लँगड़ा भिखारी बैसाखी के सहारे चलता हुआ भीख माँग रहा था । भिखारी की उम्र होगी यही कोई पचास से पचपन साल की । “बाबा बहुत भूख लगी है कुछ दे दे खाने को ।” कुछ दुकानदार एक-दो रुपए देकर उसे चलता करते । कुछ दुकानदार उसे दुत्कार देते । वह किसी से कोई गिला सिक्वा किए बिना आगे बढ़ जाता । अक्सर वह यही बुदबुदाता रहता- “जो दे उसका भला जो ना दे उसका भी भला।” इसी तरह वह एक -एक दुकान पर जाता और भीख माँगता। दोनों टाँगों से लाचार होने के कारण बैसाखियों के सहारे किसी न किसी प्रकार चलता जाता और भीख माँगता जाता। जो कोई भीख में कुछ दे देता उसे –‘भगवान आपको सुखी रखे का आशीष देते हुए आगे बढ़ जाता।’ जो कुछ नहीं देता वहाँ से भी आगे चलता बनता । भीख माँगते हुए कुछ दूर ही गया था कि उसने कुत्ते के भौकने की आवाज़ सुनी जैसी ही पीछे पलटकर देखा तो उसके चेहरे पर एक अजीब सी चमक आ गई । कुत्ते को देखते ही वह बोला –‘ कालू आ गया तू ।’ भिखारी की आवाज़ सुनकर कुत्ता उसके पास आकर बार -बार उछलकर उसके मुँह को चूमना चाह रहा था । “अरे यार रुक तो सही … हाँ-हाँ मुझे पता है तुझे बहुत भूख लगी है पर रुक तो सही....” अब भिखारी भीख माँगना छोड़कर कुत्ते के साथ चायवाले की दुकान की तरफ चला गया । भिखारी ने चाय वाले से कुछ टोस्ट और ब्रेड खरीदे कुछ टोस्ट उसने कुत्ते को खिला दिए और जो कुछ बचे उसने खा लिए। खाते -खाते वह कुत्ते से बाते करने लगता – ‘आज यार आने में थोड़ी देरी हो गई , तुझे पता है कल हमारे मोहल्ले के पास बड़ी दावत हुई थी । कल रात तो बहुत सारा खाना मिला था मैने तुझे बहुत जगह ढ़ूँढ़ा पर तेरा कही कोई पता ही नहीं था । कहाँ चला गया था कल रात .....। कुत्ता भी उसकी बातों को सुनता जाता और अपनी पूँछ हिलाते रहता । भिखारी कभी उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरता कभी उसके सिर को अपनी गोद में रखकर उसे सहलाता ।
एक दिन भिखारी अपनी नित्य दिनचर्यानुसार भीख माँगने के लिए बाजार में गया । भीख माँगते माँगते उस स्थान तक जा पहुँचा जहाँ रोज कालू कुत्ते और उसकी मुलाकात होती थी । लेकिन आज उसे कालू कहीं नजर नहीं आ रहा था, उसे लगा थोड़ी बहुत देर में आ जाएगा । कालू का इंतजार करते करते सुबह से दोपहर हो गई लेकिन कालू का कोई अता-पता नहीं था। एक कालू ही तो था जिससे वह अपने दिल की बातें किया करता था । अब तो भिखारी से न रहा गया वह कालू को ढ़ूँढ़ने के लिए इधर-उधर चला गया । कालू को ढ़ूँढ़ते -ढ़ूँढ़ते उसे काफी देर हो गई थी लेकिन कालू का पता नहीं चला वह थक हार कर एक दुकान के सामने जा बैठा । जिस दुकान के सामने वह बैठा था उसकी बगल में एक खाली प्लॉट था जिसमें लोगों से कूड़ा करकट फेंक रखा था । भिखारी निराश -हताश वहाँ बैठा हुआ था कि अचानक उसकी नजर खाली पड़े प्लॉट पर गई उसने देखा कि वहाँ पर कोई कुत्ता सोया हुआ है वह बैसाखियों के सहारे वहाँ तक गया वहाँ जाकर देखा कि कालू लहु-लुहान पड़ा है अभी उसकी साँसे चल रही है । उसने कालू को आवाज़ दी .. उसकी आवाज सुनकर कालू ने उठने की कोशिश की लेकिन उठ न सका किसी गाड़ी वाले ने उसकी आगे की दोनों टाँगें कुचल दी थी । सड़क पर चलनेवाले लोगों ने उसे सड़क से उठाकर इस खाली पड़े प्लॉट में फेंक दिया था। यह देखकर भिखारी की आँखों में आँसू भर आए उसने कालू को धीरे -धीरे एक तरफ खिसकाया और अपने फटे हुए कपड़ों में से एक कपड़ा निकालकर उसके दोनों पैरों पर बाध दिया । कपड़ा बांधने के बाद पास ही एक नल लगा हुआ था वहाँ से पानी लाकर उसके मुँह पर डाला । मुँह पर पानी पड़ने से कालू को कुछ राहत महसूस हुई उसने अपनी बंद होती आँखें खोल ली। वह उसके पास बैठ गया उसके सिर पर हाथ फेरने लगा पैरों की पट्टी को कसकर बाँधने के बाद वह बैसाखियों के सहारे धीरे- धीरे चलता हुआ एक किराने की दुकान पर गया वहाँ से हल्दी ,फिटकरी और कुछ ब्रेड लेकर आया। ब्रेड कालू के सामने रखते हुए बोला – ‘ये ले थोड़ा कुछ खा ले ।’ लेकिन आज कालू ने उन ब्रेडों को मुँह तक नहीं लगाया । आज सुबह से उसने भी न कुछ खाया था न पानी की एक बूँद पी थी । फिटकरी को कूटकर पानी में ड़ाल लिया और पास ही चायवाले की दुकान पर जाकर पानी को गरम करवा लाया । फिटकरी के पानी से उसने कालू की दोनों टाँगों को सेका । फिटकरी के पानी से सेकने के बाद कालू के घावों पर हल्दी डाल दी । हल्दी के पड़ते ही कालू दर्द से तिलमिला उठा .. …कराहने लगा . बेजुबान बेचारा अपना दर्द किसी से कह भी नहीं सकता , कालू को इस प्रकार तड़पता देखकर उसकी आँखें भर आई…….। मन ही मन वह उस गाड़ीवाले को कोसने लगा जिसने कालू की यह हालत की है।
यह सब देखकर उसे लग रहा था कि कालू शायद अब ज्यादा दिन जीवित नहीं रहेगा । उसने कालू के पैरों की पट्टी को कसकर बाँध दिया था । धीरे-धीरे शाम होने लगी । जैसे-जैसे शाम होने लगी भिखारी को कालू की चिंता ज्यादा सताने लगी कि अब वह क्या करे ? कालू को वह उठाकर अपने साथ झोपड़ी में भी नहीं ले जा सकता ।यही सोचते-सोचते रात का अँधेरा गहराने लगा बाज़ार में दुकानदार अपनी-अपनी दुकाने बंद करके अपने-अपने घर जाने लगे थे। वह वही कालू के पास ही बैठा था। कालू को इस हालत में छोड़कर जाने के लिए उसका दिल कतई तैयार नहीं था । उसे डर था कि कही दूसरे कुत्ते आकर उसे मार न डालें ...। उसने कालू के पास रहने का फैसला किया और वही कालू के पास एक मैला सा कपड़ा बिछाकर लेट गया। सुबह होते ही उसने कालू को देखा अभी उसे थोड़ा आराम लग रहा था। यह देखकर उसके मन में एक आस जगी कि अब शायद कालू बच जाएगा। वह कई दिनों तक अपनी झोपड़ी में भी नहीं गया वहीं आस-पास के मोहल्लों से कुछ भीख माँग लाता और कालू के पास आकर बैठ जाता । जो कुछ खाने के लिए मिलता उसमें से आधा कालू के सामने रख देता और आधा स्वयं खा लेता। वह रोज कालू के लिए फिटकरी का गरम पानी करवाकर लाता ,उसकी सिकाई करता, सिकाई करने के पश्चात हल्दी लगाता उसके और अपने खाने के लिए वही पर कुछ ले आता दोनों साथ ही खाते ..। धीरे- धीरे कालू की स्थिति में सुधार होने लगा उसकी टाँगे पूरी तरह तो ठीक न हो सकी पर हाँ अब वह इस लायक हो चुका था कि थोड़ा बहुत खड़ा हो सके । लँगड़ाता -लँगड़ाता धीरे -धीरे चलने फिरने भी लगा था। भिखारी उसे अपने साथ अपनी झोपड़ी में ले आया था। वह रोज सुबह उठता और अपना भीख माँगने चला जाता। अब कालू उसकी झोपड़ी के बाहर ही बैठा रहता है । जब भिखारी भीख माँगकर लौट आता है तब दोनों एक साथ खाना खाते हैं। एक दिन भिखारी ने कालू से कहा – “अब तो हम दोनों एक जैसे हो गए तू भी लँगड़ा मैं भी लँगड़ा , तेरा भी इस संसार में कोई नहीं और मेरा भी कोई नहीं ……. वाह रे ! विधाता तेरी माया ....कहते हुए उसकी आँखें भर आई ....”
बहुत मर्मस्पर्शी कहानी है। इसका शीर्षक अमूक प्रेम के बजाए मूक प्रेम होना चाहिए।
ReplyDeleteमार्मिक चित्रण ,सार्थक लेख।
ReplyDeleteशिवा जी आप के ब्लॉग पे आकर आपको पढना अच्छा लगा आशा करता हूँ की आप हमें आगे भी ऐसे गम्भीर मुद्दों से रूबरू करायेगे आपके अगले पोस्ट का इंतजार रहेगा ।
आभार ।
kahani ko abhi sarsari tour pr hi padh paya hun,
ReplyDelete“अब तो हम दोनों एक जैसे हो गए तू भी लँगड़ा मैं भी लँगड़ा , तेरा भी इस संसार में कोई नहीं और मेरा भी कोई नहीं ……. वाह रे ! विधाता तेरी माया ....कहते हुए उसकी आँखें भर आई ....”
ise sanyog kaha jay ya fir ek ittefaak ! aksar aisa hota hai.................
rochak prastuti...........
बेहद मर्मस्पर्शी कहानी……………यही मूक प्रेम होता है जिसे जानवर भी समझते है मगर इंसान नही …………इसीलिये कहते है जा के पैर ना फ़टे बिवाई वो क्या जाने पीर पराई।
ReplyDeleteसोमेश जी ,
ReplyDeleteशिव शंकर जी ,
भाकुनी जी ,
वंदना जी ,
आप सभी ने अपना कीमती समय अमुक प्रेम कहानी को दीया इस के लिय आप सभी का बहुत -बहुत धन्यवाद .
bahut hi manmohak evam marmik katha...
ReplyDeleteprem ki bhasha to sarvmamy hai .
बहुत अच्छी कहानी लिखी है
ReplyDeleteअंतिम पंक्ति में "तुझमे भी प्रेम मुझमे भी प्रेम" होना चाहिए था,
it's indeed a heart touching story..
ReplyDeleteTanmaya tiwari
I don't have words to express the goodness of your story..too good!!
ReplyDeleteShubhangi
I am really fond of your stories and poems...now!!! a great work..
ReplyDeleteregards
Radhika
कहनी बहुत पसंद आई....
ReplyDeleteबहुत ही हृदयस्पर्शी रचना।
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक
कलरव- http://mukeshmishrajnu.blogspot.com/
नवांकुर- http://www.mukeshscssjnu.blogspot.com/
http://mukeshscssjnu.blogspot.com/2011/02/blog-post.html
बहुत ही मार्मीक रचना। प्रेम तो वास्तव में बेजुबान होता है। प्रेम को अभिव्यक्ति की जरूरत नहीं होती ये तो स्वयं ही अपने आप को दर्शा देता है। बेहद प्रभावशाली।
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा रचना , बधाई स्वीकार करें .
ReplyDeleteआइये हमारे साथ उत्तरप्रदेश ब्लॉगर्स असोसिएसन पर और अपनी आवाज़ को बुलंद करें .कृपया फालोवर बनकर उत्साह वर्धन कीजिये
आप की यह कहानी पढ कर तो हमारी भी आँखें भर आई , बहुत ही मार्मिक कहानी, धन्यवाद
ReplyDeleteमूक प्रेम कहानी बहुत अच्छी है
ReplyDeleteआप ने जो कहानी लिखी है वो किसी के भी दिल को छु सकती है.
पर मैं यह जानना चाहूँगा कि ऐसी कहानेयाँ लिखने के लिए आप को प्रोत्साहन कहा से मिलता है
मुझे भी बताये मई उसे करना चाहूँगा .
संवेदनशील कहानी ॥
ReplyDeleteacchi.....samvedansheel...........bhavpurn rachana...............BADHAI
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा रचना , बधाई स्वीकार करें .
ReplyDeleteमार्मिक प्रस्तुति । कालू और भिखारी का निश्छल प्रेम अनुकरणीय है ।
ReplyDeleteसुरेन्द्र सिंह जी ,
ReplyDeleteयोगेन्द्र जी ,
तन्मय जी ,
शुभांगी जी ,
राधिका जी ,
लोकेन्द्र जी ,
मुकेश जी ,
एहसास जी ,
मिथलेश जी,
राज भाटिया जी ,
अजीत कुमार जी ,
चंद्रमौलेश्वर जी ,
सुमीत जी ,
संजय भास्कर जी,
आप सभी ने अपना कीमती समय मूक प्रेम कहानी को दीया इस के लिय आप सभी का बहुत -बहुत धन्यवाद .
achchhi kahani..
ReplyDeletethanks
Jay
मर्मस्पर्शी कहानी………
ReplyDeleteसंवेदना से भरी मार्मिक रचना....
बेहतरीन प्रस्तुबति के लिए आपको बधाई।
सुंदर लिखा आपने .....
ReplyDeleteचैतन्य का कोना पर सुंदर सफेद चमकते पेड़........
मानव और मानवेतर प्राणियों के बीच का क्या प्रेम दिखाया आपने....लाजावाब...
ReplyDeleteऔर हाँ....मुझे शिकायत है शीर्षक से.....इतना मुखर है फिर भी आपने कहा....मूक प्रेम....अरे...मज़ाक कर रहा हूँ....बढ़िया..
मार्मिक चित्रण, सार्थक लेख| धन्यवाद|
ReplyDeleteवर्षा जी ,
ReplyDeleteचैतन्य जी ,
राजेश कुमार जी ,
patali the village .
आप सभी ने अपना कीमती समय मूक प्रेम कहानी को दीया इस के लिय आप सभी का बहुत -बहुत धन्यवाद .
शिवकुमारजी ..... प्रेम के सुंदर अर्थों में पगी पंक्तियों से भरा आलेख है..... सचमुच एक सार्थक अभिव्यक्ति......
ReplyDelete-------------
चैतन्य के ब्लॉग से जुड़ने के लिए आभार
नमस्ते शिवकुमार जी
ReplyDeleteसार्थक कहानी..प्रेम का सही अर्थ समझाया आपने इस कहानी के द्वारा...
शुभकामनाएं
अनुराग अमित
मनुष्यों में इस प्रकार का प्रेम बहुत ही कम देखने को मिलता हैं..
ReplyDeleteशुभकामनाएं
अनुराग अमित
अनुराग अमित जी आप ने बिलकुल सही कहा .
ReplyDelete(मनुष्यों में इस प्रकार का प्रेम बहुत ही कम देखने को मिलता हैं.)
अपना कीमती समय मूक प्रेम कहानी को दीया इस के लिय आप सभी का बहुत -बहुत धन्यवाद .
शिवा जी इतना दर्द कहां छुपा रखा है । कभी कुछ मस्ती का भी लिखो ।
ReplyDeleteदिल भर आया ऐसा लिखा है।
शिवा जी मैने अपना कमेंट रात ९.१५ पर पोस्ट किया लेकिन समय आया सुबह ७.४९ अत: आप से अनुरोध है कि इसे सही करे ।
ReplyDeleteकुत्ते की वफादारी की कहानियाँ खूब पढ़ी हैं लेकिन मानवीय प्रेम का इतना मार्मिक चित्रम नहीं पढ़ा। भिखारी के माध्यम से ही मानवता को बुलंदी पर पहुंचाया आपने। शेष हम तो हैं ही प्लॉट पर फेंकने के लिए तैयार!...मेरी बधाई स्वीकार करें। अच्छी लगी कहानी।
ReplyDeleteसंदीप पंवार जी,मेरे सिस्टम में कुछ टाइम सेटिंग प्रॉब्लम है .
ReplyDeleteदेवेन्द्र पाण्डेय जी,
आप लोगों ने अपना कीमती समय मूक प्रेम कहानी को दीया इस के लिय आपका बहुत -बहुत धन्यवाद .
samvedna ke swar yahan mujhe prachur matra mein dikhe.kafi acchi lekhni.kavitayen bhi acchi hain.kahani aur kavita lekhan dono me kushal hain aap jo virle hi hota hai.
ReplyDeletemere chitron ko sarahne ke liye dhanyavaad..meri kavitayen bhi www.niharkhan.blogspot.com pe hain.samay mile to dekhiyega.
बहुत ही बढ़िया रचना लगी,बधाई
ReplyDeleteनारी स्वतंत्रता के मायने
बहुत मर्मस्पर्शी कहानी है।
ReplyDeleteइतनी सुंदर मार्मिक कहानी के लिए साधुवाद!
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग http://samkalinkathayatra.blogspot.com/ पर आपका स्वागत है!
कहानी हृदयस्पर्शी है।
ReplyDeleteक्या रुलाने के लिये बुलाया था अपने ब्लॉग पर. मैं नहीं आऊँगा अब कभी यहाँ.
ReplyDeletemarmsparshi rachna.........sach me rula diya aapne!
ReplyDeleteवाह वाह... मन से निकल गयी.... आह..
ReplyDeleteबहुत मार्मिक. मेरे पास भी एक कुत्ता है.. मन को छू गया आपका लेख. कुत्ते का प्रेम उसे रखने वाला सकझ सकता है.
बहुत बढिया कहानी प्रस्तुत की है आपने । मेरी शुभकामनाएँ स्वीकार करें । धन्यवाद सहित...
ReplyDeleteविजुय जी ,
ReplyDeleteमिथलेश जी ,
परमजीत सिंह ,
शारदा सिंह जी,
अनुराग शर्मा जी (स्मार्ट इंडिया ) ,
प्रतुल जी ,
मुकेश जी ,
जयंत जी ,
आप लोगों ने अपना कीमती समय मूक प्रेम कहानी को दीया इस के लिय आपका बहुत -बहुत धन्यवाद .
प्रतुल जी मेरा मकसद आप को रुलाने का बुल्कुल नहीं था , लेकिन मेने जो यथार्थ में देखा उसे ही अपनी कलम से लिखने की कोशिश की ..
सुशील बाकलीवाल
ReplyDeleteआपने अपना कीमती समय मूक प्रेम कहानी को दीया इस के लिय आपका बहुत -बहुत धन्यवाद .
हैलो शिवकुमार जी,
ReplyDeleteमैंने आपके ब्लॉग को देखा, रोमांचक है। अभी पढ़ रहा हूँ। फिर संवाद का सिलसिला जारी करेगें। एक कल्पना के साथ।
आपका पाठक
लख्मी
aapki kahani bahut pasand aayi..
ReplyDeleteThanks
Upendra
शिवकुमार जी,
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आने के लिए हार्दिक धन्यवाद!
एक विनम्र ध्यानाकर्षण...
मेरा नाम ‘शरद’ है, ‘शारदा’ नहीं...
सुंदर कहानी
ReplyDeleteशिवकुमार जी,इस कहानी के जरिए, आपने दिल जीत लिया सभी पशु-प्रेमियों का.......धन्यवाद......
ReplyDeleteक्या आज भी इंसानों में ऐसा प्रेम बचा हुआ है ?
ReplyDeleteबेहद मर्मस्पर्शी कहानी,यही मूक प्रेम होता है| शुभकामनाएँ ...
ReplyDeleteशिवा जी
ReplyDeleteआप के ब्लॉग पे आकर आपको पढना अच्छा लगा आशा करता हूँ की आप हमें आगे भी ऐसे गम्भीर मुद्दों से रूबरू करायेगे आपके अगले पोस्ट का इंतजार रहेगा ।
बहुत ही मार्मिक कहानी, धन्यवाद
ReplyDeletekas aadmi main aaisa prem ho--
jai baba banaras----
Achchhi kahani sirji,
ReplyDeletesweet n short
:-)
Thanks
Shailesh
मार्मिक!!!
ReplyDeleteआशीष
लक्ष्मी जी ,
ReplyDeleteउपेन्द्र जी ,
डॉ. शरद जी ,
जगदीश्वर जी ,
पुनीत जी ,
राजे जी ,
सुनील कुमार जी ,
चंदू जी ,
पूर्वीय जी ,
शैलेश जी ,
आशीष जी
आप सभी ने मूक प्रेम कहानी को पढ़ा उसे सराहा आप सभी का बहुत -बहुत धन्यवाद् .
marmik....
ReplyDeletekhoob likho bhai.............interesting.........
sadar
यह रचना ब्लॉग जगत में छपी हाल की रचनाओं में से सबसे उत्कृष्ट है ! संवेदनशीलता में लगता है सबसे आगे हो और अगर यह सच है तो लोग बहुत कष्ट देंगे ! हार्दिक शुभकामनायें !!
ReplyDeleteइंसान के सबसे प्यारे इन मित्रों की हालत अक्सर दयनीय है ...पढ़िए यह लेख
http://satish-saxena.blogspot.com/2010/05/blog-post_13.html
Bade Bhaiya ...
ReplyDeleteaapne to ankhe hi bhar di.
padhane se pahle laga rachna bahut badi hai..
par padhane lage to laga aur lambi honi chahiye thi.
dil ko chhuti hui marmik rachna.
Badhai swikare.
सतीश जी ,रवि जी
ReplyDeleteआप लोगों ने मूक प्रेम कहानी पढने के लिये अपना कीमती समय दिया , आप लोगों का बहुत -बहुत धन्यवाद् .
सतीश जी आपके के द्वारा भेजे लिंक पर आपकी रचना पढी, रचना बहुत ही मार्मिक है .
लेकिन कमेन्ट नहीं जा रहा है ...?
बहुत अच्छी कहानी लिखी है
ReplyDeleteकिसी को भी द्रवित कर जाये ये कहानी तो
ReplyDeletemarmsparshi rachna.........!
ReplyDeleteIt's indeed a touching story....aisi hi kahaniyon ka sangrh kar ke ek kitaab likh daaliye...best wishes.
ReplyDeleteमार्मिक चित्रण ,सार्थक लेख।
ReplyDeleteशिवा जी आप के ब्लॉग पे आकर आपको पढना अच्छा लगा
शिव जी ,
ReplyDeleteआज के समय में मनुष्य के आपसी संबंधों में भी दरारें पड़ रहीं हैं| ऐसी स्थिती में अगर कोइ जानवरों से इतना प्यार करता है तो वह सचमुच सम्मान का पात्र है|
आपकी कहानी `मूक प्रेम' संवेदनशील और हृदयस्पर्शी है|
बधाई|