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Thursday, March 25, 2010

आज के शिक्षक और शिक्षा के बदलते संदर्भ

आज के शिक्षक और शिक्षा के बदलते संदर्भ

मानव जीवन में शिक्षा का विशेष महत्त्व है। शिक्षा ही तो है जो मानव को यथार्थ रुप में मानव बनाती है। शिक्षा के बिना मनुष्य जीवन पशु तुल्य ही होता । मानव और पशु में यही अंतर है कि मानव शिक्षा के द्वारा ही अपने को उन्नति के शिखर पर ला सका है। मानव शिक्षा ग्रहण करके शिक्षा प्रचार-प्रसार करता है किन्तु पशु ऐसा नहीं कर सकते । मनुष्य जब से जन्म लेता है और जब तक जीता है कुछ न कुछ सीखता है और सिखाता है ।

ज्ञान वो दीपक है जो मनुष्य को अंधकार रुपी संकट में सहारा देता है। मनुष्य का स्वभाव है कि ज्यों -ज्यों उसकी आयु बढ़ती जाती है ,त्यों -त्यों वह अनुकरण के द्वारा अनेक बातें सीखता जाता है । जब शिशु इस संसार में आता है धीरे-धीरे चलना सीखता है ,बोलना सीखता है ,यद्यपि बच्चे को यह ज्ञान नहीं होता कि वह सीख रहा है फिर भी उस का सांसारिक ज्ञान बढ़ता चला जाता है।


मनुष्य जीवन की सबसे अधिक मधुर तथा सुनहरी अवस्था विद्यार्थी जीवन ही होता है । विद्यार्थी जीवन ही सारे जीवन की नीव मानी जाती है ।एक चतुर कारीगर बहुत ही सावधान तथा प्रयत्नशील रहता है कि वह जिस मकान का निर्माण कर रहा है कहीं उस की नींव कमजोर न रह जाए । नीव दृड़ होने पर ही मकान की मजबूती नापी जा सकती है। जब नींव मजबूत होगी तब ही मकान धूप -छांव, आँधी पानी और भूकंप के वेग को सह सकता है । इसी प्रकार बुद्धिमान व्यक्ति अपने जीवन की नींव को सुदृढ़ बनाने के लिए सावधानी से यत्न करता है।


भलि प्रकार विद्या ग्रहण करना विद्यार्थी का प्रमुख कर्तव्य होना चाहिए। विद्यार्थी का कर्तव्य है कि वह अपने शरीर बुद्धि ,मस्तिष्क मन और आत्मा के विकास के लिए पूरा -पूरा यत्न करे । अनुशासन प्रियता, नियमितता समय पर काम करना, उदारता ,दूसरों की सहयता करना , सच्ची मित्रता ,पुरुषार्थ, सत्यवादिता ,नीतिज्ञता ,देश भक्ति ,विनोद-प्रियता आदि गुणों से विद्यार्थी का जीवन सोने के समान निखर उठता है। उसी प्रकार उसकी कड़ी मेहनत से उस का भविष्य उज्जवल हो जाता है। जिस प्रकार सोने की सत्यता को पहचानने के लिए उसे आग में जलाया जाता है ,तब जाकर सोना अपने सच्चें आकार को पाता है। उसी प्रकार एक सच्चे विद्यार्थी को अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कठिन परिश्रम रूपी आग में जलना ही पड़ता है। किन्तु जिस प्रकार हम उन्नती की ओर बढ़ रहे हैं , हमारी शिक्षा में भी नित नए-नए परिवर्तन आते जा रहे हैं। एक समय था कि विद्यार्थियों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए गुरु के आश्रम में जाना पड़ता था किन्तु आज की शिक्षा पद्दति में यह बात नहीं आज शिक्षा मात्र धन कमाने के केन्द्र बनते जा रहे हैं । आज जिस प्रकार शिक्षा को कठपुतली की तरह प्रयोग में लाया जा रहा है इसकी कल्पना शायद किसी ने न की होगी । यह बात सही है कि हमें शिक्षा में नए-नए परिवर्तन करते रहना चाहिए किन्तु हमें इस बात को भी नहीं भूलना चाहिए कि हमें आधुनिक शिक्षा के प्रयोग के साथ - साथ अपनी सभ्यता और संस्कृति को नहीं भूलना चाहिए। यह सही है कि हमें ऐसी शिक्षा को ग्रहण करना चाहिए जिससे हमें भविष्य में उद्योग आसानी से उपलब्ध हो सकें।


आज बड़े दुर्भाग्य से कहना पड़ता है कि विद्या एक व्यापर का बड़ा केन्द्र बन चुकी है। विद्यालय एक केन्द्र की इमारत की तरह हो गई है और अध्यापक एक व्यापारी के समान बनते जा रहे हैं । जिस प्रकार समाज दिन -प्रतिदिन उन्नति कर रहा है । आज एक बच्चे को विद्यालय में प्रवेश दिलाने के लिए माँ-बाप को कितनी ही समस्याओं का सामना करना पड़ता है, और यदि विद्यालय नामी है तब तो माँ-बाप को विद्यालय के दसो चक्कर काटने पड़ जाते हैं । आज बच्चे विद्यालय में पढ़ते तो हैं किन्तु उनकी पढ़ाई पूरी नहीं हो पाती क्यों क्योंकि वहां के शिक्षक -शिक्षिकाएं उन्हें ट्यूशन की शिक्षा देते हैं अर्थात विद्यालय में फीस जमा करो फिर ट¬ूशन की फीस अदा करो । आज इसी ट्यूशन की लक ने अधिकांश शिक्षको -शिक्षिकाओं को व्यापरी बना कर रख दिया है । आज जब शिक्षक स्कूल या कॉलेज में किसी विषय की पूर्ण जानकारी विद्यार्थियों को न देकर कहता है कि आप ट्यूशन आ जाना वहीं पर सब परेशानी का हल कर देंगे । आज क्या होता जा रहा है हमारी सभ्यता को ? कहाँ थे हम और कहाँ आ गये ?


लेकिन हमें सिक्के के एक ही पहलू को नहीं देखना चाहिए , सिक्के का एक दूसरा पहलू भी है । यदि शिक्षक किसी विद्यार्थी को ट्यूशन पढ़ाता है तो क्या गलत करता है ? क्या समाज के किसी भी वर्ग ने शिक्षक की आर्थिक स्थिति की ओर ध्यान दिया है ? नहीं … शिक्षक का भी परिवार होता है उसके भी अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने का अधिकार है । यदि उसे अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलानी है तो पैसों की जरुरत पड़ेगी ही वे पैसे कहाँ से आएं ? शिक्षक अपने बच्चों को सम्मान के साथ शिक्षा दिला सके इसके लिए उसे ट्यूशन का सहारा लेना पड़ता है । यह बात भी सही है कि कुछ लोग इस सम्मानजनक पद की गरिमा को अपमानित कर रहे है किन्तु एक के किए की सजा सब को देना यह तो सही बात नहीं है। आज विद्यालयों के कर्तव्य और दायित्व के प्रति देशभर के अधिकांश लोगों की धारणाएं बदल रही हैं । इन बदलती धारणाओं का कारण है आज की शिक्षा पद्धति और अध्यापकों की कड़ी मेहनत जिसके कारण विद्यालय की यथार्थ तस्वीर समाज के सामने आ जाती है। आज की शिक्षा जहाँ एक तरफ छात्रों से कमरतोड़ मेहनत करवाती है वहीं उनमें नया जोश और उत्साह भी भरती है। आज बदलती शिक्षा ने किशोरों मे एक नया जोश भर दिया है आज उनमें कुछ कर दिखाने का जोश पनप रहा है । उनमें देश के प्रति कुछ करने की लगन पनप रही है । यह सब तभी तक चल सकता है जब शिक्षको को उनकी योग्यता के अनुसार कार्य करने के अवसर प्राप्त होते रहेंगें और उन्हें उनकी योग्यता के आधार पर ही वेतन मिलता रहेगा । जब शिक्षक को अपनी नौकरी के न खोने और वेतन की चिंता नहीं रहेगी तभी वह अपने विद्यार्थियों को निÏश्चत होकर शिक्षा प्रदान कर सकेगा, तभी वह नवयुवको का सही मार्गदर्शन कर सकेगा। यदि समाज मे शिक्षक उन्नत रहेंगे तभी समाज उन्नत बन सकेगा और समाज की उन्नती देश की उन्नती होगी ।

Monday, March 22, 2010

रहीम के दोहे

1. एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अगाय॥

भावार्थ :- प्रस्तुत दोहे में रहीम ने मनुष्य की ईश्वर के प्रति भक्ति भाव को अपने इस दोहे के माध्यम से अभिव्यक्त किया है कि यदि मनुष्य एक ही ईश्वर अर्थात परब्रह्म की उपासना करे तो उसके सभी मनोरथ पूरे हो सकते हैं। यदि वह अपने आप को और अपने मन को स्थिर न रखते हुए कभी किसी देवी-देवता तो कभी किसी देवी - देवता को पूजेगा तो उसकी मनोकामना कभी पूरी नहीं हो पाएगी और वह व्यर्थ ही दुखी रहेगा, इस तरह उसका कल्याण भी नही होगा।

यह सब उसी प्रकार है जैसे कोई माली पेड़ की जड़ को सीचता है तो वह पेड़ फलता - फूलता है । यदि माली पेड़ की जड़ के स्थान पर उसकी पत्तियों , डालियों, फूलों की पंखुड़ियों आदि को अलग-अलग सींचता रहेगा तो एक दिन वह पेड़ सूख जाएगा, नष्ट हो जाएगा । यहाँ कहने का तात्पर्य यह है कि हमें सदैव मूल को ही सींचना चाहिए तभी सही फल की प्राप्ति हो पाएगी।

2.रहिमन वे नर मर चुके, जे कछु माँगन जाहिं ।
उनते पहले वे मुए, जिन मुख निकसत नाहिं।।

भावार्थ: - रहीम इस दोहे के माध्यम से हमें कह रहे हैं कि वे लोग जो किसी से कुछ माँगने जाते हैं , उन्हे रहीम मरे हुए के समान मानते हैं। लेकिन माँगने वाले व्यक्ति से पहले वे लोग मर चुके होते हैं जिनके मुख से याचक को देने के लिए कुछ नहीं निकलता । अर्थात माँगना तो बुरी बात है ही लेकिन उससे भी बुरी बात तो यह है कि कोई आपसे कुछ माँग रहा है और आप उसे दुत्कार कर भगा देते हो। वे लोग तो उस व्यक्ति से पहले ही मर चुके होते हैं जिनके मुख से ना निकलती है।

3.रहिमन पानी राखिए,बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरे , मोती, मानुष , चून ।।


भावार्थ :- प्रस्तुत दोहे में रहीम ने पानी शब्द का तीन बार प्रयोग किया है । यहाँ पानी शब्द के तीन अलग-अलग अर्थ स्पष्ट होते हैं । पानी( जल का रूप), पानी (आभा, चमक),पानी (मान,इज्जत) ।
रहीम कहते हैं कि पानी संसार में प्रत्येक जीव के लिए अतिआवश्यक है। बिना पानी के संसार में जीवन ही नहीं होगा । इसलिए पानी का जीवन व प्रकृति के सभी पदार्थों के लिए वहुत महत्त्व है। मनुष्य को पानी रखना चाहिए अर्थात अपनी मान-मर्यादा,प्रतिष्ठा को सदैव बनाए रखना चाहिए। यदि उसकी कोई प्रतिष्ठा ही नही होगी तो उसका जीवन इस संसार में बेकार ही है। जैसे बिना चमक के मोती की कोई कीमत नही होती और ना ही ऐसे मोती अर्थात बिना चमक के मोती को कोई खरीदना चाहता है । ठीक उसी प्रकार बिना पानी के चून(आटा ) का कोई महत्त्व नही रह जाता क्योकि कोई भी व्यक्ति सूखा आटा नहीं खा सकता इसलिए बिना पानी के आटा भी किसी काम का नहीं रह जाता ।


4.जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।
बारे उजियारो करै, बढ़े अँधेरो होय ।।

भावार्थ इस दोहे का माध्यम से रहीम हमें दीपक और सुपुत्रों की जानकारी दे रहे हैं। रहीम कहते है कि सुपुत्र और दीपक की स्थिति एक समान होती है। जब दीपक जलता है तो उसके जलने से चारों तरफ प्रकाश ही प्रकाश फैल जाता है और जब बुझ जाता है तो चारो तरफ अंधेरा छा जाता है। ठीक उसी प्रकार जिस घर में सुपुत्र होता है , उस घर की कीर्ती यश चारो फैलता है और जब सुपुत्र उस घर या कुल से चला जाता है तो वह घर सूना -सूना हो जाता है। दीपक और सुपुत्र अपने कार्यों से संसार में चारों तरफ अपनी कीर्ती स्थापित करते हैं।



5. तरुवर फल नहिं खात है,सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित ,संपति सँचहि सुजान।।


भावार्थ रहीम इस दोहे के माध्यम से हमें परोपकारी व्यक्तियों के बारे में बता रहे हैं। रहीम कहते हैं कि इस संसार में स्वार्थ के लिए तो लगभग सभी लोग जीवित रहते हैं । किन्तु जो लोग दूसरों के लिए जीते है वे ही महान हैं। जो लोग परोपकार के लिए जीवित रहते हैं उनसे बड़ा महान इस संसार में और कोई नहीं। मानव धर्म भी हमें यही सिखाता है कि हमें परोपकार करना चाहिए।

रहीम हमें बताते हैं कि सज्जन मानव ही इस संसार में परोपकार के लिए जीवित रहते हैं। इस परोपकार के लिए उन्होंने हमे बताया है कि जिस प्रकार पेड़ कभी भी अपना स्वयं का फल नहीं खाता और सरोवर कभी अपना स्वयं का जल नहीं पीता । ये तो सदैव दूसरो के हित के लिए ही कार्य करते हैं यही है निस्वार्थ परोपकार ये सदैव परोपकार के लिए ही जीवित रहते हैं और सदैव परोपकार के लिए ही संपदा को इकट्ठा करते हैं। इसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति अपनी ही स्वार्थसिद्धि के लिए आय का थोड़ा - बहुत अंश दान देता है इसमें कोन सी बड़ाई की बात है । बड़ाई की बात तो वह है जो निस्वार्थ परोपकार के लिए ही जीवित रहता हो।


6. टूटे सुजन मनाइए , जो टूटे सौ बार।
रहिमन फिरि-फिरि पोहिए, टूटे मुक्ताहार।।


भावार्थ:- रहीम इस दोहे के माध्यम से हमें प्रियजनों के महत्त्व को बता रहे हैं। रहीम कहते हैं कि जब भी कोई हमारा अपना प्रियजन हमसे रूठ जाए तो उसे मना लेना चाहिए, भले ही हमें उसे सौ बार ही क्यों ना मनाना पड़े ,प्रियजन को अवश्य ही मना लेना चाहिए। रहीम जी प्रियजनो का उदाहरण मोतियों से देते हुए बताते हैं कि जिस प्रकार टूटे हुए मोतियों की माला के बार-बार टूटने पर भी हर बार मोतियों को पिरोकर हार (माला) बना लिया जाता है। यहाँ कहने का तात्पर्य यह है कि व्यक्ति की शोभा उसके प्रियजनों से ही होती है। जिस प्रकार हार गले में पहनने के बाद ही शुशोभित लगता है।


7. जे गरीब सों हित करें ,ते रहीम बड़ लोग।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग।।


भावार्थ :- रहीम ने इस दोहे के माध्यम से हमें बड़े व महान लोगों के विषय में बताने का प्रयास किया है। रहीम कहते हैं कि जो व्यक्ति गरीवों के हितों का ख्याल करता है या उनकी हर संभव सहायता करता है वही महान या बड़ा होता है , जो व्यक्ति केवल अपना ही स्वार्थ ( भला) सोचते हैं ऐसे लोग स्वार्थी होते हैं। ऐसे लोग कभी भी किसी का भला नहीं कर सकते वे तो सदैव अपने स्वार्थों की सिद्धीके लिए ही सोचते रहते हैं वे कभी किसी की भलाई के बारे में सोचते ही नहीं ।

यहाँ पर रहीम जी ने कृष्ण और सुदामा का उदाहरण देते हुए बताया है कि सुदामा एक गरीब ब्रााहृण था । उसके पास धन-दौलत नहीं थी । जबकि श्रीकृष्ण द्वारिका के राजा थे वे तो सदा से ही वैभवशाली थे। दोनो की मित्रता विद्यार्थी जीवन गुरु सांदीपन के यहां हुई थी दोनो ने साथ-साथ शिक्षा ग्रहण की थी । दोनों में घनिष्ट मित्रता थी , श्रीकृष्ण ने अपने मित्र सुदामा की सहायता कर उसे भी ऐश्वर्य प्रादान कर अपने जैसा बना लिया था। इसीलिए तो वे आज भी महान व पूजनीय हैं। दोनों की मित्रता के गुणगान आज भी बड़े आदर के साथ किए जाते हैं।



8. रहिमन ओछे नरन ते, भलो बैर ना प्रीति।
काटे-चाटे स्वान के, दुहूँ भाँति बिपरीति।।


भावार्थ :- इस दोहे में रहीम ने दुष्टजनों के बारे में बताने का प्रयास किया है । रहीम जी कहते हैं कि दुष्टजनों किसी भी प्रकार का व्यवहार उचित नहीं होता चाहे वह मित्रता हो या शत्रुता। इसके लिए उन्होंने कुत्ते( श्वान) का उदाहरण देते हुए कहा कि कुत्ता चाहे क्रोध से काटे या फिर प्रेम से हमारे तलवे चाटे , उसकी ये दोनों ही क्रियाएं हमारे लिए कष्टप्रद होती हैं। इसीलिए वे कहते हैं कि हमें इस प्रकार के लोगों से सदैव दूरी बनाए रखनी चाहिए। इस प्रकार की दूरी से दोनो का ही भला होगा ।

9. जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चंदन विष ब्यापत नहीं , लिपटे रहत भुजंग।।


भावार्थ : - इस दोहे में रहीम ने सज्जन लोगों की प्रबल इच्छा शक्ति व सज्जनता के महत्त्व को बताने का प्रयास किया है, साथ ही दुष्टों के व्यवहार को भी अभिव्यक्त किया है । रहीम कहते हैं कि सज्जन व्यक्ति को कभी भी अपनी सज्जनता नहीं छोड़नी चाहिए । उन्होने सर्प और चंदन के वृक्ष के माध्यम से हमें यह बात स्पष्ट करते हुए बताया है कि चंदन के वृक्ष पर विषैले सर्प लिपटे हुए रहते हैं । सर्प चंदन के वृक्ष पर अपना विष छोड़ते हैं किन्तु चंदन के वृक्ष पर उस विष का कोई प्रभाव नहीं पड़ता । वह तो अपने गुणों अर्थात सुगंध व शीतलता का कभी त्याग नहीं करता । परंतु सर्प चंदन वृक्ष का साथ पाकर भी अपना स्वभान नहीं छोड़ता । अर्थात दुष्ट व्यक्ति सज्जन व्यक्ति के साथ कितने भी दिन क्यों न रह ले वह कभी भी अपने दुष्टता के स्वभाव को नहीं बदल सकता।




10. रहिमन जिह्वा बाबरी, कह गई सरग -पताल।
आपु तु कहि भीतर गई, जूती खात कपाल।।


भावार्थ - इस दोहे में रहीम सोच-समझकर बोलने के महत्त्व को बता रहे हैं। रहीम कहते हैं कि व्यक्ति को सदैव सोच-समझकर ही बोलना चाहिए । उलटा -सीधा या कड़वा नहीं बोलना चाहिए ,कड़वा बोलने का परिणाम सदैव दुखद ही होता है। इस बात को स्पष्ट रूप के बताते हुए कहते है जीभ तो बावली है, कुछ भी उलटा-साधा, अंट-शंट बोलकर मुख के अंदर जाकर छिप जाती है । लेकिन उसके कटु वचनों का परिणाम सिर को भुगतना पड़ता है। लोग सिर पर ही जूतियाँ बरसाते हैं। जीभ का कोई कुछ भी नहीं बिगाड़ पाते । इसलिए व्यक्ति को सदैव संयमित वाणी से ही बोलना चाहिए। सदैव सोच-समझकर ही बोलना चाहिए ।

Friday, March 12, 2010

हत्यारा

अच्छा माँ मैं खेत कू जा रह्रो हूँ।
रामू की आवाज सुनकर माँ ने आवाज लगाते हुए कहा
“अरे भइया कुछ खा लेतो , खाली पेट खेतन पर काम करैगो।”
“ना माँ रोटी तू खेतन पर ही ले अइयों वहीं खा लुंगा”- कहकर रामू बैलों की जोडी को खूंटे से खोलकर चलने लगा तो माँ एक गिलास में छाछ और गुड़ की डरी लेकर आ गई। रामू माँ के हाथ से छाछ लेकर पी लेता है । जैसे सी वह चलने लगता है वैसे ही उसकी छोटी बहन शीला उसके पास आकर उसके साथ चलने का आग्रह करने लगती है । रामू शीला से कहता है कि आज वह उसके साथ न चले बल्कि घर पर ही रहकर माँ के कामों में उसका हाथ बटाए । बैलों को हांकता हुआ वह खेतों की तरफ चला गया । आज न जाने क्यों घर से निकते ही उसका जी कुछ घबरा रहा था , किसी अनहोनी की आशंका सी महसूस होने लगी । वह बैलों को हांकता हुआ खेतों तक जा पहुँचा, बैलों को शीसम के पेड़ के नीचें बाँधकर वह खेतो का पहरा लगाने चला गया । खेत में मक्का लहरा रही है। खेत में पानी लगाना है और एक -दो खेत में मक्का की नराई करनी है । आज रामू खेत पर कुछ जल्दी ही आ गया था , पहरा लगाने के बाद खेत के कामों में लग गया । खेत पर काम करने वाले मजदूर कुछ देर से आए । मजदूरों के आने से पहले रामू ने मक्का के खेत की एक क्यारी नरा दी थी । मजदूरों के आने के बाद वह उस खेत को देखने चला गया जिस खेत में पानी चल रहा था । एक क्यारी भरी , दूसरी क्यारी भरी, तीसरी भरी इसी तरह पूरे खेत की मक्का को पानी लगा दिया था । घर से आए हुए उसे काफी देरी हो चुकी थी अभी तक उसकी माँ और बहनें खाना लेकर नहीं आर्इं थी । समय धीरे-धीरे बीतता जा रहा था , समय के साथ- साथ रामू की भूख भी बढ़ती जा रही थी । आज वह बिना कुछ खाए ही खेतों पर चला आया था । खाना लाने में इतनी देरी कभी नहीं हुई थी।खाने का इन्ताजार करते -करते सुबह से दोपहर हो चकी थी किन्तु माँ अभी तक खाना लेकर नहीं आई थी । वह खेतों में काम कर रहा था किन्तु उसकी नजरे गाँव से आने वाले रास्ते पर ही टिकी हुई थी । बार -बार वह यही सोच रहा था कि माँ अभी तक खाना लेकर क्यों नहीं आयी । जैसे -जैसे दिन बढता जा रहा था रामू की भूख बढ़ती जा रही थी। यहाँ तक कि खेत पर आए मजदूर अपने दोपर का भोजन खा-पीकर आराम करने के लिए पेड़ों की छाँव में लेट गए थे, किन्तु रामू को विश्राम कहां वह तो गाँव से आने वाली सड़क पर ही निगाहें लगाए बैठा था । रह -रह कर उसे माँ पर क्रोध आ रहा था कि अगर माँ किसी काम की वजह से नहीं आ सकी तो कम से कम बहन को ही खाना लेकर भेज देती थी। रामू पेड़ के नीचे बैठा सोच ही रहा था कि उसकी नजर गाँव से आनेवाली सड़क पर पड़ी एक आदमी दौड़ा हुआ आ रहा था उसने गौर से देखा वह आदमी उसी तरफ दौड़ा हुआ आ रहा था । रामू के पास आकर हाँफते - हाँफते बोला - रामू भैया गजब हो गया । गजब होने की बात सुनकर रामू का दिल बैठा जा रहा था । उसने पूछा “हरिया आखिर बात क्या है? क्या गजब हो गया ?, सब ठीक तो है ? तुम इतने घबराए हुए क्यों हो? कुछ बोलते क्यों नहीं ?”हरिया ने हाँफते हुए कहा कि आज सुबह जब उसकी माँ और छोटी बहन नदी पारवाले खेतो पर उसके पिता को रोटी देने गई तो किसी ने उन दोनों का कत्ल कर दिया है। माँ और बहन के कत्ल होने की खबर सुनकर उसके पैरों तले जमीन खिसक गयी। उसकी आँखों के सामने अंधेरा छाने लगा । माँ - बेटी के कत्ल की खबर पूरे इलाके में आग की तरह फैल गई । जिसने भी कत्ल के बारे में सुना काम छोड़कर भागा चला आया । रामू जिस खेत में काम कर रहा था उस खेत से दूसरे खेत की दूरी काफी थी। खबर सुनते ही वह खेत की तरफ दौड़ा, खेत नदी के उस पार था । रामू दौड़ता जाता और रोता जाता, भागते - भागते उसे ठोकर लगी , ठोकर लगने के कारण उसके घुटनों में चोट लग गई और खून बहने लगा । उसे अपनी चोट की परवाह नहीं थी उसे तो होश ही नहीं था कि उसके पैरों से खून भी बह रहा है। माँ और बहन को याद कर रोता हुआ दौड़े जा रहा था। गिरते -पड़ते आखिर उस खेत में पहुँच गया जहाँ माँ और बहन का कत्ल हुआ था । माँ और बहन के शवों को देखकर वह सन्न रह गया उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था आखिर यह हो क्या गया ? काफी देर तक वह माँ और बहन के शवों को निहारता रहा उसे लग रहा था कि जो कुछ वह देख रहा है सब गलत है । खेत लोगों से खचाखच भरा हुआ था । एक तरफ माँ और छोटी बहन का शव पड़ा था, दूसरी तरफ परिवार के लोग शवों के पास बैठे विलाप कर रहे थे । इस भयानक चीत्कार के वातवरण में हर कोई सहमा हुआ था । माँ -बेटी के शवों को देखकर लग रहा था कि जैसे वे मरी नहीं हो,सो रही हो ,लग रहा था कि वे अभी थोड़ी देर में खड़ी होंगी और सबसे बातें करने लगेंगी, और दोनों खड़ी होकर रामू को गले से लगा लेंगी। हाय ! रे विधाता ऐसा हो न सका ?
माँ-बेटी की हत्या किसने की और क्यों की ? यह सबसे बड़ा रहस्य था। कोई कहता आतंकवादियों ने की होगी माँ-बेटी की हत्या ,कोई कहता डाकुओं ने की होगी तो कोई कुछ और जिसने भी इनकी हत्या की थी बड़ी ही बेरहमा से की थी। दोनो के गले कटे हुए थे । गले काटे भी तो किससे खेत काटनेवाले दराँत से । दोनों के गले के बीच का हिस्सा काटकर निकाल लिया था । हत्यारे को जरा भी दया नहीं आई, किस प्रकार तड़प रहीं होगी जब उसने दोनों माँ-बेटी के गलों को काटा होगा। उनके गले में खेत काटने का दरांत लगाया होगा और वह मासूम बच्ची जिसके अभी खेलने-कूदने के दिन थे उस मासूम बच्ची का कत्ल करते हुए उसके हाथ नहीं कांपे होंगे, कितनी तड़पी होंगी वह मासूम ..........ऐसा तो कोई कसाई भी नहीं करता जैसा उस हैवान ने किया था । उन शवों को देखकर वहाँ खड़े सभी के रोंगटे खड़े हो गए। रामू माँ - बहन के शवों के पास जा बैठा और माँ का सिर अपनी गोद में रखकर उससे बातें करने लगा । माँ तू यहाँ च्यों सो रही है ? देखियो तो सब जने तोय लैने के लइंयाँ आए हैं। सब लोग कह रहे हैं कि “तुम मर चुकी हैं नही ना ? ये सब लोग झूठ कह रहै हैं ना माँ ? तू तो कह रही थी कि आज तू जल्दी खेतन पै रोटी लैके आएगी ? तू मेरे लिए रोटी लाने वाली थी ना.........? तोय तो पतोए कि मैने सबेरे ते कुछ ना खायो देख न । खेतन पै तेरी रोटिन को ही इंतजार कर रह्रों और तू है कि यहाँ सोई हुई है चल अब उठ ..... माँ रोटी लैके आएगी तू तो यहाँ सो रही है चल अब उठ घर चल । अरे ! छुटकी तू क्यों सो रही है? यहाँ से उठ घर चल ? तू तो अपने भैया के संग खेतन पर चलने वाली थी ना? चल उठ खेतनपर चलते हैं, देख अब और मत सता । देखियो अम्मा (दादी)- माँ मेरी बात ना सुन रही । तू ही माँ ते घर चलने की कह । माँ तेरी बात कभी ना टारैगी, कह ना? कि उठे और घर चलै। मोय बहोत जोर की भूख लगी है ,घर चलके मोए रोटी खबाए । देखियो मैने सुबह ते कुछ ना खायो । मैं खेतन पै रोटीन को इंतजार कर रह्रो और माँ है कि उठने को नाम ही ना लै रही अम्मा कछु कह ना माँ ते, तू रो च्यों रही है । एक बार कह तो सही माँ ते गू तेरी बात कभी ना टारैगी । ए छुटकी चल तू तो उठजा, देख आज से तू जैसो कहेगी तेरो गि भईया वैसो ही करैगो तोए खेतन पै चलनो ना, तो चल अब ते मैं तोते कभी पढने की भी ना कहुँगो ना ही काई काम की कहुँगो पर तू चल तो सही, चल अब उठ देख ..............।”रामू की बातों से लग रहा था जैसे माँ-और बहन की मृत्यु देखकर वह अपना मानसिक संतुलन खो बैठा हो ,वह पागल हो गया हो । उसकी दादी ने उसे अपनी गोद में भरा और उसे सीने से लगाकर समझाया कि जिनसे वह बातें कर रहा है अब वे इस दुनिया में नहीं हैं। वे हम सब को छोड़कर जा चुकी हैं। अब वे उसकी किसी भी बात का जवाब नहीं देंगी । यह सुनकर रामू अपने होशोहवाश खो बैठा , बेहोश हो गया । गाँववालो ने पानी लाकर उसके मुँह पर डाल तो उसे होश आया , होश में आते ही माँ और बहन के शवों से लिपटकर फफक-फफकर खूब रोया .............। परिवार से सभी लोग वहाँ थे लेकिन रामू का पिता मोहनलाल वहाँ पर कहीं नजर नहीं आ रहा था । जब रामू ने देखा कि उसका पिता वहाँ नहीं है तो वह अपने पिता को खोजने लगा उसे लगा कि कही माँ-और बहन की तरह पिता का भी तो कहीं........? हड़बड़ाता हुआ वहाँ से उठा और पागलों की तरह खेत में ढूंढने लगा । उसे ऐसा करते देखकर लोगों को लगा कि रामू इस सदमें से पागल हो गया है, किन्तु जैसे ही उसने अपने पिता को आवाज लगाई तो लोगों को लगा कि वह अपने पिता को खोज रहा है।एक किसान हरिया ने बताया कि उसने मोहनलाल को गाँव की तरफ जाते हुए देखा था, हरिया ने यह भी बताया कि उसने बच्ची के रोने-चिल्लाने की आवाज सुनी थी लेकिन उसे लगा कि शायद हो सकता है माँ ने किसी बात पर थप्पड़ मार दिया होगा सो बच्ची रो रही है । यह सुनकर कुछ लोग गाँव की तरफ भागे उसके पिता को लाने के लिए । लोगों ने पूरा गाँव छान मारा किन्तु मोहनलाल का कहीं कोई अता- पता नहीं चला । एक व्यक्ति शहर से आ रहा था उसने गाँवालों को इधर-उधर भागते हुए देखा तो उसने कुछ लोगों से उस अफरा-तफरी की वजह पूछी ,पता चला कि मोहनलाल की पत्नी और बेटी का किसी ने कत्ल कर दिया है और ये लोग मोहनलाल को ही खोज रहे हैं। उसने बताया कि कुछ देर पहले ही उसने मोहन लाल को शहर की तरफ जाते हुए देखा था । मोहनलाल के शहर में होने की खबर सुनकर कुछ लोग शहर की ओर दौड़े ,वहाँ से उसे लाए । जब मोहनलाल को इस बात की जानकारी दी गई कि उसकी बेटी और पत्नी की कत्ल हो गया है तो मोहनलाल ने कहा कि उसे इस बात की कोई जानकारी ही नहीं है कि ऐसी कोई घटना घटित हुई है। कुछ समय पहले ही तो वह अपनी पत्नी और बच्ची को सही सलामत छोड़कर खेतो के लिए खाद लेने शहर गया था। जैसे ही उसने अपनी पत्नी और बेटी के शव देखे वह ज़मीन पर धम्म से गिर पड़ा और शवों से लिपटकर फूट-फूटकर रोने लगा। इधर कत्ल की बात पोलिस तक भी पहुँच चुकी थी। कत्लों की जानकारी पाकर पोलिस भी वहाँ पहुँच चुकी थी । पोलिस ने दोनों शवों को अपने कब्जे में ले लिया । वहाँ से भीड़ को बाहर भगाया और खेत को पूरी तरह सील कर दिया । खेत में खोज अभियान चलाया गया कि हत्यारे ने जिस हथियार से हत्याएं की है कहीं वे हथियार इसी खेत में तो नही छिपा रखे । पोलिस ने घर के प्रत्येक सदस्य के कत्ल के सिलसिले में पूछताछ की। पोलिस ने घरवालों से पूछा कि कही आप लोगो को किसी पर शक तो नहीं है । आप लोगों की किसी से दुश्मनी तो नहीं थी आदि बातें । घरवालों ने बताया कि उन्हें इसके बारे में कुछ नहीं पता और ना ही हमें किसी पर शक है । दोनों माँ-बेटी यहाँ मोहनलाल को खाना देने आर्इं थी । रही बात हमारी किसी से दुश्मनी की तो आप किसी भी गाँववाले से पूछ ले अगर हमारी किसी से कोई दुश्मनी हो तो। साहब हमारी किसी से दुश्मनी नहीं है। ना ही हमें किसी पर शक है। पोलिस गाँव के लोगों से पूछताछ कर रही थी । जब पोलिस मोहनलाल से पूछताछ कर रही थी तो उसे मोहनलाल पर कुछ शक लगा । शक के आधार पर मोहनलाल को पोलिस ने गिरफ्तार कर लिया और शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया । मोहनलाल के साथ-साथ पोलिस तीन-चार लोगों को भी शक के आधार पर गिरफ्तार कर थाने ले गयी। पोलिस की जांच -पड़ताल में वे तीन-चार किसान निर्दोष पाए गए जिन्हें पोलिस कत्ल के समय खेत से गिरफ्तार करके लायी थी किन्तु पोलिस का शक मोहनलाल पर बढ़ता ही जा रहा था । शक बढ़ने का कारण उसके बदलते बयान कभी वह कुछ कहता कभी कुछ जब पोलिस ने उसके साथ सख्ती की तो उसने सारा मामला बता दिया कि उसी ने अपनी पत्नी और बेटी का कत्ल किया था । जब पोलिस ने कत्ल की बजह जानी तो वे लोग भी कत्ल की वजह जानकर दन्न रह गए। उसने बताया कि वह गाँव की किसी और स्त्री से प्रेम करने लगा था और उसके प्रेम प्रसंग के बारे में उसकी पत्नी को पता चल गया था । जिस स्त्री से वह प्रेम करता था वह उसकी ज़िन्दगी में तभी आ सकती थी जब वह अपनी पहली पत्नी और बच्चों को छोड़कर उसके पास आकर रहने लगे। चार- चार जवान बच्चों का बाप होने के कारण वह ऐसा नहृ कर सकता था । वह अपने बच्चों को भी छोड़ना नहीं चाहता था । वह चाहता था कि पत्नी के साथ-साथ दूसरी स्त्री भी उसकी ज़िन्दगी में रहे । जब उसकी पत्नी को इस प्रेम प्रसंग की जानकारी मिली तो उसने इस पर आपत्ती जताते हुए यह बात घर के बड़े लोगों को बताने की कही तो उसने उसे बहुत समझाया कि वह ऐसा न करे किन्तु वह नहीं मानी इसीलिए उसने उस को मौत के घाट उतार दिया । पोलिस ने पूछा कि इस सब में उस बेचारी बच्ची का क्या कसूर था जिसे तुमने बड़ी बेरहमी से मार डाला , तुम्हें तनिक भी दया नहीं आई। कितनी मासूम बच्ची थी ? एक बार के लिए भी तुम्हारे दिल ने तुम्हें नहीं रोका । जिस बच्ची को तुमने अपनी गोद में खिलाया पालपोसकर बड़ा किया उसका कत्ल करते हुए तुम्हे उस पर तनिक भी दया नहीं आई ? मोहनलाल ने बताया कि वह बच्ची को मारना नही चाहता था। इसीलिए उसने बच्ची को नदी से पानी लाने के लिए भेज दिया था किन्तु बच्ची पानी लेकर जल्दी लौट आई और उसने उसे उसकी माँ का कत्ल करते हुए देख लिया। उसे डर था कि बच्ची बाहर जाकर उसकी माँ के कत्ल के बारे में घरवालों को बता देगी । इसीलिए उसने बच्ची को भी मार डाला। मोहन लाल ने पोलिस को बताया कि वह पत्नी और बेटी का कत्ल करके उस स्त्री के पास गया जिससे वह प्रेम करता था किन्तु उसने उसे अपने घर से धक्के मारकर बाहर निकाल दिया । जिस प्रेम प्रसंग की खातिर उसने अपनों का कत्ल किया था, उसी ने उसे अपनाने से इन्कार कर दिया । वाह ! रे ईश्वर तेरा न्याय ।
जब गाँववालों को इस बात की खबर मिली कि मोहनलाल ने ही अपनी पत्नी और बेटी का कत्ल किया है तो वे लोग यह सुनकर सन्न रह गए । उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि सीधा-साधा दिखने वाला मोहनलाल इतनी नीचता का कमा भी कर सकता है। किसी को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि कोई बाप ऐसा भी कर सकता है। जब उसके परिवार वालों को इस बात की जानकारी मिली तो उन्हें भी इस बात पर विश्वास नहीं हुआ किन्तु जब उनके सामने सच्चाई आई तो उन्हें विश्वास हुआ । मोहलाल ने न केवल अपनी पत्नी और बेटी का खून किया, उसने खून किया है मानवता का, अपनो के विश्वास का,भरोसे का, रिश्तों का । वाह ! रे दुनिया । रामू का हँसता -खेलता परिवार बिखर चुका था । जिस पिता ने कभी बच्चों को अपनी अंगुली पकड़ कर चलना सिखाया आज उसी ने उनका सब कुछ छीन लिया । जिस पिता ने पर कभी बच्चों को गर्व हुआ करता था आज उसके नाम और शकल से भी उन्हें नफरत हो गयी है। नफरत करे भी तो क्यों न? उनकी खुशियों को ग्रहण लगाने वाला कोई और नही बल्कि स्वयं उनका ही पिता है । माँ की ममता का आँचल उनके सिर से हटाने वाला और कोई नहीं स्वयं उनका पिता ही तो है।
दो कत्ल करने के जुर्म मे मोहनलाल को आठ साल की कैद हो गई । यहाँ उसका परिवार अपने आप को उस दुख से निकालने की कोशिश में लगा था । अपने आप को सभाल रहा था । क्या करें जीवन है जीना तो है, चाहे हँस कर जीएं या रोकर , जीना तो हर हाल में होगा। पिता के एक अपराध ने रामू की जवानी को समय से पहले ही नष्ट कर दिया । हँसता -खिलखिलाता रामू परिवार की जिम्मेदारियों के बोझ तले दब चुका है। उसके कांधो पर परिवार और दो बहनों की बड़ी जिम्मेदारी है। समय से पहले ही वह अपनी उम्र से ज्यादा दिखने लगा है। वह अपने आप को उस घटना से बार-बार बाहर निकालना चाहता है लेकिन क्या करे... वह जितना उस मनहूंस घटना को भूलना चाहता है वह उतना ही उसमे धंसता चला जाता है। माँ के आँचल की छाया उसे हर पल महसूस होती है पर माँ है कि चाहकर भी अपने लाल को .........। बार-बार वह उस अंतिम दिन को याद करता है जब वह बैलों को लेकर खेतो पर जा रहा था तब माँ ने आकर छाछ और गुड़ खिलाकर उसके सिर पर प्यार भरा हाथ फेरा था, उसे विदा किया था, और पछताता है कि उस दिन यदि छोटी बहन को वहाँ रुकने के लिए न कहता तो शायद आज वह जीवित होती । अपनी छोटी बहन की मौत के लिए वह अपने आप को ही दोषी मानता है बार -बार यही कहता है कि अगर मैं उस दिन उसे अपने साथ ले जाता तो आज वह जीवित होती .........।उसका हँसता परिवार तबाह हो गया लेकिन रामू ने कभी जीवन में हार नहीं मानी । उसने अपने बिखरे परिवार को संभाला और एक मुखिया की तरह घर की बागडोर अपने हाथों में संभालते हुए अपने कर्तव्यों को पूरा किया कदम-कदम पर अपनी खुशियों का बलिदान कर, अपने परिवार को खुश रखने का प्रयत्न करता रहा । माँ-बाप के न होते हुए भी उसने कभी अपनी बहनों को अपने से अलग नहीं समझा । वक्त आने पर दोनों बहनों का विवाह सुयोग्य वर से किया। आज उसकी दोनों बहने अपनी ससुरालो में सुखी जीवन बिता रही हैं और रामू अपने परिवार के साथ खुश और सुखी जीवन बिता रहा है। जो जख्म उसे अपनों ने दिया है उसे वह कभी भूल तो नहीं सकता। जीवन में सुख-दुख आते हैं । इसी का नाम तो जीवन है।

Saturday, March 6, 2010

पर्यावरण प्रदूषण

पर्यावरण प्रदूषण



उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में विश्व स्तर पर हुई ``औद्योगिक क्रान्ति'' के बाद से तो `पर्यावरण प्रदूषण' की समस्या दिन व दिन गम्भीर ही होती जा रही है। वायुमण्डल में सभी गैसें एक निश्चित मात्रा में होती हैं परन्तु वायुमण्डल में कार्बन डाईआक्साइड, कार्बन मोनोआक्साइड, सल्फर डाईआक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड व क्लोरोफ्लोरो कार्बन की मात्रा में अत्यधिक वृद्धि हो जाने के कारण इन गैसों का संतुलन बिगड़ रहा है जिसके फलस्वरुप हरितगृह प्रभाव के कारण उत्पन्न ग्लोबल वार्मिंग एवं ओजोन परत का क्षरण जैसी समस्याऐं उभरी हैं। इन समस्याओं से निबटने के लिए सम्पूर्ण विश्व के मानव समुदाय को एकीकृत रुप से प्रयास करना होगा।


पर्यावरण हमारे चारों ओर के जैविक और अजैविक कारकों का सम्मिश्रण है। समस्त पेड़- पौधे और जीव जन्तु जैविक कारक के अन्तर्गत आते हैं जबकि वायु, जल तथा भूमि अजैविक कारकों में आते हैं। जैविक व अजैविक कारक जब तक प्रकृति में साम्यावस्था में रहते हैं तब तक ``पर्यावरण सन्तुलन'' बना रहता है, परन्तु जब दोनों कारकों में से किसी भी कारक में प्राकृतिक या अप्राकृतिक रुप से कमी या वृद्धि हो जाती है तो साम्यावस्था विचलित हो जाती है। इसी `साम्यावस्था के विचलन' को ही `पर्यावरण-असन्तुलन' तथा पर्यावरण के विभिन्न घटकों में किसी प्रकार की विकृति को `पर्यावरण-प्रदूषण' कहते हैं।


अति ठंडे प्रदेशों व ऊँचे पर्वतों पर जहां तापमान काफी कम होता है, सब्जियों व फलों आदि की खेती के लिए शीशे के घरों का निर्माण किया जाता है जिन्हें हरित गृह भी कहते हैं। ये हरित गृह पौधों के लिए आवश्यक ऊष्मा सूर्य से प्राप्त करते हैं। सूर्य से आने वाला ``लघु तरंगीय विकिरण'' शीशे की दीवारों को पार करके हरित गृह के अन्दर पहुँच जाते हैं परन्तु जब इनकी वापसी होती है तो वह दीर्घ तरंगों के रुप में होती है। अत: ये शीशे की दीवारों को पार नहीं कर पाती हैं और सूर्य विकिरण की ऊर्जा हरित गृह के अन्दर ही एकत्रित होकर पौधों की वृद्धि में सहायता करती हैं। इसी प्रकार वायुमण्डल में उपस्थित कार्बन डाईआक्साइड, मीथेन व नाइट्रस आक्साइड गैसें विकिरणों को पृथ्वी से अंतरिक्ष में जाने के मार्ग में बाधा डालती हैं जिससे ये विकिरण अंतरिक्ष में नहीं पहुँच पाते हैं क्योंकि ये विकिरण उपर्युक्त गैसों द्वारा शोषित कर लिये जाते हैं। कार्बन डाईआक्साइड, मीथेन व नाइट्रस ऑक्साइड को ताप अवशोषक गैस या ग्रीन हाउस गैसें भी कहते हैं। इन गैसों की मात्रा में निरन्तर वृद्धि हो रही है जिससे पृथ्वी के तापमान में भी ०.१ डिग्री सेल्सियस प्रति दशक के हिसाब से वृद्धि होती जा रही है। जीवाश्म ईधनों के दहन में निरन्तर वृद्धि होने से कार्बन डाईआक्साइड की मात्रा में भी वृद्धि होती जा रही है। इस वृद्धि के लिए मुख्य रुप से संसार के सबसे बड़े प्रदूषक देश अमेरिका, यूरोपीय संघ व जापान ही उत्तरदायी हैं। IGPCC (Inter Governmental Panel on Climate Change) का कहना है कि संसार को खतरनाक जलवायु परिवर्तन से बचाने के लिए इसमें तुरन्त ६० प्रतिशत कमी की जरुरत है।
१ दिसम्बर १९९७ में क्योटा (जापान) में सम्पन्न जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में हरित गृह गैसों के उत्सर्जन में विकसित देश वर्ष १९९० के स्तर से ५.२ प्रतिशत औसतन कटौती पर सहमति हुई जबकि यूरोपीय संघ ने १५ प्रतिशत कटौती का प्रस्ताव रखा था। इस सम्मेलन में जिन छ: हरित गृह गैसों की पहचान की गयी है वे हैं - कार्बन डाईआक्साइड, क्लोरोफ्लोरो कार्बन, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, ओजोन एवं जलवाष्प। गैस उत्सर्जन को रोकने हेतु ``स्वच्छ विकास कोष'' के गठन पर भी सहमति हुई। विश्व भर में कुल हरित गृह गैसों के उत्सर्जन में भारत का योगदान ०.९० प्रतिशत है जबकि अमेरिका का योगदान २५.३७ प्रतिशत है।

जापान की टोयोटा कम्पनी ने `प्रियस' नाम की कार बनाई है जिसमें बिजली तथा गैसोलीन दोनों का ही इस्तेमाल होता है। यह एक परिस्कृत कार है। परम्परागत इंजनों से आधी CO२ इस कार से निकलती है। इस प्रकार के और अधिक प्रयोगों के अतिरिक्त CO२ की मात्रा में वृद्धि को नियन्त्रित करने का एक मात्र व सरल उपाय वृक्षारोपण ही है। बढ़ते नगरीकरण के कारण जहां वृक्षों की कटाई की जा रही है वहीं दूसरी ओर इन्हें जलाने से दोहरी हानि हो रही है। ग्लोबल वार्मिंग से ध्रुवों के हिम के पिघलने का खतरा भी बढ़ गया है जिसके फलस्वरुप सागरतल में वृद्धि और फिर कुछ द्वीपों जैसे मारीशस, लक्षद्वीप आदि के जलमग्न होने की सम्भावनाएँ प्रबल हो रही हैं। जापानी पर्यावरण एजेन्सी ने अनुमान लगाया है कि जब वाहन रास्ते में पेट्रोल बचाने के लिए इंजन को बन्द कर देते हैं तो उस समय सबसे ज्यादा कार्बन डाईआक्साइड गैस निकलती है। उनके अनुसार यदि हर वाहन एक दिन में रास्ते में केवल एक मिनट ही इंजन बन्द न करें तो कार्बन डाईआक्साइड गैस का उत्सर्जन २ लाख २५ हजार २०० टन कम हो जायेगा।

वायुमण्डल में ओजोन परत जो कि समताप मण्डल में स्थित है, के क्षय से ऑस्ट्रेलिया, उत्तरी यूरोप आदि में पराबैगनी किरणों से होने वाले चर्म कैंसर की घटनाऐं बढ़ रही हैं। ओजोन एक नीले रंग की अस्थिर गैस है जिसके एक अणु में ऑक्सीजन के तीन परमाणु होते हैं। ८० से १०० कि०मी० की ऊँचाई पर ऑक्सीजन के अणु सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों द्वारा विघटित होकर स्वतन्त्र ऑक्सीजन परमाणु नवजात ऑक्साइड बनाती हैं। ये ऑक्सीजन परमाणु (O) आपस में मिलकर ऑक्सीजन O२ तथा ऑक्सीजन अणु से मिलकर ओजोन बनाते हैं। इस प्रकार ओजोन परत बन जाती है जो कि सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों को अवशोषित कर लेती हैं। इस प्रकार ये ओजोन परत पृथ्वी पर जीवन को सुरक्षित रखने के लिए रक्षा कवच की तरह कार्य करती हैं।
इस प्रकार से निर्मित ओजोन परत का विघटन भी पराबैंगनी किरणों से होता है जिसके फलस्वरूप ऑक्सीजन का एक अणु व एक परमाणु बनता है। ये ऑक्सीजन परमाणु पुन: ऑक्सीजन अणु से मिलकर ओजोन बना लेते हैं। इसी ओजोन के निर्माण व विखंडन की क्रिया में सूर्य की पराबैंगनी किरणों की ऊर्जा की खपत हो जाती है और वे पृथ्वी के धरातल तक नहीं पहुँच पातीं हैं। परन्तु वायुमण्डल में क्लोरोफ्लोरो कार्बन व नाइट्रोजन ऑक्साइड की वृद्धि के कारण ओजोन परत का निरन्तर क्षय होता जा रहा है। सुपरसोनिक जैट विमानों की तीव्र गति भी ओजोन को ऑक्सीजन में परिवर्तित कर देती है। एयरकंडीशनर, रेफ्रिजरेटर, फोम, प्लास्टिक, अग्निशामक, प्रसाधन सामग्रियाँ उत्सर्जित होती हैं और हल्का होने के कारण ये वायुमण्डल में ऊपर उठ जाती हैं। ओजोन परत के क्षय के भावी परिणामों का पूर्वानुमान करके पर्यावरणविदों ने विश्वस्तर पर क्लोरोफ्लोरो कार्बन के प्रयोग व उत्पादन मे कमी लाने तथा साथ ही साथ वैकल्पिक पदार्थों की आवश्यकता पर बल दिया है जिससे ओजोन परत के क्षय को रोका जा सके। विकसित देशों द्वारा यदि इस दिशा में अब भी ढील दी जाती रही तो पर्यावरण प्रदूषण के कारण मानव के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लग जायेगा। अत: यह मानव समुदाय के लिए परम आवश्यक है कि वह प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए निम्न बिन्दुओं पर सार्थक कदम उठावें -

• वृक्षारोपण करना।

• वाहनों में कैटालिटिक कन्डक्टर लगाकर सीसा की मात्रा को नियंत्रित करना।

• साइक्लान कलेक्टर,इलेक्ट्रोस्टेटिक प्रेसिपिटेटर,हाई एनर्जी स्क्रबर तथा फैब्रिक फिल्टर के द्वारा भी
अत्यंत छोटे आकार के कणों को वायुमण्डल में जाने से रोकना।

• उद्योग में धुऐं की चिमनियों में बैग फिल्टर का प्रयोग करके कणिकीय पदार्थों को वायुमण्डल में जाने
से रोकना।

अनुच्छेद

निम्नलिखित अनुच्छेद को पढकर अंको के स्थान पर शब्दों का प्रयोग करके अनुच्छेद पुन: लिखिए ।
10हरे का दिन था। बर 7 हो रही थी। 2लतराम का पुत्र 100रभ 4पाई पर बैठा ही था कि उसका 2स्त 1राम आ गया ।वह अपने 2स्तके 7 चल पडा।2नों 2स्त गंगा नदी के किनारे पहुँचे ही थे कि बादल छा गए। थोडी देर में बर7 होने लगी। 100रभ ने कहा 1- 13 -7 है तो डरने की क्या बात है। पर बर7 जोरों से होने लगी । 2नों 2स्त वहाँ से 9-2-11 हो गए नहीं तो भीगने की 9बत आ जाती ।जैसे ही वे 2नो घर पहुँचे बिजली चली गई। 100रभ ने कहा डरना नहीं,100रभ की बात सुनकर 1राम ने कहा मैं डरता नही हूँ। थोड़ी देर के बाद बिजली आ गई , बिजली आने के बाद 100रभ ने कहा अच्छा अब मैं चलता हूँ । 1राम ने कहा चलो मैं भी तुम्हारे 7चलता हूँ। मुझे भी 2कान से कुछ सामान लाना है।पर बाजार तो बहुत दूर है । चलो अब हम 7-7 चलते हैं । 7-7 चलने से दूरी का पता नहीं चलेगा। हम 2नो बातें करते करते चले जाएंगे।जैसे ही 100रभ 4पाई से उठा ,गिरते -गिरते बचा । तभी 100रभ के पिताजी 2लत राम जी भी वहाँ आ गए । 2लत राम को देखकर 1राम ने उन्हें नमस्कार करते हुए कहा कि हम लोग बाजार जा रहे हैं। 2लत राम ने 100रभ से कहा कि अगर तुम बाजार जा ही रहे हो तो मेरे लिए मि8ई की 2कान से 1 किलो मि8ई लेते आना।अब 2नो 2स्त घर से बाजार जाने के लिए निकल पड़े । रास्ते में उन्हें स30 मिला उन्होंने स30 से कहा चलो हमारे साथ 2कान तक चलो कुछ सामान लाना है ठीक है कहकर स30 भी उनके साथ चल दिया 3नो 2स्त मिलकर बाजार जा पहुँचे ।

Friday, March 5, 2010

वो इन्तजार मिला है।

न चैन मिलता है न करार
तेरे इन्तजार में तड़प रहा हूँ,
चाहा है जिस दिन से तुझे
मिलने को तड़प रहा हूँ।

राह में जिसकी पलके बिछाए बैठे हैं
हर पल दिल को थामें बैठे हैं,
उनके ख्यालों को दिल ले लगाए बैठे हैं
ख्यालों के जन्नत में जिन्हें छिपाए रखते हैं।

दिल पर जिसका नाम लिखा वो यार तुम हो
हर लम्हा जिसका ख्याल रहता है वो प्यार तुम हो
आँखों के सामने जिसका चेहरा रहता है वो नजर तुम हो
आज उसका साथ मिला है वो एहसास तुम हो।

कहनी थी जो दिल की बात वो तुम ने पढ ली नजरों से
तन्हाई की गलियों में जिसे खोजा करता हूँ वो यार तुम हो
जिसके आने के इन्तजार में हम बैठे थे वो तुम हो।
तेरे प्यार में करते रहे अब तक ,वो इन्तजार मिला है।