसे कमाने के लिए लोगों के जूतों पर पॉलिश करने का काम भी  किया था | लोगों के जूते पॉलिश करके  कुछ ज्यादा पैसे नहीं मिल पाते थे जिसके कारण मुझे रोज –रोज माँ के ताने सुनने पड़ते थे | लेकिन भाई जो कुछ भी कमाकर लाता चाहे कम हो या ज्यादा माँ कभी उससे कुछ नहीं कहती थी | मैं और भाई जो कुछ पैसे कमाकर लाते माँ उन पैसों को ब्याज पर दूसरों को दे देती |


पैसों को ब्याज पर देने की बात सुनकर शिवेक को बहुत अजीब सा लगा कि माँ अपने बच्चों के मेहनत की कमाई को उन पर खर्च न करके ब्याज पर दे देती है ...इसी बीच शिवेक ने हेमराज को टोकते हुए पूछ लिया –
शिवेक –‘फिर तुम लोगों  के घर का खर्चा किस तरह से चलता था .....|’
हेमराज – ‘सर जी   खर्चा क्या चलता था बस .......अपनी हर इच्छा को मारकर जीना यही हमारा बचपन था| बचपन में छोटी- छोटी खुशी पाने के लिए मैं कितना तरसा  हूँ यह तो मैं ही जानता हूँ | दीपावली पर जब घर मिठाइयाँ बनती थी उसमें से भी माँ मुझे केवल कुछ मिठाइयाँ गिनकर देती थी अगर मैं और मिठाई माँगता तो मिठाई तो नहीं मिलती पर हाँ माँ के ताने जरूर मिल जाते ....... वही भाई को वह जितना चाहे खा सकता था| बस घर में अगर पाबंदी थी तो वह मुझ पर मैं बिना माँ की इजाजत के कुछ भी ना खा सकता था न ले सकता था | यहाँ तक कि माँ ताज़ी बनी रोटी  भाई को देती और मुझे बासी रोटी अगर मैंने गलती से भी ताजा बनी हुई रोटियों में से ऊपर से रोटी ले ली तो माँ का चिमटा सीधे मेरे हाथ पर पड़ता था |  जब भी रात की रोटी बच जाती तो माँ  उन रोटियों को ताजा रोटियों के नीचे दबाकर रख देती और उन रोटियों को निकाल कर मेरी थाली में रख देती ......माँ के इस तरह के रवैये के मुझे दुःख तो बहुत होता  लेकिन मैं क्या कर सकता था ........| 

शहर की भीड़ में कार जिस रफ्तार से चली जा रही थी उसी प्रकार हेमराज अपने जीवन की उन बातों को जिन्हें शायद उसने अभी तक  किसी से नहीं  कहा होगा शिवेक को सुनाता जा रहा था –
हेमराज – ‘सर हम दो भाई हैं  मुझ से  बड़ा भाई है | भाई  बहुत ही भोला –भाला है कोई भी उसे आसानी से बेवकूफ बनाकर अपना काम करवा लेता है | वह भी इतना भोला है कि आज के लोगों की चालाकी को समझता ही नहीं है | मैंने उसे कई बार समझाने  की कोशिश की लेकिन........ माँ को मेरा भाई को समझाना कतई अच्छा नहीं लगा | माँ ने मुझे ही उलटी सीधी बातें सुना दी
माँ – ‘इसे तेरी सीख की जरूरत नहीं है ......तू अपने आप को बहुत श्याना समझता है ना ...मैं सब समझती हूँ |
हेमराज – ‘पर माँ मैं तो भाई के अच्छे के लिए ही यह सब कह रहा था .....|’
माँ – ‘हाँ ..हाँ मुझे सब पता है तू किस के भले के लिए कह रहा है इसे तेरी नसीहत की जरूरत नहीं समझा ...|’
 हेमराज – सर भाई इतना भोला है कि........भाई के इसी भोलेपन का लोग नाजायज फायदा उठाते हैं लेकिन उ
सकी समझ में है कि कुछ आता ही नहीं | भाई के इसी भोलेपन के कारण  माँ बचपन से ही उसकी तरफ अधिक ध्यान देती और मेरी तरफ कम......इसीलिए अकसर  मेरे साथ  दोहरा व्यवहार किया जाता रहा है | मैं मानता हूँ कि भाई को शायद मुझ से ज्यादा माँ के सहारे की ज्यादा जरूरत है लेकिन मैं ........| बचपन में बच्चों को अपना जन्मदिन मनाने की बहुत लालसा होती है| इसी लालसा के कारण एक दिन मैंने अपने जन्मदिन पर माँ से कहा था कि माँ मैं भी इस बार अपना जन्मदिन मनाऊंगा| मेरे इतने कहने से ही  माँ भड़कते हुए बोली –          माँ – जिस दिन तू अपने पेंट की इन दोनों जेबों  में पैसे भरकर लाएगा उस दिन मैं तेरा जन्मदिन मनाउंगी...कहते हुए उसका गला भर आया उसकी आवाज उसके शब्दों का साथ नहीं दे रही थी ....उसकी आँखों से आँसू टपकने  लगे .......|
  माँ का यह तोहफा मैं कभी नहीं भूल सकता ......, सर मैंने उस दिन फैसला किया कि मैं एक दिन अपनी मेहनत से बड़ा आदमी बनकर दिलाउंगा......| जीवन में सभी के दिन एक जैसे  नहीं होते कभी मैं एक- एक रुपए के लिए तरसता था लेकिन आज ईश्वर की कृपा से इस लायक हो गया हूँ कि किसी के आगे हाथ नहीं  फैलाना पड़ता | बचपन तो बचपन पिछले कुछ सालों तक मैं घर में एक नौकर की तरह ही काम किया  करता था | रोज सुबह उठकर भाई और माँ के लिए सड़क पार से पानी भरकर लाता था क्योंकि हमारे घर पर पानी का कनेक्शन नहीं था बाहर सरकारी नल से सबके लिए पानी भरकर लाने की जिम्मेदारी मेरी थी | मैं सुबह उठकर पानी भरता फिर भाई  के ऑटो  की साफ- सफाई करता अगर उसमें कहीं मिट्टी लगी  रह जाती या कुछ कमी रह जाती तो माँ और भाई के ताने सुनने पड़ते थे |  जब माँ और भाई नहा लेते तब मैं अपने नहाने के लिए  पानी लाकर नहाता कभी –कभी तो दिल करता था कि इस जिल्लत भरी जिन्दगी से तो मौत भली ....पर मैंने कभी ऐसा करने का सोचा नहीं .....यही सोचता था कि कभी न कभी मेरे भी दिन बदलेंगे
हेमराज के भाई के तानों की बात सुनकर शिवेक को कुछ अजीब सा लगा क्योंकि कुछ देर पहले उसने कहा था कि उसका भाई बहुत ही भोला –भाला है फिर उसका हेमराज को ताने मारना उसकी समझ में नहीं आया इसीलिए उसने हेमराज को टोकते हुए पूछा –
शिवेक – ‘एक मिनट  अभी तो तुम कह रहे थे कि तुम्हारा भाई बहुत ही भोला है .....फिर वो भला तुम्हें क्यों ताने मारेगा  ........’
हेमराज – हाँ सर वह भोला है .......भोले का मतलब वह बहुत ही भावुक किस्म का आदमी है ... उसकी इसी  भावुकता का लोग फायदा  उठाते हैं .....एक बार की बात है हमारे इलाक़े के एक विधायक के परिवार के लोगों को मंदिर जाना था उसने भाई को फोन किया भाई उसके परिवार को मंदिर दर्शन कराकर लाया ऑटो मीटर में पाँच सौ रुपए आए लेकिन विधायक ने उसे एक सौ रुपए और एक शराब की आधी बोतल दे दी  और भाई से प्यार से हंस बोल लिया बस भाई उसे लेकर खुशी –खुशी घर आ गया .....अब यह उसकी भावुकता नहीं तो और क्या है ......यह सब देखकर मैं उसे समझाता था लेकिन माँ ......|
शिवेक –‘ फिर घर का खर्चा कैसे चलता है ....?’
हेमराज – कुछ मैं अपनी कमाई में से  घर में दे देता हूँ और कुछ माँ कमाकर लाती है| जब से भाई बड़ा हुआ है उसके भी बाप की तरह नशे की लत लग गई है | जब तक अकेला था तब तक तो ठीक था लेकिन अब तो घर में उसकी पत्नी है दो बच्चे हैं | उसकी इसी लत के कारण घर में आर्थिक तंगी रहती  है | सब ने उसे बहुत समझाया लेकिन वह है कि किसी की सुनता ही नहीं .......|
शिवेक – ‘तुम्हारी माँ उसे समझती नहीं ....|’
हेमराज – सर माँ ने भी उसे एक दो बार समझाया लेकिन बाद में उसने भी उसे समझाना छोड़ दिया ....वह दिन भर में जितने पैसे कमा कर लाता उसमें से कुछ पैसों  को शराब में उड़ा देता है ..जो कुछ पैसे बचते हैं  उन्हें माँ को लाकर दे देता और माँ उन पैसों को दूसरों को ब्याज पर दे देती है| एक तरफ माँ का ब्याज के लिए पैसों को देना दूसरी तरफ भाई का शराब में पैसे उड़ाना जिसके कारण घर में आर्थिक तंगी इस कदर जम चुकी है कि घर में बच्चे एक-एक दाने के लिए तरसते रहते हैं...........|
शिवेक – तुम अपनी माँ, भाई के साथ नहीं रहते क्या ?
हेमराज – नहीं सर शादी से पहले रहता था |शादी के कुछ दिनों बाद ही माँ ने मुझे और मेरी पत्नी को घर से यह कहकर बाहर निकाल दिया कि अब तू बड़ा हो गया है ,शादी भी हो गई है अब तू अपना कही और बसेरा कर यह घर सब लोगों के लिए छोटा पड़ता है ....|
शिवेक – और तुम्हारा बड़ा भाई, उसका परिवार |
हेमराज – भाई और उसका परिवार माँ के साथ ही रहता है | माँ को बचपन से ही भाई से अधिक लगाव रहा है |   वह जो भी करता था सब सही था ......वह कभी भी उसे किसी काम के लिए रोकती –टोकती नहीं थी | अगर वही काम मैं करता  तो घर में कलह का भूचाल आ जाता था |  मैं आज तक नहीं समझ पाया कि माँ बचपन से आज तक मेरे साथ सौतेलों जैसा  व्यवहार क्यों करती है | माना कि भाई को माँ की जरूरत शायद मुझ से ज्यादा होगी लेकिन मैं भी तो उसी माँ का बेटा हूँ फिर माँ मेरे साथ ऐसा क्यों........ मैंने माँ की इस नफरत को भी प्यार समझ कर जीवन से समझौता करके जीना सीख लिया है पर आज भी मेरा मन माँ के प्यार को ....... कहते हुए उसकी आँखों से आँसुओं की धार बहने लगी .....|
हेमराज को इस प्रकार रोते देखकर शिवेक की आँखें भी नम हो गई थी | उसने  हेमराज को किसी चाय की दुकान पर कार रोकने के लिए कहा कुछ देर बाद एक चाय की दुकान आई उसने कार रोकी  दोनों कार से उतरे शिवेक ने चाय वाले से दो चाय देने को कहा और एक गिलास में पानी ले जाकर हेमराज को देते हुए कहा कि वह अपना मुँह धो ले ... हेमराज ने अपना मुँह धोया और दोनों चाय पीकर वहाँ से शिवेक के घर के लिए रवाना हुए ...| शायद अभी हेमराज के मन में और कुछ था कहने के लिए कुछ दूर जाने के बाद उसने फिर कहा  –
हेमराज – सर मैंने यह कार किस तरह ली है यह तो मैं ही जनता हूँ कुछ दोस्तों से उधार लिया कुछ बैंक से लोन तब जाकर मैंने यह सैकिंड  हैण्ड कार खरीदी है | कार को देखकर माँ को लगता है कि मेरे पास बहुत पैसा है और में उन लोगों को नहीं दे रहा हूँ इसकी माँ को बहुत जलन रहती है कि मैंने अपनी कार खरीद ली है और बड़ा भाई अभी तक ऑटो चलाता है | आज भी  जब मैं माँ से मिलने  जाता हूँ तो माँ के चेहरे पर वह खुशी नहीं  होती जो एक माँ अपने बेटे को देखकर खुश होती है | यहाँ तक कि  मुझे स्वयं माँ से कहना पड़ता है कि माँ एक कप चाय पिला  दो इस पर माँ का जवाब होता है – घर में दूध नहीं है तब मैं ही  दूध ,चीनी और चाय पत्ती के लिए पैसे देता हूँ तब मुझे एक कप चाय पीने को मिलती है |  सर जो गलतियाँ मेरे बाप ने की थी वह गलती मैं नहीं करना चाहता | मैं अपने बच्चों को हर सुख- सुविधा और अच्छी शिक्षा दिलाउंगा ताकि वे समाज में सुखी जीवन जी सके | जिन दुखों को मैंने देखा है ऐसी कोई भी स्थिति उनके सामने ना आए ..... कल को मेरे बच्चे मुझे यह कहकर ना कोसे कि हमारे बाप ने हमारे लिए क्या किया ...... सर जी  अब तो जीवन की यही एक अभिलाषा है कि एक न एक दिन माँ मुझे प्यार से बेटा कहकर बुलाए अपने प्यार के आँचल की छांव में.........कहते हुए एक बार फिर भावुक होकर बच्चों के सामान फूट –फूट कर रोने लगा ...........|
    हेमराज के जीवन की कहानी सुनकर शिवेक की आँखें भी नम हो गई थी उसने हेमराज को शांत करते हुए कहा कि तुम चिंता मत करो एक ना एक दिन तुम्हें अपनी माँ का प्यार अवश्य मिलेगा ....ईश्वर के घर देर है अंधेर नहीं .......इसी बीच उसका घर आ गया था ...| वह कार से उतरा और हेमराज से चिंता ना करने और ईश्वर पर भरोसा रखने की बात कहकर घर की तरफ चला गया और हेमराज अपनी कार लेकर वहाँ से ऑफिस के लिए निकल आया | घर पहुंचकर शिवेक के मन में बार –बार एक ही प्रश्न  उठ रहा था क्या हो गया है इस संसार को और क्या हो गया है आज की माँ को ......... माँ भी अपने बच्चों में ..........? घर के अंदर जाकर उसने एक लंबी सांस ली और सोफे पर जाकर बैठ गया |

3 comments:

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    1. sir, i wanted to comment in hindi, so i deleted the previous comment... ok

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  2. नमस्ते अध्यापकजी, ये कहानी अभिलाषा बहुत ही भावुक है. समाज में इस तरह की माँ भी हते है.....सोचने के लिए भी बहुत कठिन लग रहा है...
    रावली

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